सिक्किम सिखा रहा स्प्रिंग्स सहेजना

मेल्ली गाँव की धारा
मेल्ली गाँव की धारा

पूर्वोत्तर हिमालय में लगभग 7096 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला सिक्किम वैसे तो है बहुत छोटा राज्य, लेकिन इस छोटे राज्य ने स्प्रिंग्स को सहेजने के लिये जो बड़ा काम किया है, उससे काफी कुछ सीखा जा सकता है। सिक्किम ने स्प्रिंग्स को सहेजकर अपने लोगों के लिये पेयजल की आपूर्ति सुनिश्चित कर दी है। मजेदार बात यह है कि सिक्किम ने सरकारी योजनाओं के बूते ही स्प्रिंग्स (धारा) को संरक्षित कर लिया है। सरकारी योजनाओं के सम्बन्ध में अक्सर कहा जाता है कि इसमें लूटखसोट होती है व इसका लाभ लोगों को नहीं मिल पाता है। इस लिहाज से कहा जा सकता है कि सिक्किम ने इस मिथक को भी तोड़ा है।

सिक्किम की आबादी 5 लाख 40 हजार है। यहाँ के गाँवों में रहने वाली आबादी का 80 प्रतिशत (65000) हिस्सा पीने व अन्य जरूरतों के लिये स्प्रिंग्स के पानी पर निर्भर है। इससे समझा जा सकता है कि स्प्रिंग्स यहाँ के लिये कितना जरूरी है, लेकिन रख-रखाव के अभाव व स्प्रिंग्स को बचाने की कोई मजबूत व दूरदर्शी योजना नहीं होने के कारण यहाँ के स्प्रिंग्स बेहद दयनीय हालत में पहुँच गए थे। पहाड़ पर जिन्दगी यों भी दुश्वार होती है, उस पर अगर पीने के पानी के लिये भी जद्दोजहद करनी पड़े, तो मुश्किलें और बढ़ जाती हैं। सिक्किम के लोग पेयजल की समस्या को नियति मान चुके थे, लेकिन स्थितियाँ तब धीरे-धीरे बदलने लगीं जब स्प्रिंग्स को पुनर्जीवन देने की कवायद शुरू हुई।

स्प्रिंग्स को सिक्किम में धारा भी कहा जाता है। सरकारी आँकड़ों के मुताबिक सिक्किम में अब तक 704 स्प्रिंग्स की मैपिंग की गई है, लेकिन रख-रखाव नहीं होने से अधिकतर स्प्रिंग्स की जल संचयन क्षमता कम होने लगी थी व कई सूखने के कगार पर पहुँच गए थे। इसके पीछे एक बड़ी वजह यह भी थी कि सिक्किम में बारिश अनियमित हो गई थी व जितनी भी बारिश होती थी, उसके पानी का बेहतर प्रबन्धन नहीं होता था। इस सिलसिले में वर्ष 2008 का जिक्र करना जरूरी है।

2008 का साल सिक्किम के लिये बेहद मुश्किल भरा था क्योंकि उस वर्ष सिक्किम में नाम मात्र की बारिश हुई थी। लोग बताते हैं कि सिक्किम में ऐसा सूखा कभी नहीं पड़ा था। चूँकि स्प्रिंग्स बारिश के पानी पर ही निर्भर होते हैं, इसलिये बारिश नहीं हुई तो स्प्रिंग्स सूखने लगे। स्प्रिंग्स की क्षमता जब कम हो गई, तो जलसंकट गहराने लगा व पानी के लिये कई बार लोगों में तू-तू-मैं-मैं की स्थिति बन जाया करती थी।

मेल्ली धारा ग्राम पंचायत यूनिट की सदस्य वीणा शर्मा कहती हैं, ‘अप्रैल से दिसम्बर तक अधिकतर स्प्रिंग्स सूख जाया करते थे, जिस कारण पेयजल का संकट आ जाता था। कई बार ग्रामीणों की ओर से पानी के लिये मारपीट तक की शिकायत सुनने को मिलती थी लेकिन अब ऐसी शिकायतें नहीं आ रही हैं।’

वीणा की तरह ही मेल्ली धारा में रहने वाली हरि माया प्रधान की भी अपनी शिकायतें थीं, लेकिन अब उनकी शिकायतें दूर हो गई हैं। प्रधान पॉल्ट्री व पशुपालन कर अपनी जीविका चलाती हैं। वह कहती हैं, ‘पानी की किल्लत को देखते हुए मैंने तय कर लिया था कि पॉल्ट्री व पशुपालन का धन्धा छोड़ दूँगी, लेकिन स्प्रिंग्स को पुनर्जीवित होने से पानी का संकट दूर हो गया इसलिये मैंने भी साहस कर अपना धन्धा जारी रखा है।’

यहाँ यह भी बता दें कि सिक्किम में गर्म स्प्रिंग्स भी हैं। इन गर्म स्प्रिंग्स में सल्फर की अधिकता है जो कई रोगों को दूर करने में कारगर हैं।

सिक्किम के सूखते स्प्रिंग्स को बचाने की मुहिम वर्ष 2008 से शुरू की गई थी। इसके लिये स्प्रिंग शेड डेवलपमेंट प्रोग्राम शुरू किया गया व डब्ल्यूडब्ल्यूआई-इंडिया, पीपल्स साइंस इंस्टीट्यूट (देहरादून) व एक्वाडैम की भी मदद ली गई।

सिक्किम सरकार से जुड़े अधिकारियों ने कहा कि महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत मिलने वाले फंड की मदद से ही यह प्रयास शुरू किया।

स्प्रिंग्स के पुनरुद्धार से पानीदार बना सिक्किमइस योजना के तहत कलुक, रेनोक, रवांगला, शुंबुक, मनथांग व अन्य ब्लॉक के कम-से-कम 50 स्प्रिंग्स को नया जीवन दिया गया। बताया जाता है कि इन स्प्रिंग्स की वाटर रिचार्ज क्षमता में अब 15 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हो गई है।

स्प्रिंग्स के पुनरुद्धार में इण्डियन फॉरेस्ट अफसर संदीप तांबे की बड़ी भूमिका रही। उन्होंने सिक्किम में पानी व पर्यावरण पर गहन शोध किया है। बताया जाता है कि तांबे की पहल पर ही धारा विकास (स्प्रिंग डेवलपमेंट) कार्यक्रम शुरू किया गया। इसका फोकस दक्षिणी व पश्चिमी सिक्किम के स्प्रिंग्स का पुनरुद्धार करना था क्योंकि इन क्षेत्रों के स्प्रिंग्स सूखने लगे थे।

तांबे के अनुसार स्प्रिंग्स को जीवित रखने के लिये बहुत जरूरी था कि उन्हें नियमित रिचार्ज किया जाय। इसी मॉडल पर काम शुरू किया गया था। अनुमान के मुताबिक सिक्किम में जितनी बारिश होती थी उसका महज 15 प्रतिशत हिस्सा ही स्प्रिंग्स तक पहुँचता था व बाकी हिस्सा बेकार चला जाता था। बारिश के चलते कई बार बाढ़ की भी नौबत आ जाती थी। यह देखते हुए बारिश के पानी को सहेजकर उससे स्प्रिंग्स को रिचार्ज करने की योजना पर काम शुरू किया गया।

तांबे ने कहा, ‘हमने वैज्ञानिक तरीके से काम शुरू किया व परकोलेशन पिट बनाया जिसमें बारिश का पानी जमा होता है व उस पानी से स्प्रिंग्स व झील रिचार्ज होती है।’ बताया जाता है कि 637 हेक्टेयर भूखण्ड में परकोलेशन पिट बनाया गया है। एक पिट बनाने के लिये ढाई लाख रुपए खर्च किये गए हैं।

अगरचे पूरी मुहिम आसान नहीं थी, लेकिन जब काम शुरू हुआ तो रास्ते खुद-ब-खुद निकलते गए। सिक्किम सरकार के पदाधिकारियों की मानें तो सिक्किम में 82 प्रतिशत स्प्रिंग्स निजी भूखण्ड पर हैं, ऐसे में इनके विकास के लिये इन भूखण्डों के मालिकों को विश्वास में लेना भी कठिन कार्य था। लेकिन, पानी की किल्लत के कारण परेशानी से जूझ रहे लोग तुरन्त तैयार हो गए।

धारा विकास से जुड़े सुभाष ढकाल कहते हैं, ‘वर्ष 2008 से 2011 तक हमने केवल लोगों को जागरूक किया। ब्लॉक स्तरीय जनप्रतिनिधियों व स्वयंसेवी संगठनों समेत अन्य साझेदारों से मुलाकात कर योजना को मूर्त रूप देने पर काम किया। वर्ष 2010-2011 में योजना को जमीनी स्तर पर शुरू किया गया।’ वर्ष 2008 से लेकर अब तक 2.6 करोड़ रुपए खर्च किये गए हैं।

उन्होंने कहा कि हाइड्रो जिओलॉजी के बारे में शुरुआती दौर में कुछ पता नहीं था लेकिन एक्वाडैम व अन्य संगठनों ने इसके बारे में समझने में मदद की, लेकिन प्रशिक्षित मानव संसाधन व पैरा हाइड्रोलॉजिस्ट तैयार करना कठिन काम था। वहीं, इस योजना को लागू करने के लिये लोगों को जागरूक करना भी बेहद मुश्किल था। इसके लिये हमने पूरे राज्य में जागरूकता अभियान चलाया। स्थानीय भाषाओं में हैंडबुक छपवाकर लोगों में वितरित किया।

दूसरी दिक्कत महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के पैसे से स्प्रिंग्स के लिये काम करने में थी क्योंकि इस एक्ट में सरकारी फंड से स्प्रिंग्स को विकसित करने का प्रावधान नहीं था। बताया जाता है कि प्रावधान नहीं होने के बावजूद मनरेगा के फंड से स्प्रिंग्स को रीचार्ज करने के लिये स्प्रिंग्स शेड विकसित किये गए व 5 वर्षों में ही 400 हेक्टेयर भूमि में स्प्रिंग्स शेड बना दिये गए। बताया जाता है कि जब परियोजना के लिये रिपोर्ट बनाई गई व केन्द्र सरकार को सौंपी गई, तो सरकार भी मनरेगा के रुपए से स्प्रिंग्स को संरक्षित करने पर राजी हो गई।

इस पूरी मुहिम में ग्रामीणों के सहयोग ने बड़ा काम किया। बताया जाता है कि योजना को अमलीजामा पहनाने के लिये ग्रामीण स्तर पर विलेज वाटर सेनिटेशन कमेटी का गठन किया गया व लोगों से अपील की गई कि वे वनों की कटाई न करें, बल्कि अधिक-से-अधिक पेड़ लगाएँ।

सिक्किम सरकार के इस काम से प्रभावित होकर ही योजना आयोग ने वर्ष 2012 में मनरेगा के तहत होने वाले कामों की सूची में स्प्रिंग्स शेड डेवलपमेंट में शामिल कर लिया। वहीं, बेहतर काम करने के लिये सिक्किम सरकार को ‘प्राइम मिनिस्टर अवार्ड फॉर एक्सिलेंस इन पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन’ भी दिया गया।

स्प्रिंग्स को रिचार्ज करने के लिये बना तालाबअपनी भविष्य की योजना के बारे में उन्होंने कहा कि सिक्किम में कितने स्प्रिंग्स हैं, इसकी जानकारी नहीं है लेकिन अब तक 704 स्प्रिंग्स की मैपिंग की जा चुकी है। हमारी योजना 500 स्प्रिंग्स की मैपिंग करने की है। हम उन्हीं स्प्रिंग्स की मैपिंग कर रहे हैं जिनका इस्तेमाल लोग पानी के लिये करते हैं। ढकाल ने कहा, ‘हमारी आगे की योजना उन सभी गाँवों का वाटर सिक्योरिटी प्लान तैयार करना है जहाँ सूखा पड़ता है। इसके अलावा जिन स्प्रिंग्स पर अब तक काम नहीं हुआ है, उनकी मैपिंग कर उन्हें संरक्षित करना है।’ उन्होंने कहा कि क्रिटिकल स्प्रिंग्स को संरक्षित रखने के लिये मॉनीटरिंग मकैनिज्म को मजबूत किया जाएगा। इसके अलावा हम एक्विफर का चरित्र भी समझना चाहते हैं ताकि स्प्रिंग्स को सहेजने में मदद मिल सके।

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