शिप्रा नदी के पुनर्जीवन का रोड मेप

शिप्रा नदी के पुनर्जीवन का रोड मेप
शिप्रा नदी के पुनर्जीवन का रोड मेप

मध्यप्रदेश के मालवा अंचल की पवित्रतम नदी का नाम है शिप्रा। इस नदी का उदगम, धार जिले के उत्तर में स्थित विन्ध्याचल पर्वतमाला की काकरी-बरदी पहाडियों में लगभग 747 मीटर की ऊँचाई पर है। यह स्थान इन्दौर से लगभग 11 किलोमीटर दूर है। खान और गंभीर उसकी मुख्य सहायक नदियाँ हैं। खान नदी और शिप्रा का संगम उज्जैन के त्रिवेणी संगम पर और गंभीर नदी का संगम महिदपुर के पास है। यह खुद चम्बल की सहायक नदी है। लगभग 6321 वर्ग किलोमीटर अधिक है। उज्जैन को विश्व प्रसिद्ध महाकाल मन्दिर, सिंहस्थ मेला और विविध तिथियों पर कलोमीटर क्षेत्र के पानी को समेट कर वह, लगभग 195 किलोमीटर की यात्रा पूरी कर चम्बल नदी में मिलती है। इसके दाहिने तट पर उज्जैन स्थित है। उज्जैन धार्मिक नगरी है और उसकी आबादी 5 लाख से थोडा अधिक है। उज्जैन को विश्व प्रसिद्ध महाकाल मन्दिर, सिंहस्थ मेला और विविध तिथियों पर शिप्रा स्नान के लिए जाना जाता है। इन दिनों, उसमें पानी का टोटा है और गंदगी उफान पर है।

दो समस्याएं ऐसी हैं जो शिप्रा के पुनर्जीवन की राह रोकती हैं। पहली समस्या है- बरसात के बाद शिप्रा नदी तंत्र में नाममात्र को बहता पानी। यह प्रवाह हर साल कम हो रहा है। इस कारण कुछ साल पहले तक कलकल कर बहने वाली शिप्रा नदी बरसाती नदी बन कर रह गई है। शिप्रा नदी की दूसरी समस्या है - लगातार बढ़ता प्रदूषण। यह प्रदूषण उसे, मुख्यतः खान नदी से मिलता है। गौरतलब है कि खान नदी, इन्दौर में पूरी तरह गंदे नाले में तब्दील हो चुकी है। उसके पानी में प्रचुर मात्रा में भारी धातुएं, हानिकारक रसायन और आर्गेनिक अपशिष्ट भी पाये जाते हैं।

शिप्रा नदी में देवास नगर तथा उसके औद्योगिक क्षेत्र का लगभग 4 लाख लीटर प्रदूषित जल भी मिलता है। इसके अलावा, अनेक ग्रामों और कारखानों का गंदा पानी उसे प्रदूषित कर रहा है। उल्लेखनीय है कि शिप्रा का पानी स्नान के योग्य भी नहीं है। पिछले सिंहस्थ मेले के समय नर्मदा - शिप्रा जोड़ योजना द्वारा शिप्रा नदी में प्रति सेकेण्ड पाँच हजार लीटर पानी डाल कर न केवल उसके प्रदूषण को नियंत्रित किया गया था, वरन उसके प्रवाह को बहाल भी किया गया था। यह अन्तरिम व्यवस्था थी। यह व्यवस्था इंगित करती है कि शिप्रा नदी के प्रवाह को लौटाया जा सकता है। मौजूदा समय में यह योजना सक्रिय नहीं है। साथ ही, यह व्यवस्था कुदरती नहीं है। यह व्यवस्था जल प्रदाय व्यवस्था जैसी है। स्थायी लाभ के लिए विकल्प तलाशना होगा। 

शिप्रा नदी का कैचमेंट मुख्यतः इन्दौर, देवास और उज्जैन जिलों में है। सन 2014-15 की स्थिति में इन्दौर जिले में भूजल दोहन 119.02 प्रतिशत (70056 हेक्टेयर मीटर), देवास जिले में 86.69 प्रतिशत (74339 हेक्टेयर मीटर) और उज्जैन जिले में 95.34 प्रतिशत (91356 हेक्टेयर मीटर) है। अर्थात इन तीनों जिलों की लगभग 17 लाख हेक्टेयर धरती से 253090.30 हेक्टेयर मीटर के विरुद्ध 235751 हेक्टेयर मीटर (93 प्रतिशत) पानी निकाला जाता है। इस आधार पर कहा जा सकता है कि शिप्रा नदी के 632100 हेक्टेयर कैचमेंट क्षेत्र से लगभग 87644 हेक्टेयर मीटर भूजल का दोहन होता है। इस कारण बरसात के बाद, शिप्रा तथा उसकी सहायक नदियों के तल के नीचे, भूजल का स्तर तेजी से नीचे उतर जाता है। इसी कारण शिप्रा तथा उसकी सहायक नदियाँ, बहुत जल्दी सूख जाती हैं। भूजल की गिरावट से जाहिर है कि भूजल के कुदरती रीचार्ज की मदद से शिप्रा नदी तंत्र में गैर-मानसूनी प्रवाह की बहाली संभव नहीं है। नीचे दिए चित्रों में शिप्रा कैचमेंट का ड्रेनेज, लीनियामेंट, कन्टूर, भूमि उपयोग और भूविज्ञान को दर्शाया गया है।

अब चर्चा शिप्रा के कैचमेंट में पानी के बजट की। यह चर्चा रन-ऑफ और भूजल की वास्तविक स्थिति को सामने रखकर की जाना चाहिए। इस चर्चा में सबसे पहले शिप्रा के कैचमेंट में कुल रन-ऑफ की मात्रा की गणना की जाना चाहिए। यह गणना बिन्नी तालिका की मदद से की जा सकती है। यह तालिका जल संसाधन विभाग के पास उपलब्ध होती है। इसके अलावा, इम्पीरिकल सूत्र की मदद से भी रन-ऑफ को ज्ञात किया जा सकता है। इसके बाद, भूजल के कुल कुदरती रीचार्ज और उसके दोहन की मात्राओं को ज्ञात करना होगा। यह मात्रा केन्द्रीय भूजल बोर्ड या जिलों के भूजल अधिकारी से प्राप्त की जा सकती है। उसे शिप्रा के कैचमेंट के लिए ज्ञात करना होगा। इसके साथ-साथ हर साल भूजल दोहन की बढ़ती मात्रा को ज्ञात करना होगा। यही वह मात्रा है जिसके कारण स्थिति साल-दर-साल खराब हो रही है। स्थिति में सुधार के लिए अर्थात शिप्रा नदी तंत्र में बरसात के बाद के मौसम में प्रवाह बढ़ाने के लिए हर साल भूजल दोहन की बढ़ती मात्रा से अधिक पानी को रीचार्ज-सह-जल संचय तालाबों को उपलब्ध कराना होगा।

सबसे पहले चर्चा रन-ऑफ की। इन्दौर, देवास और उज्जैन में सालाना औसत बरसात क्रमशः 1077.5 मिलीमीटर, 546 मिलीमीटर और 950 मिलीमीटर है। इन जिलों के लिए 0.3 रन-ऑफ गुणांक लेकर रन-ऑफ की अनुमानित मात्रा मालूम की जा सकती है। यह मात्रा मोटे तौर पर क्रमशः 125944 हेक्टेयर मीटर, 114988 हेक्टेयर मीटर और 173594 हेक्टेयर मीटर है। यदि इसी आधार पर शिप्रा कैचमेंट के लिए रन-ऑफ का अनुमान लगाया जाए तो यह मात्रा 154100 हेक्टेयर मीटर और भूजल दोहन लगभग 87644 हेक्टेयर मीटर होगा। इन आंकड़ों के आधार पर कहा जा सकता है कि शिप्रा नदी तंत्र के गैर-मानसूनी प्रवाह बहाली के लिए रन-ऑफ के रूप में पर्याप्त पानी उपलब्ध है।

अब कुछ चर्चा शिप्रा नदी के कैचमेंट की परिस्थितियों की। उल्लेखनीय है कि गैर-मानसूनी प्रवाह बहाली के लिए शिप्रा नदी तंत्र के कैचमेंट की परिस्थितियाँ काफी हद तक उपयुक्त हैं। उन परिस्थितियों का विवरण निम्नानुसार है-

  • शिप्रा के कैचमेंट के बहुत थोड़े इलाके को छोड़कर बाकी क्षेत्र की जमीन का ढ़ाल बहुत कम है। इस मंद ढ़ाल के कारण बरसात के दिनों में धरती पर पानी के बहाव अर्थात रन-ऑफ की गति बेहद कम है। इसका अर्थ है कि धरती के नीचे पानी के रिसाव एवं सतह पर जल संचय के लिए उपयुक्त परिस्थितियाँ मौजूद हैं। उन उपयुक्त परिस्थितियों के कारण रन-ऑफ को धरती के ऊपर निस्तार तालाबों में और धरती के नीचे रीचार्ज-सह-जल संचय तालाबों में, एक्वीफरों की रिक्ततानुसार, एकत्रित किया जा सकता है। 
  • शिप्रा नदी तंत्र के कैचमेंट में अलग-अलग ऊँचाई पर बेसाल्ट की 6 लावा परतें मिलती हैं। उन परतों के बीच, कुदरती तौर पर, भूजल रीचार्ज के लिए बेहद उपयुक्त अपक्षीण बेसाल्ट (Weathered baslt) की 6 परतें पाई जाती हैं। इन परतों की औसत मोटाई तीन मीटर है। यह परतें भूजल संग्रह के लिए उपयुक्त हैं। 
  • शिप्रा नदी के कैचमेंट में स्थित सहायक नदियों का पैटर्न डेन्ड्रेटिक है। यह पैटर्न सतही जल संचय अर्थात तालाब बनाने के लिए बेहद उपयुक्त है। उन तालाबों में बरसाती पानी को संचित किया जा सकता है। इस प्रयास में शिप्रा नदी के कैचमेंट से किसानों को जोड़ा जा सकता है।
  • शिप्रा नदी तंत्र में पर्याप्त रन-ऑफ उपलब्ध है अतः प्रवाह बहाली संभव है। आवश्यकता सही दृष्टिबोध अपनाने की और समाज को विश्वास में लेने की है।

 

Posted by
Attachment
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading