रासायनिक रंगों के प्रदूषण से बचा सकता है सोना

colour
colour

भविष्‍य में रंगों के कारण प्रदूषित होने वाले पानी को साफ करने में सोना की भूमिका काफी महत्‍वपूर्ण हो सकती है। इससे विकसित करने वाले शोधकर्ताओं की टीम में नवीन कुमार मोगा, सारांश गोसाईं और धनराज टी मैसराम शामिल हैं।

नई दिल्‍ली, 18 अप्रैल 2017 (इंडिया साइंस वायर): रंग-बिरंगे कपड़े सभी को खूब लुभाते हैं, पर बहुत कम लोगों को पता होगा कि इन कपड़ों की रंगाई में जहरीले रंगों का उपयोग होता है, जिससे बड़े पैमाने पर जल-प्रदूषण फैलता है। भारतीय वैज्ञानिकों ने गोल्‍ड पार्टिकल्‍स यानी सोने के सूक्ष्‍म कणों के उपयोग से इस समस्‍या से निपटने का एक अनूठा तरीका खोज निकाला है।

दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने अब एक ऐसा उत्‍प्रेरक विकसित किया है, जिससे टेक्‍सटाइल्‍स डाई के कारण होने वाले जल-प्रदूषण से निपटने में मदद मिल सकती है। सोने के सूक्ष्‍म कणों (नैनो-पार्टिकल्‍स) को पॉली डाई-मिथाइल-एमिनो-इथाइल मीथेक्राइलेट (पीडीएमएईएमए) नामक एक रासायनिक पदार्थ के साथ जोड़कर यह उत्‍प्रेरक बनाया गया है।

पीडीएमएईएमए की वजह से सोने के सूक्ष्‍म कण किसी कीट के आकार में बदल दिए जाते हैं। इसी कारण वैज्ञानिकों ने इसे ‘गोल्‍डवर्म’ नाम दिया है। साइंटिफिक जर्नल एप्‍लाइड साइंसेज में प्रकाशित अध्‍ययन रिपोर्ट में शोधकर्ताओं ने बताया है कि ‘सोने के सूक्ष्‍म कणों की कैपिंग करके पीडीएमएईएमए इन कणों के ढांचे को कीट के आकार में बदलने में अहम भूमिका निभाता है। वैज्ञानिकों के अनुसार इस तरह बने सोने के नैनोवर्म को ढांचागत सहारा देने के लिए ग्रेफेन ऑक्साइड की एक शीट पर स्थिर कर दिया जाता है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक गोल्‍ड नैनोवर्म से बने उत्‍प्रेरक की मदद से रोडामाइन-बी, इओसिन-वाई और मिथाइल-ऑरेंज जैसे रंगों को विघटित करके सुरक्षित उत्‍पादों में बदला जा सकता है। इन रंगों के स्‍थाई रासायनिक ढांचे के कारण इनका विघटन काफी कठिन होता है।

कपड़े के उत्‍पादन में चीन के बाद भारत का दूसरा स्‍थान है। कपड़ों को रंगने के लिए वस्त्र उद्योग में रंगों का उपयोग होता है और बेकार हो चुके रंगों को नालों में बहा दिया जाता है, जिसके कारण भूमिगत जल समेत अन्‍य जलस्रोत भी प्रदूषित हो जाते हैं। इसी कारण एक ऐसे उत्‍प्रेरक की जरूरत लंबे समय से महसूस की जा रही थी, जिससे इन रंगों को विघटित करके जल-प्रदूषण कम किया जा सके। वैज्ञानिकों के अनुसार अगर रंगों का पुनर्चक्रण किया जा सके तो यह पर्यावरण के अनुकूल होगा।

सोने के सूक्ष्‍म कणों से बनाया गए इस नए उत्‍प्रेरक को कम से कम पांच बार दोबारा उपयोग किया जा सकेगा। इसे बनाने वाले शोधकर्ताओं का कहना है कि “यह काफी प्रभावी पदार्थ है, जिसका पुनर्चक्रण किया जा सकता है और यह उपयोग करने में भी आसान है, जिस कारण प्रदूषित जल के प्रबंधन में इसका उपयोग फायदेमंद हो सकता है।”

इस उत्‍प्रेरक की मदद से पानी में मौजूद 80 प्रतिशत रंग को 100 सेंकेंड से भी कम समय में विघटित किया जा सकता है, जिस कारण भविष्‍य में रंगों के कारण प्रदूषित होने वाले पानी को साफ करने में इसकी भूमिका काफी महत्‍वपूर्ण हो सकती है। इससे विकसित करने वाले शोधकर्ताओं की टीम में नवीन कुमार मोगा, सारांश गोसाईं और धनराज टी मैसराम शामिल हैं। (इंडिया साइंस वायर)

भाषांतरण : उमाशंकर मिश्र

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading