शिवराज सिंह चौहान ने पीएम से कहा, रद्द हो पर्यावरण मंत्रालय का आदेश

30 Apr 2010
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नई दिल्ली। मध्य प्रदेश की महेश्वर पनबिजली परियोजना के संबंध में वन और पर्यावरण मंत्रालय के निर्देश के खिलाफ प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से शिकायत की गई है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रधानमंत्री को खत लिखकर पर्यावरण मंत्रालय के काम रोकने के निर्देश को एकपक्षीय बताते हुए उसे तुरंत रद्द कराने की मांग की। मुख्यमंत्री ने कहा है कि परियोजना से जुड़े बांध के गेट बंद करने पर ही कोई क्षेत्र डूब में आएगा। मध्य प्रदेश सरकार तब तक गेट बंद नहीं करेगी, जब तक डूब क्षेत्र के सभी लोगों का पुनर्वास न हो जाए। उल्लेखनीय है कि शर्तों के उल्लंघन के आरोप के कारण 23 अप्रैल को 18 साल पुरानी इस परियोजना का काम तुरंत रोकने के निर्देश दिए गए थे। यह अलग बात है कि काम निर्देश के पांच दिन बाद रोका गया।

शिवराज ने पत्र में परियोजना की विशेषताएं और उस पर खर्च का ब्यौरा भी दिया है। इस परियोजना पर अब तक 2,500 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। इंदौर और देवास शहरों के लिए पानी की सप्लाई पर भी 517 करोड़ खर्च किए जा चुके हैं। यही नहीं अगर परियोजना का काम रुका रहा, तो नवंबर में प्रस्तावित विद्युत उत्पादन भी नहीं हो पाएगा। उन्होंने केंद्र सरकार के निर्देश को गरीब और विकास विरोधी बताया है। मुख्यमंत्री ने इस बांध को लेकर आंदोलन चला रहे नर्मदा बचाओ आंदोलन को भी कटघरे में खड़ा किया है। साथ ही प्रधानमंत्री से आग्रह किया है कि इस मामले को निपटाने के लिए जल्दी ही बैठक भी बुलाएं।

क्यों आया पर्यावरण मंत्रालय का महेश्वर पनबिजली परियोजना के काम रोकने का निर्देश


ओंकारेश्वर, इंदिरा सागर की नहरों के दुष्परिणामों पर फिर एक रिपोर्ट
देवेन्द्र पांडेय समिति की तीसरी रिपोर्ट: ‘आज तक लाभ क्षेत्र विकास योजना’ प्रस्तुत नहीं, मंजूर नहीं
केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा गठित देवेन्द्र पांडेय समिति ने अब अपनी तीसरी अंतरिम रिपोर्ट, ओंकारेश्वर व इंदिरा सागर (नर्मदा बांध) परियोजनाओं की नहरों तथा ‘लाभ क्षेत्र विकास नियोजन’ सम्बंधी विवरण प्रस्तुत की है। इस रिपोर्ट में साफ निष्कर्ष निकालते हुए समिति ने मध्य प्रदेश शासन पर एक प्रकार से टिप्पणीयुक्त प्रहार करते हुए कहा है कि राज्य सरकार एवं नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण ने अक्तूबर 2009 से जनवरी 2010 के बीच जो रिपोर्ट प्रस्तुत की, वह इंदिरा सागर की लाभ क्षेत्र विकास योजना का केवल ‘मसौदा’ है, तथा ओंकारेश्वर के मात्र बायीं तट नहर की लाभ क्षेत्र योजना पर बनायी गई ‘संक्षिप्त अंतरिम रिपोर्ट’ ही है। यानी अभी तक उच्च न्यायालय, सर्वोच्च न्यायालय या कहीं भी अंतिम रिपोर्ट व योजना प्रस्तुत ही नहीं की गई है। समिति ने फिर से निष्कर्ष निकाला है कि इस स्थिति में नहरों का कार्य आगे नहीं बढ़ना चाहिए।

ज्ञात हो कि पांडेय समिति की मंजूरी तथा पर्यावरण मंत्रालय की लाभ क्षेत्र योजना को मंजूरी के आधार पर ही नहरों का कार्य आगे बढ़ सकता है: यह सर्वोच्च अदालत ने अपनी अंतरिम रिपोर्ट (25 फरवरी 2010: नर्मदा बचाओ आन्दोलन की याचिका में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ मध्य प्रदेश शासन द्वारा सर्वोच्च अदालत में प्रस्तुत अपील) में कह दिया था। इससे केंद्रीय मंत्रालय की पांडेय समिति को एक प्रकार से उच्च न्यायालय के बाद अब सर्वोच्च अदालत का भी समर्थन प्राप्त हुआ है। अब पर्यावरण मंत्रालय ने पांडेय समिति की दूसरी एवं तीसरी रिपोर्ट को सर्वोच्च अदालत में प्रस्तुत की है।

पांडेय समिति की रिपोर्ट में कई बातें स्पष्ट की गई हैं: जैसे कि ओंकारेश्वर की नहरों संबंधी भी कोई परिपूर्ण लाभ क्षेत्र योजना 1992 में प्रस्तुत नहीं की गई थी, न तो इंदिरा सागर के लिए प्रस्तुत की गई। अक्तूबर 2010 के बाद जो प्रस्तुत किये गये हैं वे योजनाएं नहीं हैं, केवल उद्देश्य सामने रखने वाला रिपोर्ट या वक्तव्य मात्र है। इसलिए इन्हें मंजूरी देने का सवाल ही नहीं उठता है। मध्य प्रदेश शासन ने उच्च न्यायालय और सर्वोच्च अदालत में दावा किया था कि ओंकारेश्वर की लाभ क्षेत्र योजना 1992 में ही प्रस्तुत की गई थी, जिसे कि झूठलाते हुए समिति का कहना है कि अगर ऐसा होता तो 1993 में दी गई पर्यावरणीय मंजूरी में लाभ क्षेत्र योजना तैयार करने की शर्त ही क्यों डाली जाती है? समिति ने प्रस्तुत किये रिपोर्टों के आधार पर कई त्रुटियां बतायी है। एक, नहरों की योजना में हर ‘वितरिका’ (यानी मुख्य और शाखा नहर के बाद की छोटी नहर) के स्तर पर जो योजना बननी चाहिए, वह भी नहीं बनी है। दो, लाभ क्षेत्र योजना के बिना नहरों की खुदाई तक का काम आगे बढ़ाना उस क्षेत्र की जैव विविधता, पानी जैसे प्राकृतिक संसाधनों पर असर लाने का खतरा मोल लेना है। तीन, इंदिरा सागर के लाभ क्षेत्र की मिट्टी और सिंचाई क्षमता की जानकारी से पता लगता है कि करीब 60 प्रतिशत ‘लाभ क्षेत्र’ के लिए जलजमाव, क्षारीकरण का खतरा है। ओंकारेश्वर के लाभ क्षेत्रों में भी बड़ा हिस्सा खतरे के दायरे में है। चार, इस खतरे से बचने के लिए लाभ क्षेत्र में भूजल और सतही जल का 70:30 के अनुपात में संतुलित उपयोग करने का प्रस्ताव रखा गया है लेकिन उसके लिए विस्तृत योजना प्रस्तुत न करते हुए।

समिति के अनुसार देश भर में पर्यावरणीय दृष्टि से सुरक्षा उपाय - नियोजन करे बिना नई-नई योजनाओं को लाना, बढ़ाना एक व्यापक बीमारी सी साबित हुई है, जिस कारण नियोजित लाभ और प्रत्यक्ष प्राप्त लाभों के बीच बड़ी दूरी स्थापित हो चुकी है।

इस रिपोर्ट में निष्कर्ष के रूप में समिति ने सिफारिश की है कि जैसी कि पर्यावरणीय मंजूरी की शर्तें रही हैं, बांध व नहर निर्माण कार्य तथा पर्यावरण सुरक्षा योजना के बीच ‘समयबद्धता’। साथ-साथ पूर्ति की उम्मीद पूर्ण नहीं हुई है, इसलिए आज की स्थिति में सभी शर्तें पूरी होने तक कोई कार्य आगे नहीं बढ़ सकता। इस समिति की विश्लेषणात्मक रिपोर्ट एवं सिफारिश के बाद अब बारी है पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की। सर्वोच्च अदालत ने भी उम्मीद व्यक्त की है कि पांडेय समिति के निष्कर्ष पाने पर 4 सप्ताह में (अधिकतम समय) मंत्रालय को अपना निर्णय देना है; उनकी मंजूरी के साथ ही नहर निर्माण कार्य चलना है।

नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण से पांडेय समिति रिपोर्ट पर मांगा जवाबः


पर्यावरण मंत्रालय ने देवेन्द्र पांडेय समिति के रिपोर्ट के साथ एक पत्र भेजकर नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण से उस पर जवाब/प्रतिक्रिया मांगी है। श्री ओ. पी. रावत, उपाध्यक्ष, नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण को भेजे गये इस पत्र में सर्वोच्च अदालत के ओंकारेश्वर और इंदिरा सागर नहरों से संबंधित अपील याचिका में दिये गये अंतरिम आदेश का जिक्र करते हुए कहा गया है कि समिति के इस राय पर कि ‘‘आपसे प्रस्तुत की गई योजनाएं अधूरी है और मंजूर नहीं हो सकती’’ टिप्पणी देने के साथ-साथ पर्यावरणीय सुरक्षा कार्य की पूर्णता जिसमें लाभ क्षेत्र विकास योजना भी सम्मिलित है, की ओर समयबद्ध योजना बनाकर भेज दें।

आन्दोलन का मानना है कि अदालत के अंतरिम आदेश के अनुसार मंत्रालय को 4 सप्ताह (निर्णय के लिए जो कि अधिकतम अवधि है) का समय देने की जरूरत नहीं है, शर्तों के उल्लंघन की स्थिति में वह स्वयं निर्णय लेने का अधिकार रखते हैं। आंदोलन की अब भी उम्मीद है कि शर्तों के उल्लंघन की निश्चित होते हुए मंत्रालय को तत्काल नहर का काम रोकना चाहिए ताकि नहर प्रभावितों तथा लाभ क्षेत्र की मध्य प्रदेश के निमाड़ क्षेत्र की अति उपजाऊ खेती पर अपरिवर्तनीय असर न हो।

संलग्नक देखें
1 - Appraisal of the Command Area Development (CAD) Plans of Omkareshwar and Indira Sagar Irrigation Projects in Madhya Pradesh
2 - Notice from MoEF to NVDA on Omkareshwar

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