स्मार्ट सिटी: अन्तरराष्ट्रीय उदाहरण

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स्मार्ट सिटी की वर्तमान अवधारणा का आशय महज विकास के अंधाउत्साह से नहीं बल्कि प्रकृति और समाज के बीच सन्तुलन से है। तकनीकी का उपयोग जितना सुविधा-सम्पन्न समाज के लिए किया जा रहा है अगर उतना ही प्राकृतिक जवाबदेही के साथ भी किया जाए तो हम जिस बसावट के लक्ष्य को प्राप्त करेंगे वो स्वतः स्मार्ट होगा। भारत भी इस दिशा में दुनिया के तमाम देशों से सीख लेकर, तकनीक लेकर और विकास की समझ लेकर स्मार्ट सिटी की योजना की तरफ आगे बढ़ने को तैयार दिख रहा है। इसमें कोई शक नहीं कि भारत सक्षम भी है और यहाँ सम्भावना भी है।

बसावट की बुनियाद पर अगर किसी भू-भाग का अध्ययन करें तो मूलतया दो रूप सामने आते हैं, गाँव एवं शहर। भौगोलिक मानदंडों पर गाँवों की बसावट का स्वरूप परम्परागत है जबकि शहर की अवधारणा नगरीकरण से होते हुए विकास के क्रम में समय और समाज की मांग के अनुसार बदलती रही है। दुनिया के लगभग हर देश में समाज की बसावट का प्रारम्भिक स्वरूप गाँव जैसा ही रहा होगा जो बाद में समाज की जरूरतों के अनुरूप नगर अथवा शहर में तब्दील हुआ होगा। भारत ने भी समय के साथ-साथ इस परिवर्तन को देखा है। भारत में भी शहरों का विकास तेजी से हुआ है और हो भी रहा है। बीसवीं सदी में जब तकनीक और विज्ञान ने तरक्की की तो शहरीकरण के स्वरूप में भी बदलाव आया। परिणामस्वरूप अब इक्कीसवी सदी के शुरुआत में बात केवल ‘शहर’ तक नहीं सिमटी है बल्कि अब बात ‘स्मार्ट शहरों’ की होने लगी है।

सवाल है कि स्मार्ट सिटी होने का मानदंड दुनिया ने क्या तय किया है और क्या वाकई इन मानदंडों पर किसी शहर का विकास होना हर दृष्टिकोण से उचित है? इसमें कोई शक नहीं कि तेजी से शहर तो बस जाते हैं लेकिन पर्यावरण, मानव जीवन का स्तर, रहन-सहन, आवास जैसी बुनियादी सुविधाएँ कहीं शहरीकरण के सिमटते सामाजिक दायित्वबोध में पीछे छूट जाती हैं। कहीं न कहीं इन तमाम बिंदुओं का ख्याल रखते हुए जिस शहर का निर्माण किया जाए वही स्मार्ट शहर कहा जा सकता है। दुनिया के कई ऐसे शहर हैं जो इन मानदंडों को न सिर्फ पूरा करते हैं बल्कि खुद किसी खास प्रयोग की सफलता के लिए जाने भी जाते हैं। स्मार्ट सिटी के रूप में बसाए गए इन कुछ शहरों को उदाहरण के तौर पर रखकर इस बात का मूल्यांकन किया जा सकता है कि स्मार्ट सिटी हो तो कैसा हो?

अभी हाल ही में प्रधानमन्त्री ने संयुक्त अरब अमीरात दौरा किया था। संयुक्त अरब अमीरात की राजधानी अबूधाबी से महज 17 किलोमीटर की दूरी पर एक शहर है ‘मसदर’। मसदर की गिनती दुनिया के प्रमुख स्मार्ट शहरों में की जाती है। मसदर दुनिया का पहला ‘जीरो-कार्बन’ शहर है। जीरो-कार्बन शहर का आशय उस बसावट से है जिस शहर अथवा बसावट में यातायात से लेकर घरेलू रसोई तक में कार्बन को पूरी तरह से प्रतिबंधित किया हो और सुविधाओं के अन्य विकल्पों को विकसित कर लिया गया हो। इस लिहाज से देखा जाए तो मसदर तेजी से जीरो-कार्बन शहर के रूप में विकसित हुआ है। मसदर में कार्बन उगलने वाली कार और गाड़ियाँ नहीं हैं। इस शहर में न तो कूड़ा है और न ही किसी तरह का धुआँ। यहाँ बिना ड्राइवर की गाड़ियों में सैर की जा सकती है। इस शहर में ऊर्जा सिर्फ नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से ली जा रही है और इसके लिए 54 एकड़ में 88 हजार सौर पैनल लगाए गए हैं। पानी एवं घरेलू सुविधाओं के लिहाज से भी मसदर ने कई बेहतरीन प्रयोग किए हैं। मसदर को बिजली स्विच एवं घरेलू पानी सप्लाई को भी सेंसर्स तकनीक पर विकसित करने की दिशा में प्रयास किया गया है। प्राकृतिक हवाओं को कैसे ठंडी हवा के रूप में घरों तक पहुँचाया जाए इसका भी ख्याल विंड टांवर के रूप में विकसित करके रखा गया है। प्रधानमंत्री ने वहाँ प्राइवेट रैपिड ट्रांजिट (पीआरटी) व्यवस्था को देखते हुए कार्बन-मुक्त कार का सफर भी किया। इस लिहाज से अगर देखा जाए तो संयुक्त अरब अमीरात ने पर्यावरण एवं रहन-सहन के लिहाज से मसदर के रूप में एक स्मार्ट सिटी का निर्माण किया है।

स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित हो रहे शहरों की सूची में एक महत्त्वपूर्ण नाम दक्षिण कोरिया का सांगडो शहर है। इसे आधुनिक विश्व का पहला स्मार्ट शहर भी माना जाता है। आज से ठीक एक दशक पहले 2005 में समुद्री तट पर इस शहर को बसाने का काम शुरू हुआ था। इस शहर को बसाने का कुल बजट लगभग 35 बिलियन डाॅलर आँका गया था। इस शहर की विशेषता ये है कि इस पूरे शहर को एक सूचना प्रणाली से नियंत्रित करने और जोड़कर रखने की दिशा में विकसित किया गया है। यही वजह है कि इसे बाद में ‘बक्से में बंद शहर’ भी कहा जाने लगा। साॅन्गडो में सभी चीजों में इलेक्ट्रॉनिक सेंसर लगा हुआ है। मसलन अगर देखा जाए तो स्वचालित सीढ़ियाँ, यानी एस्केलेटर, आदि सुविधा संसाधन तभी चलेंगे जब उन पर कोई खड़ा होगा। सभी घरों में टेलिप्रेजेंस सिस्टम लगाया गया है। तकनीक और सूचना प्रणाली के जरिए ही घर के ताले तक नियंत्रित होंगे। घर को गर्म रखने के लिए हीटिंग प्रणाली आदि सभी पर ई-नेटवर्क के जरिए कंट्रोल रखा जा सकता है। यहाँ तक की स्कूल, अस्पताल और दूसरे सरकारी दफ्तर भी नेटवर्क पर हैं। तकनीक की दृष्टि से ये शहर एक नजीर है। इस शहर को तकनीक सिस्को दे रही है और ये विकास के अपने अंतिम दौर में है। ऐसा अनुमान जताया गया है कि यहाँ 65,000 लोग रह रहे हैं। और 3,00,000 लोग अलग-अलग वजहों से इस शहर से जुड़े हुए हैं।

स्मार्ट शहरों की अगर बात हो तो ब्राजील के चर्चित शहर रियो डे जेनेरो का नाम जरूर आता है। यह शहर आगामी 2016 में ओलंपिक की मेजबानी भी करने वाला है। ओलंपिक के लिहाज से इस शहर को स्मार्ट सिटी के रूप में स्थापित करने की तेयारी काफी समय से चल रही है। इस दिशा में काम बढ़ाते हुए वहाँ के काॅर्पोरेट एवं सरकार ने शहर की तीस एजेंसियों को एक नेटवर्क पर जोड़ने की दिशा में अनोखा कदम उठाया है जिससे किसी भी स्थिति से बेहतर तरीके से निपटा जा सके। सूचना एवं प्रौद्योगिकी कम्पनी आईबीएम ने मौसम के पूर्वानुमान के लिए आधुनिक प्रणाली तैयार की है एवं मौसम और ट्रैफिक आदि के लिए विशेष प्रकार के तकनीकी विकल्प विकसित किए गए हैं। हालाँकि ऐसा बिलकुल भी नहीं है कि शहर को विकसित करने की दिशा में आम लोगों का सहयोग एवं सहभागिता नहीं ली जा रही है। इस शहर के आम लोग भी आवासीय विकास की दिशा में आदर्श रिहायश के तमाम विकल्पों पर काम कर चुके हैं। घरों के डिजाइन और उन्हें बनाने के आसान तरीके इंटरनेट पर उपलब्ध कराए गए और लोगों ने इस काम में भरपूर सहयोग किया। इस लिहाज से अगर देखा जाए तो ब्राजील का यह शहर सरकार, काॅर्पोरेट एवं जनभागीदारी के आपसी सामंजस्य से स्थापित हो रहा एक बेहतरीन शहर है जहाँ उन तमाम बिंदुओं पर गौर किया गया है जो एक स्मार्ट सिटी के मूल मानदंड में जरूरी हैं।

स्पेन का बार्सिलोना दुनिया के उन शहरों में शुमार है जो स्मार्ट सिटी मानदंडों को पूरा करते हैं। बार्सिलोना इस लिहाज से खास है क्योंकि वहाँ तकनीक को हर स्तर पर उपयोग करने की दिशा में सफल प्रयोग किया जा रहा है। बार्सिलोना में कूड़ा उठाने से लगाए बसों के रूट आदि को सेंसर तकनीक से जोड़ने की दिशा में पहल हो चुकी है। बार्सिलोना को लेकर यह दावा भी किया जाता है कि यह दुनिया का सबसे आगे बढ़ चुका स्मार्ट शहर है। हालाँकि ऐसा बिल्कुल नहीं है कि स्मार्ट सिटी की परिकल्पना केवल उन्हीं शहरों तक सीमित हो सकती है जो नए बसाए जा रहे हैं इस मामले में फ्रांस के चर्चित शहर पेरिस को नजीर के तौर पर रखा जा सकता है।

पेरिस एक पुराना शहर है जो परिस्थितियों के अनुरूप बदलाव को न सिर्फ स्वीकार करता रहा है बल्कि खुद को विकसित भी करता रहा है। यही वजह है कि इक्कसवी सदी में प्रमुख पेरिस एक पर्यटन का शहर है लेकिन यह 1853 तक एक बेहद गंदा शहर होता था। लेकिन 1853 में बेरन हासमन ने पेरिस क उद्धार की दिशा में बड़ा काम किया। सड़कें सुधारी गईं, सुदूर क्षेत्रों से इसे जोड़ा गया और पेरिस को सड़कों के क्षेत्र में समृद्ध बनाया गया। आज पेरिस स्मार्ट सिटी के मानदंडों पर भी खुद को साबित करने की दिशा में उसी तरह बढ़ चुका है जिस तरह 1853 में तत्कालीन जरूरतों के अनुरूप खुद को बदलने के लिए बढ़ा था।

स्मार्ट शहरों की चर्चा हो तो स्विट्जरलैंड का एक शहर ज्युरिख भी उदाहरण के तौर पर रखा जा सकता है। इस शहर की खासियत ये है कि यह शहर देहात क्षेत्र से जुड़ा हुआ है। तकनीक मुश्किल नहीं है। बिना लेट-लतीफ के तकनीक संचालित यातायात इस शहर को स्मार्ट बनाने के लिए पर्याप्त है। वैसे तो अपने अनोखे प्रयोग के लिए जाने जाने वाले कई शहर हैं, मगर ऐसा ही अनूठा एक शहर है डेनमार्क का कोपनहेगन। इस शहर की खासियत है यह शहर हरियाली को हर शर्त पर बचा पाने में कामयाब रहा है। सबसे बड़ा प्रयोग इस दिशा में यह रहा कि कोपनहेगन ने यातायात के लिए साईकिल को तरजीह दी और पर्यावरण को बचाने के लिए इस जरूरत को स्वीकार किया। आज भी कोपनहेगन में लोग साईकिल को ही अपने शहरीय कार्यों के लिए उपयोग में लाते हैं। अपनी हरियाली के लिए यह शहर दुनिया में नजीर है और खुद को स्मार्ट सिटी के तौर पर स्थापित भी करता है।

चूँकि विविधताओं से परिपूर्ण इस विश्व में जब स्मार्ट सिटी पर चर्चा हो तो स्मार्ट सिटी को भी विविध दृष्टिकोणों से ही देखना उचित होगा। विविध नजरिए से जब हम इस अवधारणा का मूल्यांकन करेंगे तो एक बेहतरीन लक्ष्य की सिद्धि हो सकती है और स्मार्ट सिटी बनाने की परिकल्पना अपने परम्परागत मूल्यों के साथ मूर्त रूप ले सकती है। हालाँकि तकनीक के सहारे बसावट को सजाने और संवारने का यह चलन केवल बड़े और खर्चीले प्रोजेक्ट वाले शहरों तक है, ऐसा नहीं कहा जा सकता। ग्राम्य जीवन जी रहे समुदायों में भी तकनीकी विकास के साथ अनोखा उदाहरण रखने वालों के उदाहरण दुनिया में मिलते हैं। इजरायल में ग्राम्य जीवन जीने की प्रणाली चलन में है जिसे किबुत्ज नाम से जाना जाता है। मूलतया साझा कृषि एवं अन्न उपजाने वाला यह संगठित ग्राम्य जीवन भी अब तकनीक एवं सुविधाओं के लिहाज से अपने समुदाय को विकसित कर रहा है। किबुत्ज अंतर्गत ग्राम्य जीवन में भी सौर ऊर्जा के अलावा खेती के अत्याधुनिक तौर-तरीकों पर वहाँ के लोग बेहतर काम कर रहे हैं। वहाँ घरों के निर्माण से लेकर रसोई तक में सौर ऊर्जा का सहज उपयोग करने की तकनीकी कोशिश सफलतापूर्वक काम कर रही है। पर्यावरण के दृष्टिकोण से मिट्टी के बने घरों को पत्तों से ढंककर फिर सोलर ऊर्जा के उपकरण का इस्तेमाल की तकनीक का किबुत्ज के लोग बेहतर उपयोग कर रहे हैं।

उपरोक्त तथ्यों पर अगर गौर करें तो यह कहने में किसी को भी दिक्कत नहीं होनी चाहिए कि अब सामाजिक बसावट में तकनीक का हस्तक्षेप बढ़ रहा है। तकनीक और उद्योग आश्रित समाज के सामने यह बड़ी चुनौती है कि तकनीक का उपभोग करने की बजाए उपयोग कैसे करें। चूँकि जब हम बदलते तकनीकी दौर में विकास के आधुनिक उपकरणों को उपभोग का माध्यम बना लेते हैं तो प्रकृति से जुड़ी ऐसी सावधानियाँ हाशिये पर चली जाती हैं, जिनका ख्याल नहीं रखना समाज और बनावट एवं बसावट दोनों के लिए खतरनाक होगा।

इस लिहाज से भी दुनिया के शहर ऐसे मिल जाएंगे जो तकनीक का उपभोग तो कर रहे हैं लेकिन तमाम बुनियादी सावधानियों को अमल नहीं ला पा रहे हैं। स्मार्ट सिटी की वर्तमान अवधारणा का आशय महज विकास के अंधाउत्साह से नहीं बल्कि प्रकृति और समाज के बीच सन्तुलन से है। तकनीकी का उपयोग जितना सुविधा-सम्पन्न समाज के लिए किया जा रहा है अगर उतना ही प्राकृतिक जवाबदेही के साथ भी किया जाए तो हम जिस बसावट के लक्ष्य को प्राप्त करेंगे वो स्वतः स्मार्ट होगा। भारत भी इस दिशा में दुनिया के तमाम देशों से सीख लेकर, तकनीक लेकर और विकास की समझ लेकर स्मार्ट सिटी की योजना की तरफ आगे बढ़ने को तैयार दिख रहा है। इसमें कोई शक नहीं कि भारत सक्षम भी है और यहाँ सम्भावना भी है। स्मार्ट सिटी की बुनियाद अगर भारत में पड़ती है तो भारत में कई ऐसे नगर हैं जो भविष्य के स्मार्ट सिटी के तौर पर विकसित हो सकते हैं।

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। राजनीतिक, सामाजिक एवं विकास से जुड़े मुद्दों पर सतत लेखक। देश के दर्जनों राष्ट्रीय समाचार-पत्रों के लिए लेखन। राजनीति-शास्त्र विषय मेें स्नातकोत्तर की पढ़ाई। ईमेल: saharkavi111@gmail.com

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