सेनिटेशन गोलमेज का आयोजन

आईआईटी दिल्ली और युनिसेफ ने “टेक पू टू द लू” अभियान के तहत सेनिटेशन पर किया एक गोलमेज सम्मेलन का आयोजन, खुले में शौच जाने की समस्या के समाधान के लिए एक राष्ट्रीय अभियान

भारत में 620 मिलियन लोग शौचालयों का इस्तेमाल नहीं करते। हालांकि लगभग 20 मिलियन लोग हर साल शौचालयों का इस्तेमाल करना शुरू करते हैं, शौचालयों को अपनाए जाने की यह दर इस समस्या के समाधान के लिए पर्याप्त नहीं है। क्योंकि बच्चों को बचपन से जो आदत सिखाई जाती है, उसे बदलना बेहद मुश्किल होता है।नई दिल्ली, 6 मार्च 2014: देश को निर्मल भारत बनाने के उद्देश्य के साथ “खुले में शौच” की समस्या पर चर्चा को आगे बढ़ाने के लिए इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, दिल्ली एवं यूनिसेफ इंडिया के द्वारा आज सेनिटेशन पर एक गोलमेज सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस सम्मेलन में सरकार, बहुपक्षीय एजेंसियों, जमीनी स्तर के संगठनों, प्रोद्यौगिकी संस्थानों और नागरिक समूहों के प्रतिनिधियों और विशेष तौर पर युवाओं ने हिस्सा लिया।

“गोलमेज सम्मेलन में सेनिटेशन के लिए अत्याधुनिक समाधानों पर फोकस किया गया, साथ ही, इस अवसर पर यूनिसेफ के “पू टू लू अभियान” (‘Poo2Loo’ campagin (poo2loo, www.poo2loo.com) की कामयाबी का जश्न भी मनाया गया, जिसका लांच नवंबर 2013 में किया गया था। इस अभियान ने इस ‘वर्जित’ विषय को सार्वजनिक बहस का मुद्दा बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सेनिटेशन कवरेज के लक्ष्यों में कामयाबी हासिल करने के लिए न केवल सरकारी प्रयासों की आवश्यकता है बल्कि मीडिया सहित सभी हितधारकों की सक्रिय भागीदारी भी उतनी ही महत्वपूर्ण है।” आईआईटी दिल्ली के प्रोफेसर विजय राघवन एम चेरियर ने कहा।इस अभियान के माध्यम से 110,000 से ज्यादा लोगों (विशेष रूप से युवा एवं डिजीटली कनेक्टेड) लोगों ने भारत के माननीय राष्ट्रपति को संबोधित करने वाली एक याचिका पर हस्ताक्षर करके इस नेक काज के लिए अपने समर्थन का वचन दिया। यूनिसेफ ने इसके लिए कई संगठनों एवं संस्थानों के साथ एक्शन आधारित पार्टनरशिप की है। इन संगठनों में आईआईटी, सिम्बायोसिस इंटरनेश्नल युनिवर्सिटी, एनजीओ जैसे प्रोत्साहन, WASH - युनाईटेड, पीवीआर नेस्ट और राईट टू एजुकेशन अभियान, ऑनलाइन प्लेटफॉर्म - रॉकटॉक, हल्लाबोज; तथा कोरपोरेट आर्चीज, ऑन मोबाइल और डोमेक्स शामिल हैं।

भारत में 620 मिलियन लोग शौचालयों का इस्तेमाल नहीं करते। हालांकि लगभग 20 मिलियन लोग हर साल शौचालयों का इस्तेमाल करना शुरू करते हैं, शौचालयों को अपनाए जाने की यह दर इस समस्या के समाधान के लिए पर्याप्त नहीं है। क्योंकि बच्चों को बचपन से जो आदत सिखाई जाती है, उसे बदलना बेहद मुश्किल होता है।

“अभियान के माध्यम से हमने युवाओं को इस मुद्दे पर प्रोत्साहित करने का प्रयास किया है। गोलमेज सम्मेलन के माध्यम से देश में खुले में शौच जाने की समस्या के हल के लिए अत्याधुनिक संभव समाधान पेश किए जाएंगे। यह इनोवेशन और रचनात्मकता के साथ सेनिटेशन के राष्ट्रीय लक्ष्यों की प्राथमिकता को स्पष्ट रूप से इंगित करता है।

समय आ गया है कि हर व्यक्ति आगे बढ़ कर इस मुद्दे पर आवाज उठाए एवं समुदाय में बदलाव लाने के लिए अपना सकारात्मक योगदान दे; खुले में शौच जाना एक ऐसी समस्या है जो हम सभी को प्रभावित करती है- चाहे हम खुद शौचालय का इस्तेमाल करे या नहीं। हमें एकजुट होकर इसे ‘ना’ कहना होगा।” युनिसेफ इंडिया में वाटर, सेनिटेशन एंड हाईजीन (WASH) के चीफ सू कोट्स ने बताया।

कार्यक्रम की शुरूआत पुणे से वर्षा गुप्ता के संबोधन के साथ हुई जिन्होंने पानी और सेनिटेशन से जुड़े मुद्दों के समाधान में युवाओं की भुमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि “युवा लोग न केवल देश के वर्तमान बल्कि भविष्य का भी प्रतिनिधित्व करते हैं। हमारे बहुत से सपने हैं, किंतु देश को खुले में शौच की समस्या से निजात दिलाकर साफ और स्वस्थ भारत बनाना सबसे बड़ा सपना है। देश का एक नागरिक होने के नाते हमें इसके लिए आवाज उठानी होगी और इस समस्या के समाधान के लिए अपना सक्रिय योगदान देना होगा।”

कार्यक्रम के दौरान बिहार सेनिटेशन मिशन से प्रकाश कुमार, एकम इको सोल्यूशंस से उत्तम बैनर्जी तथा वॉटर फॉर पीपल से अरुमुगम कालीमुथु ने गाँवों में सेनिटेशन के लिए अत्याधुनिक प्रोद्योगिकी तथा सामाजिक बदलाव के लिए सामुदायिक अभिप्रेरण पर चर्चा की। मध्य प्रदेश, उड़ीसा और राजस्थान से समुदाय के सदस्यों ने इस विषय पर अपने विचार प्रकट किए कि कैसे सेनिटेशन सुविधाओं की उपलब्धता ने उनके जीवन को बदल डाला है।

दोपहर में प्रतिभागियों ने समूह बनाकर कई विषयों पर चर्चा की जैसे व्यवहार में बदलाव हेतु सामुदायिक अभिप्रेरणा में सर्वश्रेष्ठ प्रथाएं, अत्याधुनिक प्रबंधन, प्रोद्यौगिकी एवं डिजाइनों के इस्तेमाल के द्वारा सेनिटेशन कवरेज को बढ़ाना; ग्रामीण क्षेत्रों में सेनिटेशन सुविधाओं के विस्तार के लिए निजी क्षेत्र की भूमिका; खुले में शौच की समस्या को हल करने के लिए युवाओं की क्षमता का उपयोग, तथा सेनिटेशन के मुद्दों पर प्रकाश डालने में मीडिया की भूमिका। अकादमिकज्ञों, सेनिटेशन क्षेत्र के विशेषज्ञों, सिविल सोसाइटी के प्रतिनिधियों तथा मीडिया संगठनों के संपादकों ने इस विषय पर खुल कर चर्चा की।

अभियान के एक भाग के रूप में, आईआईटी दिल्ली ने विद्यार्थियों के लिए कई आउटरीच गतिविधियों जैसे सायकल रैली, सांस्कृतिक कार्यक्रमों, फिल्म मेकिंग प्रतियोगिताओं का आयोजन किया। इसके अलावा पोस्टर डिज़ाइन और मोबाइल एप डिज़ाइन प्रतिस्पर्धा का भी भी आयोजन किया गया। इन प्रतिस्पर्धाओं के माध्यम से इस मुद्दे से जुड़ी चुनौतियों तथा सफलता की कहानियों का स्पष्ट करने का प्रयास किया गया। विजेता सेनिटेशन फिल्म, पोस्टर और एप्लीकेशन का प्रदर्शन भी किया गया।

‘टेक पू टू द लू’ अभियान के बारे में अधिक जानकारी के लिए:
www.poo2loo.com
www.facebook.com/poo2loo
www.twiter.com/poo2loo
www.youtube.com/user/takepoo2loo

“टेक पू टू द लू” गाना देखें :
http://youtu.be/Pj4L7C2twI

यूनिसेफ के बारे में


यूनिसेफ 190 से ज्यादा देशों में बच्चों के जीवन के संरक्षण की दिशा में कार्यरत है। यह बचपन से लेकर किशोरावस्था तक उनके कल्याण के लिए काम करता है। विकासशील देशों में वैक्सीनों का सबसे बड़ा प्रदाता, यूनिसेफ बच्चों के स्वास्थ्य, पोषण, उनके लिए साफ पानी, स्वच्छता, लड़कों और लड़कियों दोनों के लिए मूल शिक्षा तथा हिंसा, शोषण एवं एड्स से बच्चों की सुरक्षा जैसी सेवाएं उपलब्ध कराता है। यूनिसेफ का वित्तपोषण पूरी तरह से कारोबारों, संगठनों एवं सरकारों के स्वयंसेवी योगदान के द्वारा किया जाता है। यूनिसेफ एवं इसके कार्य के बारे में अधिक जानकारी के लिए विजिट करें :
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कम्युनिकेशन स्पेशलिस्ट,
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