राम के बाद क्या अब गंगा को कुर्बान करेगी भाजपा?

12 Jul 2012
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Ganga
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पिछले तीन महीने से गंगा के मसले पर चुप्पी साधे बैठे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने प्रतिनिधिमंडल को आश्वस्त किया है कि बिजली परियोजनाओं से धारी देवी व उत्तराखंड के पर्यटन की रक्षा की जायेगी। लेकिन क्या इससे गंगा बच जायेगी? भाजपा प्रतिनिधिमंडल गंगा बचाने गया था या समीक्षा के नाम पर बिजली परियोजनाओं को बचाने? यह राजनीति का दोगलापन है। गंगा, हर धर्म और वर्ग की आस्था का प्रतीक है। गंगा, सिर्फ आस्था नहीं यह भारत की पहचान भी है और बहुत बड़ी आबादी का प्राणाधार भी। इसे एक संप्रदाय विशेष का एजेंडा बनाना सर्वधर्म सम्मान की भारतीय संस्कृति का अपमान है।

गंगा पर हो रही राजनीति का भाजपाई चेहरा तो और भी शर्मसार करने वाला है। जब तक भाजपा उत्तराखंड में थी, भाजपा ने एक बार भी उत्तराखंड की बिजली परियोजनाओं को लेकर गंगा की चिंता नहीं की। सिवाय उमा भारती द्वारा चुनाव से पहले धारीदेवी मंदिर को लेकर बयान देने के। ध्यान देने की बात है कि उत्तराखंड व उ. प्र. चुनाव से पूर्व इन प्रदेशों में अपने पैर जमाने की गर्ज से उमा जी जगह-जगह जाकर गंगा रागिनी गाती रहीं। गंगा समूहों का गठन करती रहीं। ऐन चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने समूहों को तो याद रखा, लेकिन गंगा को भूल गईं। वह कहीं जाकर यह नारा नहीं दे सकी – “आप हमे वोट दो, हम आपको निर्मल-अविरल गंगा देंगे।’’

खैर! अब आगामी लोकचुनाव के लिए 2013 के कुंभ में वोट बटोरने की नीयत से ‘अविरल गंगा-निर्मल गंगा’ अभियान छेड़ने का भाजपा ने फैसला कर लिया है। पार्टी ने गंगा को हिंदू एजेंडा बनाने की नीयत से मदनमोहन मालवीय के नेतृत्व में देश के रजवाड़ों, हिंदू संगठनों और ब्रिटिश हुकूमत के बीच हुए समझौते की प्रति दिखाना शुरू कर दिया है। वह अब गंगा की अविरलता को लेकर चल रहे संघर्ष के सौ वर्षों के इतिहास को खंगालकर हिंदूवादी संगठनों की भूमिका को प्रचार देने की भी कोशिश करें, तो ताज्जुब नहीं। यूं भी इधर गंगा मुक्ति संग्राम में साधू-संतों के बनते नये गठजोड़ को देखते हुए भी भाजपा को गंगा नहाने में फायदा ही फायदा दिख रहा है।

उल्लेखनीय है कि पार्टी की मुंबई कार्यकारिणी की बैठक में बाकायदा प्रस्ताव के जरिए एक नये कानून बनाकर गंगा को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने तथा गंगा प्राधिकरण के कामकाज की निगरानी के लिए ‘कैग’ की तर्ज पर संवैधानिक संस्था गठित करने की मांग की गई। गंगा प्राधिकरण का समयबद्ध लक्ष्य कार्यक्रम व प्रदूषण मुक्ति भी मांग में शामिल है। प्रस्ताव गंगा पर बांध परियोजनाओं के खिलाफ नहीं है, लेकिन अब भाजपा चाहती है कि गंगा की कम से कम एक धारा को तो इनसे मुक्त रखा जाये। मालूम नहीं, उत्तराखंड में अपनी पार्टी की सरकार रहते हुए भाजपा के अग्रेजों ने यह क्यों नहीं चाहा। फिलहाल गंगा प्रवाह मार्ग के किसी प्रदेश में सीधे भाजपा नेतृत्व वाली सरकार नहीं है। इसलिए भाजपा के लिए सत्ताविरोधी यह अभियान और भी मुफीद है। सवाल पूछा जा सकता है कि भाजपा अपने गंगा अभियान की शुरूआत बिहार से ही क्यों नहीं करती, जहां उसके समर्थन से सरकार है। गंगा व उसकी सहायक धाराओं में बढ़ते प्रदूषण और नुकसानदेह रेत के अवैध खनन में बिहार का भी कम हाथ नहीं। सवाल यह भी पूछा जा सकता है कि जिस नदी जोड़ परियोजना से सिंचाई के मंहगे होने, नदियों की जैविकी बिगड़ने, जोड़ के मार्ग के वन क्षेत्रों व जीवों के नष्ट होने, पलायन व कर्ज समेत तमाम तर्क मौजूद हैं, उससे नदी जोड़ से देश से उबारने के बारे में भी क्या वे कोई अभियान चलायेंगे?

इस बार गंगा भाजपा के राष्ट्रीय चुनावी एजेंडे की बलिवेदी पर है। एजेंडे पर गंगा के तेजी से आगे आने का संकेत इसी से मिलता है कि गंगा मसले को लेकर सात जुलाई को जो भाजपा प्रतिनिधिमंडल प्रधानमंत्री से मिला, उसमें लालकृष्ण आडवाणी, नितिन गडकरी, सुषमा स्वराज और अरुण जेटली जैसे दिग्गज थे। दिलचस्प है कि प्रतिनिधिमंडल ने गंगा की कम से कम एक धारा को बांध परियोजनामुक्त करने की राहत देने लायक मांग को रखने की बजाय धारी देवी मंदिर की मांग को आगे रखा। गंगा को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करना, हिमालयी क्षेत्र की बिजली परियोजनाओं की समीक्षा, उत्तराखंड को उर्जा प्रदेश बनाने के सपने की रक्षा और परियोजनाओं के बाधित होने की एवज में उसे 2000 मेगावाट बिजली निशुल्क देने की मांग भी प्रतिनिधिमंडल ने की।

राजनीति का एक चेहरा यह भी है कि उमा भारती के अलावा इस प्रतिनिधिमंडल में उत्तराखंड के दो पूर्व ऐसे भाजपा मुख्यमंत्री भी थे, सत्ता में रहते हुए जिन्होने गंगा को बचाने की कोशिश नहीं की। भगत सिंह कोशियारी और रमेश पोखरियाल निशंक। हालांकि प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि श्रीनगर बांध परियोजना के पूर्व प्रारूप से धारी देवी मंदिर को कोई खतरा नहीं था, लेकिन यह बात सफेद झूठ से ज्यादा कुछ नहीं। सच यह है कि निशंक ने धारी देवी के मंदिर को बचाने की गुहार हमेशा अनसुनी की। धारी देवी, गढ़वालियों की आस्था का प्रमुख केन्द्र हैं। उनका विश्वास है कि धारी देवी में मानी मनौती अवश्य पूरी होती है। क्या धारी देवी के जरिए भाजपा की मनौती पूरी होगी?

हालांकि पिछले तीन महीने से गंगा के मसले पर चुप्पी साधे बैठे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने प्रतिनिधिमंडल को आश्वस्त किया है कि बिजली परियोजनाओं से धारी देवी व उत्तराखंड के पर्यटन की रक्षा की जायेगी। लेकिन क्या इससे गंगा बच जायेगी? भाजपा प्रतिनिधिमंडल गंगा बचाने गया था या समीक्षा के नाम पर बिजली परियोजनाओं को बचाने? यह राजनीति का दोगलापन है। गंगा, हर धर्म और वर्ग की आस्था का प्रतीक है। गंगा, सिर्फ आस्था नहीं... यह भारत की पहचान भी है और बहुत बड़ी आबादी का प्राणाधार भी। इसे एक संप्रदाय विशेष का एजेंडा बनाना सर्वधर्म सम्मान की भारतीय संस्कृति का अपमान है।

कह सकते हैं कि फिलहाल भाजपा गंगा में वोट और नोट से ज्यादा कुछ नहीं देख रही। क्या यह उचित है? कम से कम पिछले एक बरस से गंगा बचाओ अभियान का झंडा उठाये घूम रही उमा भारती जी को तो यह अपने आप से अवश्य पूछना चाहिए। उमा जी राजनेता के साथ-साथ एक साध्वी भी हैं। उन्हें जानना चाहिए कि राजनैतिक पराभव के दिनों में वह जिन कोटेश्वर महादेव के शरणागत होती रही हैं, ये परियोजनायें एक दिन उनकी निजी आस्था के स्थान को भी ले बैठेंगी। क्या आस्थाओं का यही मोल है? क्या पैसा और सत्ता ही सब कुछ है... गंगा जैसी मां और उसके प्रति राष्ट्रीय आस्था कुछ नहीं? क्या गंगा जैसी मां के लिए भी राजनीति का यह दोगलापन हमे स्वीकार्य है??

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