स्मार्ट शहर : अवधारणाएं एवं रणनीतियाँ (Smart City : Concepts and Strategies)

14 Sep 2015
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अमृत को स्मार्ट सिटीज मिशन के पूरक के रूप में आरंभ किया गया है, जिनके दायरे में एक लाख अधिक जनसंख्या वाले 500 शहर आएंगे। अमृत का कार्यक्षेत्र जलापूर्ति, कचरे का प्रबंधन, जल की समुचित निकासी, शहरी परिवहन एवं हरियाली भरे स्थानों एवं पार्कों का विकास करना है, जिसके लिए क्षमता-निर्माण एवं क्रियान्वयन का कार्य शहरी स्थानीय निकाय करेंगे।

मानव सभ्यता को शहरों ने आगे बढ़ाया है, जो सत्ता, संस्कृति, व्यापार के ठिकाने तथा उत्पादन के केन्द्र रहे हैं। इतिहासकार सिंधु घाटी की सभ्यता को शहरी सभ्यता मानते हैं। बाद के काल में भारत में कई बड़े शहरी केन्द्र हुए, जिनमें प्राचीन काल में पाटलीपुत्र (पटना), वैशाली, कौशांबी तथा उज्जैन एवं मध्यकाल में आगरा तथा शाहजहांनाबाद (दिल्ली) प्रमुख हैं। भारत की शहरी सभ्यता की बात करें तो सूची बहुत लंबी है। (रामचंद्रन 1995, शर्मा 2005, चंपकालक्ष्मी 2006)

स्मार्ट सिटी के विचार को समझने के लिए यह समझना आवश्यक है कि शहर कैसे होते हैं। शहर घनी आबादी वाले क्षेत्र होते हैं, जिनमें अलग-अलग व्यवसाय तथा कौशल एवं जातीय तथा सामाजिक संरचना वाले लोग एक साथ रहते हैं। वास्तव में विविधता और भिन्नता हमेशा से ही शहरों की पहचान रही हैं, जिनसे नए विचारों को बढ़ावा मिला है, किन्तु समावेश, निष्पक्षता तथा न्याय संबंधी चुनौतियाँ खड़ी हुई हैं। शहर अलग-थलग भी नहीं होते हैं, बल्कि शहरी क्रम में एक दूसरे से जुड़े रहते हैं, जिनसे शहरी प्रणाली का विकास होता है। शहरीकरण के निचले स्तर (छोटे शहर एवं नगर) ग्रामीण क्षेत्रों से अधिक करीब से जुड़े होते हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों की ओर पलायन बड़े शहरों से छोटे शहरों तक प्रत्येक स्तर पर होता है। इस दृष्टिकोण से शहर आर्थिक वृद्धि के केन्द्र ही नहीं होते हैं, बल्कि शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों समेत सभी प्रकार की आबादी को विकास के फल भी देते हैं। इसके अलावा शहर अपनी सीमाओं के भीतर ही नहीं बल्कि सभी शहरों एवं कस्बों में आवागमन एवं आदान-प्रदान का कारण भी बनते हैं। वे सूचना, पूंजी, वस्तुओं और सेवाओं की आवाजाही तथा मजदूरों के आवागमन के माध्यम से भी एक दूसरे से जुड़े रहते हैं। चूंकि अतीत में विभिन्न आर्थिक प्रगति एवं सामाजिक परिवर्तन के अग्रदूत रहे हैं, इसलिए मानव इतिहास के अपने-अपने युग में वे स्मार्ट रहे हैं। किन्तु स्मार्ट सिटी की वर्तमान बारिकीयों को वैश्वीकरण की शक्तियों और सूचना प्रौद्योगिकी के विराट विस्तार के वर्तमान संदर्भ में देखा जाना चाहिए, जिससे हमारे शहरों की सूरत तय हो रही है और जिनका हमारे जीवन पर प्रभाव रहा है।

स्मार्ट सिटी का नमूना 80 के दशक के उत्तरार्द्ध में शहरी संदर्भों को समझने के साधन के रूप में सामने आया और उसके बाद से वे विभिन्न संदर्भों में तेजी से विकसित होते गए (एंथोपुलस तथा वकाली 2012)। टाउनसेंड (2014) के अनुसार ‘स्मार्ट सिटी वे स्थान हैं, जहाँ नई और पुरानी समस्याएँ दूर करने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी, (आईटी) को जोड़ दिया जाता है। रोड़े, कांच और इस्पात से बने पुराने शहर के नीचे अब कंप्यूटर और सॉफ्टवेयरों का बड़ा जाल छिपा है। दूसरी ओर नया शहर पहले बने हुए शहरों का बेहतर और डिजिटल रूप है, जो शहरों के एक नए युग को आरंभ कर रहा है। हम इसे स्मार्ट सिटी कह सकते हैं। एक अन्य दृष्टिकोण है, जो पूरे स्मार्ट सिटी की ओर नहीं बल्कि उसके एक भाग की ओर देखने का प्रयास करता है। उदाहरण के लिए यह कहता है कि स्मार्ट सिटी का अर्थ जो भी हो उसमें प्रत्येक स्थान एक समान स्मार्ट नहीं होगा अर्थात कुछ स्थान, लोग और गतिविधियाँ दूसरों से बेहतर होंगी (शेल्टन, जूक और वाइग 2015)। वैश्विक आईटी कंपनी आईबीएम को लगता है कि ‘21वीं शताब्दी में नागरिकों तथा व्यापारों को आकर्षित करने के लिए दुनिया भर के शहर एक दुसरे से होड़ करेंगे। शहर का आकर्षण इस पर निर्भर करेगा कि वह विकास के अवसरों को बढ़ावा देने, आर्थिक मूल्य प्रदान करने तथा प्रतिस्पर्धा में अलग स्थान दिलाने वाली बुनियादी सेवाएँ देने में कितना सक्षम हैं। व्यावसायिक एवं आवासीय उद्देश्य से आने वाले लोग विवेकशील होते हैं और वे ऐसे शहरों की तलाश करते हैं जो अधिक प्रभावी एवं उद्देश्यपूर्ण सिद्ध हो सकते हैं। वे अधिक स्मार्ट सिटी तलाश रहे हैं।’(आईबीएम 2012)।

स्मार्ट सिटी की कोई निश्चित परिभाषा नहीं है, किन्तु मूल प्रश्न यह है कि हम कैसी स्मार्ट सिटी चाहते हैं (एंजलिडू 2014, टाउनसेंड 2014)। हम कह सकते हैं कि स्मार्ट सिटी वे होती हैं, जहाँ स्मार्ट अर्थात चतुर लोग रहते हैं। चतुर लोगों को दो प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है। एक, जो बुद्धिमान एवं समृद्ध किन्तु व्यक्तिवादी है, उपभोक्तावादी तथा अलग-थलग रहने वाले होते हैं और दूसरे वे होते हैं, जो नीचले तबके से मिलने, उसकी सहायता करने और उसका जीवन बदलने में सक्रिय होते हैं। इसी तरह स्मार्ट सिटी कोई अलग-थलग अथवा चारदीवारी में बंद शहर नहीं है बल्कि ऐसा शहर है, जो अपने निवासियों से जुड़कर उनका जीवन बदल देता है। इस प्रकार यह कहना उचित होगा कि शहर लोगों का कायाकल्प करते हैं। और लोग शहरों का निर्माण करते हैं। हमें यह स्पष्ट रूप से पता होना चाहिए कि अपने शहरों का निर्माण करने के लिए हम प्रौद्योगिकी का उपयोग किस प्रकार करते हैं और गरीबों तथा हाशिए पर रहने वाले लोगों के लिए इनके क्या परिणाम होते हैं (अल्बिनो एवं अन्य, 2015)। इसके अलावा भारत का तेजी से शहरीकरण हो रहा है, इसलिए लोगों का भाग्य इस पर बहुत निर्भर करेगा कि हम अपने शहर का निर्माण किस प्रकार करते हैं। साथ ही सरकार का हस्तक्षेप हमारे शहरों की परिकल्पना तथा निर्माण में सहायक हो सकता है। पिछले एक दशक में सरकार की नीतियों तथा कार्यक्रमों को इसी के आलोक में देखा जाना चाहिए।

स्मार्ट सिटीज मिशन


2005 में जेएनएनयूआरएम (जवाहरलाल नेहरु राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन) आरंभ हुआ, जिसे एक दशक बाद 2015 में स्मार्ट सिटी मिशन एवं अमृत (अटल मिशन फॉर रिजुवनेशन एण्ड अर्बन ट्रांसफॉर्मेशन) जैसे कार्यक्रमों में बदल दिया गया। जेएनएनयूआरएम पहले की शहरी नितियों एवं कार्यक्रमों से काफी अलग था क्योंकि इसमें भारत के आर्थिक विकास में शहरों की महत्ता इस दृष्टि से मानी गई थी कि सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का लगभग दो तिहाई शहरी क्षेत्रों से ही आता है (भगत 2011)। स्मार्ट सिटीज मिशन एवं अमृत जैसी नई शहरी विकास रणनीति जेएनएनयूआरएम के अंतर्गत आरंभ की गई शहरी विकास नीतियों का ही नया एवं गहन प्रारूप है। कई लोगों ने शहरों के भीतर तथा क्षेत्रों के बीच तीव्र सामाजिक-आर्थिक असमानता के कारण जेएनएनयूआरएम को विभेदकारी बताकर इसकी आलोचना की थी। विकास तथा अस्थाई के साथ समावेशन शहरी विकास के किसी भी कार्यक्रम के लिए चुनौती रहा है।

स्मार्ट सिटीज मिशन 2015-16 से 2019-20 के बीच 100 से अधिक शहरों को अपने दायरे में लेगा। शहरी विकास मंत्रालय द्वारा मूल्यांकन किए जाने के बाद इसे बढ़ाया जा सकता है। इसलिए स्मार्ट सिटीज की अवधारणा तथा राजनीतियां विकसित होती रहेंगी। मिशन में स्मार्ट सिटी की परिभाषा नहीं दी गई, लेकिन इसका लक्ष्य उस शहर की क्षमता बढ़ाना है, जो स्मार्ट सुविधाओं के माध्यम से स्मार्ट बनना चाहता है। स्मार्ट सुविधाओं की लंबी सूची में से कुछ हैं ईप्रशासन तथा इलेक्ट्रॉनिक सेवा आपूर्ति, वीडियो के माध्यम से अपराधों की निगरानी, जलापूर्ति प्रबंधन के लिए स्मार्ट मीटर, स्मार्ट पार्किंग तथा यातायात का चतुराई भरा प्रबंधन। स्मार्ट सुविधाएँ देने से शहर बुनियादी ढांचा तथा सेवाएं सुधारने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी एवं जानकारी का प्रयोग कर सकेंगे। इससे रेट्रैफिटिंग ( शहर में सुधार) एवं पूर्ण विकास के माध्यम से क्षेत्र विशेष के विकास का प्रयास भी होगा। इसके अतिरिक्त बढ़ती शहरी आबादी को समेटने के लिए शहरों के आस-पास नए क्षेत्र (शहरों का विस्तार) भी विकसित किए जाएंगे। यह माना जा रहा है कि स्मार्ट सिटी के विकास की रणनीतियों से पर्याप्त मात्रा में रोजगार सृजन होगा और गरीबों का ध्यान रखा जाएगा। इस प्रकार यह माना जा सकता है कि स्मार्ट शहर समावेशी होंगे।

स्मार्ट सिटीज मिशन का क्रियान्वयन विशेष उद्देश्य उपक्रम (एसपीवी) की सहायता से होगा, जिसका नेतृत्व पूर्णकालिक मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) करेंगे। इसमें केन्द्र, राज्य सरकारों एवं स्थानीय प्रशासनों द्वारा मनोनीत व्यक्ति शामिल होंगे। यह एसपीवी कंपनी अधिनियम-2013 के अंतर्गत शहर के स्तर पर लिमिटेड कंपनी होगी। सभी 100 स्मार्ट शहरों के लिए सलाह देने एवं विभिन्न हितधारकों के बीच तालमेल बिठाने के लिए शहर के स्तर पर स्मार्ट सिटी परामर्शी मंच का गठन किया जाएगा और इसमें जिलाधिकारी, सांसद, विधायक, महापौर, एसपीवी के सीईओ, स्थानीय युवा एवं नागरिक तथा तकनीकी विशेषज्ञ शामिल किए जाएंगे। स्मार्ट सिटीज मिशन में प्रशासन तथा सुधारों में बुद्धिमान लोगों के सक्रिय सहभाग की आवश्यकता होगी। सूचना प्रौद्योगिकी एवं संचार विशेषकर मोबाइल आधारित सुविधाओं का अधिक प्रयोग कर एसपीवी बुद्धिमान लोगों की सहभागिता सुनिश्चित करेगी। केन्द्र सरकार आरंभ में 194 करोड़ रुपए का अनुदान देगी और इतना ही अनुदान राज्य सरकार से भी प्राप्त होगा। स्मार्ट शहर के लिए आगे का अनुदान उसके प्रदर्शन पर निर्भर करेगा। कुल 100 स्मार्ट शहरों का चयन स्मार्ट सिटी प्रस्ताव आमंत्रित कर प्रतियोगिता के आधार पर होगा। स्मार्ट शहर के विकास के विभिन्न चरण में बड़ी संख्या में सलाहकार फर्मों तथा अन्य एजेंसियों का सहयोग लिया जाएगा। आगे चलकर ये शहर अपने मुख्य आर्थिक गतिविधियाँ जैसे स्थानीय व्यंजन, स्वास्थ्य, शिक्षा, कला एवं शिल्प, संस्कृति, खेल के सामान, फर्नीचर, होजरी, टेक्सटाइल आदि के आधार पर ब्रांड और पहचान हासिल कर लेंगे। इस प्रकार स्मार्ट शहर उत्पादन एवं प्रभावी प्रशासन के केन्द्र ही नहीं होंगे होंगे, बल्कि खपत के भी केन्द्र होंगे। उस स्थिति में ये आर्थिक विकास को बढ़ावा दे सकते हैं और अपने नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता सुधार सकते हैं।

अमृत को स्मार्ट सिटीज मिशन के पूरक के रूप में आरंभ किया गया है, जिनके दायरे में एक लाख अधिक जनसंख्या वाले 500 शहर आएंगे। अमृत का कार्यक्षेत्र जलापूर्ति, कचरे का प्रबंधन, जल की समुचित निकासी, शहरी परिवहन एवं हरियाली भरे स्थानों एवं पार्कों का विकास करना है, जिसके लिए क्षमता-निर्माण एवं क्रियान्वयन का कार्य शहरी स्थानीय निकाय करेंगे। ऐसा मानते हैं कि अमृत के अंतर्गत वित्तीय सहयोग के लिए संभावित स्मार्ट शहरों को वरीयता दी जाएगी। केन्द्र तथा राज्य सरकारों के अन्य कार्यक्रमों से तालमेल बिठाते हुए राज्य की वार्षिक कार्ययोजना तैयार की जाएगी। योजना में राज्य का योगदान परियोजना की कुल लागत के 20 प्रतिशत से कम नहीं होना चाहिए। वार्षिक कार्ययोजना बनाने के बाद राज्य स्तर की क्रियान्वयन योजनाएँ बनाईं जाएंगी। अमृत के अंतर्गत जलापूर्ति बढ़ाने के लिए एक अनूठा सुझाव यह है कि लंबी दूरी से जल लाने के बजाय जल की रिसाइक्लिंग की जाए और दोबारा उसका प्रयोग किया जाए। यो दो कार्यक्रम शहरी कायाकल्प में भी एक-दूसरे के पूरक होंगे। अमृत परियोजना आधारित प्रणाली पर चलता है, लेकिन स्मार्ट सिटीज मिशन क्षेत्र आधारित रणनीति पर काम करेगा। दोनों कार्यक्रम राज्य, शहरी, स्थानीय निकायों एवं निजी क्षेत्र के बीच साझेदारी को बढ़ावा देने का यत्न करते हैं। और केन्द्र सरकार निर्णायक भूमिका निभाएगी (www.smartcities.gov.in, www.amrut.gov.in)।

चुनौतियाँ एवं परिणाम


भारत की वर्तमान शहरी व्यवस्था की विशेषता यह है कि इसमें 7935 शहर हैं, तीन महानगर (मुंबई, कोलकाता और चेन्नई) हैं, जिनका ब्रिटिश शासन के दौरान विकास हुआ। इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली है। उनके बाद दूसरे स्थान पर बेंगलुरू, हैदराबाद, अहमदाबाद और पुणे जैसे बड़े शहर हैं। इन आठ शहरों की परस्पर निर्भरता तथा पारस्परिक संबंध एवं उनके क्षेत्रीय वर्चस्व एवं शहरी गलियारों में भारत को वैश्विक आर्थिक शक्ति में बदल देने की क्षमता है। किन्तु ये शहर स्वयं ही यह करने में सक्षम नहीं हैं, क्योंकि उनके सामने बड़ी चुनौतियां हैं। इसलिए शहरी विकास की रणनीति महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। क्षेत्रीय असमानता, शहरी-ग्रामीण विभाजन एवं शहर के भीतर विषमता भारत के शहरी कायाकल्प एवं आर्थिक प्रगति में बड़े बाधक हैं। वर्तमान केन्द्र सरकार के स्मार्ट सिटीज मिशन एवं अमृत की परिकल्पनाओं ताथा रणनीतियों को इसी आलोक में देखा जाना चाहिए। मध्य, पूर्वी एवं पूर्वोत्तर भारत के कम शहरीकरण वाले क्षेत्रों में कई स्मार्ट शहरों का प्रस्ताव दिया जा रहा है। अमृत भी 4041 विधिक शहरों में से 500 पहले चरण में अपने दायरे में लेना चाहता है। किंतु बड़ी संख्या में (3894) जनगणना शहर हैं, जो दोनों में से किसी भी कार्यक्रम के अंतर्गत नहीं आते। जनगणना शहरों की कमान प्रायः ग्राम पंचायत के हाथ में होती है, जिनके पास संसाधनों एवं संस्थागत क्षमता की तो कमी होती है, किन्तु ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों के बीच सेतु का कार्य करने की संभावना होती है। जनगणना शहरों को भी शहरी विकास रणनीति में शामिल करने से ग्रामीण विकास के लिए शहरीकरण की संभावना भी सामने आएगी।

स्मार्ट सिटीज मिशन की क्षमता और अमृत एवं हाउसिंग फॉर ऑल के साथ उसके तालमेल से कई लाभ हो सकते हैं किन्तु गरीबों एवं झुग्गी बस्तियों के हितों की रक्षा की आवश्यकता है, जिनकी आबादी 2011 की जनगणना के अनुसार 6.5 करोड़ है। यह कार्यक्रम न तो प्रशासन के स्तर पर और न हीं क्रियान्वयन के स्तर पर अलग-अलग होने चाहिए अन्यथा इनमें समावेशन समाप्त हो जाएगा। जैसी कि परिकल्पना की गई है, स्मार्ट शहर डिजिटल विभाजन को बढ़ाने के लिए नहीं बल्कि शहर के भीतर एवं शहर तथा गाँवों के बीच विभाजन समाप्त करने के लिए हैं। स्मार्ट शहर के विचार को सूचना एवं डिजिटल प्रौद्योगिकियों के प्रयोग से शहरी क्षेत्रों में भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने एवं र्प्याप्त तथा प्रभावी सेवा आपूर्ति सुनिश्चित करने की दृष्टि से देखा जाना चाहिए। इन कार्यक्रमों की सफलता का निर्णय भविष्य में यह देखकर होगा कि इन्होंने लोगों के जीवन को कितना बदला और हमारे समाज में बढ़ रही असमानता को कितना कम किया।

सन्दर्भ


अल्बिनो, वी., यू. बेरार्डी तथा आर.एम. डैंजेलिको (2015): “स्मार्ट सिटीज: डेफिनिशंस, डाइमेंशंस, परफॉर्मेंस एंड इनीशिएटिव्स”, जर्नल ऑफ अर्बन टेक्नोलॉजी, 22(1): 3-21 http//dx.doi.org/10.1080/10630732.2014.942092



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