RTI ने खुला टिहरी बांध निर्माण में हुई लूट का राज
2 September 2011


टिहरी। टिहरी बांध बनने से वहां के कई इलाकों में आवाजाही की भारी दिक्कत पैदा हुई है। इस समस्या से निपटने के लिए प्रशासन ने प्रताप नगर इलाके में पुल बनाने का काम शुरू किया। जिससे वहां और आसपास के इलाकों की 6 लाख आबादी को फायदा पहुँचेगा, लेकिन चार साल बीत जाने पर भी इस पुल का निर्माण कार्य आज तक पूरा नहीं हो पाया। सिटिज़न जर्नलिस्ट मुरारी लाल ने अपनी रिपोर्ट में सरकार की पोल खोल कर रख दी है।

दरअसल इस समय टिहरी का प्रताप नगर इलाका एक टापू की शक्ल में बदल गया है। टिहरी बांध परियोजना ने यहां के सारे रास्ते बंद कर दिए और यहां के लोगों को बाहरी दुनिया से अलग कर दिया। मुरारी लाल भी प्रतापनगर इलाके का रहने वाला है। 2005 में जब टिहरी बांध की टी-2 सुरंग को बंद कर दिया गया तो टिहरी शहर के साथ-साथ प्रतापनगर और आसपास के गांव को जोड़ने वाली सड़के और पुल पानी में डूब गए। सारे रास्ते बंद होने से प्रतापनगर और आसपास के इलाकों के लाखों लोगों को शहर आने-जाने में काफी परेशानियां होने लगी। जहां पहले शहर पहुँचने में एक घंटे का समय लगता था अब लोगों को 4-5 घंटे का सफर तय करना पड़ता है।

मुरारी ने इस समस्या को सुलझाने के लिए सरकार से अपील की और कई जन आंदोलन भी किए। आखिरकार सरकार नींद से जागी और चाठी-डोबरा इलाके में झील के उपर पुल बनाने की योजना बनाई गई। 2006 में इस पुल की नींव रखी गई। 440 मीटर लंबे इस पुल की शुरुआती लागत 90 करोड़ रुपए आंकी गई थी और पुल ने दो साल में बनकर तैयार होना था। लेकिन चार साल बीत जाने के बावजूद आज तक इस पुल का निर्माण कार्य पूरा नहीं हो पाया। जबकि इस पर अब तक 1 अरब 13 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। काम में हो रही देरी की वजह से इसकी लागत भी बढ़ती जा रही है।

दरअसल इस पुल की निर्माण सामग्रियों में भी कई धाँधलियाँ हुईं। मुरारी ने पुल निर्माण के संबंध में सूचना के अधिकार के तहत कुछ जानकारियाँ लोक निर्माण विभाग से मांगी। मुरारी ने पूछा कि आखिर किस कंपनी को इस पुल का टेंडर दिया गया है और कब तक इसका निर्माण कार्य पूरा हो जाएगा। आरटीआई में मिले जवाब के अनुसार चण्डीगढ़ की एक गुप्ता नाम की कंपनी इस पुल का निर्माण कर रही है। जब हमने इस कंपनी के बारे में जांच की तो कंपनी की विश्वसनीयता पर ही सवाल खड़े हो गए। ये एक ऐसी कंपनी है जिसे इस तरह के बड़े प्रोजेक्ट करने का कोई अनुभव नहीं था।

कंपनी की डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट के अनुसार पुल बनाने में इस्तेमाल होने वाले बोल्डर पत्थर और रेत हरिद्वार से लाए जाने थे, लेकिन पुल बनाने के लिए आसपास से ही खनन करके पत्थरों का इस्तेमाल किया जा रहा है। जबकि सुप्रीम कोर्ट के अनुसार झील के आसपास से खनन करना गैरकानूनी है। रिपोर्ट के अनुसार पुल निर्माण में सफेद रेत का इस्तेमाल होना चाहिए, लेकिन यहां आसपास के इलाकों से ही लाल रेत निकाल कर इस्तेमाल किया जा रहा है। मुरारी ने संबंधित अधिकारियों के साथ मुख्यमंत्री को भी इस पुल की जांच के लिए कई बार शिकायत की, लेकिन आज तक इस पुल की गुणवत्ता की कोई जांच नहीं की गई। इस मामले को लेकर सिटीज़न जर्नलिस्ट की टीम ने जिलाधिकारी से बात की।

सिटीज़न जर्नलिस्ट की टीम ने जब जिलाधिकारी से बात की तो उन्होंने पुल का निर्माण कार्य रुकवाकर उप-जिलाधिकारी को तुरंत जांच के आदेश दे दिए, लेकिन मुरारी का कहना है कि जब तक प्रतापनगर के लोगों की समस्या का हल नहीं निकल जाता तब तक उनकी लड़ाई जारी रहेगी।
 

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