सामाजिक सरोकार को समर्पित विद्या

3 Jul 2016
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पदमश्री विद्या बालन का परिचय महज एक अच्छी अभिनेत्री तक ही सीमित नहींं है। वे ऐसी अभिनेत्री हैं जिनके लिए फिल्मों के साथ ही सामाजिक सरोकार भी बहुत मायने रखता है। यही वजह है कि वे केंद्र सरकार की ओर से चलाये जा रहे कई अभियानों का अहम हिस्सा हैं। विद्या की छवि भी एक ऐसी अभिनेत्री की है जो अपने काम के प्रति ईमानदार तो है साथ ही विनम्र और हाजिरजवाब भी। पिछले दिनों महिला आर्थिक मंच के कार्यक्रम में वे शिरकत करने पहुँची थी। इस कार्यक्रम में उन्होंने अपने अभिनय और सामाजिक दायित्व पर विस्तृत चर्चा की जिसकी भरपूर सराहना हुई थी। विद्या ने परिणीता फिल्म के साथ बॉलीवुड में कदम रखा था और इसके बाद उन्होंने पा, कहानी, इश्किया, डर्टी पिक्चर, नो वन किल्ड जेसिका जैसी फिल्मों में दमदार भूूमिका निभाकर बॉलीवु़ड में अलग मुकाम हासिल किया। कई फिल्मों को उन्होंने अपने दम पर हिट करवाई।

केंद्र सरकार की कई परियोजनाओं से जुड़कर वे अब सामाजिक क्षेत्र में भी एक नया मुकाम हासिल करने की ओर अग्रसर हैं। असल में बालन ने मुंबई विश्वविद्यालय से सामाजशास्त्र में एमए किया है और आज वे सामाजिक कामों में बढ़चढ़कर हिस्सा ले रही हैं इसका थोड़ा श्रेय उनकी शिक्षा-दीक्षा को भी जाता है।

सामाजिक मुहिम में उनकी उपलब्धि की बात करें तो वर्ष 2011 में वे वर्ल्डवाइड फंड फॉर नेचर-इंडियाज अर्थ आवर अभियान से जुड़ीं और फिर बच्चों की शिक्षा से जुड़े अभियान छोटे कदम प्रगति की ओर की ब्रांड अम्बेसडर बनीं। संप्रति वे निर्मल भारत अभियान से भी जुड़ी हैं जिसका लक्ष्य वर्ष 2017 तक सभी ग्रामीण घरों में शौचलय की सुविधा मुहैया करवाना है। विद्या बालन के करियर, सामाजिक मुद्दों पर उनके रुझान और उनकी निजी जिंदगी को लेकर हरबीन अरोड़ा ने लम्बी बात बातचीत की। यहाँ पेश है उनसे बातचीत के मुख्य अंश-

सबसे पहले आपके नाम से जुड़ी जो कहानी है उसके बारे में बताएँ।

शुरुअाती दौर में मुझे लगता था कि यह बहुत पुराना नाम है क्योंकि उस वक्त अधिकांश तमिल ब्राह्मण लड़कियों के नाम विद्या हुअा करते थे। एक बार मैंने स्कूल में बदमाशी की तो मेरी प्रिंसिपल ने कहा कि विद्या खड़ी हो जाइए, क्या आपको अपने नाम का अर्थ मालूम है? मैंने अपने नाम का अर्थ बताया तो उन्होंने कहा कि मेरा चरित्र मेरे नाम से बिल्कुल मेल नहीं खाता है। उस वक्त मैं कुछ समझ नहीं पाई लेकिन बाद में एक व्यक्ति ने मुझे कहा कि मेरा नाम पुराना है और मेरे चरित्र में भी पुराने समय जैसा खिंचाव है, उसी वक्त से मुझे यह नाम अच्छा लगने लगा।

सवाल - सामाजिक अभियानों में आप बढ़चढ़कर हिस्सा ले रही हैं। क्या आप पूरी तरह सामाजिक कार्यों से ही जुड़ेंगी या अभिनय का सफर जारी रखेंगी ?

सबसे पहले मैं अभिनेत्री हूं और अभिनय हमेशा मेरी प्राथमिकता मेंं रहेगा। अभिनेता होने से फायदा ये होता है कि जब आप सामाजिक संदेश देते हैं तो इसका गहरा प्रभाव पड़ता है इसलिए मैं अभिनय को जारी रखते हुए सामाजिक मुद्दों पर काम करती रहना चाहती हूँ। दूसरी बात यह है कि कई बार लोग आपको सामाजिक अभियानों के चलते भी जानने लगते हैं। इसका उदाहरण मैं गढ़वाल की एक घटना के साथ देना चाहती हूँ। गढ़वाल में मुझसे एक युगल मिला जिन्होंने मुझसे कहा कि आप वही हो न जो टीवी पर शौचालय अभियान चलाती हो। मैं चकित रह गई। वे मुझे फिल्मों से नहीं शौचालय अभियान से पहचानते थे। उन्होंने मुझसे कहा कि वे भी अपनी ओर से हर संभव योगदान करने का प्रयास करते हैं। वे अपना कचरा और बेकार कागजात बैग में रखते हैं और उसे कचरे के डिब्बे में डालते हैं। उन्होंने मुझे विज्ञापन से पहचाना लेकिन मुझे लगता है कि अगर मैं अभिनय में रही तो इस काम में भी मुझे लाभ ही होगा।

आप स्वच्छता अभियान से कैसे जुड़ीं?

साफसफाई के मुद्दे ज्यादा भाते हैं। देश का विकास कैसे होगा इसको लेकर हर व्यक्ति के मन में अलग-अलग धारणा होती है। मैं अपने आसपास देखती हूूँ तो लगता है कि स्वच्छता भी एक अहम मुद्दा है। मैं छोटे कदम प्रगति की ओर के लिए हर साल कुछ समय बनारस के आसपास के गांवों में बिताती हूं। करीब पांच साल पहले अपनी कुछ शुरुआती यात्राओं के बाद मैं बनारस से करीब ढाई घंटे की दूरी पर स्थित एक गांव से बनारस लौट रही थी। मुझे रास्ते में बाथरूम जाना था लेकिन मुझे कहा गया कि यहां कोई शौचालय नहीं है। मेरे जोर देने पर कहा गया कि आप खेतों मे चली जाइए। मुझे जब यह कहा गया तो मुझे बड़ी शर्मिंदगी महसूस हुई और साथ ही साथ यह भी लगा कि यह मेरे आत्मसम्मान को ठेस है लेकिन देश की लाखों-करोड़ों महिलाएँ रोज ऐसी ही परिस्थिति से गुजरती हैं। उनके घरों में शौचालय नहीं है और उन्हें सूरज निकलने से पहले नित्यक्रिया से निपटना पड़ता है कि कहीं कोई उन्हें खेतों में जाते देख न ले। इस वाकया ने मुझे गहरे तक प्रभावित किया और यही वजह थी कि जब तत्कालीन ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने मुझसे पूर्ण स्वच्छता का ब्रांड अंबेसडर बनने को कहा तो मैंने बिना सोचे बिना जाने तत्काल हामी भर दी।

हमारे समाज में औरतों को लेकर जो मानसिकता है, उसे कैसे दूर किया जा सकता है?

असल में सदियों से महिलाअों के दिमाग में यह बात डाली जा रही है कि उनके शरीर और मन पर पहला अधिकार पुरुषों का है। कई बार पुरुष ऐसा नहीं सोचते हैं लेकिन महिलाएँ ऐसा सोचने लगती हैं उन पर पुरुषों का अधिकार है। सदियों से भरी गयी यह बात महिलाअों के जेहन में इस कदर हावी हो गयी है कि वे अपनी पसंद के कपड़े भी नहीं पहन सकती हैं। उनके मन में उधेड़बुन चलती रहती है कि अगर वे अपनी पसंद के कपड़े पहनेंगी तो पुरुष क्या कहेंगे। पुरुषों की बात छोड़िये अगर कोई महिला चटक रंग के कपड़े पहनती है तो खुद महिलाएँ ही उस पर टिप्पणियाँ करती हैं और उसके चरित्र पर अंगुली उठाती हैं। कई बार महिलाअों की सफलता को दूसरी महिलाएँ उसके शरीर से जोड़कर भी देखती हैं। जब तक महिलाएँ यह समझने लगेंगी कि उनके शरीर और मन तथा चयन पर पहला अधिकार उनका ही है तब चीजें बदलेंगी।

शिक्षा की इसमें कितनी भूमिका है?

केवल शिक्षा ही नहीं बल्कि सोशल मीडिया की भी इसमें भूमिका होगी। इंटरनेट के जरिये आज लोग उस दुनिया से अवगत हो रहे है जो उनकी देखी हुई दुनिया से बिल्कुल अलग है। इस दुनिया में महिलाएँ अपनी मर्जी के मुताबिक और सम्मानन के साथ रह सकती हैं।

बॉलीवुड में आपके पदार्पण के बारे में बताइये ।

मैं ऐसे परिवार से आता हूँ जिसका बालीवुड से कोई सरोकार नहीं है। बालीवुड को हमारे परिवार के लोग ऐसा क्षेत्र मानते थे जहाँ महिलाअों का शोषण होता है तो भी मैंने अपने परिवार को भरोसे में लिया और कहा कि मैं केवल एक फिल्म में काम कर लौट आऊंगी। मुझे एक मलयाली फिल्म मिली लेकिन वह बन नहीं सकी। इसके बाद लगातार मेरी तीन फिल्में अधूरी रह गयीं। इस बीच मैंने एक ऐड फिल्म की और यूफोरिया के एक म्यूजिक अलबम में काम किया। एक दिन मैं फिल्म निर्देशक प्रदीप सरकार से मिली तो उन्होंने मुझसे वादा किया कि वे मेरे साथ फिल्म बनायेंगे। मैं समझी कि वे यूं ही कह रहे होंगे लेकिन उन्होंने अपना वायदा पूरा किया। मेरी पहली फिल्म परिणीता बनकर तैयार हुई।

अपने सपनों के पीछे भागते हुए क्या आपको कभी खुद पर संदेह हुआ?

यह तो मानव स्वभाव है और कोई भी इससे मुक्त नहीं हो सकता है। मैं महसूस करती हूँ कि इस तरह का संदेह आपको काम करने के लिए प्रेरित करता है। जब मैं संघर्ष के दिनों से गुजर रही थी तब मैंने मुंबई में सेंट जेवियर्स कॉलेज से बीए की पढ़ाई पूरी की थी। मैं अभिनेत्री बनना चाहती थी। मैं विज्ञापन फिल्मेंं कर रही थी और निर्देशक अनुराग बसु ने मुझे बुलाया और कहा कि वह एक टीवी सीरियल कर रहे हैं मुझे उसमें प्रमुख भूमिका की पेशकश की। मैंने उनसे कहा कि मैं टीवी नहीं करना चाहती। मैं फिल्में करना चाहती हूँ तो वे बोले कि हर कोई शाहरुख खान नहीं बन सकता। मैंने उनसे कहा कि कोशिश तो की जा सकती है।

अब कई फिल्में महिला प्रधान बन रही हैं लेकिन एक वक्त ऐसा भी था जब आपने भी सही फिगर, कपड़े आदि चुनने चाहे, डांस करने का प्रयास किया। क्या कोई भ्रम था। उस समय आप किस मनोदशा से गुजर रही थीं?

जब मैं फिल्म उद्योग में आई थी तो मुझे लगा था कि मुझमें कोई कमी नहीं और बॉलीवुड के लोगों का नजरिया भी ऐसा ही था लेकिन कुछ कर चुकने के बाद लोगों का नजरिया बिल्कुल बदल गया। लोग मेरी आलोचनाएँ करने लगी। मेरे कपड़ों और मेरे शरीर को लेकर टिप्पणी की जाने लगी तो मेरी बहन और बहनोई ने मुझे समझाया। उन्होंने मुझसे कहा कि स्टाइलिस्ट, फिटनेस एक्सपर्ट से शरीर को सुडौल बना सकती हूँ लेकिन अभिनय मैं किसी से ले नहीं सकती और असल बात ये थी कि कोई मेरे अभिनय की आलोचना नहीं कर रहा था। यह मेरे लिए अच्छी बात थी। उन्होंने कहा कि मैं बस अभिनय पर ध्यान दूँँ बाकी चीजें तो कभी भी की जा सकती है। काफी सोच विचार के बाद मैंने अपने जैसा बनने की प्रक्रिया शुरू की।

क्या कोई ऐसी भूमिका है जो आपको अब तक नहीं मिली हो?

अब तक मुझे नहीं लगा कि मुझे ये वाला रोल करना चाहिए या ऐसा मिलता तो अच्छा होता। असल में फिल्म निर्देशकों की कल्पनाशक्ति एक्टरों से अच्छी होती है और यही वजह है कि जब इश्किया या डर्टी पिक्चर की पेशकश की गयी तो मैं अाश्चर्यचकित हो गयी थी। यही वजह है कि मैं कभी ड्रीम रोल की तलाश नहींं करती हूँ मैं फिल्म निर्देशकों पर छोड़ देती हूँ कि वे तय करें कि मुझे कैसा किरदार देंगे और मुझे लगता है कि वे मुझे कल्पनातीत रोल देकर चौंकाते रहेंगे।

मैं अत्यंत आशावादी हूँ और मुझे पता है कि अगर सूरज डूूबता है तो वह उगेगा भी जरूर। बस मैं सकारात्मक विचार रखती हूँ।

हरबीन अरोरा

हरबीन अरोरा, पीएचडी, ऑल लेडीज लीग और वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम की ग्लोबल चेयरपर्सन हैं। इन संस्थानों का लक्ष्य महिला नेतृत्व को बढ़ावा देना और दुनिया भर की महिलाओं को जोडऩा है। हरबीन ने दिल्ली, सॉरबन और लंदन में पढ़ाई की है। डॉ. अरोरा राई विश्वविद्यालय अहमदाबाद की कुलपति भी हैं।

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