साफ पानी नहीं मिल पा रहा आदिवासियों को

adivasi children
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आदिवासी बच्चेआदिवासियों के विकास की बड़ी–बड़ी योजनाएँ बनाई जाती है पर जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी बयाँ करती है। मध्यप्रदेश के रायसेन जिले के आदिवासियों की भी कमोबेश यही तस्वीर है। यहाँ आदिवासियों को बाकी सरकारी विकास की योजनाएँ तो दूर की बात, कई गाँवों में तो साफ पीने का पानी तक नहीं मिल पा रहा है। हालात इतने बुरे हैं कि यहाँ का पानी फ्लोराइड युक्त होने के बाद भी दूषित पानी पीना इन आदिवासियों की नियति है। हैरत की बात यह है कि यह जिला मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से महज कुछ ही दूरी पर स्थित है। जब यहाँ यह हाल है तो समझा जा सकता है कि प्रदेश के दूरस्थ जिलों के आदिवासी क्षेत्रों की हालत क्या होगी।

रायसेन जिले की तहसील सिलवानी का एक छोटा सा गाँव है पौड़ी। यह गाँव आदिवासी बाहुल्य गाँव है। यहाँ पीने के पानी के लिए सरकार ने कुछ सालों पहले हैंडपम्प लगवाये थे। लेकिन इन हैंडपम्प का पानी पीने वाले बच्चों के धीरे–धीरे दाँत खराब होने लगे। यह बात कोई 10 साल पुरानी है। पहले तो गाँव के लोग बच्चों को यहाँ–वहाँ दिखाते रहे पर बाद में जब कुछ रोगी जिला अस्पताल पहुँचे तो पता लगा कि यह तो इन बच्चों में फ्लोरोसिस बीमारी का प्राथमिक लक्षण है। बाद में बात लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के अफसरों तक भी पहुँची तो उन्होंने उन हैंडपम्प का पानी पीने से गाँव वालों को रोक दिया। गाँव वाले जैसे–तैसे अपने पानी का यहाँ–वहाँ से इन्तजाम करने लगे। कुछ लोग तालाब का गन्दा पानी पीने को मजबूर थे तो कुछ कई कि.मी. पैदल चलकर खेतों पर बने कुँओं और ट्यूबवेल से पानी लाते रहे।

इस बीच सरकार ने आदिवासियों को फ्लोराइड युक्त पानी से निजात दिलाने के लिए गाँव में कुछ और अन्य स्थानों पर हैंडपम्प लगाने का तय किया। एक बार फिर लाखों रूपये खर्च कर हैंडपम्प खनन कराए गए पर नतीजा फिर वही ढाक के तीन पात। गाँव में कराए गए इन हैंडपम्प के पानी में भी फ्लोराइड की निर्धारित मात्रा 1.5 मिलीग्राम प्रति लीटर से काफी अधिक थी। इस तरह अब गाँव में नए और पुराने मिलकर करीब 15 हैंडपम्प है लेकिन एक भी ऐसा नहीं जिसका पानी पीने योग्य निरापद हो।

ग्रामीणों ने इसकी शिकायत 35 कि.मी. दूर सिलवानी तहसील के अधिकारियों तक पहुँचाई। वहाँ से बात जिले के बड़े अफसरों तक पहुँची तब कहीं जाकर पीएचई के अफसरों ने फिर से स्थिति का आकलन किया। इस बार यह तय किया गया कि गाँव में एक कुआँ बना दिया जाए ताकि लोगों को साफ पानी मिल सके। आनन–फानन में कुआँ बनाने का प्रस्ताव बनाकर भोपाल भेज दिया गया। थोड़े ही दिनों में वहाँ से भी प्रस्ताव को हरी झंडी मिल गई और पैसा भी मंजूर हो गया। इसके बाद लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग ने गाँव में कुआँ बनाने का काम शुरू कर दिया गया। गाँव वाले बताते हैं कि कुआँ बनाने में शुरू से ही ध्यान नहीं दिया गया। न तो ठीक ढँग से इसकी खुदाई की गई और ना ही पक्का बनाने में निर्धारित मानकों का पालन किया गया लिहाजा कुआँ अभी पूरा बना भी नहीं था कि पिछली बारिश में ही उसका एक बड़ा हिस्सा ढह गया। अब यह कुआँ मलबे में तब्दील हो चुका है। ठेकेदार से कई बार गाँव वालों ने कहा भी लेकिन कोई असर नहीं हुआ।

इतना ही नहीं सरकार के पीएचई विभाग ने यहाँ लाखों की लागत से नल-जल योजना भी स्वीकृत कराई। पूरे गाँव में पाइपलाइन बिछाई गई और गाँव के पास एक ट्यूबवेल से इसे जोड़कर लोगों को इसके जरिये पानी देने की योजना शुरू भी की गई लेकिन थोड़े ही महीनों में यह योजना भी ढेर हो गई। जैसे गाँव वालों की किस्मत में साफ पानी लिखा ही नहीं हो। अब तक सरकार इस गाँव को साफ पानी देने के लिए करोड़ों रूपये पानी की तरह भा चुकी है पर आज भी यहाँ के लोग एक–एक मटके पानी के लिए भटक रहे हैं।

अब हालत यह है कि गाँव में 15 हैंडपम्प हैं, नल–जल योजना है और अधूरा बना कुआँ भी पर यहाँ के लोगों की प्यास कोई नहीं बुझा पा रहा है। एक तरफ हैंडपम्प फ्लोराइडयुक्त पानी उलीच रहे हैं। नल-जल दीखती तो है पर चलती नहीं तो दूसरी तरफ कुआँ मलबा हो चुका है। अब गाँव वालों की परेशानी यह है कि वे करें तो करें क्या। पानी तो हर दिन चाहिए होता है। सुबह से शाम तक लोग पानी के लिए भटकते देखे जा सकते हैं। कई बालिकाएँ अपने स्कूल जाने की जगह पानी के बंदोबस्त में जुटी रहती है। कई परिवारों की पानी के चक्कर में मजदूरी छूट जाती है वहीं महिलाएँ भी दूर–दूर खेतों पर जाकर अपने सिर पर घड़े उठाकर लाती है।

पौड़ी गाँव के लखनलाल बताते हैं कि यहाँ पीने के पानी की बहुत समस्या है। हैंडपम्प पर लाल निशान बना दिया गया है और दीवार पर इसकी सूचना भी लिख दी गई है पर फिर भी कई बार बच्चे इससे पानी पी लेते हैं। सूचना पढ़ना सबको तो आता नहीं इसलिए कुछ लोग यही पानी उपयोग कर लेते हैं। शराफत अली बताते हैं कि कुआँ जब बनना शुरू हुआ, तभी से मनमाना काम किया जा रहा था। हमने इसे लेकर विभाग के अफसरों को बताया भी था पर किसी ने कोई ध्यान नहीं दिया। अब कुआँ धँस गया तो इसका खामियाजा तो हमें ही उठाना पड़ रहा है न। हम अपने छोटे–छोटे बच्चों को लेकर कहाँ जाएँ। रामाधार के मोहल्ले में 4–5 बच्चे फ्लोरोसिस बीमारी से ग्रस्त हो चुके हैं। वे बताते हैं कि हमारे मोहल्ले में पानी सबसे बड़ी फजीहत बना हुआ है। फ्लोराइडयुक्त पानी हमें बीमार बनाता है पर हमारे घरों में पीने के लिए साफ पानी भी तो नहीं है। हम कहाँ जाएँ और क्या करें.. कुछ समझ नहीं आता। वे बताते हैं कि कुछ बच्चों के तो सिर्फ दाँत ही खराब हुए हैं पर कुछ बच्चों के तो हाथ–पैर भी टेढ़े होने लगे हैं।

यहाँ के माध्यमिक विद्यालय में पढने वाली छात्रा प्रियंका बताती है कि स्कूल के आस-पास भी पीने के पानी की कोई व्यवस्था नहीं है। मजबूरी में विद्यार्थी हैंडपम्प का खराब पानी ही पी रहे हैं। यहाँ की आँगनबाड़ी कार्यकर्ता राजन भी कहती हैं कि दूषित पानी पीने से बच्चे बीमार हो रहे हैं। बच्चों की बीमारी की जाँच करने डॉक्टर भी आते हैं पर पीने के लिए साफ पानी अब भी नहीं मिल पा रहा है।

इस सम्बन्ध में जब हमने सिलवानी के एसडीएम अनिल जैन से बात की तो उन्होंने कहा कि पीएचई से जानकारी लेनी होगी फिर जानकारी लेने के बाद उन्होंने बताया कि विभाग ने गाँव में एक और बड़ा कुआँ तथा नल-जल योजना के लिए प्रस्ताव राज्य सरकार को भेजा है। इस पर स्वीकृति मिलते ही काम शुरू कर सकेंगे। इससे स्पष्ट है कि फिलहाल तो पौड़ी के लोगों को फ्लोराइडयुक्त दूषित पानी से ही अपना काम चलाना पड़ेगा।
 

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