सियासी संरक्षण में खनन की खाइयां

31 Jan 2017
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हल्द्वानी। अवैध खनन व खनिज सम्पदा के अनैतिक दोहन ने पहाड़ व पहाड़ की नदियों को झकझोर डाला है। राज्य निर्माण से लेकर आज तक के सफर में जहाँ राज्य में चौथा विधानसभा चुनाव होने जा रहा है, वहीं शुरू से चले आ रहे खनन के खेल ने पहाड़ को खोखला करके रख दिया है। पहाड़ की अधिकांश नदियाँ व तराई क्षेत्र में बहने वाली नदियाँ इसकी चपेट में हैं।

अवैध खनन के कारोबार में लिप्त अवांछित तत्वों के खिलाफ कोई भी कानूनी कार्यवाही न होने से जहाँ उनके हौसले बुलन्द हैं, वहीं अवैध खनन रुकवाने के लिये संघर्षरत ग्रामीण लोग हताशा एवं आतंक के माहौल में आज भी जीने को विवश हैं। पिछले कई सालों में क्षेत्र में जिस तेजी से शराब की खपत बढ़ी है, छेड़खानी या फिर बहलाकर लड़कियाँ भगाने की घटनाएँ हुई हैं, गुण्डागर्दी के बल पर उप खनिज वाले क्षेत्रों में प्रभुत्व स्थापित करने की होड़ मची है तथा बाहरी खनन माफियाओं की सक्रियता बढ़ी है, उसे देखकर ग्रामीण समाज आतंकित है।

इन सब आपराधिक घटनाओं से उत्तराखण्ड की समूची घाटियाँ अशांत क्षेत्र के रूप में पहचान पाने लगी हैं। हुक्मरानों ने इस विषय में आज तक कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई आखिर इसकी वजह क्या है! स्थिति का सहज ही अन्दाजा लगाया जा सकता है। इसमें सफेदपोशों का संरक्षण, पुलिस प्रशासन की भूमिका अत्यधिक शर्मनाक व निराशाजनक रही है। शायद ही कोई आपराधिक मामला हो, जिसमें पुलिस ने एफआईआर दर्ज की हो अथवा समुचित अन्वेषण कर दोषियों को दंडित कराया हो।

हर मामले में मोटी रकम वसूलना तथा उसे रफा-दफा करा देना ही पुलिस का भी एकमात्र काम माना गया। पुलिस की यही कार्यशैली आपराधिक प्रवृत्ति को हवा देने में मददगार साबित रही है। यही कारण है कि खनन माफियाओं के हौसले सदा ही बुलन्द रहे।

राज्य के सभी प्रमुख नदी क्षेत्रों की भाँति बेतालेश्वर घाटी अन्तर्गत कोशी नदी क्षेत्रों व गौला नदी क्षेत्रों में भी अवैध खनन पर रोक नहीं लग पा रही है। अवैध खनन के भारी दुष्परिणाम झेल चुके स्थानीय ग्रामीण विगत कई वर्षों से इस समस्या को लेकर लगातार संघर्षरत हैं। ग्रामसभाओं की खुली बैठकों से लेकर बीडीसी की बैठकों, राजनीतिक सभाओं तथा अन्य मंचों से ग्रामीण इस मुद्दे को उठाते आ रहे हैं।

इसके अतिरिक्त स्थानीय पुलिस प्रशासन, तहसील प्रशासन, जिला खनन अधिकारी, क्षेत्रीय वनाधिकारी, जिलाधिकारी क्षेत्रीय विधायक तथा विभागीय मंत्रियों तक इस समस्या की गम्भीरता से अवगत कराते हुए अवैध खनन पर पूरी तरह रोक लगाने की माँग कई बार की जा चुकी है, परन्तु आज तक किसी स्तर से भी इस समस्या पर कोई भी कार्यवाही करने की जरूरत नहीं समझी गई।

परिणामस्वरूप अवैध खनन की समस्या सम्पूर्ण बेतालेश्वर घाटी में अब एक भयावह रूप लेती जा रही है। यही हाल पहाड़ की तमाम नदियों सहित गौला नदी का है।

उत्तराखण्ड की आय का प्रमुख स्रोत रेता-बजरी व्यवसाय के बुरी तरह प्रभावित होने से खनन व्यवसाय पर हो रहे संकट के चलते वर्तमान में इस व्यवसाय से प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से जुड़े लाखों लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट उत्पन्न हो गया है।

जनपद नैनीताल के तराई पूर्वी प्रभाग की गौला रेंज में बहने वाली गौला नदी के हल्द्वानी से लालकुआं तक का क्षेत्र उपखनिज उत्पाद रेता, बजरी, पत्थर आदि का मुख्य स्रोत है। यहाँ से खनिज उत्पाद की आपूर्ति उत्तराखण्ड के उत्तर प्रदेश के तीन चौथाई हिस्सों में सड़क, भवन, पुल आदि के निर्माण कार्यों के लिये की जाती है।

बीते दो दशक में रेता, बजरी व नदी के उप खनिज पत्थर का निर्माण कार्यों में आधुनिक तकनीक से उपयोग बहुत ही कारगर एवं उपयोगी सिद्ध हुआ है, जिसके फलस्वरूप हल्द्वानी से लालकुआं तक अनेक स्टोन क्रशरों की स्थापना हुई, जिनमें उत्पादित सामग्री की गुणवत्ता का लाभ राजकीय निर्माण कार्यों में हुआ है, लेकिन शासन की उपेक्षापूर्ण नीतियों के कारण गौला नदी से उत्पादित खनिजों पर स्थायी व ठोस नीति सामने न आ पाने के कारण व अवैध खनन के चलते खनन व्यवसाय संकट के दौर से गुजर रहा है।

उल्लेखनीय है कि इस क्षेत्र में स्टोन क्रशर उद्योग, रेता बजरी, ट्रांसपोर्ट व्यवसाय पर स्थानीय व पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा बिहार के लगभग प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से पाँच लाख से अधिक लोगों की रोजी-रोटी निर्भर है। स्थानीय लोगों के लिये भी रोजगार के मामले में गौला नदी वरदान साबित है। गौला नदी व स्टोन क्रशर पर प्रतिदिन हजारों ट्रक उत्पादित माल को प्रदेश के अनेक हिस्सों सहित पड़ोसी राज्य के तीन चौथाई हिस्से में पहुँचाते हैं, जिससे ढाई सौ से अधिक ट्रांसपोर्ट कम्पनियाँ हल्द्वानी व लालकुआं में चल रही हैं।

उत्तराखण्ड में प्रकृति द्वारा प्रदत्त कच्चे माल, पत्थर पर आधारित उद्योगों में प्रदेश की विभिन्न वित्तीय संस्थाओं व बैंकों के करोड़ों रुपए चल-अचल सम्पत्ति के रूप में निवेश किए गए हैं। खनन से जुड़े उद्योगपतियों, ट्रांसपोर्टरों व मजदूरों का कहना है कि पिछले कई वर्षों से खनन व्यवसाय प्रभावित हो रहा है, जिस कारण समय-समय पर मंदी का दौर मुश्किल में डाल देता है।

गौला नदी के खनन कार्यों से उत्पादित कच्चे माल की रॉयल्टी वसूली के बारे में शासन की आए दिन बदलती नीतियों से इस व्यवसाय से जुड़े लोगों को जूझना पड़ता है। खनिजों की रॉयल्टी वसूली, नीलामी द्वारा रॉयल्टी वसूली का कार्य वन विभाग स्वयं करता है। कभी नीलामी द्वारा रॉयल्टी वसूली निजी ठेकेदार को दे दी जाती है, जिसका सीधा असर व्यवसाइयों पर पड़ता है, क्योंकि रॉयल्टी वसूली के लिये आज तक स्थायी नीति नजर नहीं आई।

यहाँ यह भी बताते चलें कि गौला नदी में मूलतः केवल चुगान का ठेका पूर्व से होता आया था, किन्तु खनन ठेकेदारों ने शासन-प्रशासन की मिलीभगत से बीते वर्षों में नदी की जो दुर्गति की है, वह आज चिंतनीय विषय के रूप में सामने आई है। वर्ष 1991 के पश्चात रॉयल्टी वृद्धि ने जो गति पकड़ी वह आज तक थम नहीं पाई है। जानकारी के मुताबिक वर्ष 1991 में दो सौ रुपया रॉयल्टी शुल्क था, जो तीन वर्ष में कानूनी तौर पर एक बार बढ़ना चाहिए, किन्तु यहाँ समय-समय पर 10 से 15 प्रतिशत शुल्क बढ़ता जाता है।

अब स्थिति यह हो चुकी है कि रॉयल्टी वृद्धि के चलते व्यवसायी व खरीददार दोनों काफी पीड़ित रहने लगे हैं। व्यवसाइयों का कहना है कि बीते वर्षों से जो दर वसूल की जा रही है उससे स्टोन क्रशरों में तैयार माल व नदी का माल प्रदेश की अन्य मंडियों की तुलना में महँगा साबित हो रहा है।

जनपद नैनीताल के वन क्षेत्र में बहने वाली यह नदी ही उपखनिज उत्पादों का मुख्य स्रोत है, जिससे वर्ष के 7 महीने खनिज उत्पाद बजरी, रेता, पत्थर की अनेक जनपदों में गृह निर्माण व विकास कार्य सड़क निर्माण, भवन निर्माण, पुल निर्माण, रेलवे आदि के विकास कार्यों में आपूर्ति की जाती है। इन उद्योगों से उत्पादित 90 प्रतिशत तैयार किया हुआ माल प्रदेश के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले विभिन्न शासकीय विभागों द्वारा प्रयुक्त किया जाता है। शेष 10 प्रतिशत माल निजी भवन निर्माण आदि में प्रयोग किया जाता है।

नदियों से उप खनिज की निकासी के सम्बन्ध में शासन द्वारा समय-समय पर निर्देश दिए जाते रहे हैं। उक्त निर्देशों के अन्तर्गत नदी से उप खनिज की निकासी कभी वन विभाग द्वारा कभी प्रशासन के अधीन निगमों द्वारा कभी नीलामी से ठेकेदारों द्वारा कराई जाती है। शासन की उपखनिजों निकासी की नीति में भारी विसंगतियों एवं समय-समय पर नीतियों में परिवर्तन के कारण क्षेत्र के व्यवसायी, मजदूर, सभी पीड़ित हैं।

बीते वर्षों में खनन केन्द्रों की निकासी के अवसर पर एक बात यह सामने आई है कि निकासी के नए-नए नियमों के कारण व रॉयल्टी दरें निश्चित न होने के कारण इस व्यवसाय के झंझावतों से खनन मजदूरों के आगमन में भी यहाँ कमी आई है। उप खनिज पर आधारित उद्योगों में कच्चे माल में रॉयल्टी, लेबर ढुलाई, उत्पादन मूल्य, विद्युत मूल्य, प्रमुख होता है। विक्रय मूल्य में लाभ की मात्रा प्रतिस्पर्धा के कारण काफी कम होती है।

गौला नदी जहाँ प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से लोगों के लिये रोजगार का प्रबल साधन बनी, वहीं समय-समय पर गैंगवार के चलते बलिदानों की भी लम्बी श्रृंखला यहाँ दहशत बनकर छायी रही। गौला नदी से लगे इलाके अवैध खनन के चलते वर्षा ऋतु में बाढ़ का तांडव बनकर टूटते हैं, जिसके चलते करोड़ों रुपए मूल्य की फसल तो नष्ट होती ही है, साथ ही गरीब किसानों की सैकड़ों एकड़ उपजाऊ भूमि बाढ़ के हवाले हो जाती है।

ग्रामीणों की शिकायत पर सरकार हर बार अवैध खनन पर सख्ती से रोक लगाने का आश्वासन ग्रामीणों को जरूर देती है, लेकिन यह सब निरर्थक साबित होता है। परिणामस्वरूप हल्द्वानी से लेकर किच्छा के बीच दर्जनों गाँव के काश्तकारों की सारी मेहनत पर पानी फिर जाता है। हैरानी की बात तो यह है कि अवैध खनन को वन विभाग व स्थानीय पुलिस प्रशासन की मूक सहमति रहती है। यही कारण है कि तटवर्ती क्षेत्रों में अवैध खनन हमेशा चलता रहता है। इस अवैध धंधे में क्षेत्र के ही कुछ असामाजिक तत्व व दबंग लोग प्रभावी होते हैं। बताया जाता है कि यह सब कुछ वन विभाग व पुलिस की मिलीभगत तथा सफेदपोशों के संरक्षण द्वारा संचालित होता है। आपसी प्रतिद्वंदिता के चलते यहाँ गैंगवार की घटनाओं से लोग अक्सर थर्राए रहते हैं।

गौरतलब है कि शांतिपुरी नं. 3, 4 तथा बिन्दुखत्ता के श्रीलंका टापू के समीप गौला नदी में रेता-बजरी का अवैध खनन धड़ल्ले से होता रहता है। इन क्षेत्रों में आबादी के समीप नदी होने के कारण खनन पूर्णतया वर्जित है, लेकिन माफियाओं द्वारा नियम-कानूनों की धज्जियाँ उड़ाकर धड़ल्ले से अवैध खनन होता रहता है। यही कारण है कि गौला में धंधे को लेकर दिनोंदिन व्यावसायिक प्रतिद्वंदिता बढ़ती जा रही है।

यदि मात्र बीते एक दशक की घटनाओं पर दृष्टिपात करें तो दर्जनों लोग गौला की बेदी पर बलिदान हुए, अवैध खनन ने पहाड़ की नदियों का स्वरूप बदहाल कर दिया है, खनन की खाइयों से उपजे असन्तोष से राज्य कब मुक्त होगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा। बहरहाल क्षेत्र में विकास के नाम पर बर्बादी का आलम बदस्तूर जारी है।

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