रायपुर जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में तालाबों का भौगोलिक अध्ययन : सारांश


प्रस्तुत शोध-प्रबंध रायपुर जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में निर्मित तालाबों से संबंधित हैं। इस अध्ययन का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में तालाब की उपलब्धता का आकलन, तालाबों का वितरण एवं प्रभावित करने वाले कारकों, तालाबों की आकारिकीय समीक्षा तथा तालाबों के मानव जीवन में पड़ने वाले प्रभावों की व्याख्या करना है। रायपुर जिले के पंद्रह विकासखंड, आरंग, अभनपुर, धरसीवां, सिमगा, भाटापारा, बलौदाबाजार, पलारी, तिल्दा, राजिम, गरियाबंद, मैनपुर, छुरा, कसडोल, बिलाईगढ़, देवभोग, शामिल हैं। यह अध्ययन प्राथमिक आंकड़ों पर आधारित है। अध्ययन हेतु प्रत्येक विकासखंड के अंतर्गत तीन से पाँच गाँवों का चयन किया गया है। इस प्रकार यह अध्ययन जिले के इन ग्रामों में चयनित 285 तालाबों पर आधारित है। ग्रामों का चयन यादृच्छित प्रतिचयन के द्वारा किया गया है। प्रत्येक ग्रामीण क्षेत्रों में तालाबों की संख्या तीन से पाँच तक पायी गयी है। किसी-किसी ग्राम में इसकी संख्या अधिक पायी गयी है।

रायपुर जिला छत्तीसगढ़ राज्य के मध्य में स्थित है। जिले के भौगोलिक स्थिति 19045’16’’ उत्तरी अक्षांश से 21045’’ उत्तरी अक्षांश तथा 8103’ पूर्वी देशांश से 82058’48’’ पूर्वी देशांश के मध्य है। जिले का कुल क्षेत्रफल 15190.60 वर्ग कि.मी. है। इसके क्षेत्र में चार प्रमुख भू-गर्भिक संरचनाएँ मिलती हैं। सबसे प्रमुख शैल कुडप्पायुगीन शैल समूहों का घनत्व है। इसका क्षेत्र पूर्वी एवं उत्तरी भाग में है। आर्कियन की चट्टानें अध्ययन क्षेत्र के 8607 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर फैली है। रायपुर जिला भारतीय प्रायद्वीप का एक भाग है तथा इसकी धरातलीय आकृति महानदी द्वारा निर्मित छत्तीसगढ़ के मैदान का एक भाग है। इसकी ढाल अत्यंत मंद या साधारण है। समुद्र तल से औसत ऊँचाई 298 मीटर है। रायपुर जिले का अपवाह तंत्र महानदी प्रणाली के अंतर्गत आता है।

रायपुर जिले की जलवायु की विशेषता शुष्क ग्रीष्म ऋतु तथा मॉनसूनी वर्षा है। वर्षा के दिन वर्ष में 52 से 62 दिनों तक है, औसत वार्षिक वर्षा 119.5 से.मी. है। रायपुर जिले में मई सर्वाधिक गर्म महीना होता है। इस माह में दैनिक अधिकतम तापमान 41.90 सें.ग्रे. रहता है। दिसंबर सर्वाधिक ठंड का महीना होता है, औसत अधिकतम तापमान 26.8 सें. ग्रे. तथा न्यूनतम 12.6 सें.ग्रे. होता है। जिले में यातायात का प्रमुख साधन सड़क मार्ग है। इस जिले का राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 6 रायपुर को मुंबई और कोलकाता जैसे बड़े औद्योगिक केन्द्रों से जोड़ता है तथा राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 43 रायपुर से प्रारंभ होकर विजयनगर तक जाता है। साथ ही राजमार्ग क्रमांक 5 उत्तर में 111 कि.मी. पर स्थित बिलासपुर जिले को जोड़ता है, साथ ही यह जिला सड़कों और रेलमार्गों द्वारा देश के महत्त्वपूर्ण केन्द्रों से जुड़ा हुआ है।

2001 की जनगणना के अनुसार रायपुर जिले की कुल जनसंख्या 30,09,042 है, जिले में जनसंख्या का घनत्व 198 व्यक्ति प्रति वर्ग कि.मी. है। जनसंख्या-घनत्व में विकासखंड के अनुसार विविधता है। वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार 16.72 प्रतिशत जनसंख्या 0-6 वर्ष आयु के बच्चों की है तथा 23.39 प्रतिशत जनसंख्या 6-14 वर्ष के बच्चों की है, जबकि 15 से 59 आयु वर्ग की जनसंख्या 53.42 प्रतिशत है, 60 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के अंतर्गत 6.65 है। जिले में लिंगानुपात भारत के अन्य क्षेत्रों की तुलना में संतुलित है। रायपुर जिले में प्रति हजार पुरुषों पर महिलाओं की संख्या 983 है। जनगणना 2001 के अनुसार रायपुर जिले में 14,06,143 मुख्य कार्यशील जनसंख्या है। कुल जनसंख्या का यह 43.73 प्रतिशत इसमें पुरुष कार्यशील व्यक्तियों की संख्या 52.09 प्रतिशत तथा महिलाओं की संख्या 4,26,205 है जो कुल जनसंख्या का 38.87 प्रतिशत है। व्यावसायिक संरचना की दृष्टिकोण से कार्यशील जनसंख्या 69.51 प्रतिशत है। इसमें 45.33 प्रतिशत कृषकों की है तथा कृषि श्रमिकों की संख्या 24.24 प्रतिशत है। कृषि-श्रमिकों में पुरुष 128091 है अन्य व्यवसाय कम महत्त्वपूर्ण है। औद्योगिक क्षेत्र में लगी हुई कार्यशील जनसंख्या का प्रतिशत 9.44 है। रायपुर जिले में 1,19,826 हेक्टेयर भूमि वन क्षेत्र के अंतर्गत है, जिनमें कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 10.52 प्रतिशत क्षेत्र कृषि के लिये अप्राप्त भूमि के अंतर्गत आता है।

रायपुर जिले में अविकसित कृषि अर्थ-व्यवस्था पायी जाती है। यहाँ कुल फसल क्षेत्रफल 6,59,945 हेक्टेयर का 81.73 प्रतिशत (539414 हेक्टेयर) हिस्सा अनाज फसल के अंतर्गत आता है। यहाँ की प्रमुख फसल धान है। जिले की कृषि पूर्णतः मॉनसून पर निर्भर है खरीफ-फसलों का क्षेत्रफल 80.40 प्रतिशत है। जिले में 36.9 प्रतिशत कृषि भूमि सिंचित है अर्थात सम्पूर्ण कृषि वर्षा एवं मृदा पर निर्भर होती है।

मानव आदिकाल से सही प्राकृतिक वातावरण से अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करता रहा है, वह अपने जीवन को सरल बनाने के लिये प्राकृतिक वातावरण में यथा संभव परिवर्तन भी करता है। इस प्रक्रिया के अंतर्गत वह अनेक वस्तुओं की रचना भी करता है, जो दृश्य होते हैं। छत्तीसगढ़ में तालाबों का अस्तित्व मानव पर्यावरण अंतः संबंधों का परिणाम है। वर्ष में वर्षा के द्वारा जल की उपलब्धता 55 से 63 दिनों तक होती है। वर्षा के अतिरिक्त यहाँ जल की उपलब्धता के अन्य स्रोत नहीं है, अतः शेष समय में जल की आपूर्ति हेतु तालाबों का निर्माण किया गया है। जल संग्रहण करने का सबसे सहज तकनीक एवं सस्ते मानवीय श्रम का उपयोग तालाबों के निर्माण के दृष्टिगत होता है। कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था में तालाबों के द्वारा सिंचित क्षेत्र भी पर्यावरणीय समायोजन का प्रतिफल है। तालाबों द्वारा सिंचाई छत्तीसगढ़ की कृषि का अभिन्न अंग है। रायपुर जिले में तालाबों के द्वारा सिंचित क्षेत्रफल 82370 हेक्टेयर है। सिंचाई के अन्य तकनीक का विकास 1890 के पश्चात अंग्रेजी शासन-व्यवस्था के अंतर्गत किया गया था एवं इसकी तृतीय अवस्था 1965-66 के पश्चात कुँओं के निर्माण से प्रारंभ हुई तथा नलकूप द्वारा सिंचाई 1980 के दशक के बाद प्रारम्भ हुई।

रायपुर जिले में तालाबों का वितरण एकसमान नहीं है। प्रत्येक ग्रामीण क्षेत्रों में 3 से 5 तालाब पाये जाते हैं। जिले में तालाबों का उपयोग मुख्यतः सिंचाई एवं घरेलू कार्यों में किया जाता है। साथ ही तालाबों के सिल्ट मिट्टी का उपयोग कृषि क्षेत्रों में जैविक खाद के रूप में किए जाते हैं। जिले में कुल ग्रामों की संख्या 2199 है और कुल तालाबों की संख्या 9370 एवं जलाश्यों की संख्या 55 है। रायपुर जिले में 1388 तालाब ऐसे हैं जिनकी सिंचाई क्षमता 40 हेक्टेयर से अधिक है तथा 7982 तालाबों की सिंचाई क्षमता 40 हेक्टेयर से कम है। इसके अतिरिक्त 55 जलाशय जो शासन के द्वारा अकाल राहत अथवा धान के पौधों को सूखे से राहत दिलाने के लिये निर्मित किए गए हैं। तालाबों का वितरण विभिन्न धरातलीय विशेषताओं को स्पष्ट करते हैं महानदी खारुन दोआब के क्षेत्र में प्रत्येक ग्रामीण क्षेत्र में 4 से लेकर 7 तालाब पाए गए हैं। ट्रांस महानदी क्षेत्र में 3 से 5 तालाब उपलब्ध है, इन तालाबों में कुछ तालाब 1950 के पूर्व निर्मित है। स्वतंत्रता पश्चात निर्मित तालाब रायपुर उच्च भूमि तथा ट्रान्स-महानदी-क्षेत्र में स्थित तालाब शासन द्वारा निर्मित हैं। प्रत्येक 10 वर्ग कि.मी. क्षेत्र में 5 से 6 तालाबों का विवरण रायपुर उच्चभूमि में स्थित है। तालाबों का इतिहास अति प्राचीन हैं मानव के उद्भव एवं विकास के साथ ही साथ तालाबों का भी निर्माण हुआ है, इस काल में तालाब निर्माण का कार्य जमींदार, मालगुजार के द्वारा किया जाता था साथ ही लोग इनका संरक्षण भी स्वयं करते थे। अतः अध्ययन क्षेत्रों में निर्मित तालाबों का अध्ययन आयु या उम्र के अनुसार किया गया है। चयनित तालाबों में से 1950 के पूर्व निर्मित तालाबों की कुल संख्या 26 (9.12 प्रतिशत) एवं 1950 के पश्चात निर्मित तालाबों की संख्या 259 (90.88 प्रतिशत) है।

रायपुर जिले में तालाबों के स्वामित्व के अनुसार चयनित 285 तालाबों में शासकीय तालाब 215 (75.44 प्रतिशत), ग्राम पंचायत के अंतर्गत 32 (11.23 प्रतिशत) एवं निजी भू-स्वामी वाले तालाब की संख्या 38 (13.33 प्रतिशत) है। शासकीय तालाबों की सर्वाधिक संख्या भाटापारा, छुरा, धरसीवां, गरियांबद, मैनपुर अंतर्गत 95 (33.33 प्रतिशत) एवं तिल्दा विकासखंड अंतर्गत न्यूनतम 29 (10.17 प्रतिशत) है। अध्ययन क्षेत्र में सर्वाधिक ग्राम पंचायत के अंतर्गत तालाबों की संख्या अभनपुर, बलौदाबाजार, बिलाईगढ़, कसडोल, पलारी, तिल्दा विकासखंड में 21 (7.37 प्रतिशत) एवं भाटापारा, छुरा, देवभोग, गरियाबंद, मैनपुर अंतर्गत 04 (1.40 प्रतिशत) तालाब पाये गये। जिले में निजी तालाबों की सर्वाधिक संख्या आरंग, भाटापारा अंतर्गत 16 (5.61 प्रतिशत) तथा ग्रामीण क्षेत्रों में 10 (3.50 प्रतिशत) है। अध्ययन क्षेत्र के गरियाबंद, राजिम, सिमगा, तिल्दा विकासखंड अंतर्गत एक भी निजी तालाब चयनित ग्रामीण क्षेत्रों में नहीं है, रायपुर जिले में विकासखंडानुसार चयनित ग्रामीण क्षेत्रों में तालाबों का अध्ययन मिट्टी के अनुसार भी किया गया है। चयनित 285 तालाबों में से कन्हार मिट्टी में निर्मित तालाबों की संख्या 102 (35.79 प्रतिशत) मटासी मिट्टी में निर्मित तालाब 113 (39.65 प्रतिशत) एवं भाटा मिट्टी में निर्मित तालाबों की संख्या 70 (24.56 प्रतिशत) है। कन्हार मिट्टी में निर्मित तालाबों की सर्वाधिक संख्या अभनपुर, बलौदाबाजार, भाटापारा, बिलाईगढ, छुरा, देवभोग, गरियाबंद, मैनपुर अंतर्गत 72 (25.26 प्रतिशत) एवं आरंग विकासखंड अंतर्गत 15 (5.26 प्रतिशत) तालाब पाये गये। इस मिट्टी में जल का स्तर उच्च होता है साथ ही फसलों का उत्पादन भी अधिक होता है। मटासी मिट्टी के सर्वाधिक तालाब आरंग, अभनपुर, बलौदाबाजार, छुरा, देवभोग, गरियाबंद, कसडोल, मैनपुर विकासखंड के अंतर्गत चयनित ग्रामों में 69 (24.21 प्रतिशत) एवं न्यूनतम धरसीवां, पलारी, राजिम, सिमगा, तिल्दा विकासखंड अंतर्गत 19 (6.67 प्रतिशत) तालाब पाये गये एवं भाटा मिट्टी के सर्वाधिक तालाब आरंग, अभनपुर, बलौदाबाजार, छुरा, देवभोग, मैनपुर, पलारी, राजिम, सिमगा, तिल्दा अंतर्गत 36 (12.63 प्रतिशत) एवं भाटापारा विकासखंड में न्यूनतम 09 (3.16 प्रतिशत) तालाब हैं। तालाबों को प्रभावित करने वाले कारकों के अंतर्गत प्राकृतिक, सामाजिक एवं आर्थिक पक्षों का अध्ययन किया गया है। प्राकृतिक तत्वों के अंतर्गत जलवायु, धरातलीय ढाल, चट्टानों की प्रकृति एवं प्रकार हैं। तालाबों के सामाजिक पक्ष के अंतर्गत मुख्य रूप से पूजा-पाठ, शादी ब्याह, देव-विसर्जन एवं मृतक कार्य आदि सम्पन्न किये जाते हैं तथा तालाबों के आर्थिक पक्ष के तहत तालाब जल में पाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक वनस्पतियाँ हैं, जिनका प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से मनुष्य के जीवन पर पड़ता है।

तालाबों के आकारिकीय स्वरूप में रायपुर जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में निर्मित तालाबों की आकारिकीय संरचना से है। ये कई रूपों में पाया गया है, जैसे-आयताकार, वर्गाकार, वृत्ताकार, त्रिभुजाकार इत्यादि आकारिकीय स्वरूप धरातलीय संरचना के अनुसार होते हैं। अध्ययन क्षेत्र में चयनित 285 तालाबों में आयताकार तालाबों की संख्या 136 (47.71 प्रतिशत), वर्गाकार 77 (27.02 प्रतिशत), वृत्ताकार 60 (21.05 प्रतिशत) एवं त्रिभुजाकार तालाब 12 (4.21 प्रतिशत) हैं। आयताकार आकारिकीय के सर्वाधिक तालाब आरंग, अभनपुर, बिलाईगढ़, धरसीवां, गरियाबंद, कसडोल, मैनपुर अंतर्गत 42 (14.73 प्रतिशत) एवं पलारी, राजिम, सिमगा, तिल्दा, विकासखंड अंतर्गत न्यूनतम 15 (5.26 प्रतिशत) हैं। वर्गाकार आकारिकीय में सर्वाधिक तालाब आरंग, मैनपुर विकासखंड के अंतर्गत 36 (12.73 प्रतिशत) तथा छुरा, धरसीवां, पलारी, राजिम, सिमगा, तिल्दा विकासखंड अंतर्गत न्यूनतम 14 (4.91 प्रतिशत) एवं वृत्ताकार स्वरूप वाले तालाबों की सर्वाधिक संख्या आरंग, अभनपुर, बलौदाबाजार, बिलाईगढ, धरसीवां, पलारी अंतर्गत 39 (13.68 प्रतिशत) तथा तिल्दा, मैनपुर, देवभोग विकासखंड अंतर्गत न्यूनतम 4 (1.40 प्रतिशत) हैं। त्रिभुजाकार आकारिकीय के सर्वाधिक तालाबों की संख्या गरियाबंद, धरसीवां, तिल्दा विकासखंड के अंतर्गत 06 (2.10 प्रतिशत) एवं न्यूनतम तालाबों की संख्या 03 (1.05 प्रतिशत) है। जिले में जल के मुख्य स्रोतों में तालाब, कुआँ एवं हैण्डपम्प हैं, जिनमें तालाबों की संख्या 9370, कुआँ 14351 एवं हैण्डपम्प की संख्या 2834 है। इनमें सर्वाधिक संख्या कुँओं की है। जिले में तालाबों की सर्वाधिक संख्या बिलाईगढ़ विकासखण्ड अन्तर्गत 916 (9.77 प्रतिशत) एवं न्यूनतम गरियाबंद विकासखंड में 314 (3.35 प्रतिशत) है। जिले में सर्वाधिक कुओं की संख्या राजिम विकासखण्ड में 2107 (14.05 प्रतिशत) तथा न्यूनतम देवभोग विकासखण्ड अन्तर्गत 511 (3.56 प्रतिशत) एवं हैण्डपम्प की सर्वाधिक संख्या बिलाईगढ विकासखण्ड में 309 (10.90 प्रतिशत) तथा न्यूनतम देवभोग विकासखण्ड अंतर्गत 103 (3.63 प्रतिशत) पाये गये।

चयनित तालाबों में एक हेक्टेयर से कम वाले तालाब एवं तीन हेक्टेयर से अधिक वाले तालाब पाये गये हैं। चयनित 285 तालाबों में एक से कम हेक्टेयर वाले तालाबों की संख्या 89 (31.22 प्रतिशत) एक से दो हेक्टेयर के तालाब 99 (31.73 प्रतिशत), दो से तीन हेक्टेयर वाले तालाब 53 (18.59 प्रतिशत) एवं तीन से अधिक हेक्टेयर वाले तालाबों की संख्या 44 (15.43 प्रतिशत) बलौदाबाजार, बिलाईगढ़ भाटापारा, बिलाईगढ़ अंतर्गत 40 (14.03 प्रतिशत) है एवं न्यूनतम धरसीवा गरियाबंद, पलारी, सिमगा, तिल्दा अंतर्गत 14 (4.91 प्रतिशत) है। चयनित 285 तालाबों में एक से दो हेक्टेयर वाले तालाबों की सर्वाधिक संख्या बलौदा बाजार, बिलाईगढ़, छुरा, देवभोग, गरियाबंद, कसडोल, पलारी में 05 (1.75 प्रतिशत) है। दो से तीन हेक्टेयर वाले तालाबों की सर्वाधिक संख्या कसडोल, मैनपुर, पलारी, राजिम, तिल्दा अंतर्गत 42 (14.73 प्रतिशत) एवं न्यूनतम सिमगा, बिलाईगढ़, विकासखंड अंतर्गत 05 (1.75 प्रतिशत) है। तीन से अधिक हेक्टेयर वाले तालाबों की सर्वाधिक संख्या अभनपुर, बलौदाबाजार, भाटापारा, छुरा, गरियाबंद, तिल्दा, विकासखंड के अंतर्गत 20 (7.01 प्रतिशत) एवं न्यूनतम कसडोल, देवभोग, मैनपुर, पलारी, राजिम, सिमगा के अंतर्गत 11 (3.85 प्रतिशत) तालाब है।

धरातलीय सूक्ष्म ढाल में बहकर आने वाले पानी को रोकने के लिये मेंड़ों का निर्माण किया जाता है मेंड़ों की संख्या जल-संग्रहण की मात्रा एवं धरातलीय ढाल की दिशा के अनुसार निर्धारित होती है। तालाब के निर्माण में मेंड़ (पार) ही मुख्य होते हैं, इन्हीं के द्वारा जल के बहाव को रोक कर जल का संग्रहण किया जाता है। तालाबों में मेंड़ (पार) की संख्या भी अध्ययन के दौरान ज्ञात किया गया है। इनकी संख्या एक से लेकर चार तक पायी गयी है। चयनित 285 तालाबों में एक मेंड़ वाले तालाबों की संख्या 07 (2.45 प्रतिशत), दो मेंड़ वाले तालाब 34 (11.92 प्रतिशत), तीन मेंड़ वाले 95 (33.33 प्रतिशत) एवं चार मेंड़ों द्वारा निर्मित तालाबों की संख्या 149 (52.28 प्रतिशत) पाये गये हैं। एक मेंड़ वाले तालाबों की सर्वाधिक संख्या अभनपुर, बलौदाबाजार, छुरा, धरसीवां, गरियाबंद, मैनपुर अन्तर्गत 07 (2.45%) एवं एक से दो मेंड़ वाले तालाबों की सर्वाधिक संख्या बलौदाबाजार, बिलाईगढ़, छुरा, देवभोग, मैनपुर, पलारी, तिल्दा में 13 (4.56 प्रतिशत) तथा न्यूनतम गरियाबंद, कसडोल, अंतर्गत 10 (3.50 प्रतिशत) पाये गये, दो से तीन मेंड़ वाले तालाबों की सर्वाधिक संख्या अभनपुर, बिलाईगढ़, छुरा, गरियाबंद, मैनपुर अंतर्गत 33 (11.57 प्रतिशत) एवं न्यूनतम बलौदाबाजार, देवभोग, धरसीवां, कसडोल, पलारी, राजिम, सिमगा एवं तिल्दा अंतर्गत 30 (10.52 प्रतिशत) है। तीन से चार मेंड़ वाले तालाबों की सर्वाधिक संख्या अभनपुर, बलौदाबाजार, भाटापारा, बिलाईगढ़, छुरा अंतर्गत 69 (24.21 प्रतिशत) एवं न्यूनतम राजिम, सिमगा विकासखंड अंतर्गत 07 (2.45 प्रतिशत) है।

चयनित तालाबों में मेंड़ (पार) के अंतर्गत, मेंड़ की लम्बाई, चौड़ाई, ऊँचाई का अध्ययन किया गया है। यह जल संग्रहण की मात्रा को नियंत्रित करने वाला प्रमुख कारक है। चयनित 285 तालाबों की लंबाई अंतर्गत 300-600 मीटर लम्बाई वाले तालाबों में मेंड़ की संख्या 70 (24.56 प्रतिशत) है। 600-900 मीटर लम्बाई के मेंड़ वाले तालाबों की संख्या 134 (47.02 प्रतिशत) एवं 900-1200 मीटर लम्बाई वाले मेंड़ युक्त तालाबों की संख्या 61 (21.40 प्रतिशत) तथा 1200 मीटर से अधिक लम्बी मेंड़ युक्त तालाबों की संख्या 20 (7.02 प्रतिशत) है। विकासखंडानुसार 300-600 मीटर लम्बी मेंड़ वाले तालाबों की संख्या आरंग, अभनपुर, बलौदाबाजार, गरियाबंद, कसडोल, अंतर्गत 31 (10.87 प्रतिशत) तथा न्यूनतम भाटापारा विकासखंड अंतर्गत 14 (4.91 प्रतिशत) पाये गये हैं। 600-900 मीटर मेंड़ की लम्बाई की सर्वाधिक संख्या 134 (47.02 प्रतिशत) एवं न्यूनतम भाटापारा, बिलाईगढ़ विकासखंड अंतर्गत 46 (16.14 प्रतिशत) पाये गये हैं। 900-1200 मीटर लम्बी मेंड़ युक्त तालाबों की सर्वाधिक संख्या आरंग, अभनपुर, भाटापारा, बिलाईगढ, धरसीवां, गरियाबंद, कसडोल राजिम अंतर्गत 32 (11.22 प्रतिशत) एवं न्यूनतम बलौदाबाजार, पलारी, सिमगा, तिल्दा विकासखंड में 06 (2.10 प्रतिशत) तथा 1200 मीटर से अधिक लम्बाई वाले मेंड़ युक्त तालाबों की सर्वाधिक संख्या आरंग, अभनपुर, बलौदाबाजार, बिलाईगढ़, छुरा, देवभोग अंतर्गत 14 (4.91 प्रतिशत) है। तालाबों में मेंड़ की चौडाई के अंतर्गत 0-1 मीटर वाले मेंड़ की संख्या 67 (23.51 प्रतिशत) 1-2 मीटर चौड़ाई के मेंड़ 163 (57.19 प्रतिशत) एवं दो मीटर से अधिक चौड़ाई के मेंड़ की संख्या 55 (19.30 प्रतिशत) है। इस माप के सर्वाधिक मेंड़-संख्या आरंग, बलौदाबाजार, भाटापारा, छुरा, अंतर्गत 37 (12.98 प्रतिशत) एवं न्यनूतम देवभोग, राजिम, सिमगा, विकासखंड अंतर्गत 5 (1.75 प्रतिशत) है। एक से दो मीटर के मध्य चौड़ाई वाले मेंड़ युक्त तालाबों की सर्वाधिक संख्या आरंग, छुरा, देवभोग, धरसीवां, गरियाबंद, कसडोल, पलारी, तिल्दा, विकासखंड अंतर्गत 16 (5.61 प्रतिशत) है। दो से अधिक मीटर की चौडाई वाले सर्वाधिक मेंड़ अभनपुर, बलौदाबाजार, बिलाईगढ़, धरसीवां, गरियाबंद, कसडोल, मैनपुर, पलारी, राजिम, 32 (11.22 प्रतिशत) एवं न्यूनतम भाटापारा, छुरा, सिमगा, तिल्दा अंतर्गत 8 (2.80 प्रतिशत) है। तालाबों में मेंड़ की ऊँचाई के अंतर्गत 1-2 मीटर ऊँची मेंड़ युक्त तालाबों की संख्या 59 (20.70 प्रतिशत) दो से तीन मीटर ऊँचाई की मेंड़ वाले तालाबों की संख्या 126 (44.21 प्रतिशत) एवं तीन से चार मीटर ऊँचाई की मेंड़ वाले तालाबों की संख्या 73 (25.61 प्रतिशत) है। एक से दो मीटर ऊँची मेंड़ वाले तालाबों की सर्वाधिक संख्या अभनपुर, बलौदाबाजार, बिलाईगढ, छुरा, देवभोग, गरियाबंद, कसडोल, मैनपुर, पलारी अंतर्गत 89 (31.22 प्रतिशत) एवं न्यूनतम भाटापारा विकासखंड अंतर्गत 15 (5.26 प्रतिशत) है। चार मीटर से अधिक ऊँचाई वाली मेंड़ युक्त तालाबों की सर्वाधिक संख्या अभनपुर, बलौदाबाजार, बिलाईगढ़, गरियाबंद, मैनपुर, अंतर्गत 15 (5.26 प्रतिशत) एवं न्यूनतम भाटापारा, गरियाबंद, मैनपुर अंतर्गत 12 (4.21 प्रतिशत) है।

तालाबों में मेंड़ की माप के साथ ही साथ चयनित तालाबों की गहराई का भी आकलन किया गया है। चयनित 285 तालाबों में एक से दो मीटर गहराई वाले तालाबों की संख्या 51 (17.89 प्रतिशत), दो से तीन मीटर के मध्य गहराई वाले तालाबों की संख्या 119 (41.75 प्रतिशत) एवं तीन से चार मीटर गहराई वाले तालाबों की संख्या 80 (28.07 प्रतिशत) पाये गये हैं। एक से दो मीटर गहराई वाले तालाबों की सर्वाधिक संख्या आरंग, बलौदाबाजार, भाटापारा, के अंतर्गत 22 (7.71 प्रतिशत), छुरा, देवभोग, धरसीवां, गरियाबंद, मैनपुर, सिमगा, विकासखंड अंतर्गत 11 (3.85 प्रतिशत) हैं। दो से तीन मीटर के मध्य गहराई वाले तालाबों की सर्वाधिक संख्या अभनपुर, गरियाबंद, कसडोल, मैनपुर, अंतर्गत 49 (17.19 प्रतिशत) एवं बलौदाबाजार, छुरा, देवभोग, धरसीवां, पलारी अंतर्गत न्यूनतम संख्या 36 (12.63 प्रतिशत) है। तीन से चार मीटर की गहराई वाले तालाबों की सर्वाधिक संख्या अभनपुर, देवभोग, गरियाबंद अंतर्गत 37 (12.98 प्रतिशत) एवं न्यूनतम बिलाईगढ़ कसडोल, राजिम, सिमगा, तिल्दा अंतर्गत 8 (2.80 प्रतिशत) है चार मीटर से अधिक गहराई वाले तालाबों की संख्या, अभनपुर, भाटापारा, छुरा, देवभोग, कसडोल, मैनपुर, पलारी, राजिम, सिमगा, तिल्दा अंतर्गत 16 (5.61 प्रतिशत) एवं न्यूनतम धरसीवां विकासखंड अंतर्गत 7 (2.45 प्रतिशत) है।

तालाबों की जलग्रहण क्षमता उसकी गहराई एवं मेंड़ की ऊँचाई तथा चौड़ाई के अनुसार होती है। चयनित तालाबों में जल ग्रहण क्षमता घनमीटर में ज्ञात किया गया है। इसके अंतर्गत 20000 मीटर3 से कम जलधारण क्षमता वाले तालाब 69 (24.21 प्रतिशत) हैं। 20,000-40,000 घनमीटर क्षमता वाले तालाबों की संख्या 54 (18.95 प्रतिशत) तथा 40000-80000 घनमीटर जलधारण क्षमता वाले तालाबों की संख्या 107 (37.54 प्रतिशत) एवं 80,000 घनमीटर से अधिक जलधारण क्षमता वाले तालाबों की संख्या 55 (19.30 प्रतिशत) है। 20,000 घनमीटर से कम जलग्रहण वाले तालाबों की सर्वाधिक संख्या आरंग, बलौदाबाजार, भाटापारा, बिलाईगढ़, छुरा विकासखंड में 40 (14.03 प्रतिशत) एवं न्यूनतम देवभोग, गरियाबंद, सिमगा, राजिम विकासखंड अंतर्गत 04 (1.40 प्रतिशत) है। 20,000-40,000 घनमीटर के मध्य जलग्रहण वाले तालाबों की सर्वाधिक संख्या आरंग, अभनपुर, बलौदाबाजार, गरियाबंद, कसडोल, मैनपुर, पलारी, अंतर्गत 27 (9.47 प्रतिशत) तथा न्यूनतम छुरा, धरसीवां, राजिम, सिमगा, तिल्दा विकासखंड में 05 (1.75 प्रतिशत) है। 40,000-80,000 घनमीटर के जलधारण क्षमता वाले सर्वाधिक तालाबों की संख्या आरंग, अभनपुर, भाटापारा, छुरा, देवभोग, गरियाबंद, मैनपुर विकासखंड में 67 (23.51 प्रतिशत) एवं न्यूनतम बिलाईगढ़, राजिम, सिमगा, तिल्दा विकासखंड में 14 (4.91 प्रतिशत) है। 80,000 घनमीटर जलधारण क्षमता वाले सर्वाधिक तालाबों की संख्या बलौदाबाजार, भाटापारा, बिलाईगढ़, छुरा, गरियाबंद, कसडोल, राजिम विकासखंड अंतर्गत 26 (9.12 प्रतिशत) एवं न्यूनतम देवभोग, पलारी, सिमगा, तिल्दा में 9 (3.16 प्रतिशत) है।

रायपुर जिले के विकासखंड अंतर्गत चयनित 285 तालाबों की मेड निर्माण सामग्री में मिट्टी द्वारा निर्मित मेंड़ वाले तालाबों की संख्या 258 (90.45 प्रतिशत), मुरम/मिट्टी द्वारा निर्मित 18 (6.3 प्रतिशत) एवं मिट्टी/मुरम/पत्थर द्वारा निर्मित 9 (3.15 प्रतिशत) है। तालाब में जल मार्ग अंतर्गत मुखी एवं उलट होते हैं। चयनित 285 तालाबों में से 265 (92.98 प्रतिशत) तालाबों में मुखी मार्ग एवं 241 (84.56 प्रतिशत) तालाबों में उलट मार्ग निर्मित पाये गये जिनमें सर्वाधिक मुखी वाले तालाबों की संख्या आरंग, अभनपुर, बलौदाबाजार, भाटापारा, बिलाईगढ़, छुरा, धरसीवां, मैनपुर अंतर्गत 183 (64.21 प्रतिशत) एवं न्यूनतम राजिम, तिल्दा, विकासखंड अंतर्गत चयनित तालाबों में 34 (11.92 प्रतिशत) है। उलट मार्ग वाले सर्वाधिक तालाब आरंग, बलौदाबाजार, भाटापारा, बिलाईगढ़, छुरा, धरसीवां, गरियाबंद अंतर्गत 146 (51.22 प्रतिशत) एवं न्यूनतम राजिम, सिमगा, तिल्दा विकासखंड अंतर्गत चयनित तालाबों में 22 (7.71 प्रतिशत) है। तालाबों में अपवाह क्षेत्र के अंतर्गत वर्षा द्वारा जल निवेश के स्थानांतरण से अपने संचयन जल के बहिर्गमन का अध्ययन किया जाता है। चयनित तालाबों में अपवाह क्षेत्र का क्षेत्रफल अंतर्गत 0-1 कि.मी. प्रवाह क्षेत्र वाले तालाबों की संख्या 76 (26.66 प्रतिशत) 1-2 कि.मी. प्रवाह क्षेत्र वाले तालाबों की संख्या 160 (56.14 प्रतिशत) एवं 2 कि.मी. से अधिक में प्रवाह क्षेत्र वाले तालाब 49 (17.19 प्रतिशत) है।

जिनमें सर्वाधिक एक से दो कि.मी. प्रवाह क्षेत्रफल वाले तथा न्यूनतम दो कि.मी. से अधिक वाले तालाबों की संख्या है। तालाबों में जल के प्रमुख स्रोतों के अंतर्गत नहर एवं अन्य साधन है। चयनित तालाबों में नहर द्वारा जल प्राप्ति की जाने वाली तालाबों की संख्या 159 (55.79 प्रतिशत) एवं अन्य साधनों के द्वारा 126 (84.25 प्रतिशत) जल की प्राप्ति होती है।

रायपुर जिले के अंतर्गत चयनित तालाबों में विभिन्न ऋतुओं में जलस्तर का आकलन भी किया गया है। वर्षाऋतु में जल-स्तर ऊँचा रहता है, चयनित 285 तालाबों में 1-2 मीटर जलस्तर वाले तालाबों की संख्या 81 (28.42 प्रतिशत), दो से तीन मीटर जलस्तर वाले तालाबों की संख्या 148 (51.39 प्रतिशत) एवं तीन मीटर से चार मीटर तक जलस्तर वाले तालाब 56 (19.65 प्रतिशत) है। शीतऋतु में जलस्तर कुछ घटने लगती है इसमें 0-1 मीटर जलस्तर वाले तालाब 27 (9.47 प्रतिशत) एक से दो मीटर जलस्तर वाले तालाब 124 (43.51 प्रतिशत) एवं तीन से चार मीटर जलस्तर वाले तालाबों की संख्या 10 (3.51 प्रतिशत) पाया गया है। ग्रीष्मऋतु में 0-1 मीटर में 161 (56.49 प्रतिशत), एक से दो मीटर वाले 97 (34.03 प्रतिशत) एवं दो मीटर से अधिक जल स्तर वाले तालाबों की संख्या 27 (9.48 प्रतिशत) पाये गये।

जल मानव के लिये आधारभूत संसाधन है, जिनका उपयोग मानव अपने विभिन्न प्रकार के कार्यों में करते हैं। अतः जल ही जीवन है। पृथ्वी पर जीवन जल से निर्भर है, जल के बिना मानव-स्वास्थ्य एवं जीवन संभव नहीं है। ग्रामीण क्षेत्रों में चयनित तालाब-जल का उपयोग मुख्य रूप से निस्तारी कार्य में मत्स्य पालन सिंचाई-कार्य में, पशुओं के लिये एवं अन्य निर्माण कार्यों में करते हैं। 285 तालाबों में से निस्तारी कार्यों के लिये उपयोग में आने वाले तालाबों की संख्या 243 (85.26 प्रतिशत) है। निस्तारी कार्य में मुख्य रूप से नहाने-धोने तथा साफ-सफाई के कार्यों को किया जाता है। तालाब जल से नहाने वालों की कुल संख्या 78560 (88.60 प्रतिशत) एवं नहीं नहाने वालों की संख्या 10113 (11.40 प्रतिशत) है। रायपुर जिले के पन्द्रह विकासखंडों में कुल तालाबों की संख्या 9370 है एवं कुल फसल क्षेत्रफल 660415 हेक्टेयर है, जिसमें तालाबों के द्वारा सिंचित क्षेत्रफल 82368 हेक्टयेर जो कुल फसल क्षेत्रफल का 12.47 प्रतिशत है। ट्रान्स-महानदी-मैदान में स्थित बिलाईगढ़ एवं कसडोल विकासखंडों में तालाबों से सिंचित क्षेत्र क्रमशः 20 प्रतिशत (8050) एवं 13 प्रतिशत (5845) है। इन विकासखंडों में नहर से सिंचाई का प्रतिशत कम है। उसी प्रकार रायपुर उच्चभूमि में स्थित राजिम विकासखंड के अंतर्गत 4 प्रतिशत (1656) क्षेत्र तालाब द्वारा सिंचित है। छुरा विकासखंड में तालाब द्वारा सिंचित भूमि 10 प्रतिशत (2828), मैनपुर विकासखंड में 14 प्रतिशत (5005 हेक्टेयर) गरियाबंद विकासखंड में 40 प्रतिशत (8734 हेक्टेयर) एवं देवभोग विकासखंड 16 प्रतिशत (4390 हेक्टेयर) है। अतः अध्ययन हेतु चयनित तालाबों में सिंचाई कार्यों में उपयोग किये जाने वाले तालाबों की संख्या 143 (50.17 प्रतिशत) है।

रायपुर जिले में पशुधन 13,34,475 है। इनमें 2.48 प्रतिशत (300007) वयस्क बैल, 25.04 प्रतिशत वयस्क गाय, बछड़े एवं बछड़ियाँ 28.26 प्रतिशत (376992) हैं। इसका कुल पशुधन में 75.78 प्रतिशत (1011271) हैं। द्वितीय स्तर में वयस्क भैंसा 10.51 प्रतिशत (14025) वयस्क भैंस मादा 3.92 प्रतिशत (52333) एवं भैंस के बच्चों की संख्या 65438 अर्थात 4.98 प्रतिशत है। इनकी कुल संख्या 19.33 प्रतिशत (258028) है। तृतीय स्तर में भेंड़-भेंड़ी 2.66 प्रतिशत (35543) बकरे एवं बकरियाँ 1.77 प्रतिशत (15676) अर्थात इनकी कुल संख्या 3.83 प्रतिशत (51219) है। अन्य में सुअर, 1.01 प्रतिशत (13,520), घोड़े 22353 तथा गदहों की संख्या 78 है। उक्त पशुधन रायपुर जिले की कुल मानवीय जनसंख्या का 44.23 प्रतिशत है, अर्थात प्रत्येक दो व्यक्तियों के पीछे एक पशुधन है। जिले के अंतर्गत चयनित 285 तालाबों में पशुओं द्वारा तालाब-जल का उपयोग नहाने, धुलाने या साफ-सफाई के कार्यों को किया जाता है। इसके अंतर्गत कुल तालाबों की संख्या 239 (83.85 प्रतिशत) तालाब जल का उपयोग किया जाता है। चयनित ग्रामों में कुल पशुओं की संख्या 39182 (100 प्रतिशत) है। उपलब्ध जल साधन में मत्स्य पालन महत्त्वपूर्ण है। रायपुर जिले में 1413 जलाशय तथा 7331 (18542) तालाब मत्स्य पालन हेतु उपलब्ध है। इन तालाबों में जलाशयों से प्रतिवर्ष लगभग 30,000 टन मत्स्य उत्पादन किया जा रहा है। प्रति हेक्टेयर जल-क्षेत्र में दो टन मछली का उत्पादन सामान्य परिस्थितियों में होता है। जिले में मत्स्य पालन में उपयोग की जाने वाले तालाब 5918 (15460) उपलब्ध क्षेत्रफल है। चयनित 285 तालाबों में मत्स्य पालन में उपयोग की जाने वाली तालाबों की संख्या 176 (61.75 प्रतिशत) है जिनमें स्वामित्व के अनुसार मत्स्य पालन वाले तालाबों में शासकीय तालाबों की संख्या 80 (28.07 प्रतिशत) ग्राम पंचायत द्वारा 69 (24.21 प्रतिशत) एवं निजी तालाबों की संख्या 27 (9.47 प्रतिशत) है। साथ ही अन्य निर्माण कार्यों में तालाब जल का उपयोग धार्मिक कार्यों में, भवन (मकान) निर्माण में एवं ईंट-निर्माण के कार्यों में किया जाता है। अध्ययन क्षेत्रों में चयनित तालाब एवं अधिवास के मध्य दूरी ज्ञात की गई है, दूरी के अनुसार भी तालाबों का उपयोग देखा गया है। चयनित 285 तालाब में 50 मीटर के मध्य स्थित तालाबों की संख्या 164 (57.54 प्रतिशत) 50-100 मीटर के मध्य निर्मित तालाबों की संख्या 67 (23.57 प्रतिशत) 100-150 मीटर दूरी पर निर्मित तालाबों की संख्या 27 (9.47 प्रतिशत) एवं 150 मीटर से अधिक दूरी पर निर्मित तालाबों की संख्या 27 (9.47 प्रतिशत) है।

विश्व में मानव संस्कृति का विकास भू-तल के विभिन्न क्षेत्रों की पर्यावरणीय दशाओं एवं वहाँ के संसाधनों पर निर्भर करता है। अतः स्थान विशेष के भौतिक स्वरूप एवं संस्कृति को संसाधन के रूप में मान्यता प्राप्त है। तालाबों के सामाजिक एवं सांस्कृतिक पक्षों के अंतर्गत ग्राम्य जीवन में लोक जीवन, लोक-साहित्य, लोक संस्कृति एवं लोक गीतों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। ग्रामीण क्षेत्रों में लोग तालाब जल का उपयोग सामाजिक कार्य विवाह, मृत्यु आदि में उपयोग करते हैं। साथ ही तालाबों की समीप या तालाब के मेंड़ पार में विभिन्न प्रकार की लौकिक क्रियाएँ सम्पन्न की जाती है। तालाब जल के धार्मिक पक्षों के अंतर्गत विभिन्न प्रकार के तीज त्यौहार में तालाब जल की उपयोगिता सिद्ध होती है।

तालाबों के मेंड़ (पार) में विभिन्न प्रकार के प्रतिरूप निर्मित होते हैं। इन प्रतिरूपों में कुछ प्रकृति द्वारा एवं कुछ मानव द्वारा निर्मित होते हैं। चयनित 285 तालाबों के मेंड़ पर बने प्रतिरूपों में मकान 110 (38.60 प्रतिशत), मंदिर 205 (71.93 प्रतिशत), मठ 48 (16.84 प्रतिशत) घाट 266 (93.33 प्रतिशत) एवं पचरी की संख्या 217 (76.14 प्रतिशत) है। इन प्रतिरूपों का महत्त्व भी अलग-अलग रूपों में होता है। इन प्रतिरूपों में मंदिर सबसे महत्त्वपूर्ण है। चयनित तालाबों के मेंड़ में शिव मंदिर, शीतला माता एवं हनुमान जी के मंदिर होते हैं। सर्वेक्षित 285 तालाबों में शिव मंदिर की संख्या 122 (42.81 प्रतिशत), शीतला-मंदिर 52 (18.24 प्रतिशत) एवं हनुमान जी का मंदिर 31 (10.88 प्रतिशत) है। सर्वाधिक मकान वाले तालाबों की संख्या आरंग, अभनपुर, भाटापारा, बिलाईगढ़, देवभोग, धरसीवां, मैनपुर अंतर्गत 77 (27.02 प्रतिशत), राजिम, सिमगा, तिल्दा विकासखंड अंतर्गत चयनित तालाबों में 09 (3.16 प्रतिशत) पाये गये हैं। सर्वाधिक शिव मंदिर आरंग, अभनपुर, भाटापारा, बिलाईगढ़, छुरा, देवभोग, धरसीवां विकासखण्ड अंतर्गत 17 (5.96 प्रतिशत) एवं न्युनतम राजिम, सिमगा, तिल्दा अंतर्गत चयनित तालाबों में 9 (3.16 प्रतिशत) है। शीतला माता के सर्वाधिक मंदिर आरंग, अभनपुर, बलौदाबाजार, भाटापारा, बिलाईगढ़, कसडोल, पलारी विकासखंड अंतर्गत 34 (11.93 प्रतिशत) एवं न्यूनतम राजिम विकासखंड अंतर्गत 01 (0.35 प्रतिशत) है। हनुमान जी के सर्वाधिक मंदिर अभनपुर, भाटापारा, देवभोग, धरसीवां, गरियाबंद, पलारी, तिल्दा, विकासखंड अंतर्गत 5 (5.26 प्रतिशत) एवं आरंग, छुरा, कसडोल, मैनपुर, राजिम, सिमगा, अंतर्गत न्यूनतम 04 (1.40 प्रतिशत) है।

चयनित तालाबों के मेंड़ में मठ का भी प्रतिरूप पाया गया। इसके अंतर्गत सर्वाधिक मठ वाले तालाबों की संख्या आरंग, अभनपुर, बिलाईगढ़, देवभोग, गरियाबंद, पलारी, अंतर्गत 21 (7.37 प्रतिशत) एवं न्यूनतम छुरा, धरसीवां, कसडोल, मैनपुर, राजिम, सिमगा, तिल्दा अंतर्गत 13 (4.56 प्रतिशत) है। चयनित तालाबों में घाट/पचरी भी पायी गयी। ये प्रतिरूप भी सबसे महत्त्वपूर्ण होता है। इनका उपयोग ग्रामीण क्षेत्रों में निवासरत मानव नहाने-धोने एवं साफ सफाई के कार्यों में करते हैं। विकासखंडानुसार चयनित 285 तालाबों में सर्वाधिक घाट वाले आरंग, अभनपुर, बलौदाबाजार, बिलाईगढ़ छुरा, देवभोग, धरसीवां, गरियाबंद, मैनपर अंतर्गत तालाबों में 186 (65.26 प्रतिशत) एवं न्यूनतम भाटापारा विकासखंड अंतर्गत 30 (10.53 प्रतिशत) है। पचरी की सर्वाधिक संख्या आरंग, अभनपुर, बलौदाबाजार, बिलाईगढ़, छुरा, देवभोग, धरसीवां, गरियाबंद, कसडोल, मैनपुर विकासखंड अंतर्गत 157 (55.09 प्रतिशत) एवं भाटापारा विकासखंड अंतर्गत 25 (8.77 प्रतिशत) पचरी पायी गयी।

तालाब जल में जैव विविधता के अंतर्गत अनेक प्रकार के जीव-जंतुओं का निवास होता है। इन जीव-जंतुओं की उपयोगिता सिर्फ मानव के लिये न होकर एक पारिस्थितिक तंत्र के संदर्भ में होती है। तालाब जल में निवास करने वाले जीव, मछली, मेढक, जोंक, केकड़ा, सर्प, कछुआ एवं घोंघा प्रमुख हैं। इनके अलावा विभिन्न प्रकार के कीड़े मकोड़े भी होते हैं ये सभी जीव जलीय होने के कारण जल में ही निवास करते हैं। इन जीवों का निवास भी अलग-अलग तरह के होते हैं, कुछ तालाब जल के अंदर सिल्ट मिट्टी में अपना बिल या खोल बनाकर निवास करते हैं तथा कुछ जीव तालाब जल के अंदर प्राकृतिक वस्पतियों में रह कर अपना जीवन-यापन करते हैं।

पहला प्राथमिक उपभोक्ता होता है इसके अंतर्गत समस्त शाकाहारी जंतु आते हैं जोकि अपने पोषण के लिये उत्पादकों पर निर्भर रहते हैं। जल की सतह के नीचे उपस्थित जीवधारी नितलस्य कहलाता है, ये शाकाहारी जीवों के ऐसे समूह हैं जोकि जीवित पौधों पर आश्रित होते हैं अथवा तालाब जल की तली में उपस्थित मृत पादप अवशेषों पर जीवन निर्वहन करते हैं तथा डेट्रीवोर्स कहलाता है। जन्तु-प्लवक ये तैरने वाले अथवा जल में बहने वाले जंतुओं के समूह हैं इसके अंतर्गत युग्लीना, सायक्लोरस आदि आते हैं।

द्वितीयक उपभोक्ता के अंतर्गत तालाब-जल में उपस्थित मांसाहारी जीव आते हैं, जोकि अपने पोषण के लिये प्राथमिक उपभोक्ताओं पर निर्भर रहते हैं। जलीय कीट एवं मछलियाँ अधिकांश कीट बीटल्स हैं, जोकि जंतु प्लवक पर आश्रित होते हैं। तृतीयक उपभोक्ता के अंतर्गत तालाब जल की बड़ी मछलियाँ आती हैं जोकि छोटी मछलियों का भक्षण करती हैं। इस प्रकार तालाब के पारिस्थिति तंत्र में बड़ी मछलियाँ ही तृतीयक उपभोक्ता या सर्वोच्च मांसाहारी होती है। अपघटक इन्हें सूक्ष्म उपभोक्ता भी कहते है, क्योंकि इसके अंतर्गत ऐसे सूक्ष्म जीव आते हैं, जो मृत जीवों के कार्बनिक पदार्थों के अपघटन करके उससे अपना पोषण प्राप्त करते हैं। इसके अंतर्गत जीवाणु एवं कवक जैसे-राइजोम्स, पायथियम, सिर्फेलोस्पोरियम, आदि आते हैं।

रायपुर जिले में विकासखंडानुसार चयनित तालाब-जल में मछलियाँ विदेशी बाह्य प्रजाति एवं स्थानीय प्रजाति की मछलियाँ पायी गई हैं। विदेशी प्रजाति की मछलियों में रोहू, कतला, एग्रेड, बीग्रेड, तेलपिया, सिंगही, झींगा, मृगल आदि एवं स्थानीय प्रजाति की मछलियों में मोंगरी, पढिना, टेंगना, कोतरी, बांबर, खोकसी, आदि पाई गयी है। चयनित तालाबों में विदेशी प्रजाति की मछलियाँ 27 प्रकार की एवं स्थानीय प्रजाति की मछलियाँ 09 प्रकार के पाई गई हैं।

मछली एवं मेढक सभी तालाबों में पाये गये हैं। लेकिन कुछ जीवों की संख्या में कमी पायी गयी है। इन जीवों में केकड़ा चयनित 285 तालाबों में से 102 (35.79 प्रतिशत), कछुआ 44 (15.44 प्रतिशत), जोंक 108 (37.81 प्रतिशत) एवं सर्प 51 (17.89 प्रतिशत) पाये गये हैं। सर्वाधिक केकड़ा पायी जाने वाले तालाबों की संख्या आरंग, अभनपुर, बिलाईगढ़, छुरा, देवभोग, गरियाबंद अंतर्गत 52 (18.24 प्रतिशत), राजिम, सिमगा, तिल्दा, विकासखंड अंतर्गत 23 (8.07 प्रतिशत) पाये गये हैं। कछुआ की सर्वाधिक संख्या आरंग, बलौदाबाजार, देवभोग, कसडोल, मैनपुर, राजिम, तिल्दा, अंतर्गत 25 (8.77 प्रतिशत) एवं न्यूनतम भाटापारा विकासखंड अंतर्गत 6 (2.10 प्रतिशत) है। सर्वाधिक जोंक वाले तालाबों की संख्या आरंग, अभनपुर, बिलाईगढ़, छुरा, धरसीवां, गरियाबंद, कसडोल, मैनपुर, तिल्दा अंतर्गत 16 (5.61 प्रतिशत) है।

तालाबों में पायी जाने वाली विभिन्न प्रकार की प्राथमिक वनस्पतियों का भी अध्ययन किया गया है। वनस्पति को दो प्रमुख भागों में बाँटा गया है, इनमें पहला प्रकृति द्वारा उत्पन्न एवं दूसरा मानव द्वारा उत्पन्न प्राकृतिक वनस्पति। ये वनस्पतियाँ तालाबों की मेंड़ (पार) एवं तालाब जल के अंदर होती है। तालाब की मेंड़ों में उत्पन्न प्राकृतिक वनस्पतियों में वृक्ष एवं अन्य खरपतवार होते हैं। वृक्षों में आम, पीपल, बरगद, नीम एवं अन्य वृक्ष चयनित तालाबों में पाये गये हैं। चयनित 285 तालाबों में आम के वृक्षों की संख्या 112 (39.30 प्रतिशत) पीपल 187 (65.61 प्रतिशत), बरगद 181 (63.50 प्रतिशत), नीम 51 ( 17.89 प्रतिशत) तथा अन्य वृक्षों की संख्या 173 (60.70 प्रतिशत) है।

अध्ययन क्षेत्र में सर्वाधिक आम के वृक्षों की संख्या आरंग, भाटापारा, बिलाईगढ़, देवभोग, गरियाबंद, मैनपुर विकासखंड अंतर्गत 46 (16.14 प्रतिशत) एवं न्यूनतम छुरा, कसडोल, पलारी, राजिम, सिमगा, तिल्दा विकासखंड अंतर्गत चयनित तालाबों में इनकी संख्या 23 (8.07 प्रतिशत) है। बरगद वृक्ष की सर्वाधिक संख्या आरंग, भाटापारा, बिलाईगढ़, गरियाबंद, अंतर्गत 75 (26.31 प्रतिशत), न्यूनतम कसडोल, देवभोग, मैनपुर, पलारी, राजिम, सिमगा, तिल्दा अंतर्गत चयनित तालाबों में 48 (16.84 प्रतिशत), पीपल वृक्ष की सर्वाधिक संख्या अभनपुर, बिलाईगढ़, देवभोग, धरसीवां, गरियाबंद, कसडोल, मैनपुर, पलारी अंतर्गत चयनित तालाबों में 99 (34.74 प्रतिशत) एवं न्यूनतम छुरा, राजिम, सिमगा, तिल्दा विकासखंड अंतर्गत 22 (7.72 प्रतिशत) पाये गये हैं। नीम वृक्ष की सर्वाधिक संख्या आरंग, बिलाईगढ़ गरियाबंद विकासखंड चयनित अंतर्गत तालाबों में 27 (9.47 प्रतिशत) एवं न्यूनतम देवभोग, धरसीवां, कसडोल, मैनपुर, राजिम, तिल्दा विकासखंड अंतर्गत चयनित तालाबों में इनकी संख्या 9 (3.16 प्रतिशत) है। अन्य वृक्षों की सर्वाधिक संख्या बलौदाबाजार, भाटापारा, बिलाईगढ़, देवभोग, धरसीवां, गरियाबंद, मैनपुर अंतर्गत 117 (41.05 प्रतिशत) एवं आरंग, अभनपुर, विकासखंड अंतर्गत चयनित तालाबों में न्यूनतम 25 (8.77 प्रतिशत) है। ये वृक्ष प्रायः मानव द्वारा लगाये गये कम होते हैं, किन्तु ज्यादातर वृक्ष प्रकृति द्वारा उगे होते हैं। इनका उपयोग मानव जीवन में महत्त्वपूर्ण होता है। अतः ये सभी वृक्ष तालाबों के मेंड़ (पार) में होते हैं।

रायपुर जिले में विकासखंडानुसार चयनित ग्रामीण क्षेत्रों में चयनित तालाबों के जल में विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक वनस्पतियाँ पायी गयी हैं। इन प्राकृतिक वनस्पतियों में कुछ ही वनस्पति मानव जीवन में उपयोगी होती है। तालाब-जल में उपलब्ध प्राकृतिक वनस्पतियों में गाद, काई, कमल, जलकुंभी एवं अन्य वनस्पतियाँ हैं। चयनित 285 तालाबों में काई 223 (78.24 प्रतिशत), गाद 201 (70.53 प्रतिशत), कमल 101 (35.44 प्रतिशत), जलकुंभी 65 (22.81 प्रतिशत) एवं अन्य वनस्पतियाँ 188 (65.81 प्रतिशत) पाये गये हैं। तालाब जल में सर्वाधिक काई आरंग, बलौदाबाजार, बिलाईगढ़, छुरा, देवभोग, धरसीवां, गरियाबंद, कसडोल, मैनपुर, विकासखंड अंतर्गत चयनित तालाबों की संख्या 149 (52.28 प्रतिशत) एवं न्यूनतम पलारी, राजिम, सिमगा तिल्दा विकासखंड अंतर्गत 29 (10.17 प्रतिशत) है। सर्वाधिक गाद वाले तालाबों की संख्या आरंग, अभनपुर, भाटापारा, छुरा, धरसीवां, गरियाबंद, मैनपुर विकासखंड के अंतर्गत 120 (42.10 प्रतिशत) एवं न्यूनतम राजिम, सिमगा विकासखंड अंर्तगत तालाबों की संख्या 10 (3.51 प्रतिशत) है। सर्वाधिक कमल पाये जाने वाले तालाबों की संख्या आरंग, अभनपुर, भाटापारा, छुरा अंतर्गत 44 (15.44 प्रतिशत) एवं न्यूनतम देवभोग, धरसीवां, पलारी, राजिम, सिमगा, तिल्दा विकासखंड अंतर्गत तालाबों की संख्या 23 (8.07 प्रतिशत) है। जलकुंभी की सर्वाधिक संख्या आरंग, अभनपुर, बिलाईगढ़, देवभोग, गरियाबंद, कसडोल, मैनपुर, पलारी, तिल्दा विकासखंड अंतर्गत तालाबों की संख्या 37 (12.98 प्रतिशत) एवं न्यूनतम बलौदाबाजार, राजिम, सिमगा विकासखंड अंतर्गत चयनित तालाबों की संख्या 5 (1.75 प्रतिशत) है। अन्य प्राकृतिक वनस्पतियों में मुख्य रूप से ढेंस-सिंघाड़ा होते हैं, जो भोज्य पदार्थ में बहुत ही उपयोगी है। अन्य प्राकृतिक वनस्पतियों की सर्वाधिक संख्या अभनपुर, बिलाईगढ, छुरा, धरसीवां, मैनपुर, पलारी अंतर्गत 96 (33.68 प्रतिशत) एवं न्यूनतम आरंग, भाटापारा विकासखंड अंतर्गत 45 (15.79 प्रतिशत) है।

मानव स्वास्थ्य के लिये शुद्ध जल की अनिवार्यता के प्रमाण की आवश्यकता नहीं है। शुद्ध जल की गुणवत्ता के स्तर को प्रभावित करने के लिये वैज्ञानिकों एवं शासन स्तर पर मानकों का निर्धारण किया गया है। तालाब जल में बैक्टीरिया एवं कीटाणुओं की मात्रा तथा रासायनिक एवं भौतिक गुणों को शामिल किया गया है। वर्तमान समय में तालाबों के जल पीने के लिये या आंतरिक कार्यों में उपयोगी नहीं है, क्योंकि तालाब का जल पूर्णतः प्रदूषण युक्त है। चयनित तालाबों के जल का रासायनिक विश्लेषण रसायन अध्ययनशाला में कराया गया, इनमें कई प्रकार के तत्व होते हैं। साथ ही तालाबों के जल का पीने के लिये कम उपयोग किया जाता है, फिर भी जल के नमूने लेकर कोवीफार्म बैक्टीरिया की गणना पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय की भौतिकी अध्ययनशाला के प्रयोगशाला में करायी गयी। लगभग 60 चयनित तालाबों के पानी का परीक्षण किया गया।

शुद्ध जल में बाह्य तत्वों के घुलनशील प्रति इकाई मात्रा के आधार पर जल की गुणवत्ता प्रभावित होती है जल का पी.एच. एसीडिटी अम्लता के साथ क्षारीयता का संबंध बतलाता है। जल के रासायनिक विश्लेषणों के मान के आधार पर निम्नलिखित विवरण प्राप्त हुए हैं। इनमें घुलनशील ठोस तत्व, जल की कठोरता, जल में अम्लता एवं क्षारीयता, घुलनशील यौगिक, कैल्शियम और मैग्नेशियम सोडियम एवं पोटेशियम, क्लोराइड आदि का विश्लेषण किया गया है। तालाब जल में बैक्टीरिया होने के कारण जल-जन्य बीमारियाँ होती हैं। इन बीमारियों में पीलिया, टाइफाइड, डायरिया, कालरा हैजा आंत्रशोध, डिसेन्ट्री, एमोपियापीस एवं कृमि प्रमुख हैं। ये बीमारियाँ जल के प्रदूषण युक्त होने के कारण तथा बैक्टीरिया अधिक होने से फैलती है। अध्ययनरत चयनित तालाब जल की गुणवत्ता का आकलन किया गया है। तालाबों के जल में मौसम के अनुसार परिवर्तन दृष्टिगत हुआ है। वर्षा के मौसम में तालाबों के जल मृदायुक्त होती है तथा मृदा के रंग के अनुसार ही जल का रंग भी दृष्टिगोचर होती है। शीतऋतु में घुलनशील तत्वों के तलछटी में बैठ जाने से जल का प्राकृतिक रंग दृष्टिगत होता है तथा पुनः ग्रीष्म ऋतु में वाष्पीकरण तथा मानव उपयोग तथा दूषित पदार्थों की संख्या अधिक होने के कारण रंगों में पुनः परिवर्तन दिखाई देता है। चयनित 285 तालाब जल की गुणवत्ता के अंतर्गत साधारण जल वाले तालाबों की संख्या 169 (59.30 प्रतिशत), अच्छा, स्वच्छ जल वाले तालाबों की संख्या 90 (31.58 प्रतिशत) एवं खराब जल वाले तालाबों की संख्या 26 (9.12 प्रतिशत) है। अच्छा जल वाले सर्वाधिक तालाब बलौदाबाजार, भाटापारा, छुरा, देवभोग, धरसीवां, गरियाबंद अंतर्गत चयनित तालाबों की संख्या 61 (21.40 प्रतिशत) है। न्यूनतम बिलाईगढ़, राजिम, सिमगा विकासखंड के अंतर्गत 05 (1.75 प्रतिशत) तालाब है। साधारण जल वाले सर्वाधिक तालाब आरंग, अभनपुर, भाटापारा एवं बिलाईगढ़ विकासखंड के अंतर्गत 79 (27.72 प्रतिशत) एवं न्यूनतम छुरा, मैनपुर विकासखंड अंतर्गत 27 (9.47 प्रतिशत) हैं। अनुपयोगी खराब जल वाले तालाब आरंग, अभनपुर, बलौदाबाजार, भाटापारा, बिलाईगढ़, छुरा, देवभोग, धरसीवां, गरियांबद, कसडोल, पलारी एवं राजिम विकासखंड के अंतर्गत पाये गये।

तालाबों के अतिरिक्त स्वच्छ जल आपूर्ति हेतु विश्व स्वास्थ्य संगठन के द्वारा हैण्डपंपों का निर्माण किया गया है अर्थात भूमिगत जल का उपयोग बढ़ाया गया है। छ.ग. शासन ने इंदिरा गंगा गाँव जल योजना के तहत तालाबों को ग्रीष्मकालीन जल आपूर्ति नलकूप के माध्यम से करने का कार्य प्रारंभ किया है। इन जल स्रोतों के अंतर्गत कुआँ, हैण्डपम्प, ट्यूबवेल का निर्माण किया गया है। जिले के सर्वेक्षित ग्रामों में उपलब्ध जलस्रोतों की संख्या विकासखंडानुसार चयनित 57 ग्रामों में कुल कुआँ 718, हैण्डपम्प 331 एवं ट्यूबवेल 237 पाया गया ये सभी जल के स्रोत शासकीय एवं निजी दोनों तरह के होते हैं। अध्ययन क्षेत्र में सर्वाधिक कुआँ अभनपुर, बलौदाबाजार, भाटापारा, बिलाईगढ़ छुरा, धरसीवां, गरियाबंद, पलारी अंतर्गत 447 (62.26 प्रतिशत) एवं न्यूनतम आरंग विकासखंड अंतर्गत 80 (11.14 प्रतिशत) हैं। विकासखंड अनुसार सर्वाधिक हैण्डपंप की संख्या आरंग, अभनपुर, बलौदाबाजार, छुरा, देवभोग, गरियाबंद, कसडोल, मैनपुर, पलारी, राजिम, सिमगा, अंतर्गत 239 (72.20 प्रतिशत) एवं भाटापारा बिलाईगढ़, धरसीवां, विकासखंड अंतर्गत 92 (27.79 प्रतिशत) है। ट्यूबवेल की सर्वाधिक संख्या आरंग, अभनपुर, बलौदाबाजार, बिलाईगढ़, छुरा, देवभोग, गरियाबंद, कसडोल, पलारी, सिमगा, तिल्दा अंतर्गत 189 (79.73 प्रतिशत) एवं मैनपुर, राजिम विकासखंड अंतर्गत 20 (8.84 प्रतिशत) पाये गये।

तालाब मानव-जीवन के लिये बहुत ही उपयोगी है क्योंकि तालाब का निर्माण कर वर्षा के जल को संग्रहण किया जाता है। इसी जल से निस्तारी एवं सिंचाई के कार्यों को पूर्ण किया जाता है। तालाब छत्तीसगढ़ के धरोहर हैं एवं यहाँ की संस्कृति के पहचान भी है। अतः तालाबों के संरक्षण के लिये निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं। इस हेतु जलागमन के अवशेष को समाप्त करना, जल-संचय क्षमता में वृद्धि, तालाबों के जलाधिक्य को नियमित करने, मेंड़ों का संरक्षण, अतिक्रमण रोकना वृक्षारोपण करना एवं नये तालाबों का निर्माण किया जा सकता है। साथ ही तालाब संरक्षण एवं भूमिगत जल-संरक्षण, वृक्षारोपण नई प्रवृत्तियों का निर्माण करके तालाबों का एवं तालाब जल का संरक्षण किया जा सकता है। जल प्रबंधन की नई प्रवृत्तियों का निर्माण करके तालाबों एवं तालाब जल का संरक्षण करना चाहिए।

Fig-2Fig-3Fig-4Fig-5Fig-6Fig-7Fig-8Fig-9Fig-9Fig-10Fig-11

 

शोधगंगा

(इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें।)

1

रायपुर जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में तालाबों का भौगोलिक अध्ययन (A Geographical Study of Tank in Rural Raipur District)

2

रायपुर जिले में तालाब (Ponds in Raipur District)

3

तालाबों का आकारिकीय स्वरूप एवं जल-ग्रहण क्षमता (Morphology and Water-catchment capacity of the Ponds)

4

तालाब जल का उपयोग (Use of pond water)

5

तालाबों का सामाजिक एवं सांस्कृतिक पक्ष (Social and cultural aspects of ponds)

6

तालाब जल में जैव विविधता (Biodiversity in pond water)

7

तालाब जल कीतालाब जल की गुणवत्ता एवं जल-जन्य बीमारियाँ (Pond water quality and water borne diseases)

8

रायपुर जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में तालाबों का भौगोलिक अध्ययन : सारांश

 

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