बुंदेलखंड के प्रवासी श्रमिकों ने श्रमदान से पुनर्जीवित की घरार नदी 

3 Jul 2020
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बांदा जिले के लौटे प्रवासी श्रमिक लुप्त हो चुकी घरार नदी की सफाई करते हुए। फोटो: अनिल सिंदूर
बांदा जिले के लौटे प्रवासी श्रमिक लुप्त हो चुकी घरार नदी की सफाई करते हुए। फोटो: अनिल सिंदूर

पन्ना मप्र से निकलकर यूपी के बांदा आने वाली घरार नदी मूलतः बागेन नदी की सहायक नदी है। कभी यह 40-50 फीट में बहने वाली नदी अब अतिक्रमण की शिकार है। कहीं-कहीं तो 50 फीट चौड़ी थी नदी, अब वर्तमान में कहीं-कहीं तो केवल 10 फीट चौड़ाई बच गई है। नदी पुनर्जीवन हेतु अतिक्रमण को गाँव वाले छोड़ने को तैयार भी हैं। 

बुन्देलखण्ड की कहावत है “पानी दार यहाँ का पानी, आग यहाँ के पानी में” इस  कहावत को सच कर दिखाया मुंबई, सूरत, अहमदाबाद, दिल्ली से लौटे गाँव भावंरपुर तहसील नरैनी जनपद बाँदा के प्रवासी श्रमिकों ने और अपने श्रमदान से घरार नदी को पुनर्जीवित कर दिया । यह नदी पन्ना मप्र के जंगलों से आती है और बागेन नदी में समाहित हो जाती है

लगभग 30 वर्षों से घरार नदी लगभग अपना अस्तित्व खो चुकी है। पूर्व में यह नदी 40 से 50 फिट चौड़ी हुआ करती थी लेकिन वर्तमान में यह नाले से भी बदतर है। पूर्व में लघु एवं सीमांत किसानों के लिए ये नदी वरदान थी। इस नदी के पानी से खेती कर गाँव के किसान अपना जीवन यापन करते थे लेकिन जैसे जैसे नदी अपना अस्तित्व खोती गई गाँव से काम की तलाश में पलायन शुरू हो गया। गाँव में केवल बुजुर्ग और महिलाएं ही रहती थी। कोरोना महामारी में जब इस गाँव के प्रवासी श्रमिक लौट कर आये तो काम की तलाश शुरू हुई.लौटे प्रवासियों ने जब काम की तलाश शुरू की तो उन्हें मनरेगा योजना में भी काम नहीं मिल सका, उनके पास जॉब कार्ड नहीं थे। तब विद्या धाम समिति के अगुआ राजा भईया ने सभी प्रवासियों की बैठक की और बुजुर्गों से पूछा कि पहले गाँव में काम क्या किया करते थे तब गाँव वालों ने बताया कि नदी के पानी से खेती कर लिया करते थे जिससे गुजर बसर हो जाया करती थी लेकिन नदी पर सरकार ने ढेरों चैकडेम बना दिये जिसके फलस्वरूप नदी मर गयी और पानी मिलना बन्द हो गया। नदी में पानी न आने के कारण अतिक्रमण भी हुआ और झाड़-झाकड़ भी खड़े हो गये। ऐसे में नौजवानों को काम की तलाश में शहरों का रुख करना पड़ा। तब बैठक में भईया राजा ने  प्रस्ताव रखा कि उनकी रसोई की चिंता हम करेंगे जब तक उनके जॉब कार्ड नहीं बने हैं तब तक वह अपने श्रमदान से अस्तित्व खो चुकी नदी को पुनर्जीवित करने का काम करें। पानी होगा तो खुशहाली आयेगी। हम सभी अपने खाने को किचिन गार्डन तैयार करेंगे हम सब जैविक खाद से उपजी सब्जियां पैदा करेंगे गाँव की जरुरत पूरी करेंगे साथ ही उन्हें बेच कर रोज की जरूरतें भी पूरी करेंगे। प्रवासियों और गाँव के बुजुर्ग लोंगों को ये प्रस्ताव बेहद पसन्द आया और सभी दूसरे दिन ही चल पड़े श्रमदान को अपने फावड़े, कुदाल लेकर  नदी को पुनर्जीवित करने को। 

खास बात यह है कि श्रमदान में महिलाओं ने भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। घरार नदी की लम्बाई उप्र क्षेत्र में लगभग 70 किमी है तथा मप्र क्षेत्र में लगभग 130 किमी है। उप्र क्षेत्र में इस नदी पर 35 चैकडेम बने है जिसके कारण आखिरी छोर तक आते आते यह मर गयी है।  प्रवासियों ने लगभग 1.5 किमी का हिस्सा पुनर्जीवित कर लिया है। नदी से जैसे ही उग आई बेशरम पेड़ों को पूरी तरह से साफ किया गया नदी के जल श्रोत खुलने लगे और नदी में पानी आ गया। पानी के आते ही गाँव के लोंगों का होंसला बढ़ने लगा और श्रमिकों की संख्या भी बढ़ने लगी। नदी को पुनर्जीवित होते देख गाँव के लोंगों ने नदी पर किये अतिक्रमण छोड़ दिए साथ ही उन्होंने घोषणा की कि जो भी नदी पर किये गये अतिक्रमण को नहीं छोड़ेगा उसका सामाजिक बहिष्कार किया जायेगा। 

विद्याधाम समिति के अगुआ कार भईया राजा ने बताया कि सभी के जॉब कार्ड तथा राशन कार्ड बनवाये जायेंगे, सब्जियां तथा अनाज उगाने को समिति बीज उपलब्ध करवायेगी। इस तरह भरण पोषण के सभी उपाय श्रमिकों के तैयार किये जांयेगे। अन्ना प्रथा में छोड़े गये बछड़ों को संरक्षित कर बैलों से खेती करवाई जायेगी.

पास के लगे गाँव रानीपुर, कनाय, बाबूपुर, पंचमपुर तथा करतल के लोंगों ने सफल होते श्रमदान को देखते हुये इनको प्रोत्साहन करने को खुद भी श्रमदान किया।     

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