सामाजिक अंकेक्षण के लिए संघर्ष

16 Aug 2014
0 mins read
सामाजिक अंकेक्षण प्रत्येक गांव की ग्राम सभा में करना अनिवार्य है, जिसमें योजना के तहत पूर्व में हुए सभी कार्यों का लेखा-जोखा बिल-वाउचर के साथ ग्रामीणों के समक्ष रखना होता है। इसके लिए भौतिक सत्यापन भी किया जाता है। पर सामाजिक अंकेक्षण अधिकांश पंचायतों में औपचारिकता के रूप में किया जाता है। स्थानीय स्तर पर विरोध झेलते हुए सरपंच या सचिव शिकायत करने के लिए आगे आना बहुत ही चुनौतीपूर्ण होता है। ऐसे में सामाजिक अंकेक्षण पर जोर देने की बहुत ही ज्यादा जरूरत है। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना को ग्रामीण विकास एवं गरीबी उन्मूलन की सबसे बड़ी योजना माना जाता है। इतनी बड़ी योजना का संचालन स्थानीय स्तर पर पंचायतों के माध्यम से किया जाता है। इस योजना में भारत सरकार बहुत बड़ी राशि खर्च करती है और यही कारण है कि इसमें करोड़ों रुपए के भ्रष्टाचार के मामले सामने आते रहे हैं।

योजना में भ्रष्टाचार को रोकने के लिए स्थानीय स्तर से लेकर राज्य स्तर तक प्रावधान किया गया है, पर इसके बावजूद भ्रष्टाचार को रोकना इसलिए संभव नहीं हो पा रहा है, क्योंकि इसकी प्रक्रिया पर सही ढंग से अमल नहीं किया जा रहा है।

योजना का एक महत्वपूर्ण पहलू है - सामाजिक अंकेक्षण। सामाजिक अंकेक्षण प्रत्येक गांव की ग्राम सभा में करना अनिवार्य है, जिसमें योजना के तहत पूर्व में हुए सभी कार्यों का लेखा-जोखा बिल-वाउचर के साथ ग्रामीणों के समक्ष रखना होता है। इसके लिए भौतिक सत्यापन भी किया जाता है। पर सामाजिक अंकेक्षण अधिकांश पंचायतों में औपचारिकता के रूप में किया जाता है।

स्थानीय स्तर पर विरोध झेलते हुए सरपंच या सचिव शिकायत करने के लिए आगे आना बहुत ही चुनौतीपूर्ण होता है। ऐसे में सामाजिक अंकेक्षण पर जोर देने की बहुत ही ज्यादा जरूरत है। व्यवस्थित एवं सही प्रक्रिया के साथ सामाजिक अंकेक्षण आसान नहीं है, क्योंकि पंचायतें सामाजिक अंकेक्षण से दूर भागती हैं। स्थानीय प्रशासन भी इस पर ज्यादा जोर नहीं देना चाहता है।

पर जिन गांवों में स्वैच्छिक संस्थाएं योजना के मुद्दे पर कार्य कर रही हैं, वहां के ग्रामीण जागरुक हुए हैं और कई गांवों में सामाजिक अंकेक्षण ठीक से करने और गड़बड़ियों को रोकने के लिए ग्रामीण आगे आ रहे हैं।

कुछ जगहों पर स्थानीय प्रशासन एवं सरपंच और सचिव की व्यक्तिगत पहल के कारण भी स्थिति बेहतर देखने को मिलती है। पर इसके बावजूद व्यवस्थित सामाजिक अंकेक्षण की प्रक्रिया की मांग आसान नहीं होती।

मध्य प्रदेश के बैतूल जिले के विभिन्न गांवों में स्वैच्छिक संस्था कासा रोजगार गारंटी योजना को लेकर ग्रामीणों को संगठित करने एवं जागरुक करने का प्रयास कर रही है। संस्था ने विभिन्न गांवों में एकता जन संगठन एवं महिलाओं की स्वयं सहायता समूह का गठन किया है।

संगठन एव समूह के माध्यम से ग्रामीण शासकीय योजनाओं, पंचायत राज और नरेगा के मुद्दे पर प्रशिक्षित होते हैं। शाहपुर विकासखंड के एक ऐसे ही पंचायत पहावाड़ी के चापड़ा रैयत गांव में सामाजिक अंकेक्षण को लेकर जो मामला उठा, वह एक मिसाल बन गया।

पिछले साल पहावाड़ी में आयोजित ग्रामसभा की बैठक में पंचायत के सभी गांवों का सामाजिक अंकेक्षण किया जा रहा था। इसके लिए शासन के आदेश पर सामाजिक अंकेक्षण के लिए विशेष बैठक का आयोजन किया गया था। चापड़ा रैयत के ग्रामीण जो एकता जन संगठन से जुड़े हुए थे, उन्होंने तय किया कि वे अपने गांव के कार्यों का सामाजिक अंकेक्षण सही तरीके से करवाएंगे।

बालकृष्ण मवासी याद करते हैं, ‘‘जब हम पंचायत में पहुंचे, तब बैठक शुरू हुए एक घंटा ही हुआ था। पर सरपंच एवं सचिव ने कह दिया कि सामाजिक अंकेक्षण पूरा हो गया। हमने सवाल खड़ा किया और अपने गांव के कार्यों का हिसाब मांगा, तो कुछ देर वे बताते रहे, पर बिल वाउचर नहीं दिखाए। हमने कहा कि जो वे बता रहे हैं, वे गलत है और इसे गांव में देखा भी जा सकता है, तब वे ग्रामसभा को खत्म करके निकल गए। हमने उसका बहिष्कार किया और कहा कि एक्ट के अनुसार जब हमारे गांव की ग्रामसभा में सामाजिक अंकेक्षण किया जाएगा, तभी हम सामाजिक अंकेक्षण को पूरा मानेंगे। हमने उसी दिन इसकी शिकायत एस.डी.एम. से की।’’

एस.डी.एम. ने उस समय इसे स्वीकार किया पर इस पर कोई कार्रवाई नहीं की। चापड़ा रैयत के लोगों ने पुनः इसके लिए आवेदन जनपद के मुख्य कार्यपालन अधिकारी को दिया, पर उन्होंने बात टालने की कोशिश की। जब मामले को कलेक्टर तक ले जाने और पंचायत राज अधिनियम के उल्लंघन की जाने लगी, तब विशेष ग्राम सभा के सहमति बनी। इस बीच सरपंच एवं सचिव ने ग्रामीणों पर दबाव बनाया कि वे ठीक नहीं कर रहे हैं।

जागृति स्वसहायता समूह की सचिव श्रीमती श्यामवती सहलू बताती है, ‘‘हमने महिलाओं को विशेष ग्रामसभा के लिए तैयार किया। बैठक रद्द नहीं हो, इसके लिए घर-घर से लोगों को आमंत्रित किया। उस ग्रामसभा में महिलाओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। उस दिन वीडियोग्राफी की गई और गांव के सचिव की जगह पर दूसरे गांव के सचिव को जिम्मेदारी दी गई। उस ग्रामसभा में सामाजिक अंकेक्षण की सभी प्रक्रिया अपनाई गई और ग्रामीणों के सभी सवालों के जवाब मिला। सचिव ने बिल और वाउचर भी दिखाए।’’

इस मामले में भले ही भ्रष्टाचार का मामला सामने नहीं आया, पर बिना प्रक्रिया के सामाजिक अंकेक्षण को पूरा मानने वालों पर प्रहार ही था। मनरेगा में सामाजिक अंकेक्षण बहुत ही महत्वपूर्ण है, जिससे कि भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जा सके और ग्रामीणों की भागीदारी से पारदर्शी तरीके से कार्यों को किया जा सके।

चापड़ा रैयत के संघर्ष ने जिले के अन्य पंचायतों के लिए प्रेरणा का कार्य किया है। इसने यह भी दिखाया है कि ग्रामीणों की जागरुकता एवं मांग के आगे गलत प्रक्रिया से सामाजिक अंकेक्षण करना या इसकी खानापूर्ति करना आसान नहीं है।

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading