सजीव खेती ही एकमात्र रास्ता

'मैंने पहले रासायनिक खेती की और बाद में सजीव खेती। वर्ष 1994 तक मैं रासायनिक खेती करता रहा। जिसमें मेरी जमीन की उर्वरक शक्ति गई, भूजल स्तर नीचे गया, देसी बीज खत्म हुए, फसलचक्र बदला और मजदूरों का रोजगार खत्म हुआ। लेकिन जब मेरा इस विनाशक खेती से मोहभंग हुआ और सजीव खेती अपनानी शुरू की तो मेरा जीवन ही बदल गया। इससे धीरे-धीरे भूमि की उर्वरक शक्ति बढ़ी, भूजल स्तर उपर आया और देसी बीज बचे और मजदूरों को रोजगार भी मिला। यानी सजीव खेती सिर्फ फसल उत्पादन की नहीं, समस्त जीव-जगत के पालन का विचार है। यह एक जीवन पद्धति है।' यह कहना है यवतमाल (महाराष्ट्र) जिले के किसान सुभाष शर्मा का।

हाल ही में इन्दौर में 7 से 9 फरवरी तक चले सजीव कृषि समाज मेला में बताया। इस मेले का उद्धाटन मध्यप्रदेश के कृषि मंत्री ने किया था। मेले मंम देश के कई कोनों से आए कृषि वैज्ञानिक, शोधकर्ता, किसान शामिल हुए। इस मेले का आयोजन भारतीय सजीव कृषि समाज (ओ.एफ.ए.आई.), किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग, मध्यप्रदेश शासन, मध्यप्रदेश विज्ञान-प्रौद्योगिकी परिषद और शासकीय कृषि महाविद्यालय ने मिलकर किया था। इसमें कृषि विशेषज्ञों के अलावा सीधे खेती करने वाले किसानों ने भी अपने-अपने अनुभव साझा किए।

यहां महाराष्ट्र के यवतमाल के छोटी गूंजरी के सजीव खेती करने वाले किसान सुभाष शर्मा ने कहा कि रासायनिक खेती विनाश करने वाली है जबकि सजीव खेती से निर्माण होता है। उन्होंने कहा कि सजीव खेती अपनाने से जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ गई है। गाय के गोबर से जमीन में केंचुओं और जीवाणुओं की संख्या बढ़ी जिन्होंने खेत को उर्वर बनाया। हमने खेत में वनस्पति भी लगाईं जिसकी पत्तियां जैव खाद में बदलीं। पेड़ों में पक्षी आए जिन्होंने फसलों की इल्लियों को खाया। यानी कीट नियंत्रण किया। और उन्होंने जो विश्ष्टा किया उससे जमीन उर्वर हुई। इससे अगले साल फसल में ज्यादा फल्लियां लगी। ज्यादा उत्पादन हुआ।

इसी प्रकार जीवाणुओं के कारण बारिश का पानी खेत में रूकेगा और भूजल स्तर ऊपर आएगा। अगर हमारे पास खुद का बीज होगा तो उसे हम बारिश आने के पहले ही बो देते हैं। यह प्रयोग पिछले 10 साल में सिर्फ एक बार ही फेल हुआ जब बोनी खराब हुई, अन्यथा हर बार सफल रहा। अगर हम खेत में मल्ंचिग करते हैं तो तुअर में फल्लियां ज्यादा लगती हैं। उसकी पत्तियां जैव खाद बनाती हैं। जमीन क्रमशः सुधरती जाती है। इस प्रकार सजीव खेती से मुनाफा भी कमाया। और इसमें हमने मशीन से नहीं, मजदूरों से काम लिया। उनकी क्षमता और ईमानदारी पर भरोसा किया। परिणामस्वरूप मुनाफा क्रमशः बढ़ रहा है। मजदूरों को अब दीपावली पर बोनस भी दिया जाता है।

यह कहानी सिर्फ सुभाष जी की नहीं है, सजीव खेती की ओर अब बहुतेरे किसानों का रूझान बढ़ रहा है।

हमारी खेती का जो नुकसान हजारों वर्षों में नहीं हुआ, उतना हमने पिछले 40 वर्षों में कर लिया। अब हालत यह है कि लागत बढ़ती जा रही है, उपज कम होती जा रही है। हर साल रासायनिक खाद की खपत बढ़ती जा रही है। प्यासे बीजों को पानी पिलाने के लिए बेहिसाब भूजल उलीचा जा रहा है। बिजली संकट बढ़ रहा है। यानी कुल मिलाकर खेती खत्म हो रही है। घाटा का धंधा बन गई है। और भोजन-पानी भी जहरीला हो गया है।

इधर हरित क्रांति की असफलता के समाधान के रूप में जैव तकनीक को सामने लाया जा रहा है, जो हरित क्रांति से भी ज्यादा खतरनाक है। हाल ही बीटी बैंगन का मामला सामने आया है, जिसका काफी विरोध हो रहा है। हमारे यहां बैंगन की हजारों किस्में हैं, फिर जीन परिवर्तित बीटी बैंगन को क्यों लाया जा रहा है, जिसके सुरक्षित होने पर वैज्ञानिकों में मतैक्य है। हालांकि फिलहाल, बीटी बैंगन को व्यावसायिक अनुमति नहीं दी गई है, लेकिन भविश्य में इस पर रोक लगी रहेगी, इस पर अब भी रहस्य बना हुआ है। यह तकनीक मानव स्वास्थ्य और पर्यावरणीय दृष्टि से सुरक्षित नहीं है, यह सवाल उठाया जा रहा है।

इसलिए हमें सजीव खेती की ओर बढ़ना चाहिए। मिट्टी -पानी के संरक्षण करना चाहिए। देसी बीज, हल-बक्खर और गोबर खाद की खेती की ओर बढ़ना चाहिए। कम पानी वाले देसी बीज और जमीन की उर्वरक शक्ति बढ़ाकर कम्पोस्ट खाद के प्रयोग, हरी खाद के माध्यम से किसान असिंचित खेती या सीमित सिंचाई के माध्यम से अच्छा उत्पादन कर सकते हैं। यह सभी दृष्टि से सुरक्षित भी है। पर्यावरणविद् व प्रख्यात लेखक क्लाड अल्वारिस का कहना है कि सभी परंपरागत कृषि पद्धतियों को किसानों ने ही विकसित किया है, वैज्ञानिकों ने नहीं। इसलिए परंपरागत कृषि ज्ञान, पद्धतियों व जैविक खेती की ओर बढ़ना जरूरी है।

इस कार्यक्रम के संयोजक डा. भारतेन्दु प्रकाश का कहना है कि हमें कृषि को जैविक व प्राकृतिक स्वरूप की ओर परंपरागत ज्ञान तथा संसाधनों के संरक्षणात्मक शोध का आधार लेकर लौटाना होगा। किसानों को आत्मनिर्भरता, परस्पर सहयोग तथा शोषणकारी बाजार से मुक्ति के लिए गंभीरता से कार्य करना होगा।
 

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading