राजेन्द्र सिंह को स्टॉकहोम वाटर-प्राइज

भारत में जल-पुरूष के नाम से विख्यात राजेन्द्र सिंह को आज दुनिया का पानी के लिए सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार स्टॉकहोम वाटर-प्राइज देने की घोषणा की गई। पुरस्कार की घोषणा होते ही पूरे भारत के जलकर्मियों में विशेष उत्साह है। पुरस्कार की घोषणा के बाद राजेन्द्र सिंह ने अपने उद्बोधन में कहा कि वाष्पीकरण रोक कर धरती का पेट भरने से नदी पुनर्जीवित करने वाले भारतीय ज्ञान को स्टाॅकहोम 2015 का जल पुरस्कार मिला है। यह जल का नोबेल प्राइज हमारी जल उपयोग दक्षता की सफलता है। 07 नदियों के पुनर्जीवन वाले 30 वर्षों के प्रयोग की विजय हुई है। यह मेरे जीवन का अब तक का सबसे बड़ा आनन्द और गौरव है।

चुनौतियाँ स्वीकार करना मेरा स्वभाव है। भू-जल हमारे क्षेत्र में खत्म हो गया था। उसे भरना कठिन रास्ता था। वर्तमान शिक्षा तो केवल भू-जल शोषण की तकनीक और इन्जीनियरिंग सिखा रही है। संरक्षण द्वारा समाधान का अपमान हो रहा है। मैंने संरक्षण से समृद्धि और जलवायु समाधान का कठिन रास्ता चुनना पसन्द किया। इसमें मुझे अपमान-सम्मान और सफलता मिली है। अब इस कठिन रास्ते को विश्व भर से मान्यता मिल रही है।

राजस्थान में जल संरक्षण आरम्भ करते समय केवल पेयजल की व्यवस्था ही करनी थी। जोहड़ बनाकर भू-जल पुनर्भरण करके कुओं में तब पेयजल की स्थाई व्यवस्था ही उद्देश्य था। वह पूरा हुआ, खेती भी होने लगी, शहर से लोग वापस अपने गाँव लौटने लगे, 07 नदियाँ सजल बन गईं।

अब भावी विश्व जल युद्ध से दुनिया को बचाना है। 21वीं सदी जल युद्ध की सदी है। चारों तरफ पानी की वजह से लड़ाई-झगड़े हैं। इन्हें मिटाने हेतु दुनिया में जल-जन जोड़ कर जल शान्ति के लिए जल संरक्षण व जल उपयोग दक्षता बढ़ाकर, विश्व शान्ति कायम करनी हैै।

मैं जलकर्मी हूँ। जल को समझना-समझाना, सहेजना और जलाधिकार हेतु जल सत्याग्रह करना मेरे जीवन भर का कार्य रहा है।

8600 वर्ग किलोमीटर भूमि पर बसे 1200 गाँव के समाज को समझाकर संगठित करके उनके द्वारा 11 हजार से अधिक जल संरक्षण, संरचनाओं का निर्माण कराया है। इनसे भू-जल पुनर्भरण हुआ तो इनसे अरवरी, रूपारेल, सरसा, भगाणी, जहाजवाली, सावी और महेश्वरा 07 नदियाँ पुनर्जीवित हो गईं हैं।

भारत सरकार और राज्य सरकारों ने भी ऐसा काम करने हेतु अपने अधिकारियों को हमारेे कार्य क्षेत्र में प्रशिक्षित कराया है। इससे सीखकर वे भी अब ऐसे कार्य करने लगे हैं। इस कार्य से बाढ़ सुखाड़ मुक्ति होती है। यह सत्य दुनिया ने माना है इसलिये दुनिया भर के लोग यह सीखने यहाँ आते हैं।

प्रकृति का चारों तरफ से शोषण, प्रदूषण और अतिक्रमण बढ़ रहा है। हमारा कार्य इन्हें कम करके संरक्षण द्वारा समृद्धि को बढ़ा रहा है। मेरे लिये वही सबसे बड़ा गौरव है। शोषण मुक्त प्रकृति से पोषण व समृद्धि आती है। मैंने प्राकृतिक पोषण किया है। यह कार्य सदैव मुझे गौरवान्वित करता है।

मेरी पढ़ाई आयुर्वेद का उद्देश्य आरोग्य रक्षण है। मैंने भी जल संरक्षण करके आरोग्य रक्षण ही किया है। इसलिए मुझे बिल्कुल भी मलाल नहीं है बल्कि अच्छा लग रहा है। मैंने आयुर्वेद की उपचार विधियों पर कार्य नहीं किया मैं आयुर्वेद उद्देश्य की पूर्ति के लिये जल स्वच्छता, जल संरक्षण, भू-जल पुनर्भरण करके लोगों को निरोग और समृद्ध बना रहा हूँ। जल स्वस्थ होगा तो मानव स्वस्थ रहेगा।

अप्रैल 2013 से भारत में जल साक्षरता के लिए शुरू किये गये जल-जन जोड़ो अभियान ने भारत में पानी के संरक्षण और सम्वर्धन के प्रति व्यापक जागरूकता फैलाई है। भारत में जल सुरक्षा का कानून बने इसके लिये सभी को एक साथ जोड़ने का काम कर रहा हूँ। जल से जन को जोड़ने की यह मुहिम मैं और मेरे साथी संजय सिंह पूरी मेहनत और लगन से दिन-रात इसको आगे बढ़ा रहे हैं। आज इस अभियान में देशभर के 1500 से अधिक संगठन जुड़े हुए हैं। आने वाले दिनों में और संगठनों को जोड़ने का प्रयास करूँगा। महाराष्ट्र के सूखा प्रभावित क्षेत्र मराठवाड़ा में धरती के खाली पेट को भरने के लिए स्थानीय समुदाय के साथ मिलकर प्रयास प्रारम्भ किया है। देश में जहाँ-जहाँ पर पानी का संकट है उन इलाकों को पानीदार बनाना अब मेरे जीवन का लक्ष्य है।

भविष्य में विश्व जल शान्ति कायम करना है। यह जल संरक्षण व जल उपयोग दक्षता बढ़ाने से ही सम्भव है। मैं इसी में लगा हूँ। भविष्य में भी यही कार्य करता रहूँगा।

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading