सिंधु जल-संधि पर सोचे भारत


आजादी के बाद से ही पाकिस्तान लगातार भारत के खिलाफ लड़ाईयाँ लड़ता रहा है। शुरू में उसने सीधा हमला करके भारत को परास्त करने की कोशिश की। पर होता रहा उल्टा; जब भी उसने हमला किया, मुँह की खाता रहा।

धीरे-धीरे पाकिस्तान समझ गया कि सीधी लड़ाई में भारत से वह जीत नहीं सकता। इसलिये करीब 30-40 सालों से पाकिस्तान ‘प्रॉक्सीवार’ यानी छद्मयुद्ध लड़ रहा है। हथियार, पैसा, ट्रेनिंग देकर भारत के खिलाफ आतंकवादियों का इस्तेमाल कर रहा है। हमेशा दुनिया की नजर में पाकिस्तान सरकार अपने को पाक-साफ दिखाना चाहती है और आतंकवादियों को ‘नॉन स्टेट प्लेयर’ के रूप में घोषित करती रहती है।

नेहरू जी ने पाकिस्तान के साथ हर तरह के संभव तनाव को दूर करने के लिये सिंधु जल-संधि पर हस्ताक्षर किये थे। उन्होंने पानी देकर शान्ति खरीदनी चाही थी। उनके मन में था कि एक खुशहाल, आबाद पड़ोसी पाकिस्तान हमारे लिये ज्यादा अच्छा होगा। जबकि पाकिस्तान सिंधु जल-संधि के माध्यम से अपना दाना-पानी सुनिश्चित करना चाहता था। ताकि किसी भी युद्ध में उसका दाना-पानी खतरे में ना आ जाए।

1960 में सिंधु जल-संधि के संपन्न होने के महज चार साल बाद ही 1965 में पाकिस्तान ने भारत पर हमला कर दिया। पाकिस्तान अपना दाना-पानी सिंधु जल-संधि के माध्यम से सुनिश्चित कर चुका है और आये दिन भारत के खिलाफ ताल ठोकता रहता है। फिर भी भारत ने कभी पानी रोकने की बात नहीं सोची उल्टे अपने लोगों को प्यासा रखकर पाक को पानी पिलाता रहा, इसलिये तो सिंधु जल-संधि को दुनिया की सबसे उदार संधि कहा गया है।

पाकिस्तान जानता था कि भारत के साथ युद्ध की किसी भी दशा में भारत उसका पानी रोक देगा। ऐसे में पाकिस्तान सूखा और अकाल की भयानक परिस्थितियों में घिर जाएगा। इसीलिये उसने जबरदस्त तत्परता और सक्रियता दिखाते हुए सिंधु जल-संधि को पूरा करवाया था। आये दिन संधियों की धज्जियाँ उड़ाने वाला पाकिस्तान सिंधु जल-संधि के मामले पर अन्तरराष्ट्रीय अनुबंधों का हवाला देने लगता है।

18 सितम्बर को पाकिस्तान के कायराना हमले के बाद भारत के सब्र का बाँध टूटने लगा है। पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिये कई विकल्पों पर विचार चल रहा है। कई विकल्पों में से एक सुझाव यह आ रहा है कि सिंधु जल-संधि को रद्द कर दिया जाय। पाकिस्तान द्वारा लगातार धोखा दिये जाने से भारत के राजनीतिक और रणनीतिक दोनों तबकों में सिंधु जल-संधि खत्म करने की बात बहुत तेजी से चल रही है।

केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती ने साफ और स्पष्ट सन्देश दिया है, ‘सिंधु जल-संधि टूटी तो पाकिस्तान बूँद-बूँद को तरस जाएगा। इसी सन्दर्भ में उनके मंत्रालय में मैराथन बैठकें चल रही हैं।’ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राष्ट्रीय प्रवक्ता और पूर्व केंद्रीय मंत्री शाहनवाज ने कहा है कि ‘कश्मीर में हमारे लोग प्यासे मर जाएं और हम पाक को पानी पिलाते रहें।’ कांग्रेस के एक प्रवक्ता के अनुसार ‘हम पानी डायवर्ट करके अपने हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट की क्षमता बढ़ा सकते हैं।’ जल-युद्ध पर कई किताबें लिख चुके रणनीतिक विचारक ब्रह्म चेलानी कहते हैं ‘अफगानिस्तान के साथ मिलकर पाक में आने वाली काबुल नदी पर कार्रवाई करा सकते हैं। किशनगंगा (नीलम नदी) का पानी रोककर हाइड्रोपावर क्षमता बढ़ा सकते हैं।’

क्या भारत के लिये यह सिंधु जल-संधि तोड़ना सम्भव होगा?


कोई भी संधि आपसी विश्वास और सहयोग पर टिकी रहती है। पाकिस्तान सहयोग तो दूर, आए दिन भारत की बजाने में लगा रहता है। ऐसे में कोई संधि कब तक टिकी रहेगी। भारत से ज्यादा पाकिस्तान ही उतावला है संधि को खत्म करने के लिये। पाकिस्तानी सीनेट यानी उच्च सदन में अभी हफ्ते भर के अन्दर ही प्रस्ताव पास किया है कि सिंधु जल-संधि की पुनर्समीक्षा होनी चाहिए। पाकिस्तानी सीनेट ने यह काम कोई पहली बार नहीं किया है। पाकिस्तान को सिंधु जल-संधि के अनुसार पूरे पानी का लगभग 80 फीसदी हिस्सा मिलता है और पाकिस्तान सरकार चाहती है कि सिंधु जल-संधि की समीक्षा हो और उसे 90 फीसदी हिस्सा दे दिया जाय।

यह समझौता शुरू से ही पाकिस्तान जैसे बिगड़े बच्चे को ज्यादा पानी देकर मनाने वाली स्थिति का रहा है। भारत के हितों की अनदेखी हुई। ऐसे में जब पाकिस्तान खुद ही पुनर्समीक्षा करना चाहता है, तो भारत को भी देर नहीं करनी चाहिए। सिंधु जल के न्यायपूर्वक बँटवारे के लिये अब भारत को हर कीमत पर अड़ने की जरूरत है।

 

संधि टूटी तो भारत को क्या करना होगा


कुछ लोग कह रहे हैं कि सिंधु का पानी रोकना न व्यावहारिक रूप से संभव है और न आर्थिक रूप से। सिंधु की मूल धारा जो चीन से आती है, पाकिस्तान उस पर चीन की मदद से बड़े बाँधों का निर्माण कर रहा है। हमें उतना खर्च करने की जरूरत नहीं है, बाँध से ज्यादा ग्रैविटी-गुरुत्व प्रवाह का इस्तेमाल करने की जरूरत है। इस तरीके से सतलज, व्यास, रावी के पानी को बहुत आसानी से पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और राजस्थान को दिया जा सकता है। सिंधु जल-संधि की वजह से ही पंजाब सतलज-यमुना लिंक (एसवाइएल) कैनाल के लिये पानी देना नहीं चाह रहा है। अगर यह संधि टूटती है, तो एसवाइएल के लिये हमारे पास इफरात पानी होगा। झेलम चेनाब और सिंधु के पानी की जरूरत हमारे अपने कश्मीर को ही बहुत ज्यादा है। जम्मू-कश्मीर विधानसभा ने भी कभी प्रस्ताव पारित कर कहा था कि सिंधु जल-संधि तोड़ दी जानी चाहिए।

 

बड़ी-बड़ी संधियाँ टूटती रही हैं। इतिहास इसका गवाह है। भारतीय संसद एक सम्प्रभु राष्ट्र की संसद है। भारत की संसद को एक प्रस्ताव पास करना होगा और हम सिंधु जल-संधि से बाहर आ जाएँगे। अपने एक आलेख में पानी के रणनीतिक लेखक ब्रह्म चेलानी लिखते हैं कि भारत वियना-कंवेंशन के अनुच्छेद 62 के अन्तर्गत सिंधु जल-संधि से पीछे हट सकता है।

किसी भी तरह के समझौते चाहे वह बहुपक्षीय हों या द्विपक्षीय उनको रद्द किया जा सकता है। बशर्ते वियना कंवेंशन के अनुच्छेद 62 (3) के अनुसार निम्न पाँच शर्तों का होना जरूरी है-

1- जिन हालातों में संधि हुई उनमें परिवर्तन होना चाहिए।
2- हालातों में बदलाव मौलिक होना चाहिए।
3- इन बदलावों का समझौते के पक्षों ने संधि करते वक्त पहले से अनुमान न लगाया हो।
4- तत्कालीन हालातों ने दोनों पक्षों को संधि करने के लिये बाध्य किया हो।
5- हालातों में बदलाव इतना मौलिक हो कि संधि के तहत निभाए जाने वाले दायित्वों की हदों को ही बदल दे।

इन शर्तों को ध्यान से देखने से एक बात स्पष्ट हो जाती है कि सिंधु जल-संधि कोई ‘ब्रह्मा की लकीर’ नहीं है कि जो मिटाई नहीं जा सकती। दुनिया के इतिहास में हजारों समझौते हुए हैं और टूटे हैं।

संधि टूटती है तो पाकिस्तान बर्बाद हो जाएगा


सिंधु जल-संधि रद्द करने से पाकिस्तान की खेती तबाही के कगार पर खड़ी हो जाएगी। पाकिस्तान की 90 फीसदी खेती पानी इसी पर निर्भर है और पाकिस्तान की साठ फीसदी से भी ज्यादा पेयजल की निर्भरता हमारे देश से जा रही नदियों पर ही है।

सिंचाई और पेयजल के लिये पाकिस्तान कटोरा लेकर खड़ा हो जाएगा। 80 फीसदी से भी ज्यादा पानी पाकिस्तान को देने के वादे की वजह से जम्मू-कश्मीर को भारी नुकसान उठाना पड़ता है। जम्मू-कश्मीर के लोग अपनी नदियों का पानी अपनी सिंचाई के काम नहीं ले सकते, क्योंकि पानी पाकिस्तान को देना है।

सिंधु जल-संधि से जम्मू-कश्मीर को 6500 करोड़ का खेती में नुकसान सालाना हो रहा है। इतना ही नहीं हाइड्रोपावर में होने वाला नुकसान तो कहीं बड़े पैमाने पर है। अपने ही क्षेत्र से होकर बहने वाली नदियों सिंधु, झेलम और चिनाब पर उसका हक सीमित है।

भारत पानी रोकता है तो अन्तरराष्ट्रीय छवि का क्या होगा


आतंकवादियों से शिकस्त खाने से कोई अच्छी छवि बन रही है क्या? प्रतिबंधित पाकिस्तानी आतंकी गुट लश्कर-ए-ताइबा से जुड़ा संगठन जमात-उल-दावा (जेयूडी) सिंधु जल-संधि बंटवारे के मसले पर लगातार भारत विरोधी एजेंडे को हवा देता रहा है।

जमात के कार्यक्रमों में सत्तारूढ़ पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी और नवाज शरीफ की पीएमएल-एन, जमात ए इसलामी समेत सभी बड़ी पार्टियों के लोग शिरकत करते रहे हैं।

जेयूडी ने पाकिस्तान सरकार को चेताया है कि वह भारत को पाकिस्तान की ओर आने वाली नदियों पर बांध बनाने से रोके या फिर इस मसले को निपटाने की जिम्मेदारी ‘मुजाहिद्दीनों’ को दे दी जाए। अब जबकि पाकिस्तान सरकार की बजाय जमात-उल-दावा जैसे आतंकवादी संगठन खुद ही निपटना चाहते हैं तो सिंधु जल-संधि पर एक बार आर-पार हो जाने की जरूरत है।

रही अन्तरराष्ट्रीय छवि की बात, तो सभी जानते हैं कि भारत ने कितनी उदारता दिखाई है अब तक, पाक से युद्ध के वक्त भी उसका हुक्का-पानी बंद नहीं किया। अपने लोगों को प्यासा रखकर उनको पानी पिलाया। फिर अंतरराष्ट्रीय राजनीति में ताकत की पूजा होती है। कमजोरों की गली के कुत्तों जैसी हालत होती है, जो आता है, वही चार उपदेश देकर चला जाता है।

दूसरे पड़ोसी देशों के साथ सम्बन्धों पर असर


दूसरे पड़ोसी मुल्कों के साथ भी भारत के कई समझौते हैं, जैसे नेपाल और बांग्लादेश। लेकिन इस सिंधु संधि के टूटने से उनके साथ सम्बंधों पर कोई असर होगा ऐसा नहीं लगता। क्योंकि इन दोनों मुल्कों के साथ भारत के सौहार्द्रपूर्ण सम्बंध हैं, वो आए दिन पाक की तरह छद्मयुद्ध और आतंकवादी गतिविधियां नहीं करते। इतना हीं नहीं भारत के इस कदम से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह संदेश भी जाएगा कि भारत जितनी उदारता सेे मित्रता निभाता है उतनी ही सख्ती से शत्रु को जवाब देना भी जानता है।

और आखिरी में...


कुछ लोग कह रहे हैं कि सिंधु का पानी रोकना न व्यावहारिक रूप से सम्भव है और न आर्थिक रूप से। सिंधु की मूल धारा जो चीन से आती है उस पर पाकिस्तान चीन की मदद से बड़े बाँधों का निर्माण कर रहा है। हमें उतना खर्च करने की जरूरत नहीं है, बांध से ज्यादा ग्रैविटी-गुरूत्व प्रवाह का इस्तेमाल करने की जरूरत है।

इस तरीके से सतलज, व्यास, रावी के पानी को बहुत आसानी से पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और राजस्थान को दिया जा सकता है। सिंधु जल-संधि की वजह से ही पंजाब सतलज-यमुना लिंक (एसवाईएल) कैनाल के लिये पानी देना नहीं चाह रहा है।

 

जानिए, क्या है सिंधु-जल संधि

 

भारत की पाकिस्तान से सिंधु जल संधि दुनिया में किसी भी देश द्वारा पेश की गई उदारता का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। भारत ने 19 सितंबर, 1960 को  सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर कर जिम्मेवार पड़ोसी की नहीं,  बल्कि बड़े भाई  की भूमिका निभाई थी। संधि द्वारा भारत ने तीन प्रमुख पश्चिमी नदियों- सिंधु, झेलम, चेनाब- और उनकी सहायक नदियों का पानी बिना किसी रुकावट के पाकिस्तान को देना स्वीकार किया। भारत इन नदियों का 20 फीसदी से भी कम पानी का इस्तेमाल करता है,  जबकि शेष 80 फीसदी पानी पाकिस्तान की जरूरतों को पूरा करता है। पूर्वी नदियों व्यास, रावी और सतलज का पानी भारत के हिस्से आया।

 

पाकिस्तान की जीवन रेखा है सिंधु नदी

 

दुनिया की सर्वाधिक लंबी नदियों में शामिल सिंधु नदी पाकिस्तान के लिए जीने-मरने का सवाल खड़ा कर सकते हैं। सिंधु नदी क्षेत्र 11 लाख से अधिक वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। इसका उदगम चीन में है, वहाँ से यह उत्तर भारत से होती हुई पाकिस्तान पहुँचती है, जहाँ सहायक नदियों चेनाब, झेलम, सतलज, रावी और व्यास से इसका संगम होता है। लगभग तीन हजार किलोमीटर लंबी सिंधु और सहयोगी नदियों पर पाकिस्तान का 65 प्रतिशत भूभाग निर्भर है। कृषि और बिजली उत्पादन के लिये पाकिस्तान इन नदियों पर आश्रित है।

 

अगर यह संधि टूटती है तो एसवाईएल के लिये हमारे पास इफरात पानी होगा। झेलम, चेनाब और सिंधु के पानी की जरूरत हमारे अपने कश्मीर को ही बहुत ज्यादा है। जम्मू-कश्मीर विधानसभा ने कभी प्रस्ताव पारित कर कहा था कि सिंधु जल-संधि तोड़ दी जानी चाहिए।

एक इतिहासकार के अनुसार, ‘भारत सामने से हुए बड़े-से-बड़े हमले से लड़ सकता है और जीत सकता है। पर यदि कोई आक्रमणकारी स्थायी विरोध के भाव से लगातार धोखे और छद्म तरीके से हमला करता रहे तो भारत का मानस समझ नहीं पाता।’ जरूरत आन पड़ी है कि पाकिस्तान के स्थायी विरोध भाव और धोखेबाजी को समझा जाय और माकूल जवाब दिया जाय।

 

सिंधु-जल संधि की खास बातें

भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने कहा है कि भारत सरकार सिंधु जल संधि को तोड़ने पर विचार कर सकती है, क्योंकि आपसी विश्वास और सहयोग के बिना समझौता स्थायी नहीं रह सकता।

56 वर्ष पूर्व 19 सितंबर, 1960 को भारतीय प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान के बीच हुआ था सिंधु जल संधि पर समझौता

 

2.5 लाख एकड़ से अधिक कृषि भूमि की सिंचाई पाकिस्तान में तीन प्रमुख नदियों सिंधु, झेलम और चेनाब के जल से होती है।

6 प्रमुख नदियों सिंधु, झेलम, चेनाब, रावी, व्यास और सतलज के जल बंटवारे को लेकर दोनों देशों के बीच हुई थी संधि।

20 फीसदी से कम पानी का इस्तेमाल जम्मू-कश्मीर में हो पाता है पश्चिमी क्षेत्र की नदियों से।

60 हजार करोड़ लगभग भारत का प्रतिवर्ष होता है नुकसान इस संधि को बरकरार रखने के लिये।

विश्व बैंक ने की थी मध्यस्थता

 

विश्व बैंक की देखरेख में हुई दोनों देशों के बीच संधि के मुताबिक तीन पूर्वी नदियों रावी, व्यास और सतलज के पानी का हक भारत को देने पर और तीन पश्चिमी नदियों- झेलम, चेनाब और सिंधु- का 80 फीसदी पानी पाकिस्तान को देने पर सहमति बनी थी। संधि पर निगरानी के लिये दोनों देशों की भूमिका को महत्व देते हुए स्थाई सिंधु आयोग का गठन भी किया गया था। भारत सिंधु जल समझौते के मानकों के अतिरिक्त अपनी जल विद्युत परियोजनाओं के लिये पश्चिमी नदियों का पानी इकट्ठा कर सकता है। तीन प्रमुख नदियों सिंधु से 0.4 एमएएफ (मिलियन एकड़ फुट), झेलम से 1.5 एमएएफ और चेनाब से 1.7 एमएएफ पानी का संग्रह करने से भारत को कोई नहीं रोक सकता है।

नौ क्यूसेक मीटर प्रति सेकेंड के प्रवाह की बाध्यता

 

समझौते के तहत कश्मीर में बहनेवाली नदियों पर नियमों की तय सीमा में बाँध बनाने की भी इजाजत है। जब भारत ने झेलम की सहायक नदी किशनगंगा पर जल बिजली परियोजना शुरू की, तो पाकिस्तान इस मसले को लेकर 2010 में इंटरनेशनल ऑर्बिट्रेशन कोर्ट पहुँच गया। दिसंबर 2013 में दिये फैसले में कोर्ट ने परियोजना के लिये अनुमति तो दे दी, लेकिन नदी में हर समय 9 क्यूसेक मीटर प्रति सेकेंड के न्यूनतम जल प्रवाह की बाध्यता रख दी। हालाँकि कोर्ट ने पाकिस्तान के 100 क्यूसेक मीटर प्रति सेकेंड की मांगा को खारिज कर दिया।

क्या खत्म हो सकती है संधि?

 

वैश्विक मंच पर भारत की उदारवादी छवि बनाने में सिंधु जल संधि की एक भूमिका महत्वपूर्ण है। संधि को खत्म करने पर पहला नुकसान वैश्विक छवि का है। दूसरी बात, यदि संधि खत्म करने के प्रयास शुरू होते हैं तो पाकिस्तान घाटी में आतंकी सक्रियता बढ़ा सकता है। तीन भारत-पाक युद्धों के बावजूद इस संधि को बरकरार रखा गया। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि संधि शर्तों के अनुसार यदि भारत पश्चिमी नदियों के जल से 3.6 मिलियन एकड़ फीट जल संग्रहण करता है, तो पाकिस्तान को इससे कड़ा संदेश जायेगा।

भड़काने के लिये आतंकी सक्रिय

 

दोनों देशों के बीच जल-बंटवारे को लेकर राजनीति न केवल पाकिस्तान की पार्टियां करती हैं, बल्कि जमात-उद-दावा और लश्कर-ए-तैयबा जैसे खूंखार आतंकी संगठन भी इसे अपनी रणनीति का हिस्सा मानते हैं। पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर में विकास परियोजनाओं को रोकने व स्थानीय लोगों में असंतोष भड़काने के लिए इस संधि का बेजा इस्तेमाल करता है। अन्तरराष्ट्रीय मंचों पर बगलीहार और किशनगंगा परियोजनाओं को भारत की ज्यादती के रूप में पेश करता है। - प्रस्तुति : ब्रह्मानंद मिश्र

 

लेखिका पर्यावरणविद् और इण्डिया वाटर पोर्टल की संचालिका हैं।


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