साकार होगा स्वच्छ भारत का सपना


स्वच्छ भारत मिशन (एसबीएम) एक अनूठा कार्यक्रम है, जो दुनिया में स्वच्छता की किसी भी अन्य पहल से बहुत भिन्न है- व्यापकता और स्तर दोनों के लिहाज से। भारत की 55 करोड़ ग्रामीण आबादी को खुले में शौच से मुक्त करना अद्वितीय कार्य है जिसमें अनेक प्रकार की कठिनाइयाँ भी हैं। खुले में शौच की सदियों पुरानी प्रथा और जड़ हो चुकी आदतों से लड़ने के लिये एक जनान्दोलन की जरूरत है जिसमें लोग स्वेच्छा से संलग्न हों। यह मिशन लोगों के आचरण, उनकी मानसिकता को बदल रहा है। 15 अगस्त, 2014 को प्रधानमंत्री ने लाल किले से राष्ट्र को सम्बोधित करते हुए गन्दगी और खुले में शौच के खिलाफ बिगुल बजाया था। साथ ही उन्होंने महात्मा गाँधी की 150वीं जयन्ती 2 अक्टूबर, 2019 को देश को खुले में शौच से मुक्त करने और स्वच्छता का लक्ष्य हासिल करने की बात कही।

विश्व के किसी देश के मुखिया द्वारा स्वच्छता के सम्बन्ध में की गई यह एक महत्वाकांक्षी और साहसिक घोषणा थी। परिणामस्वरूप स्वच्छता का मुद्दा ठंडे बस्ते से निकलकर राष्ट्रीय नीति और विकास की मुख्यधारा में शामिल हो गया। भारत में खुले में शौच के कारण हर साल अनेक संक्रमण जैसे रोगों से एक लाख से अधिक बच्चे मौत के शिकार होते हैं। उन मासूमों की मृत्यु को रोका जा सकता है।

विश्व बैंक का एक अध्ययन बताता है कि गन्दगी के कारण भारत के लगभग 40 प्रतिशत बच्चों का शारीरिक-मानसिक विकास बाधित होता है। इसका उनकी आर्थिक क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है जो देश के सकल घरेलू उत्पाद का 6 प्रतिशत से अधिक हैं। खुले में शौच से महिलाओं की सुरक्षा पर भी असर होता है।

प्रधानमंत्री ने महसूस किया कि इस दिशा में सकारात्मक कार्य किये जाने की आवश्यकता है और इस मुद्दे को मिशन मोड में समयबद्ध तरीके से सम्बोधित किया जाना चाहिए। भारत 21वीं सदी में विश्वव्यापी आर्थिक सुपरपावर बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। इस दिशा में गन्दगी और खुले में शौच के लिये कोई स्थान नहीं होना चाहिए। प्रधानमंत्री ने अपनी राजनीतिक पूँजी को स्वच्छता के खिलाफ उन्मुख किया और इसे राष्ट्रीय-स्तर पर प्राथमिकता का दर्जा दिया।

स्वच्छ भारत मिशन की प्रगति


स्वच्छ भारत मिशन (एसबीएम) के लगभग तीन साल पूरे हो चुके हैं। इस मिशन की प्रगति सराहनीय है। कुछ राज्य बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं। मिशन की शुरुआत में ग्रामीण स्वच्छता कवरेज 39 प्रतिशत से बढ़कर 68 प्रतिशत के मौजूदा आँकड़े पर पहुँच गया है। ग्रामीण भारत के 23 करोड़ से अधिक लोगों ने खुले में शौच की प्रथा को तिलांजलि दे दी है। 193 जिलों और पूरे देश के लगभग 2,35,000 गाँवों को खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) घोषित किया गया है। पाँच राज्य- सिक्किम, हिमाचल प्रदेश, केरल, हरियाणा और उत्तराखण्ड ओडीएफ राज्य बन गए हैं। सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक यह है कि पवित्र गंगा के तट पर 4,000 से अधिक गाँव ओडीएफ बन गए हैं।

एसबीएम कैसे है अनूठा


एसबीएम विश्व-स्तर पर एक अनूठा कार्यक्रम है, जो दुनिया में स्वच्छता की किसी भी अन्य पहल से बहुत भिन्न है- व्यापकता और स्तर दोनों के लिहाज से। भारत की 55 करोड़ से अधिक ग्रामीण आबादी को खुले में शौच से मुक्त करना अद्वितीय कार्य है जिसमें अनेक प्रकार की कठिनाइयाँ भी हैं। खुले में शौच की सदियों पुरानी प्रथा और जड़ हो चुकी आदत से लड़ने के लिये एक जनान्दोलन की जरूरत है जिसमें लोग स्वेच्छा से संलग्न हों। यह मिशन लोगों के आचरण, उनके मन-मस्तिष्क को बदल रहा है। यह केवल बुनियादी ढाँचे का निर्माण करना नहीं है, यह पहले के स्वच्छता कार्यक्रमों से कई महत्त्वपूर्ण कारणों से अलग भी है।

पहला मुख्य अन्तर यह है कि सूचना, शिक्षा और संचार (आईईसी) के माध्यम से आचरण में परिवर्तन पर वास्तव में ध्यान केन्द्रित किया जा रहा है और आउटपुट (निर्मित शौचालयों की संख्या) के स्थान पर आउटकम (ओडीएफ गाँव) पर ध्यान दिया जा रहा है। इस पूरी प्रक्रिया के केन्द्र में समुदाय हैं। समुदाय ही स्वच्छता क्रान्ति का नेतृत्व कर रहा है। बच्चे, महिलाएँ, वरिष्ठ नागरिक और विशेष रूप से सक्षम नागरिक सबसे बड़े स्वच्छता चैम्पियंस के रूप में उभरे हैं। वे अपने समुदायों को एक साथ आने के लिये प्रेरित कर रहे हैं और सभी मिलकर खुले में शौच की प्रथा के खतरों से लड़ रहे हैं। अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस पर लगभग 6,000 महिला सरपंचों के लिये आयोजित एक विशेष समारोह में प्रधानमंत्री ने 10 प्रेरक महिलाओं को स्वच्छता चैम्पियंस के रूप में सम्मानित किया है।

स्वच्छता को प्रोत्साहित करने वाले कार्यकर्ताओं को स्वच्छाग्रही कहते हैं। इन स्वच्छाग्रहियों को सामुदायिक दृष्टिकोण से प्रशिक्षित किया जा रहा है। पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय (एमडीडब्ल्यूएस) द्वारा वर्चुअल क्लासरूम का संचालन किया जाता है। इस क्लासरूम में एक प्रशिक्षक विभिन्न स्थानों पर मौजूद प्रशिक्षुओं से सामुदायिक लामबन्दी और आचरण में परिवर्तन के सम्बन्ध में बातचीत करता है। वे ग्रामीण-स्तर पर प्रोत्साहन-आधारित प्रणाली के तहत कार्य करते हैं ताकि स्वच्छता के महत्त्व और शौचालयों की सामुदायिक माँग को प्रोत्साहित करते हुए व्यवहार में परिवर्तन करने पर चर्चा की जा सके। वर्तमान में पूरे देश में डेढ़ लाख से अधिक स्वच्छाग्रही हैं और यह संख्या तेजी से बढ़ रही है। मिशन का लक्ष्य है कि भारत में हर गाँव में कम-से-कम एक स्वच्छाग्रही अवश्य हो। पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय और विभिन्न राज्य मिल-जुलकर इस मिशन को एक जनान्दोलन बनाने के लिये स्थानीय-स्तर पर निर्वाचित प्रतिनिधियों, जमीनी-स्तर के संगठनों, गैर-सरकारी संगठनों, युवा संगठनों, स्कूल के विद्यार्थियों, निगमों और नागरिक समाज के संगठनों को शामिल करने का प्रयास कर रहे हैं। स्वच्छता के सन्देश को पुष्ट करने और उसकी अपील को व्यापक बनाने के लिये इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मास मीडिया का इस्तेमाल किया जा रहा है। बॉलीवुड सितारों और क्रिकेटरों को भी इस आन्दोलन में शामिल किया जा रहा है। अमिताभ बच्चन पूरे देश में टीवी, रेडियो और आउटडोर होर्डिंग के जरिए ‘दरवाजा बन्द’ अभियान के अगुआ हैं। अक्षय कुमार ने खुले में शौच पर एक फिल्म बनाई है- ‘टॉयलेट-एक प्रेमकथा’ जो इस साल की सबसे बड़ी हिट फिल्म रही है।

एक बार ग्रामसभा में एक गाँव खुद को ओडीएफ घोषित करता है, तो इसके बाद इसका सत्यापन करना महत्त्वपूर्ण हो जाता है। वर्तमान में ओडीएफ गाँवों का सत्यापन करीब 60 प्रतिशत है, जो कुछ महीने पहले केवल 25 प्रतिशत था। स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण के दिशा-निर्देशों में यह प्रावधान है कि गाँव की स्वघोषित ओडीएफ स्थिति को 90 दिनों के भीतर तीसरे पक्ष का सत्यापन प्राप्त होना चाहिए। सत्यापन के दौरान किसी भी कमी को समुदाय द्वारा तुरन्त चिन्हित किया जाना चाहिए और उसे दूर किया जाना चाहिए। ओडीएफ स्थिति को समय पर सत्यापित करना भी इस मिशन को पहले के स्वच्छता कार्यक्रमों से अलग करता है।

इस कार्यक्रम में जिला और राज्य-स्तर पर सत्यापन की प्रणाली काफी मजबूत है। राष्ट्रीय-स्तर पर, पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय विशेष जाँच तो करता ही है, स्वतंत्र संगठनों द्वारा तीसरे पक्ष का नमूना सर्वेक्षण भी कराता है। हाल ही में मई-जून, 2017 के दौरान भारतीय गुणवत्ता परिषद द्वारा राष्ट्रीय-स्तर पर 1,40,000 घरेलू सर्वेक्षण किये गए। इसमें पाया गया कि भारत में शौचालयों का 91 प्रतिशत उपयोग किया जा रहा है।

पिछले कार्यक्रमों में ऐसे उदाहरण सामने आये थे जहाँ ओडीएफ घोषित होने के बाद कई गाँव दोबारा खुले में शौच में प्रवृत्त हो गए चूँकि पुरानी आदतों को छोड़ना मुश्किल होता है। ओडीएफ को बरकरार रखना आसान का नहीं है। इसके लिये राज्यों, जिलों और गाँवों को आईईसी पर निरन्तर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे ओडीएफ बने रहें। ओडीएफ को बरकरार रखने के लिये प्रोत्साहन-तंत्र विकसित किये जा रहे हैं, जिसमें केन्द्रीय रूप से प्रायोजित योजनाओं जैसे पाइपयुक्त पानी की आपूर्ति में ओडीएफ गाँवों को प्राथमिकता देना शामिल है। पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय ने राज्यों के लिये इस सम्बन्ध में दिशा-निर्देश जारी किये हैं और ओडीएफ को बरकरार रखने के लिये गाँवों को आर्थिक प्रोत्साहन प्रदान किया है। स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण के सम्बन्ध में प्रदर्शन, स्थिरता और पारदर्शिता के आधार पर जिलों को ‘स्वच्छता दर्पण’ के अन्तर्गत अंक भी दिये जाते हैं ताकि विभिन्न जिलों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा मिल सके।

स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण और पिछले स्वच्छता कार्यक्रमों के बीच एक महत्त्वपूर्ण अन्तर यह भी है कि ठोस और तरल कचरे के प्रबन्धन के माध्यम से एक समावेशी कार्य किया जा रहा है। वास्तव में, कचरे को अब एक संसाधन के रूप में देखा जा रहा है और इसका नया नाम ठोस और तरल संसाधन प्रबन्धन (एसएलआरएम) दिया गया है। ग्राम खुद को स्वच्छता सूचकांक पर अंक दे रहे हैं और लगभग 1.5 लाख गाँवों ने अब तक इस प्रक्रिया को पूरा कर लिया है। इससे वे अपने वर्तमान-स्तर को एक वांछित-स्तर तक पहुँचा सकते हैं। ओडीएफ गाँव के पास अगर पर्याप्त एसएलआरएम है, तो वे ओडीएफ प्लस (ODF+) कहलाते हैं।

स्वच्छ भारत मिशन- सभी का दायित्व


जैसा कि प्रधानमंत्री ने बार-बार दोहराया है, स्वच्छता हर किसी से सम्बन्धित है और केवल किसी मंत्रालय या विभाग की जिम्मेदारी नहीं है। इस दिशा में एक बड़ा कदम उठाया गया, जब स्वच्छ आयकनिक प्लेस (एसआईपी) और स्वच्छ कार्य योजनाएँ (एसएपी) शुरू की गईं। एसआईपी ने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्त्व के 20 प्रतिष्ठित स्थानों की पहचान की है और उन्हें स्वच्छता के क्षेत्र में उत्कृष्टता के द्वीप बनाने का काम तेजी से चल रहा है। यह ऐसा स्वर्ण मानक है जो अन्य स्थानों को भी प्रोत्साहित कर रहा है। अगले चरण में 80 से अधिक स्थानों पर कार्य किया जाएगा। एसएपी ने भारत सरकार के सभी मंत्रालयों और विभागों को अपने सम्बन्धित क्षेत्रों में स्वच्छता सम्बन्धित गतिविधियाँ संचालित करने के लिये वचनबद्ध किया है और इसके लिये 2017-18 के वित्तीय वर्ष के बजट से रु. 12,000 करोड़ का उपयोग करने की बात कही है। स्वच्छ भारत मिशन- ग्रामीण अकेला ऐसा सरकारी कार्यक्रम है जिसमें पूरी सरकारी मशीनरी एक साथ कार्य कर रही है।

यहाँ तक कि निजी क्षेत्र को भी इस मिशन में योगदान देने के लिये प्रेरित किया जा रहा है। निजी कम्पनियाँ इस अभियान में न केवल सीएसआर के तहत धनराशि दे रही हैं बल्कि मिशन के लक्ष्यों को हासिल करने में अपने मानवीय और प्रबन्धकीय संसाधन भी प्रदान कर रही हैं। इस अभियान में जिन निजी कम्पनियों ने सर्वाधिक योगदान दिया है, उनमें से एक टाटा ट्रस्ट है। कम्पनी ने भारत के प्रत्येक जिले में काम करने के लिये 600 युवा पेशेवरों को स्पांसर किया है। जिला स्वच्छ भारत प्रेरक कहलाने वाले ये पेशेवर जिला प्रशासन के साथ कार्य कर रहे हैं और अपने जिलों को ओडीएफ और एसएलडब्ल्यूएम घोषित करने का प्रयत्न कर रहे हैं। स्वच्छ भारत मिशन में युवाओं को जोड़ने वाली इस पहल की राज्य सरकारों द्वारा सराहना की गई है।

स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण : एक जनान्दोलन


स्वच्छ भारत मिशन अपनी तीसरी वर्षगाँठ के करीब है। हम उस बिन्दु पर पहुँच गए हैं जब यह मिशन एक बड़े और गतिमान जनान्दोलन में तब्दील हो सकता है। प्रधानमंत्री के नए भारत वर्ष में पदार्पण करने के आह्वान के साथ मिशन ने आम भारतीय को स्वच्छता क्रान्ति से जोड़ा है। इनमें से सबसे पहला था स्वच्छाथॉन-स्वच्छ भारत हैकाथॉन, जिसमें स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण की चुनौतियों से निपटने के लिये प्रौद्योगिकी-आधारित नए समाधानों को आमंत्रित किया गया। इसमें जिन प्रश्नों के उत्तर तलाशे गए, वे इस प्रकार हैं- शौचालयों के उपयोग का किस प्रकार आकलन किया जाये, व्यवाहरगत परिवर्तन के लिये तकनीक का उपयोग किस प्रकार किया जाये, दुर्गम क्षेत्रों में किफायती शौचालय तकनीक का प्रयोग कैसे हो, स्कूलों में शौचालयों की साफ-सफाई के लिये किस प्रकार की तकनीक का प्रयोग किया जाये, मासिक धर्म से जुड़े कचरे का सुरक्षित निस्तारण किस प्रकार किया जाये और मल इत्यादि के शीघ्र/त्वरित अपघटन के लिये क्या तकनीक अपनाई जाये। स्वच्छाथॉन को पूरे देश से 3,000 से अधिक प्रविष्टियाँ प्राप्त हुई हैं और ऐसे कई अभिनव विचार प्राप्त हुए हैं जो स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण के लक्ष्यों में योगदान दे सकते हैं।

प्रधानमंत्री की पहल ‘संकल्प से सिद्धि’ से प्रेरित होकर, स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण ने कई कदम उठाए हैं। ‘स्वच्छ संकल्प से स्वच्छ सिद्धि’ के तहत देश भर में फिल्म, निबन्ध और चित्रकला प्रतियोगिताएँ आयोजित की गई हैं। स्कूली बच्चों, सशस्त्र बलों, युवा संगठनों जैसे विभिन्न समूहों और बड़े पैमाने पर आम लोगों को निबन्ध लिखने या फिल्म के माध्यम से वीडियो रिकॉर्ड करने को प्रोत्साहित किया जा रहा है ताकि वे स्वच्छता से सम्बन्धित अनुभवों और योजनाओं को साझा करें। हमें स्वच्छ भारत पर एक करोड़ से अधिक निबन्ध और 50,000 से अधिक फिल्में प्राप्त होने की उम्मीद है। इससे लाखों लोग स्वच्छता के प्रति जागरूक होंगे और स्वच्छ भारत मिशन के प्रति उनमें उत्साह पैदा होगा।

27 अगस्त को ‘मन की बात’ में प्रधानमंत्री ने इन कार्यक्रमों के सम्बन्ध में सबसे महत्वाकांक्षी घोषणा की थी। इस सम्बोधन में उन्होंने लोगों से इस समयबद्ध, राष्ट्रव्यापी जन अभियान में शामिल होने की अपील की थी। उन्होंने कहा था कि 15 सितम्बर से 2 अक्टूबर, 2017 के बीच श्रमदान द्वारा दो गड्ढे वाले शौचालयों का निर्माण, सार्वजनिक स्थानों की सफाई और स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण के प्रति जागरुकता फैलाने का काम किया जाये। उन्होंने इस पहल को ‘स्वच्छता ही सेवा’ का नाम दिया। पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय सरकारी नेताओं, पीआरआई प्रतिनिधियों, सामुदायिक संगठनों, युवा समूहों, सशस्त्र बलों, निगमों और नागरिकों को इस पहल में संलग्न कर रहा है। भारत के राष्ट्रपति ने 15 सितम्बर, 2017 को उत्तर प्रदेश में एक कार्यक्रम के दौरान इस पखवाड़े की शुरुआत की और प्रधानमंत्री 2 अक्टूबर, 2017 को स्वच्छ भारत राष्ट्रीय पुरस्कार और ‘स्वच्छ संकल्प से स्वच्छ सिद्धि’ पुरस्कार देकर इस पखवाड़े का समापन करेंगे।

स्वच्छ भारत मिशन देश में एक मजबूत ताकत बन गया है और लोगों को इस परिवर्तनकारी यात्रा में भाग लेने के लिये प्रोत्साहित कर रहा है। अभियान देशवासियों के दिलों में उतर गया है और हर कोई इसे अपना अभियान मान रहा है। देश में आजादी के सत्तर साल बाद गाँधीजी का स्वच्छ भारत का सपना आखिरकार साकार हो रहा है। प्रधानमंत्री ने पाँच वर्षों में भारत को खुले में शौच से मुक्त करने के लिये सार्वजनिक रूप से प्रतिबद्धता दिखाई है, जो एक साहसिक कदम है। हालांकि अभी भी लम्बा सफर तय करना है लेकिन इस दिशा में हुई प्रगति की सराहना की जानी चाहिए। उम्मीद की जा रही है कि आने वाले 12-15 महीनों में इसे और गति मिलेगी। जनान्दोलन बनने के बाद इस लक्ष्य को प्राप्त करना मुश्किल नहीं रहेगा।

लेखक परिचय


लेखक भारत सरकार के पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय में सचिव हैं। उन्हें स्वच्छता के क्षेत्र में व्यापक अनुभव है। और उन्होंने विश्व बैंक के जल और स्वच्छता कार्यक्रमों का नेतृत्व भी किया है।

ई-मेल : param.iyer@gov.in



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