शारदा नदी के तट पर किसानों का जल सत्याग्रह

6 Mar 2013
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शारदा नदी ने बीते कई बरसों में सीतापुर जिले के चार विकास खंडों- रेऊसा, सकरन, रामपुर मथुरा और बेहटा के कई गांव लील लिए हैं। जिन गांवों का नामो निशान मिट गया उनमें काशीपुर, सेनापुर व मल्लापुर शामिल हैं। मल्लापुर राजा की हवेली जहां खड़ी थी, वहां आज सपाट बालू है। हवेली की एक र्इंट नहीं नजर आती। नदी विकराल रूप धारण कर लेती है जब सितारगंज में बनबसा बांध और नेपाल में बने दूसरे बांधों को बचाने के लिए ऊपर से पानी छोड़ा जाता है। उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में किसानों ने नर्मदा आंदोलन की तर्ज पर जल सत्याग्रह शुरू कर दिया है। इस आंदोलन में आसपास के दर्जनों गाँवों के लोगों ने हिस्सा लिया। शारदा नदी के धारा बदलने की वजह से पिछले कुछ समय में सैकड़ों गांव कट चुके हैं और यह अभी भी जारी है। जिसके कारण सैकड़ों किसान परिवार सड़क के किनारे अस्थायी रूप से रहने को मजबूर है। इस मुद्दे को लेकर उस अंचल में कटान रोको संघर्ष मोर्चा आंदोलन कर रहा है। मोर्चा की नेता ऋचा सिंह ने कहा-इस सवाल को लेकर हम सरकार से गुहार लगाते रहे हैं और अब मजबूर होकर आज से जल सत्याग्रह शुरू कर दिया है। सीतापुर के रेउसा ब्लाक के काशीपुर गांव में बड़ी संख्या में महिला और पुरुष जब जल सत्याग्रह के लिए कमर तक पानी में उतरे तो सैकड़ों की संख्या में वहां मौजूद किसानों का उत्साह देखने लायक था। जल सत्याग्रह के लिए लखनऊ से गई एनएपीएम की अरुंधती धुरु ने कहा-हमने सरकार को जगाने के लिए शारदा नदी के पानी में उतर कर जल सत्याग्रह करने कर निर्णय किया है। यदि दो दिन के इस विरोध प्रदर्शन से सरकार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा, तो आने वाले दिनों में कोई अनिश्चितकालीन कार्यक्रम भी किया जा सकता है।

सोमवार को जल सत्याग्रह में करीब डेढ़ हजार से ज्यादा लोग जुटे थे। यहां पर आंदोलन का मोर्चा संभालने वाली ऋचा सिंह के मुताबिक सात सौ से ज्यादा लोग तो सिर्फ नदी के पानी में दिन भर खड़े रहे और इससे ज्यादा लोग किनारे पर थे। अब मंगलवार की तैयारी है। नर्मदा बचाओ आंदोलन ने 1993 से जल सत्याग्रह को आंदोलन के एक औजार के रूप में इस्तेमाल किया है। 2012 में मध्य प्रदेश के खंडवा जिले के घोघलगांव में लोग 17 दिन तक पानी में लोग खड़े रहे और सरकार को तब सुध आई, जब कुछ लोगों के शरीर के अंग पानी में गलने लगे। अब यही तरीका उत्तर प्रदेश में शारदा नदी की कटान रोकने के लिए सरकार ध्यान दे, इसलिए अपनाया गया है।

शारदा नदी के तट पर जल सत्याग्रह के लिए जुटे किसानशारदा नदी के तट पर जल सत्याग्रह के लिए जुटे किसानसामाजिक कार्यकर्ता संदीप पांडेय ने कहा- सीतापुर के रेऊसा विकास खंड में एक जगह जाते-जाते सड़क अचानक खत्म हो जाती है और वहां से नीचे शारदा नदी दिखाई पड़ती है। दृश्य बड़ा भयावह है। क्योंकि किसी को मालूम न हो तो वह सड़क पर चलते-चलते सीधे नदी में पहुंच जाएगा। करीब आठ सौ परिवार इस सड़क के दोनों ओर झोपड़ियां डाले रह रहे हैं क्योंकि शारदा नदी ने जब अपना बहने का रास्ता करीब सात किलोमीटर बदल लिया, तो उनके गांव नदी में समा गए हैं। आज उनका कोई नामो निशान नहीं है और इन लोगों के लिए जाने के लिए कोई जगह नहीं। ये अपने ही इलाके में शरणार्थी की जिंदगी जी रहे हैं। सीतापुर जिला प्रशासन या उत्तर प्रदेश सरकार के पास कोई योजना नहीं है कि नदी से होने वाले कटान को रोका जाए जिसके कारण आने वाले मानसून में और तबाही होगी या फिर जो विस्थापित हुए हैं उनको कहीं बसाया जाए। वह सिर्फ राहत का सामान बांटते हैं, जिसे लोग अब अपनी तौहीन समझने लगे हैं।

शारदा नदी ने बीते कई बरसों में सीतापुर जिले के चार विकास खंडों- रेऊसा, सकरन, रामपुर मथुरा और बेहटा के कई गांव लील लिए हैं। जिन गांवों का नामो निशान मिट गया उनमें काशीपुर, सेनापुर व मल्लापुर शामिल हैं। मल्लापुर राजा की हवेली जहां खड़ी थी, वहां आज सपाट बालू है। हवेली की एक र्इंट नहीं नजर आती। नदी विकराल रूप धारण कर लेती है जब सितारगंज में बनबसा बांध और नेपाल में बने दूसरे बांधों को बचाने के लिए ऊपर से पानी छोड़ा जाता है। शारदा और घाघरा नेपाल से निकलती है और दोनों यहां से मिल जाती हैं और उत्तर प्रदेश के पीलीभीत, लखीमपुर खीरी, सीतापुर, बाराबंकी, बहराइच, बस्ती व बलिया जिलों को प्रभावित करती हैं।

जल सत्याग्रह मोर्चे की नेतृत्व करतीं ऋचा सिंहजल सत्याग्रह मोर्चे की नेतृत्व करतीं ऋचा सिंहइन नदियों के किनारे रहने वाले किसान बाढ़ की वजह से सिर्फ एक फसल ही ले पाते हैं। इसी वजह से यहां लोगों को राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी जैसी योजनाओं का लाभ भी नहीं मिल पाता। जिससे किसानों और मज़दूरों दोनों के सामने भुखमरी का संकट मुंह बाए खड़ा रहता है। कई लोग तो रोज़गार की तलाश में इलाक़ा छोड़ कर देश के बड़े शहरों में चले गए हैं।

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