राजधानी में घुल रहा बायोमेडिकल वेस्ट का ज़हर

31 Jul 2019
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राजधानी में घूल रहा बायोमेडिकल वेस्ट का ज़हर।
राजधानी में घूल रहा बायोमेडिकल वेस्ट का ज़हर।

उत्तराखंड की राजधानी और एक एतिहासिक शहर होने के साथ-साथ देहरादून प्राकृतिक सौंदर्य और जैव विविधता से सराबोर एक जिला भी है, जिसकी वादियों का अलौकिक सौंदर्य देश-विदेश के पर्यटकों को यहां आकर्षित करता है। इसे द्रोणाचार्य की तपस्थली होने के कारण द्रोण नगरी के नाम से भी जाना जाता है। राजधानी होने के कारण प्रदेश की राजनीति का अखाड़ा भी देहरादून में ही लगता है और प्रदेश के विकास की नींव भी राजधानी से ही रखी जाती है, लेकिन विकास और पर्यावरण के बीच समन्वय न होने के कारण देहरादून की वादियों में जहर घुल रहा है और ये वादियां अपनी पहचान खोती जा रही हैं। जिसमें औद्योगिक, वाहनों और घेरलू प्रदूषण के साथ-साथ लोगों को रोगमुक्त करने वाले अस्पतालों का बायोमेडिकल वेस्ट भी प्रदूषण का एक कारण बन गया है, लेकिन पर्यावरण के प्रति राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी और नगर निगम के साथ-साथ जिला प्रशासन की उदासीनता के कारण ये समस्या साल-दर-साल बढ़ती जा रही है, जिससे देहरादून का जल, जमीन और हवा प्रदूषित हो चुके हैं। 

बायोमेडिकल वेस्ट का निस्तारण पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के प्रावधानों के अंतर्गत किया जाता है। नियमों का उल्लंघन करने पर अधिनियम के सेक्शन 15 के तहत पांच साल तक की जेल, एक लाख तक का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। सेक्शन पांच में अस्पतालो का बिजली का कनेक्शन काटने और सीलिंग की कार्रवाई की जा सकती है।

बायोमेडिकल वेस्ट डायग्नोस्टिक प्रक्रिया के उपयोग में आने वाली किसी भी प्रकार की सामग्री होती है, जो संभावित संक्रामकों से दूषित होती है। इसमें मानव अंग, पशु अंग, माइक्रोबायोलाॅजी वेस्ट, वेस्ट शार्प, एक्सपायर दवाएं, साॅलिड वेस्ट, खून, घावसनी रुई, प्लास्टर, तरल वेस्ट, इंसिन्युरेटर वेस्ट और केमिकल वेस्ट शामिल होते हैं। बायोमेडिकल वेस्ट को खुलें में फेंकने पर ये हवा, जल और जमीन को प्रदूषित कर देता है, जिससे फेफडों में संक्रमण, परजीवी के संक्रमण, त्वचा के संक्रमण, एचआईवी, हेपेटाइटिस बी और सी जैसी वायरल बीमारियों का प्रसार, हैजा, ट्यूबरक्लोसिस आदि बीमारियों के होने की संभावना बढ़ जाती है। इसे काफी खतरनाक माना जाता है, इसलिए अस्पतालों से निकलने वाले वेस्ट के लिए रुड़की में जैव चिकित्सा अपशिष्ट निस्तारण केंद्र बनाया गया है और शासन ने बायोमेडिकल वेस्ट के ट्रीटमेंट के लिए रुड़की में ही मेडिकल पाॅल्यूशन कंट्रोल कमेटी (चिकित्सा प्रदूषण नियंत्रण समिति) को अधिकृत किया है। सभी अस्पतालों को प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से प्राधिकार लाइसेंस लेना भी अनिवार्य किया गया है, ताकि अस्पतालों का कूड़ा नियमित रूप से निस्तारण केंद्र तक पहुंचता रहे, लेकिन देहरादून के 220 अस्पतालों में से 97 ने प्राधिकार लाइसेंस ही नहीं लिया है, जिनमें 45 अस्पताल शहर के बीचो बीच हैं। ये अस्पताल बायोमेडिकल वेस्ट को नगर निगम के कूड़ेदान या जहां तहां, डंप कर देते हैं। नगर निगम को बोयोमेडिकल वेस्ट को उठाने के लिए मना किया गया है, लेकिन फिर भी नगर निगम के कर्मचारी जांच पड़ताल किये बिना अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हुए बायोमेडिकल वेस्ट को अन्य सामन्य कूड़े के साथ निगम के डंपिंग यार्ड में फेंक देते हैैं। कई अस्पताल तो कूड़े को खुले में फेंकने के बाद उसमे आग लगा देते हैं, जिससे ये राजधानी के जल, जमीन और वादियों में जहर घोल रहे हैं, लेकिन सब कुछ जानने के बाद भी सरकारी तंत्र कार्रवाई करने की जहमत नहीं उठा पा रहा है। 

दरअसल बायोमेडिकल वेस्ट का निस्तारण पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के प्रावधानों के अंतर्गत किया जाता है। नियमों का उल्लंघन करने पर अधिनियम के सेक्शन 15 के तहत पांच साल तक की जेल, एक लाख तक का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। सेक्शन पांच में अस्पतालो का बिजली का कनेक्शन काटने और सीलिंग की कार्रवाई की जा सकती है। इसके अलावा बायोमेडिकल वेस्ट के लिए कूड़ादान भी अलग-अलग रंग के होने चाहिए। जिसमें लाल रंग का कूड़ादान माइक्रोबायोलाॅजी, साॅयल्ड और साॅलिड वेस्ट के लिए, पीला कूड़ादान मानव अंग, पशु अंग, माइक्रोबायोलाॅजी, साॅयल्ड वेस्ट, नीला व सफेद कूड़ादान वेस्ट शार्प और साॅलिड वेस्ट तथा काला कूड़ादान एक्सपायरी दवाएं, इंसिन्युरेटर एश, केमिकल वेस्ट के लिए होना चाहिए। इसके बाद निस्तारण के लिए कूड़े को दस श्रेणियों मे बांटा जाता है, लेकिन अलग-अलग रंग के कूड़ादान तो दूर, पर्यावरण संरक्षण के नियमों तक का पालन नहीं किया जाता है। आंकड़ांे पर नजर डालें तो देहरादून नगर निगम क्षेत्र में रोजाना लगभग 3 सौ मीट्रिक टन कूड़ा एकत्र होता है। इसमें 2300 किलो बायोमेडिकल वेस्ट होता है, जिसमें से 1228 किलो कूड़ा ही उठता है, जो कि ज्यादातर सरकारी अस्पतालों का है। शेष बचा कूड़ा निजी अस्पतालों, नर्सिंग होम, क्लीनिक आदि जहां-तहां खुले में फेंक देते हैं। इसमें नगर निगम के सफाईकर्मियों और सेनेटरी निरीक्षकों की कार्यप्रणाली भी संदेह के घेरे में रहती है। जिस कारण पर्यावरण संरक्षण के नियम केवल फाइलों तक ही सीमित नजर आ रहे हैं और शासन-प्रशासन की अनदेखी राजधानी की सेहत बिगाड़ रही है।  

बायोमेडिकल कचरे की दस श्रेणी, उपचार विविध और निस्तारण

  1. मानव अंग - जमीन में गाडे जा सकते अथवा जला भी सकते हैं।
  2. पशु अंग - जमीन में गाडे जा सकते अथवा जला भी सकते हैं।
  3. माइक्रोबायोलाॅजी वेस्ट - जमीन में गाड़े जा सकते हैं।
  4. वेस्ट शार्प - उपचार में प्रयुक्त ब्लेड, चाकू जैसे उपकरणों या औजारों को केमिकल में साफ करके जमीन में गाड़ना।
  5. एक्सपायर दवाएं - जलाना।
  6. साॅयल्ड वेस्ट - खून, धावसनी रुई, प्लास्टर आदि जैसे वेस्ट को जलाया जा सकता है।
  7. साॅलिड वेस्ट - यूरिन ट्यूब आदि जैसे उपकरणों का केमिकल से ट्रीटमेंट करने के बाद जमीन में गाड़ा जा सकता हैं
  8. तरल वेस्ट - हाइपो साॅल्यूशन के माध्यम से उपचारित कर नाली में भी बहाया जा सकता है।
  9. इंसिन्युरेटर ऐश - यह एक ऐसी प्रकार की राख होती है, जो चिकित्सीय कचरे को जलाने के बाद निकलती है। इसे नगर निकायों की डंपिंग साइटपर डंप किया जा सकता है।
  10. केमिकल वेस्ट - केमिकल ट्रीटमेंट के बाद नाली में बहा दिया जाता है। 

 

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