सावधान! पानी के नाम पर जहर

14 Dec 2015
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आर्सेनिक का प्रभाव शरीर में दो तरह का दिखता है एक हाइपर कंडिशन है दूसरा हाइपो कंडिशन है। हाइपो कंडिशन में ज्यादा असर नहीं दिखता है, लेकिन ज्यादा होने पर काले धब्बे के रूप में शरीर के विभिन्न हिस्से में नजर आता है। चर्मरोग के चिकित्सक इसकी आसानी से शिनाख्त कर लेते हैं। यदि लोग आर्सेनिकयुक्त जल का लगातार पाँच साल तक सेवन कर लेते हैं तो बिना इलाज के असर खत्म नहीं होता है। यह शरीर के गेहुआँ रंग को भी प्रभावित करता है। इसे खत्म कर देता है। इसे मैलोनोसिस कहा जाता है। मुंगेर का क्षेत्र जलसंसाधन से समृद्ध रहा है। एक ओर जहाँ गंगा नदी है, वहीं कई महत्त्वपूर्ण जलस्रोत हैं। इन सबके बावजूद मुंगेर की त्रासदी है कि यहाँ लोगों को शुद्ध पेयजल मयस्सर नहीं हैं। कस्तुरबा वाटर वर्कस के माध्यम से जल की जो आपूर्ति नगरवासियों को की जाती है, उसका क्लोरीकरण तक नहीं होता है।

यहाँ नगरपालिका का फिटकिरी घोटाला चर्चा में है। मौजूदा समय में जिले के लोग तरह—तरह का दूषित जल पी रहे हैं। यह उनकी सेहत से खिलवाड़ कर रहा है।

मुंगेर के लोकस्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग के प्रयोगशाला के रसायनज्ञ सुनील कुमार ने इस क्षेत्र के विभिन्न इलाकों के जल की जाँच की है। जाँच के दौरान मुंगेर के भूजल में आयरन, आर्सेनिक, फ्लोराइड और नाइट्रेट की मात्रा पाई गई है।

पानी के आयरन की पहचान आम है। कपड़े का पीला होना, खाना बनाने के क्रम में बर्तन पर कुछ जमना, नल के प्लेटफार्म का पीला होना आदि है। इसकी मानक मात्रा .3 मिलीग्राम प्रति लीटर है। इससे ज्यादा मात्रा होने पर जल दूषित हो जाता है। मुंगेर के गंगा घाटी और पहाड़ी इलाके में आयरन की मात्रा अधिक है।

खड़गपुर, टेटियाबम्बर आदि इलाके में यह चिन्हित किया गया है। आयरन की अधिकता से कई तरह की बीमारी हो रही है। मुंगेर लालदरवाजा क्षेत्र के नरेशचन्द्र राय पेट की बीमारी से पीड़ित हैं। दवा असर ही नहीं करता है। आयरन की अधिकता से पाचनशक्ति प्रभावित होती है। पश्चिमी देशों में शोध में पाया गया है आयरन की अधिकता से हेमोथेडरेसिस नामक होती है।भूजल में पाया जाने वाला दूूसरा रसायन है आर्सेनिक। आर्सेनिक ननमेटल है। यह गंगा के दोनों क्षेत्र के भूजल में पाया जाता है। इसके अतिरिक्त पोखर, तालाब आदि के क्षेत्र में भी पाया जाता है। जहाँ पानी कभी जमता था, अब वह सूखा है।

गंगा घाटी से रिसकर आसपास के भूजल में आता है। जल में इसकी मानक मात्रा .05 मिलीग्राम प्रति लीटर थी। अब इसकी मानक की मात्रा 10 पीपीबी है। आर्सेनिक वाले भूजल का लम्बे समय से इस्तेमाल कर रहे तो शरीर में घुलकर शरीर के नरम टिसू में जमा होता है। हाथ की तलहथ्थी, पैर के तलवे आदि में जमा होता है।

आर्सेनिक का प्रभाव शरीर में दो तरह का दिखता है एक हाइपर कंडिशन है दूसरा हाइपो कंडिशन है। हाइपो कंडिशन में ज्यादा असर नहीं दिखता है, लेकिन ज्यादा होने पर काले धब्बे के रूप में शरीर के विभिन्न हिस्से में नजर आता है। चर्मरोग के चिकित्सक इसकी आसानी से शिनाख्त कर लेते हैं।

यदि लोग आर्सेनिकयुक्त जल का लगातार पाँच साल तक सेवन कर लेते हैं तो बिना इलाज के असर खत्म नहीं होता है। यह शरीर के गेहुआँ रंग को भी प्रभावित करता है। इसे खत्म कर देता है। इसे मैलोनोसिस कहा जाता है। यह लिकोडर्मा के रूप में भी सामने आता है। आर्सेनिकयुक्त जल से कैरिटोटिस हो जाता है।

हथेली तथा तलवे का कड़ा होना और फटना तथा खून का रिसना आदि है। बाद में चर्म कैंसर में परिणत हो जाता है। गैगरिन भी इससे होता है। मुंगेर में आर्सेनिक से कई क्षेत्र प्रभावित हैं। बरियारपुर के उत्तरी क्षेत्र के कई पंचायत तथा मुंगेर के कई पंचायत कुतलुपुर तथा अन्य क्षेत्र में पाया गया है। जमालपुर, मुंगेर सदर और जमालपुर के ग्रामीण क्षेत्र के पानी में आर्सेनिक है।

तारापुर दियारा, मोहली, बरियारपुर पूर्वी, कल्याणुपर, हेमजापुर और इटहरी में तो आर्सेनिक की स्थिति खतरनाक है। इन क्षेत्रों में 200 पीपीबी तक आर्सेनिक की मात्रा है। कुछ इलाके में तो ट्रीटमेट प्लांट लगाकर जल की आपूर्ति की जा रही है और कई क्षेत्रों में ये लगे नहीं है। एंटी आक्सीडेंट फूड के इस्तेमाल से इसके दुष्प्रभाव को कम किया जा सकता है।

यहाँ के भूजल में फ्लोराइड भी है। फ्लोरीन यह हाइली रिएक्टिव है। यह स्वतंत्र रूप में नहीं रह सकता है। मुंगेर के खड़गपुर प्रखंड के 18 पंचायतों में से 10 पंचायत फ्लोराइड से प्रभावित है।

खैरा, मंझगाय, गंगटा में भी इसका प्रभाव है। इसी तरह संग्रामपुर कटियारी पंचायत और धरहरा के कुछ पंचायत भी फ्लोराइड प्रभावित हैं। यह शरीर में कैल्शियम में मिलकर कैल्शियम फ्लोराइड बनाता है। भूजल का अत्यधिक दोहन का नतीजा फ्लोराइड का मात्रा होना। शरीर में इसकी मात्रा बढ़ जाती है तो जोड़ों में जमा हो जाता है। कड़ापन आ जाता है। इसे फ्लोरोसिस कहते हैं।

इसका फलस्वरूप मुड़ना बन्द हो जाता है। इसका प्रभाव बच्चों के दाँतों में दीखने लगता है। इसका दोहरा प्रभाव होता है। पानी में यदि .07 के आसपास रहता है तो यह दाँत को मज़बूती भी देता है। दाँत में जो बीमारी होती है, उसे डेंटल फ्लोराइड कहते हैं। इसका प्रभाव स्पष्ट दीखने लगता है।

लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग का दावा है कि सरकार की ओर से यहाँ चापाकलों में फ्लोराइड अटैचमेंट यूनिट लगाया गया। मिनी वाटर सप्लाई की व्यवस्था की गई है। वाटर लाइफ ने भी प्लांट लगाए हैं। सरकार की ओर खैरा में प्लांट लगाया जाना था, लेकिन पाँच साल में भी वह पूरा नहीं हो पाया है। इसके लिये फिर निविदा निकाली गई है।

यहाँ जल में नाइट्रेट भी है। इसका 45 मिलीग्राम प्रतिलीटर है। इसके मानक मात्रा से अधिक होने से बच्चों का नस नीला हो जाता है। मौत तक हो जाती है कचरे आदि के कारण पाया जाता है। इसका कोई खास इलाका चिन्हित नहीं किया गया है। इसके अलावा जैविक प्रदूषण से भी भूजल प्रभावित होता है।

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