रंग लाई कालीबाई की मेहनत, पानी से लबालब हुआ गांव
2 September 2011


देवास। देवास के पानपाट गांव के रहने वाले प्रताप के पैर को पानी निगल गया। उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि जिस पानी के लिए वो तरसते हैं उसे पाने के लिए उन्हें अपना एक पैर गंवाना पड़ेगा। ये कहानी प्रताप की है और पानपाट के रहने वाले सभी गांव वाले बूंद-बूंद पानी की कीमत को जानते हैं और उसे बर्बाद नहीं होने देना चाहते।

देवास के कई आदिवासी गावों में पानी की हालत काफी खराब है। ऊँचाई पर बसे पानपाट और आस पास के गाँवों में बरसात का पानी नहीं टिकता था। सरकार ने पानी बचाने के लिए कई योजनाएं भी बनाईं लेकिन असफल रहीं। लोग बूंद-बूंद पीने के पानी के लिए तरस रहे थे तो खेती का तो सवाल ही नहीं उठता था। खासकर गांव की महिलाओं की स्थिति ज्यादा खराब थी उन्हें मीलों दूर चलकर पानी लाना पड़ता था। गर्मियों में तो गांव की हालत और भी बुरी हो जाती इसलिए लोगों को गांव छोड़कर जाना पड़ता था।

कई साल से ऐसा ही चलता आ रहा था। तभी गांव में विभावरी नाम की एक संस्था ने नारा दिया पानी बो पानी काटो, यानि फसल बोनी है तो पानी को बोना पड़ेगा। गांव के पुरुषों ने इस बात को असंभव मान लिया, लेकिन सिटिज़न जर्नलिस्ट कालीबाई को एक उम्मीद की किरण नज़र आई। कालीबाई ने गांव की महिलाओं को अपने साथ जोड़ना शुरू किया।

गांव के पुरुषों ने उनका काफी मजाक उड़ाया कि जो काम सरकार नहीं कर पा रही है वो ये महिलाएं कर रही हैं, लेकिन कालीबाई इस बात की परवाह नहीं की। सभी महिलाओं ने संस्था से पानी रोकने की तकनीकों को सीखा और उन प्रयासों को आगे बढ़ाना शुरू किया।

कालीबाई के साथ तब तक 150 महिलाएं जुड़ चुकी थीं। पुरुषों का रवैया वैसा ही था। पानी को रोकने के लिए सबसे पहले तालाब बनाने की जरूरत थी और गांव का कोई भी किसान खेत में तालाब बनवाने के लिए तैयार नहीं था। बड़ी मेहनत के बाद और कालीबाई के समझाने पर वो लोग तालाब बनवाने के लिए राजी हो गए। लेकिन तालाब बनाने का काम इतना आसान नहीं था क्योंकी पठारी क्षेत्र और काली चट्टान वाली जमीन होने की वजह से पानी को रोकना काफी मुश्किल था लेकिन हमने हार नहीं मानी और खुदाई के काम पर जुटे रहे।

आखिरकार कालीबाई की मेहनत रंग लाई और गांव में कुछ ही महीनों में तालाब बनकर तैयार हो गया। हमारी इस कोशिश से गांव के पुरुषों की भी आंखें खुली और वो भी इनके साथ जुड़ गए। धीरे-धीरे ये काम आगे बढ़ता रहा और आज गांव में 9 तालाब, 3 स्टॉप डेम, मिट्टी बचाने के लिये 5 केवियन, 3 चेकडेम, 50 से जादा लूज बोल्डर चेक डेम और खंतिया मेड बना लिए हैं। जहां कभी खेती नहीं होती थी वही गांव आज 1 हजार टन गेहूं और 500 टन कपास का उत्पादक गाँव बन गया है। कालीबाई की ये कोशिश अपने गांव तक ही सीमित नहीं रखी बल्कि आस पास के गांव की औरतों को भी इस तकनीक के बारे में जागरूक किया।

आज कालीबाई के गांव की तस्वीर ही बदल गई है। जहां पहले गांव के लोग पीने के पानी को तरसते थे आज वहां पीने के लिए पानी भी है और खाने के लिए अनाज भी।
 

More Videos