स्कूली बच्चों से सीखें जल की बचत करना

6 Dec 2013
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जल के विभिन्न स्रोतों के जरिए हम उनका सदुपयोग करें जिससे हमारा समाज आर्थिक तरक्की कर सके। अब तो विदेश कंपनियां बोतलों में पानी भी बेचने लगी। शहरों में छोटे-छोटे टैंकर दुकानों एवं कार्यालयों में रखे जाते है जिनसे लोग अपनी आजीविका चलाते हैं। जिन क्षेत्रों में जल का संकट है उन लोगों की आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं है। उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में इसका ताजा उदाहरण है जहां पानी के अभाव में फसलें नहीं होती और किसान आत्महत्या को मजबूर होते हैं।

जल संपूर्ण जीव जगत के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। जल के बिना वनस्पतियों एवं जीव-जंतुओं का जीवन संभव नहीं हैं। लगभग 60 वर्ष पहले पेयजल के स्रोत नदियां, तालाब, झील आदि हुआ करते थे लेकिन अब इन सबसे हम पेयजल नहीं ले सकते क्योंकि इसे मानव ने बहुत ही प्रदूषित कर दिया है। अब पेयजल का एक मात्र स्रोत भूगर्भ जल है। लेकिन अब यह भी प्रदूषित होने के कगार पर है। इसलिए हमें भूगर्भ जल को निकालने में बचत एवं प्रदूषण से बचाना है तब ही हमारी जीवन बच सकता है। विद्यालय में बच्चों को जल साक्षर किया जाता है। बच्चे स्वयं भी अपने घर जाकर जल को बचाने का कार्य करते हैं। विद्यालय में जल को बचाने एवं जैव विविधता के लिए विगत वर्ष शपथ ग्रहण कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। जिससे बच्चों पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ा है। बच्चों ने इससे प्रेरित होकर जल को बचाने की मुहिम छेड़ी हुई है। विद्यालय में जल मित्र बच्चों की टीम का गठन किया गया है। जिसमें बच्चे स्वयं जल को बचाते हैं तथा विद्यालय एवं विद्यालय के बाहर भी पड़ोस में जल को बचाने के लिए जागरूक करते रहते हैं।

विद्यालय में प्रधानाचार्या ने बच्चों का मार्गदर्शन किया तथा बच्चों ने अपने घरों में पानी की बचत का सर्वेक्षण किया। यह सर्वेक्षण अधिकांशतः मध्यम वर्ग के परिवारों के बीच किया गया। बच्चों ने बताया कि अधिकांश पानी बाजारों व घरों में व्यर्थ ही बहता रहता है। इसे लेकर बच्चे बड़े चिंतित दिखे। उन्होंने विद्यालय के अध्यापकों से इस बारे में चर्चा की। बच्चों ने विद्यालय के आस-पास लोगों को जागरूक किया तथा समझाया कि पानी को व्यर्थ न बहाओ। जल के बिना हमारा जीवन व्यर्थ है। ब्रश करते समय, दाढ़ी बनाते समय टंकी की टोंटी को कम से कम खोलें और मग का इस्तेमाल करें। बर्तनों को मांजते समय नल बंद रखे जब धुलाई करनी हो तभी नल को खोलें। जल की धार हमेशा धीमी रखें और टपकते नलों को तुरंत ठीक कराएं। गाड़ी की धुलाई पाइप लगाकर न करें, बल्कि बाल्टी में पानी लेकर गाड़ी साफ करें। घर के सामने की सड़कों को अनावश्यक पानी से न धोएं। सार्वजनिक नलों में लीकेज देखें तो उसकी शिकायत जल संस्थान को करें। कम पानी की खपत वाले फ्लश सिस्टम का प्रयोग करें। घर के सदस्यों को पानी बचाने की शिक्षा जरूर दें। अनावश्यक जल की बर्बादी अथवा टपकना एक ऋणात्मक ऊर्जा उत्पन्न करता है, जो आपके मन मस्तिष्क को प्रभावित करता है। जल, ऊर्जा एवं धन की बचत का आशय है कि दूसरों के हित में साधन लगाना।

जल मित्र टीम ने मिलकर अपने घरों एवं कालोनीवासियों को जागरूक किया तथा साथ ही उसका परिणाम भी बताया। इसलिए हमें जल घरों में बचाने की मुहिम छेड़नी होगी। थोड़ी-थोड़ी बचत करके गागर में सागर वाली कहावत चरितार्थ की जा सकती है। अधिकांश जगहों पर जनता कनेक्शन की टोंटी खुली रहती है तथा जल बहता रहता है। बाजारों में अक्सर ऐसा देखने को मिलता है। बच्चों ने इन सबके लिए जागरूक किया। बच्चों में अगर ऐसी आदतों का विकास होगा तो वो पानी के लिए अभी से जागरूक होंगे और आने वाली पीढ़ी के लिए जल संकट उत्पन्न नहीं होगा। इसलिए ये हम सबका परम कर्तव्य है कि हम पानी को खुद भी बचाएं तथा इसके लिए पड़ोसियों को भी समझाएं। जो हमारे देश व समाज के लिए अच्छा होगा।

जल एवं पनचक्की


बच्चों को बताया गया कि जल से उर्जा की बचत भी होती है। मेरठ के भोला की झाल में गंगनहर में दो पनचक्की लगी हुई हैं। जिसमें पानी के तेज बहाव से ही आटा पीसने की दो चक्की चलती हैं। जिनमें कोई बिजली खर्च नहीं होती और न ही किसी प्रकार का कोई खर्च ही आता है। इन चक्कियों से 8 गाँव का आटा पिसता है यह आटा अन्य चक्कियों की अपेक्षा पनचक्की से पिसने के कारण स्वादिष्ट लगता है। ऐसी पनचक्कियों का प्रयोग अन्य जगह भी बिजली बचाकर किया जा सकता है। यह दोनों पनचक्की गंगनहर में आज़ादी से पहले से लगी हुई हैं।

जल और उद्योग-


उद्योग बिना पानी के नहीं चल सकते। इसलिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सभी गन्ना एवं गत्ता मिलें नदियों के किनारे लगी हुई हैं। सभी फैक्ट्री नदियों से पानी लेती हैं और फिर प्रयोग करने के बाद जल को नदी में छोड़ देती हैं। अधिकांश फैक्ट्रियों में वाटर ट्रीटमेंट प्लान्ट लगा होता है। जिससे पानी शुद्ध करके नदियों में वापस छोड़ा जा सके। लेकिन उद्योग के लोग कई बार ध्यान नहीं देते और वापस गंदा पानी नदियों में छोड़ देते हैं। इस कारण अधिकांश जल स्रोत गंदे हो जाते हैं। जिसका परिणाम स्थानीय लोग भुगतते हैं। जिनको पेट से संबंधित रोग, त्वचा संबंधी रोग व कैंसर जैसे भयानक रोग हो जाते हैं। जो पूरे समाज के लिए हानिकारक है। अगर सभी उद्योगपति इस ओर ध्यान दें तो कोई परेशानी न समाज को होती है और न ही हमारे जल स्रोत गंदे हो। जल के बिना उद्योग नहीं चल सकते हैं जिसमें पानी की जरूरत अवश्य पड़ती है। वाटर ट्रीटमेंट प्लान्ट का संचालन ठीक से हो और सभी उद्योगों में लगे तो नदियों में पानी भी गंदा न हो और भूगर्भ जल भी सुरक्षित रहे। समुदाय के सभी लोगों को भी इसके लिए आगे आना होगा क्योंकि इसका दुष्परिणाम सबसे ज्यादा उद्योग के नज़दीक के लोग ही भुगतते हैं। खासकर बच्चे इससे ज्यादा प्रभावित होते हैं।

जल एवं व्यापार व यातायात


जल हमारे यातायात के साधनों से भी जुड़ा हुआ है। समुद्र में जलयान बहुत सारा सामान लेकर एक देश से दूसरे देश जाते हैं। कई देशों से आयात निर्यात करते हैं। एक देश से दूसरे देश में भारी सामान लाने व ले जाने के लिए जल ही एक मात्र साधन है। इसके लिए कुछ कृत्रिम एवं कुछ प्राकृतिक बंदरगाह होते हैं। जल ही एकमात्र ऐसा साधन है कि जिस पर इतना बड़ा व्यापार होता है। नदियों में भी नाव के माध्यम से लोग एक स्थान से दूसरे स्थान को जाते हैं। तेज गति से बहने वाली नदियों में राफ्टिंग भी की जाती है। झीलों में कई बड़ी नावों से पर्यटकों को घुमाते हैं तथा मनोरंजन करते हैं। ये सभी जल का ही कमाल है। इसलिए जल हमारे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। जल से ही बहुत से लोगों की आजीविका जुड़ी रहती है। जिससे लोग अपना जीवनयापन करते हैं। कृषि कार्यों में भी जल की बहुत बड़ी भूमिका है। बिना जल के कोई भी फसल नहीं उगाई जा सकती। जल ही एकमात्र ऐसा बड़ा स्रोत है जो हम सबकी न केवल जीवन से बल्कि आर्थिक रीढ भी है।

जल के विभिन्न स्रोतों के जरिए हम उनका सदुपयोग करें जिससे हमारा समाज आर्थिक तरक्की कर सके। अब तो विदेश कंपनियां बोतलों में पानी भी बेचने लगी। शहरों में छोटे-छोटे टैंकर दुकानों एवं कार्यालयों में रखे जाते है जिनसे लोग अपनी आजीविका चलाते हैं। जिन क्षेत्रों में जल का संकट है उन लोगों की आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं है। उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में इसका ताजा उदाहरण है जहां पानी के अभाव में फसलें नहीं होती और किसान आत्महत्या को मजबूर होते हैं। पानी का समान बँटवारा प्रकृति ने नहीं किया है की पानी बहुत ज्यादा है जहां बाढ़ भी आती रहती है और कहीं बहुत कम है जहां सालभर सूखा रहता है। दोनों जगहों पर जल की असमानता ही इसका कारण है। इसलिए हमें पानी के प्रति संवेदनशील होने की जरूरत है जहां पर हम लोग बचत कर सकते है तो अवश्य करें अन्यथा हम सबको इसका परिणाम भुगतना पडेगा।

जल एवं पाठ्यक्रम-


जल को हमें पाठ्यक्रम से जोड़ना होगा। जिससे बच्चे पहले से ही इसके लिए जागरूक हो। पाठ्यक्रम में जल को जोड़ने से उसके विभिन्न घटकों को जोड़ना होगा जिससे बच्चे आसानी से इसको समझ सके। अधिकांश बच्चों को दोबारा प्रकृति के पास जाना होगा। उसको तालाब, जोहड़, पोखर, नदी, झील आदि जल संस्कृति को दोबारा पहले किताबों में पढ़ाना होगा और उसके बाद उसे प्रायोगिक तौर पर आगे बढ़ाना होगा। स्नातक स्तर पर जल विश्वविद्यालय बनाने होंगे ताकि छात्र जल के विषय मे शोध भी कर सके। हमें सूखा एवं बाढ के विषय में समझना होगा तभी बच्चे आने वाले समय में इन सबका सामना कर सकेंगे। बादल, वर्षा आदि के बारे में भी एक समझ बनानी होगी। जिससे जल के इन प्राकृतिक घटकों के बारे मे बच्चों की एक सकारात्मक सोच का विकास होगा।

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