स्मार्ट ग्रामीण जीवन के लिये गोबर धन योजना

4 May 2018
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गोबर धन योजना
गोबर धन योजना


देश के गाँवों में अब गोबर और कृषि अवशेष से ऊर्जा और समृद्धि का आगाज होने वाला है। बजट 2018 में ग्रामीणों के जीवन को बेहतर बनाने के लिये सरकार ने एक अनूठा प्रयास किया है। ग्रामीण विकास के लिये एक नई योजना की घोषणा की गई है जिसका शीर्षक है गोबर धन योजना। यदि गोबर धन योजना देश के ग्रामीण अंचलों में समय से और वैज्ञानिक तरीके से लागू की जाती है तो देश के 155 गाँव सफलता की नई इबारत लिखेंगे, जिसमें किसान और पशुपालकों की आय के साधन बढ़ेंगे और वे वैज्ञानिक सोच के साथ देश की आर्थिकी में योगदान देंगे।

ग्रामीणों के जीवन को बेहतर बनाने के लिये 2018-19 के बजट में गोबर-धन यानी गैलवनाइजिंग ऑर्गेनिक बायो-एग्रो रिसोर्स धन योजना की घोषणा की गई है। इस योजना में खेती और पशुपालन से जुड़े एक बड़े जनसमूह की भागीदारी, उनका आर्थिक लाभ और समग्र विकास की एक महत्त्वपूर्ण अवधारणा इस योजना में परिलक्षित होती है।

गोबर धन योजना के अन्तर्गत पशुओं के गोबर और खेतों के ठोस अपशिष्ट पदार्थों को कम्पोस्ट, बायोगैस और बायो-सीएनजी में परिवर्तित किया जाएगा। समावेशी समाज निर्माण के दृष्टिकोण के तहत सरकार ने विकास के लिये 115 आकांक्षायुक्त जिलों की पहचान की है। इन जिलों में स्वास्थ्य, शिक्षा, पोषण, सिंचाई, ग्रामीण विद्युतीकरण, पेयजल, शौचालय तक पहुँच आदि में निवेश करके निश्चित समयावधि में विकास की गति को तेज किया जाएगा। सरकार जिन 115 जिलों को विकास का मॉडल बनाने की तैयारी में है, वहाँ गैलवनाइजिंग ऑर्गेनिक बायो-एग्रो रिसोर्स धन योजना मुख्य भूमिका निभाएगी।

गोबर धन योजना पर प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि यह योजना गाँव को खुले में शौच से मुक्त करने और ग्रामीणों के जीवन-स्तर को ऊँचा करने में भी अहम भूमिका निभाएगी। इस योजना के अन्तर्गत गोबर का दोहरा उपयोग किया जा सकता है। गोबर से बड़ी मात्रा में ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है। इस ऊर्जा को प्लांट के द्वारा निकाला जा सकता है जिसका उपयोग किसान इंजन एवं पावर डीजल इंजन चलाने के लिये कर सकते हैं। प्लांट से निकलने वाले गोबर का खाद के रूप में भी उपयोग कर सकते हैं। इस तरह गोबर धन योजना के द्वारा किसानों की खाद की समस्या दूर होगी, साथ ही आय के संसाधनों में भी बढ़ोत्तरी होगी।

गोबर धन योजना के तहत पहले चरण में चयनित 115 जिलों के गाँवों में ठोस कचरे और जानवरों के मल-मूत्र का उपयोग खाद बनाने के लिये संसाधन उपलब्ध कराये जाएँगे। इससे ऊर्जा उत्पादन के उद्देश्यों को बढ़त मिलेगी और बायोगैस के निर्माण में एक क्रान्ति का आगाज होगा। इस योजना से देश में बड़ी मात्रा में बर्बाद हो रहे गोबर एवं मानव व पशु मल-मूत्र का उपयोग हो सकेगा।

इस योजना से एक और ग्रामीण जन-जीवन समृद्ध होगा वहीं खुले में शौच की समस्या से मुक्ति मिलेगी जो गाँव के लिये फायदेमन्द होगी। किसान की आय पूरी तरह फसल पर आश्रित होती है। गोबर धन योजना से पशु मल-मूत्र और फसल कटाई के बाद बचे अवशेष का भी मूल्य किसान को मिल सकेगा। किसी कारणवश खराब हो चुकी फसल को सीधे बायोमास के तौर पर बायोगैस ऊर्जा संयंत्रों में उपयोग में लाया जा सकेगा और किसान को उसके दाम भी मिल सकेंगे।

बायो गैस संयंत्रसरकार इस योजना में किसान को आर्थिक सहायता देने के साथ उनको आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर बनाना चाहती है। इस योजना के तहत किसान स्वयं पशु मल व कृषि अपशिष्ट से खाद बनाने में दक्षता हासिल करेंगे और अपनी कृषि प्रणाली को मजबूत बना पाएँगे। सरकार का यह भी प्रयास है कि देश के विकास में हर गाँव की भूमिका तय हो और प्रत्येक गाँव देश की जी.डी.पी. का हिस्सा बने। इसके लिये ग्रामीण इलाकों के ढाँचे में परिवर्तन आवश्यक है। गैलवनाइजिंग ऑर्गेनिक बायो-एग्रो रिसोर्स धन योजना से ग्रामीण इलाकों में रोजगार, नई तकनीक और व्यापार के नये रास्तों का सृजन होगा जिसमें बड़ी जन-भागीदारी सुनिश्चित की जा सकेगी। पशुपालन को प्रोत्साहित करना भी गोबर धन योजना का एक मुख्य उद्देश्य है जिसमें पशु मल-मूत्र की उचित कीमत सरकार, किसान और पशुपालक को उपलब्ध कराने वाली है। यानी किसान व पशुपालक की आर्थिक समृद्धि का भी प्रयास इस योजना में सन्निहित है।

गोबर धन योजना में बायोगैस के उत्पादन पर जोर दिया गया है। देश के पिछड़े इलाकों में बड़ी मात्रा में मल-मूत्र और अनेक ठोस अपशिष्ट गन्दगी और महामारी का सबब बनते हैं जिनमें अब लगाम लगेगी और इससे ऊर्जा उत्पादन व बिजली निर्माण का कार्य आरम्भ होगा। इस योजना में बड़ी ऊर्जा निर्माता कम्पनियों का ध्यान गाँव की तरफ आकर्षित होगा और ग्रामीण भारत को इससे सीधा लाभ मिलेगा।

अधिकतर ऊर्जा उद्योग महानगर या शहरों के इर्द-गिर्द स्थापित किये जाते हैं जहाँ उनके संचालन के लिये सुविधाएँ आसानी से मिल सकें। गैलवनाइजिंग ऑर्गेनिक बायो-एग्रो रिसोर्स धन योजना से जब सुविधाएँ ग्रामीण क्षेत्रों में विकसित होंगी तो ऊर्जा उद्योग भी गाँव में पहुँचेगा जिसका सीधा फायदा ग्रामीण जनता को मिलेगा। इससे देश का चौतरफा विकास हो सकेगा और ग्रामीण भारत की तस्वीर बदलेगी, साथ ही गाँव से शहर की ओर पलायन रुकेगा।

गोबर से अब केवल उपले ही नहीं बनेंगे बल्कि गोबर कृषि उद्योग में बड़ी भूमिका निभाएगाबायोगैस और बायोमास उत्पादन में भारत का विश्व में छठा स्थान है। बायोगैस को देश में भविष्य के ईंधन के तौर पर देखा जा रहा है। देश की आर्थिकी को बढ़ाने के लिये गोबर धन योजना के अन्तर्गत बायोगैस संयंत्रों का बड़े स्तर पर निर्माण और बायोगैस का अधिकतम उपयोग देश की ऊर्जा माँग को कुछ हद तक पूरा कर सकता है। वर्तमान में स्वीडन में बायोगैस ईंधन से बसें चलाई जा रही हैं और बायोगैस से चलने वाली ट्रेन का निर्माण किया गया है। भारत में 2022 तक बायो गैस उत्पादन में बढ़ोत्तरी का लक्ष्य रखा गया है। भारत में मवेशियों की संख्या विश्व में सर्वाधिक है इसलिये बायोगैस के विकास की प्रचुर सम्भावना है।

बायोगैस उत्पादन में पशु व्यर्थ पदार्थ व कृषि अवशेष शामिल होने के कारण यह वातावरण में कार्बन स्तर को नहीं बिगाड़ती। बायोगैस जीवाश्म ईंधन के बजाय इसलिये भी बेहतर है क्योंकि यह सस्ती और नवीकृत ऊर्जा है। सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों के लिये यह फायदेमन्द है क्योंकि इसे छोटे संयंत्रों में भी बनाया जा सकता है। बायोगैस संयंत्र में ऊर्जा फसलों के उपयोग से भी बायोगैस बनाई जाती है। ऊर्जा फसलों यानी एनर्जी क्रॉप्स को भोजन के बजाय जैव-ईंधन के लिये उगाया जाता है।

एक बायोगैस प्लांट में एक डाइजेस्टर और गैस होल्डर होता है जो ईंधन निर्माण करता है। प्लांट का डाइजेस्टर एयरटाइट होता है जिसमें व्यर्थ पदार्थ डाला जाता है और गैस होल्डर में गैस का संग्रहण होता है। मवेशियों के उत्सर्जी पदार्थों को कम ताप पर डाइजेस्टर में चलाकर माइक्रोब उत्पन्न करके बायोगैस प्राप्त की जाती है। बायोगैस में 75 प्रतिशत मीथेन गैस होती है जो बिना धुआँ उत्पन्न किये जलती है। लकड़ी, चारकोल तथा कोयले के विपरीत यह जलने के पश्चात राख जैसे कोई अपशिष्ट भी नहीं छोड़ती है। ग्रामीण इलाकों में भोजन पकाने तथा ईंधन के रूप में प्रकाश की व्यवस्था करने में इसका उपयोग होता रहा है।

बायोगैस प्लांट का निर्माण गैस की जरूरत और व्यर्थ पदार्थ की उपलब्धता पर निर्भर करता है। साथ ही डाइजेस्टर के अल्प-समयावधि फीडिंग या निरन्तर फीडिंग पर भी। बायोगैस संयंत्र जमीन की सतह या उसके नीचे बनाया जाता है और दोनों मॉडलों के अपने फायदे-नुकसान हैं। सतह पर बना प्लांट रख-रखाव में आसान होता है और उसे सूरज की गर्मी से भी लाभ होता है, लेकिन इसके निर्माण में अधिक ध्यान देना होता है क्योंकि वहाँ डाइजेस्टर के अन्दरूनी दबाव पर ध्यान देना होता है। इसके विपरीत सतह के नीचे स्थित संयंत्र निर्माण में आसान लेकिन रख-रखाव में मुश्किल होता है। गोबर धन योजना की घोषणा के बाद अब देश में किसानों की बड़ी आबादी बायोगैस परियोजनाओं में भागीदार होगी।

गोबर धन योजना की घोषणा के साथ यह जानना भी आवश्यक है कि आज देश में ग्रामीण विकास से जुड़े वैज्ञानिक गोबर पर क्या शोध आजमा रहे हैं। आज देश में गोबर केवल बायोगैस या कंडों के काम ही नहीं आ रहा है बल्कि गोबर से बने गमले और अगरबत्ती ग्रामीणों की कमाई का बेहतर जरिया बन रहे हैं। इलाहाबाद जिले के कौड़िहार ब्लॉक के शृंगवेरपुर में स्थित बायोवेद कृषि प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान शोध संस्थान में गोबर से बने उत्पादों को बनाने का प्रशिक्षण दिया जाता है। कई प्रदेशों के कई लोग भी इसका प्रशिक्षण ले चुके हैं। इस संस्थान में गोबर से गोकाष्ठ (एक प्रकार की लकड़ी) भी बनाई जाती है। गोबर में लैकमड मिलाया जाता है जिससे कि गोकाष्ठ अधिक समय तक जलती है। गोकाष्ठ के साथ ही इस संस्थान का बनाया हुआ गोबर का गमला भी काफी लोकप्रिय हो रहा है।

गोबर से गमला बनाने के लिये गन्ने का रस निकलने के बाद बचे अवशेष में गोबर मिलाकर मजबूत गमले बनाये जा रहे हैं जिनकी माँग आज देश में हर आम, खास के साथ पाँच सितारा होटलों में भी होने लगी है। गमले में लाख की कोटिंग की जाती है, जिससे गमले में चार चाँद लग जाते हैं। यह पशुपालकों के लिये अधिक आय का उद्योग साबित हो सकता है, जिसकी शुरुआत न्यूनतम पूँजी के साथ हो सकती है। जब कोई पौधा नर्सरी से लाते हैं तो वह प्लास्टिक की थैली में दिया जाता है और थैली हटाने में थोड़ी भी लापरवाही की जाये तो पौधे की जड़ें खराब हो जाती हैं और मिट्टी में लगाने पर पौधा पनप नहीं पाता। इस स्थिति से बचने के लिये गोबर का गमला काफी उपयोगी साबित होता है। गमले को मशीन से तैयार किया जाता है।

गोबर और कृषि अपशिष्ट से बने गमलेबायोवेद शोध संस्थान में वैज्ञानिक ऐसे संयंत्र तैयार करने में जुटे हैं जिनसे कम कार्बन उत्सर्जन करने वाले ईंधन तैयार किये जा सकें। घर में भोजन पकाने के लिये शोध संस्थान खरपतवार व गोबर से बायोकेक तैयार कर रहे हैं। एक केक की कीमत करीब पाँच रुपये आती है और इससे आठ लोगों का भोजन पकाया जा सकता है। बायोवेद की इस तकनीक से बायोकेक तैयार करने में भारतीय कृषि अभियांत्रिकी शोध संस्थान, भोपाल भी सहयोग कर रहा है। सीएसएआई बायोकेक बनाने के लिये बायो एनर्जी संयंत्र तैयार कर रहा है। इस संयंत्र को ग्राम पंचायतों में भी लगाने की तैयारी है जिससे ग्रामीण अपने बायोवेस्ट से केक तैयार करा सकें।

बायोगैस के शोध के लिये देश में अहम स्थान रखने वाले आई.आई.टी. दिल्ली में अब पंचगव्य यानी गाय के गोबर, मूत्र, दूध, घी और दही के मिश्रण की क्षमता पर शोध किया जा रहा है जो गोबर धन योजना को दिशा प्रदान करेगा। शोधकर्ताओं के मुताबिक वैज्ञानिक मान्यता के आधार पर पंचगव्य पर शोध किया जाएगा। आई.आई.टी., दिल्ली को पंचगव्य शोध करने के लिये विभिन्न शोध संस्थानों से प्रस्ताव मिले हैं। सरकार ने 19 सदस्यों की एक समिति बनाई है, जो गोमूत्र से लेकर गोबर और गाय से मिलने वाले हर पदार्थ पर शोध को प्रोत्साहित करेगी। शोध का उद्देश्य पंचगव्य को स्वास्थ्यवर्धक दवा के रूप में वैज्ञानिक मान्यता देना है और अगले तीन वर्षों में पंचगव्य को पोषणयुक्त खाद और कृषि उपयोग के लिये मंजूरी मिलने की सम्भावना है। यह शोध भी गोबर धन योजना को मजबूती प्रदान करेगा जिसमें पशुपालकों की भूमिका महत्त्वपूर्ण होगी।

भविष्य में देश में गाँवों को मॉडल गाँव बनाने में गैलवनाइजिंग ऑर्गेनिक बायो-एग्रो रिसोर्स धन योजना मददगार होगी, भारत की आर्थिकी में कृषि और पशुधन बहुत बड़ी भूमिका निभा सकते हैं, जिसे कि इस योजना में साकार किया जा रहा है।

गोबर धन योजना 2018 के मुख्य उद्देश्य

1. गोबर धन योजना 2018 का गठन मुख्य तौर पर ग्रामीण नागरिकों के जीवन-स्तर को बेहतर बनाने के लिये किया गया है।
2. इस योजना से देश के ग्रामीण क्षेत्रों को खुले में शौचमुक्त बनाने का प्रयास किया जाएगा।
3. इस योजना के अन्तर्गत पशुओं के गोबर और खेतों से प्राप्त ठोस अपशिष्ट पदार्थों का उपयोग करके कम्प्रेस्ड बायोगैस और बायोगैस सी.एन.जी. बनाई जाएगी।
4. किसानों की दो मुख्य समस्याओं का समाधान प्राप्त होगा। किसानों को बेहतर उर्वरक की प्राप्ति होगी और उन्हें ऊर्जा के संसाधन प्राप्त होंगे।
5. इस योजना के संचालन से किसानों के आय के साधनों में अतिरिक्त वृद्धि होगी।
6. इस योजना को 2018-19 के बजट में किसानों को समर्पित किया गया है। इसलिये इस योजना को समावेशी समाज निर्माण के दृष्टिकोण के तहत देश के 115 जिलों में आरम्भ किया जाएगा।
7. योजना के अन्तर्गत चयनित जिलों में स्थित गाँव के आधारभूत ढाँचे, शिक्षा, बिजली, सिंचाई आदि का भी प्रबन्ध किया जाएगा।
8. योजना का मुख्य आकर्षण कम्पोस्ट खाद बनाने का है, जिससे किसानों को आर्थिक राहत भी प्राप्त होगी।
9. इस योजना के लागू होने से देश के किसानों की आय के साधनों में वृद्धि होगी, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत होगी।
10. किसान अब खेतों के ठोस अपशिष्ट पदार्थों और जानवरों के मल-मूत्र आदि का भी सही तरीके से उपयोग कर सकेंगे।
11. इन अपशिष्ट पदार्थों का उपयोग करके बनाई जाने वाली खाद और बायोगैस दोनों का उपयोग किसान कर सकेंगे।
12. किसानों के ऊर्जा के साधनों की बचत होगी और इससे निकलने वाली ऊर्जा का उपयोग इंजन एवं पावर डीजल इंजन आदि चलाने में कर सकेंगे।
13. प्लांट से निकलने वाले गोबर का उपयोग भी किसान खाद के रूप में कर सकेंगे।
14. गोबर धन योजना की पूरी प्रक्रिया से देश में चलाए जा रहे स्वच्छता अभियान को भी एक नई दिशा प्राप्त होगी।
15. साथ ही किसानों में इस योजना के लागू होने से ग्रामीण क्षेत्रों में पशुपालन को भी बढ़ावा मिलेगा।
16. गोबर धन योजना के लिये शीघ्र ही ऑनलाइन पंजीकरण शुरू किए जाएँगे।

सरकार किसानों को गोबर धन योजना के जरिए आर्थिक सहायता के साथ-साथ आत्मनिर्भर बनाने पर जोर देना चाहती है ताकि किसान खुद से अपनी खाद का निर्माण कर सकें और अपनी कृषि प्रणाली को मजबूत बना सकें। सरकार इस योजना से विशेष रूप से गाँव एवं पिछड़े इलाकों के लोगों को आर्थिक मजबूती देना चाहती है जिससे भारत के किसान भी काफी तादाद में फायदा उठा सकेंगे और भविष्य में गाँवों के मॉडल को एक नया रूप देने में मदद मिलेगी।

लेखक परिचय

निमिष कपूर
लेखक विज्ञान प्रसार (विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार का संस्थान) में बतौर वैज्ञानिक ‘ई’ (प्रधान वैज्ञानिक) कार्यरत हैं एवं विज्ञान फिल्म प्रभाग के प्रमुख हैं।)
ई-मेल : nimish2047@gmail.com
 

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