शिखर कर रहे गंगा स्वच्छता का भगीरथ प्रयास

14 Mar 2020
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शिखर कर रहे गंगा स्वच्छता का भगीरथ प्रयास
शिखर कर रहे गंगा स्वच्छता का भगीरथ प्रयास

गंगा मात्र एक नदी ही नहीं बल्कि भारत की 40 प्रतिशत से अधिक आबादी के प्राण है, जो गोमुख से लेकर गंगा सागर तक उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड़ और बंगाल की भूमि को सींचती है। देश दुनिया के करोड़ों लोगों की आस्था का केंद्र होने के साथ ही गंगा करोड़ों जीव-जंतुओं और वनस्पतियों का आश्रय स्थल भी है। तो वहीं हिंदू संस्कृति का अभिन्न अंग भी है गंगा। लेकिन आधुनिकीकरण की अनियमित दौड़ ने गंगा को प्रदूषित कर दिया। नदी की धारा सिकुड़ गई। अमृत कहा जाने वाला गंगा जल कई स्थानों पर जहरीला हो गया। घरों का सीवर और उद्योगों का कैमिकलयुक्त कचरा गंगा में बहाया जाने लगा। पर्व त्योहारों पर श्रद्धालु अपने साथ लाए कपड़े, भगवान की तस्वीरें, मूर्तियां आदि को नदी में बहाने लगे। गंगा को स्वच्छ करने के लिए कई योजनाएं सरकार ने शुरू की। करोड़ों रुपये खर्च किए गए, किंतु जनता की सहभागिता और शासन-प्रशासन की ढोलमोल कार्यप्रणाली व भ्रष्टाचार के कारण योजनाएं परवान नहीं चढ़ सकीं। ऐसे में हरिद्वार निवासी शिखर पालीवाल ने गंगा की स्वच्छता का बीड़ा उठाया और बीइंग भगीरथ संस्था की स्थापना कर न केवल लोगों को जागरुक करने का कार्य किया, बल्कि हर सप्ताह नियमित रूप से गंगां घाटों की सफाई भी करते है। 

हरिद्वार में जन्में शिखर पालीवाला बचपन से ही अपने पिता को सामाजिक कार्य करते देखते थे। उनके पिता विभिन्न पोस्टरों और वाॅल पेंटिंग के माध्यम से लोगों को गंगा स्वच्छता के प्रति जागरुक करते थे। एक व्यापारी होने के साथ साथ अपने पिता के इन कार्यों ने भी उन्हें सामाजिक कार्यो से जोड़ा और गंगा की स्वच्छता के प्रति कुछ करने की अलख को जगाए रखी। लेकिन वे जैसे जैसे बड़े होते गए, तो गंगा का प्रदूषण लगातार उनकी नजरों के इर्द-गिर्द घूमता रहा। पर्व, त्योहार, मेला आदि अवसरों पर ऐसा भी हुआ कि लोग पहले गंगा में स्नान कर पूजा करते हैं, फिर अपने पुराने कपड़ों आदि अनावश्यक सामग्रियों को गंगा में ही फेंक देते हैं। ऐसा करते देख शिखर काफी आक्रोशित होते थे। यहां से गंगा की स्वच्छता को लेकर उनके मन में कई प्रश्न खड़े होने लगे, जिसने में उन्हें गंगा की स्वच्छता के प्रति प्रतिबद्ध किया। 

शिखर पालीवाल।

गंगा स्वच्छता की प्रतिबद्धता और गंगा के प्रति अगाध आस्था के कारण उन्होंने वर्ष 2016 में बीइंग भगीरथ संस्था की नींव रखी और कुछ लोगों के साथ मिलकर हरिद्वार के ही सर्वानंद घाट से गंगा सफाई की शुरुआत की। चंद लोगों से शुरु हुए अभियान में धीरे धीरे लोग जुड़ते चले गए। शुरुआती दिनों में वे किसी से आर्थिक सहायता नहीं मांगते थे, बल्कि आपस में ही पैसे मिलाकर सामग्रियां जुटाते थे। यहां से उनके कार्य से कई लोग प्रेरित हुए, जिनमें से कुछ तो उनके संगठन के साथ जुड़ गए, जबकि कुछ ने अपने अलग-अलग संगठन बनाकर गंगा स्वच्छता का कार्य शुरू किया। आज बीइंग भगीरथ के साथ हजारों की संख्या मे स्वयंसेवी जुड़े है, जो 190 रविवारों, यानी वर्ष 2016 से हर रविवार गंगा घाटों की सफाई करते हैं। साथ ही ऋषिकेश, बनारस, रुद्रप्रयाग, चमोली आदि में भी स्वयंसेवी स्वच्छता की मुहिम में निरंतर लगे हुए हैं। 

अभियान के शुरुआती दौर में गंगा और समीप के स्थानों से कचरा एकत्रित कर नगर निगम को दिया जाता था। प्रमाण के तौर नगर निगम से कचरे की पर्ची ली जाती थी, जिसमें कचरे का भार दर्शाया जाता था, लेकिन कुछ समय बाद पता चला कि हरिद्वार में कचरा प्रबंधन की कोई व्यवस्था नहीं है और कचरे को ले जाकर नगर निगम द्वारा डंपिंग ग्राउंड में फेंक दिया जाता है। ऐसें में बीइंग भगीरथ ने गंगा से निकलने वाले कपड़ों से दरी (बिछाने के उपयोग में लाई जाती है) बनाने की योजना बनाई। मंगलौर और आसपास के लोग, जो पहले से ही दरियां बनाने का कार्य करते थे, उनसे संपर्क किया और गंदे कपड़ों को धुलवाकर उनके पास पहुंचाया गया। इन कपड़ों से बनी दरियों को गंगा किनारे रहने वाले गरीबों को निशुल्क वितरित किया जाता है। इसके साथ ही गंगा में डाले जाने वाले फूलों से अगरबत्ती और धूप बनाने का कार्य भी शुरू किया गया। इसके लिए भगीरथ स्वयं सहायता समूह बनाया गया। इससे महिलाओं के लिए रोजगार के अवसर भी खुले। लोगों को जागरुक करने के लिए छोटे छोटे स्तर पर ट्रेनिंग कैंप चलाए गए, विशेषकर गंगा किनारे रहने वाले लोगों के लिए। इन कैंप के माध्यम से लोगों को किचन के कचरे से कंपोस्ट बनाना सिखाया गया। साथ ही कचरे को गंगा में जाने से रोकने के लिए प्रशिक्षित किया गया। 

शिखर पालीवाल द्वारा हरिद्वार में वाॅल पेंटिंग की शुरूआत भी की गई। जिसमें शहर की दीवारों पर पेंटिंग की गई। सभी पेंटिंग में हिंदू संस्कृति को दर्शाया गया है। इन पेंटिंग्स में चित्रों के माध्यम से लोगों को सार्वजनिक स्थानों और गंगा की स्वच्छता के प्रति जागरुक करने का कार्य किया गया है। साथ ही गंगा नदी के धरती पर अवतरण की कहानी को भी दीवारों पर रंगों से उकेर कर बताया गया है। इससे शहर की दीवारें बेजान और बेरंग की बजाए, सजीव और आकर्षक लगने लगी हैं। हांलाकि वाॅल पेंटिंग का उद्देश्य सार्वजनिक स्थानों को गंदगी से मुक्त करना भी है। इसके अलावा प्लास्टिकमुक्त हरिद्वार ही ओर भी बीइंग भीगरीथ ने कदम बढ़ाया है। जिसमें विभिन्न स्थानों और कूड़ा बिनने वालों से प्लास्टिक की बोलतों को एकत्रित कर गार्डन बनाए जा रहे हैं। कई स्थानों पर प्लास्टिक की बोतलों की रंग-बिरंगी बाड़ की है, तो कहीं विभिन्न चैराहों पर प्लास्टिक की बोतलों में पौधें लगाकर हैंगिंग गार्ड़न बनाए गए हैं। वहीं समय समय पर पौधारोपण का कार्य कर पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया जाता है।

शिखर पालीवाल बताते हैं कि वे इन कार्यों के लिए किसी से आर्थिक मदद नहीं मांगते हैं। सभी लोग मिलकर व्यवस्था करते हैं। विभिन्न अभियानों या किसी कार्य के लिए यदि अभाव होता है, तो अधिकारियों यादि अन्य लोगों से संसाधनों के रूप में सहायता लेते हैं। वे कहते हैं कि किसी भी कार्य को करने के लिए दृढ़ इच्छा शक्ति की आवश्यकता होती है। हम दृढ़ता के साथ ही निरंतर आगे बढ़ रहे हैं। लोगों में अपने अपवित्र कपड़ों को गंगा में बहाने को कुछ तथाकथित लोगों ने भ्रम पैदा कर दिया है। लेकिन ये गलत है। कपड़ों को गंगा में फेंकने के बजाए गरीबों या किसी जरूरतमंदों को दान किया जाना चाहिए। फूलों को भी गंगा में नहीं बहाया जाना चाहिए। लोगों की सहुलियम और गंगा को स्वच्छ रखने के लिए हमने विभिन्न घाटों पर लोहे के जाल के रूप में कुछ कलश रखे रखे हैं। जिसमें सफेद रंग का कलश पूजा सामग्री के कचरे के लिए है, जबकि पीले रंग का कलश कपड़ों, लाल कलश फूलों के लिए और अन्य सामग्रियों के लिए गोल्डन कलर का कलश है। सामग्रियों को इन्हीं कलश में डालने की लोगों से निरंतर अपील की जाती है, ताकि घाटों के साथ ही गगा की स्वच्छ रहे। शिखर पालीवाल कहते है कि गंगा को केवल इंसानों के पाप धोने, यानी उस उद्देश्य के लिए ही रहने दें, जिस उद्देश्य के लिए भगीरथ गंगा को धरती पर लाए थे। गंगा को फ्लोइंग डस्टबिन न समझें। अपना मैल गंगा में न उतारे। यदि कोई स्वच्छता का कार्य करता है, तो उसका मजाक बनाने के बजाए, उसे प्रोत्साहित करें। क्योंकि ये बहुत बड़ा कार्य है और जिनता सरल दिखता है उतना है नही। 


लेखक - हिमांशु भट्ट (8057170025)


 

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