रंग लाई भेलडुंग के ग्रामीणों की मेहनत


सप्ताह भर पहले सोशल मीडिया के माध्यम से जब सेना में कार्यरत स्थानीय निवासी धर्मेंद्र जुगलान ने गाँव में पानी की किल्लत का समाचार पढ़ा तो वे स्वयं अवकाश लेकर गाँव पहुँच गये और जल संरक्षण कर रहे स्थानीय लोगों के सहयोग में जुट गए। देखते ही देखते मेहनत रंग लाई। वर्ष 2014 में बैरागढ़ आपदा की और बादल फटने की घटना से क्षतिग्रस्त प्राकृतिक जल स्रोतशिला गदन से पानी के तीन पाइपों को जोड़कर एक बड़े पाइप में जोड़ दिया गया।

पलायन का पर्याय बने उत्तराखण्ड के युवा अब अपनी पूर्वजों की धरती के संरक्षण को जाग्रत होने लगे हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में स्वास्थ्य, शिक्षा और पानी की गम्भीर समस्या से जूझते लोगों को जब कोई सहारा नहीं मिला तो ग्रामीणों ने पलायन का रास्ता अपनाया। किन्तु धीरे-धीरे प्रवासियों को अपने पूर्वजों की माटी और उजड़ती तिबारियों की पीड़ा भी सताती रही।

ऋषिकेश से मात्र एक घंटे के सफर की दूरी पर बसे गाँव भेलडुंग के मूल निवासी एक माह से जलसंकट से जूझ रहे थे। इसी बीच जल संरक्षण के लिये प्रवासी गाँववासियों ने प्रयत्न कर रहे स्थानीय लोगों के सहयोग में जुट गए। देखते ही देखते मेहनत रंग लाई। वर्ष 2014 में बैरागढ़ आपदा की और बादल फटने की घटना से क्षतिग्रस्त प्राकृतिक जलस्रोत शिला गदन से पानी के तीन पाइपों को जोड़कर एक बड़े पाइप में जोड़ दिया गया और इसके साथ ही पेयजल की समस्या का समाधान हो गया।

भेलडुंग के मूल निवासी विनोद जुगलान ने विश्व की नम्बर वन दुपहिया वाहन के पुर्जे बनाने वाली कम्पनी में उच्च प्रबंधन के पद से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर न केवल समाज सेवा का रास्ता अपनाया बल्कि पर्यावरण संरक्षण की दिशा में पूर्ण रूप से समर्पित हो गये। एक सप्ताह पहले उन्होंने अपने गाँव के संरक्षण पर अपने ग्रामीण बन्धुओं से फोन पर सम्पर्क साधा और गाँव बचाने की मुहिम की शुरुआत हो गयी।

सप्ताह भर पहले सोशल मीडिया के माध्यम से जब सेना में कार्यरत स्थानीय निवासी धर्मेंद्र जुगलान ने गाँव में पानी की किल्लत का समाचार पढ़ा तो वे स्वयं अवकाश लेकर गाँव पहुँच गये और जल संरक्षण कर रहे स्थानीय लोगों के सहयोग में जुट गए। देखते ही देखते मेहनत रंग लाई। वर्ष 2014 में बैरागढ़ आपदा की और बादल फटने की घटना से क्षतिग्रस्त प्राकृतिक जल स्रोतशिला गदन से पानी के तीन पाइपों को जोड़कर एक बड़े पाइप में जोड़ दिया गया।

इस कार्ययोजना को अंजाम तक पहुँचाने में जहाँ स्थानीय निवासी रविन्द्र जुगलान ने अहम भूमिका निभाई। वहीं दूसरी ओर पुरानी और जीर्णशीर्ण हो चुकी पानी की डिग्गी की मरम्मत का कार्य धर्मेंद्र जुगलान, जितेंद्र जुगलान, प्यारे लाल जुगलान ने किया। तीन दिन तक चले इस जल ऑपरेशन को युद्ध स्तर पर अंजाम दिया गया। बहुत ही सावधानी पूर्वक किये गए इस जल संरक्षण की कार्य योजना को अंजाम तक पहुँचाने में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन अहमदाबाद के जल संरक्षण विशेषज्ञ दिनेश शर्मा जुगलान, राजेश जुगलान ने मार्गदर्शन किया। क्योंकि जल संरक्षण के समय मूल स्रोत से छेड़छाड़ करने से प्राकृतिक जलस्रोत के सूखने का बड़ा खतरा था। एक माह से चल रही पानी की किल्लत के बाद पुन: पानी लौटने पर गाँव में खुशी का माहौल है। गाँव में स्थापित पुरातन देवी मंदिर में भेली चढ़ाकर गुड़ का प्रसाद वितरित किया गया। भेलडुंग गाँव में मूलभूत सुविधाओं की कमी के कारण अन्य प्रदेशों में प्रवास कर रहे सभी मूल निवासी अप्रैल माह के दूसरे सप्ताह में गाँव लौटेंगे।

नौ अप्रैल से 15 अप्रैल तक आध्यात्मिक भागवत कथा और रात्रि में ग्राम संरक्षण पर सामाजिक मन्थन होगा। साथ ही भेलडुंग गाँव को “हमारा गाँव, हमारी विरासत” के तहत यमकेश्वर प्रखंड का पहला हरित ग्राम सहित ईको विलेज बनाने के प्रयास किये जा रहे हैं। पर्यावरणविद विनोद जुगलान ने कहा कि देव भूमि पर मदिरा के प्रमोशन और जल संरक्षण पर सरकारी उपेक्षा के कारण पलायन निरन्तर जारी है। पलायन रोकने के लिये मिलजुल कर उपाय करने की आवश्यकता है। वरना पहाड़ों से जीवन समाप्त हो जायेगा।

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