संसद में गूँजा : करोड़ों बहाया फिर भी यमुना मैली

18 Dec 2015
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प्रदूषित यमुनानई दिल्ली। दिल्ली की राजनीति पिछले कुछ दिनों से वैसे तो सत्ता के गलियारों में फैली गन्दगी से परेशान है, लेकिन बृहस्पतिवार को यमुना की गन्दगी संसद में मुद्दा बन गई। बात यह भी उठे की यमुना को शुद्ध करने के लिये अब तक करोड़ों का धन बहाया गया, लेकिन क्या वजह है कि यह नदी आज भी मिली ही है।

दरअसल, सांसद दुष्यंत चौटाला ने पलवल, फ़रीदाबाद, मेवात और अलवर को यमुना नदी से गन्दा पानी मिलने पर लोकसभा में सरकार को यमुना के एक्शन प्लान में सुधार करने की माँग की। हरियाणा से इनेलो सांसद दुष्यंत ने यमुना की सफाई पर सवाल करते हुए कहा कि मेरे पास जो रिपोर्ट है उसके अनुसार यमुना की सफाई का कार्य तीन फेज में हुआ है।

दुष्यंत ने सरकार से पूछा कि क्या यमुना एक्शन प्लान को चेंज कर फ़रीदाबाद, पलवल, मेवात और अलवर को शुद्ध पानी मुहैया कराया जा सकता है। दुष्यंत के सवाल पर जवाब देते हुए सरकार ने कहा कि 7 से 10 दिन में समस्या का समाधान कर दिया जाएगा। लेकिन उनके इस सवाल ने यमुना की गन्दगी को फिर से जिन्दा कर दिया लेकिन दिल्ली की यमुना का क्या होगा और इसका जवाब कौन देगा। क्योंकि लोक-लिहाज से बचने के लिये दिल्ली सरकार ने यमुना आरती तो हाथी घाट पर शुरू कर दी है पर वहाँ का भी क्या हाल है यह किसी से छुपा नहीं है।

योजनाएँ क्रियान्वित की फिर भी बढ़ता गया प्रदूषण


दुनिया में सबसे ज्यादा प्रदूषित नदी है यमुना। भारत में नदियों को न केवल पानी के लिहाज़ से प्राकृतिक स्रोत माना जाता है बल्कि देवी-देवताओं की तरह इसकी पूजा भी होती है इस बात की जानकारी होने के बावजूद यमुना में प्रदूषण का स्तर विभिन्न योजनाओं के बाद भी घटने के बजाय और बढ़ता ही जा रहा है।

इसके लिये सीवेज ड्रेन्स, एसटीपी की कमी, भूमि अपरदन, प्लास्टिक गार्बेज, औद्योगिक कचरा व केमिकल युक्त कचरा आदि शामिल हैं दिल्ली का 58 प्रतिशत वेस्ट इसी में पहुँचता है जबकि 70 प्रतिशत पानी की आपूर्ति यमुना से ही लोगों को हो रही है। हाल-फिलहाल इस में सुधार की गुंजाईश बहुत कम है।

कैग ने भी अपनी रिपोर्ट में बताया कि दिल्ली की बत्तीस एसटीपी में 15 एसटीपी ही अपनी क्षमताओं के अनुरूप काम कर रही हैं और बाकी का स्तर निर्धारित क्षमता से बहुत कम है यही कारण है कि यमुना को अब पवित्र नदी कम नाले के रूप में ज्यादा जाने लगा है।

पिछले कुछ वर्षों से में सभी तरह के प्रयासों के बावजूद यमुना का प्रदूषित क्षेत्र पहले से बढ़ ही गया है। हरियाणा के पानीपत एरिया में 100 किलोमीटर के करीब प्रदूषित क्षेत्र बढ़ गया है। जबकि पिछले दो दशकों के दौरान 6500 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं।

केन्द्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) की नवीनतम रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रदूषित यमुना का दायरा अब 500 किलोमीटर से बढ़कर 600 किलोमीटर का हो गया है। आँकड़ों की माने तो यमुना को मैली करने में दिल्ली का सबसे अहम योगदान है। यह तब है जब दिल्ली में यमुना की कुल लम्बाई का सबसे कम हिस्सा है, लेकिन यमुना में जाने वाली कुल गन्दगी का 70 फीसदी गन्दगी दिल्ली वाले ही देते हैं।

यमुना एक्शन प्लान के तहत अब तक हुए सरकारी प्रयास


1993 में यमुना एक्शन प्लान वन की शुरुआत हुई थी। दो दशक से ज्यादा समय में 1500 करोड़ से ज्यादा खर्च हो चुका है। यमुना एक्शन प्लान वन 2000 में होना था।

लेकिन प्लान के हिसाब से अभी तक यमुना साफ नहीं होने पर 2004 में यमुना एक्शन प्लान टू की शुरुआत हुई। 450 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च हुए इस प्रोजेक्ट पर।

इस बार 700 करोड़ रुपए से अधिक खर्च किये जा चुके हैं सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट पर, लेकिन यमुना आज भी मैली ही है।

वजीराबाद से आगे जहरीली है यह नदी


दिल्ली की तीन चौथाई आबादी की प्यास बुझाने वाली यमुना की हालत नाजुक ही है। वजीराबाद से आगे निकलते ही यमुना नाले में तब्दील हो जाती है। दिल्ली का आधे-से-अधिक गन्दा पानी यमुना में बिना ट्रीट किये विभिन्न नालों के माध्यम से पहुँचता है।

दिल्ली में यमुना पल्ला के पास से प्रवेश करती है। करीब 25 किलोमीटर का स्ट्रेच पार करने के बाद वजीराबाद पहुँचती है।

दिल्ली जलबोर्ड सप्लाई के लिये यहीं से 840 एमजीडी पानी उठा लेता है। क्योंकि वजीराबाद के बाद यमुना नाले जैसी दिखाई देने लगती है।

यहीं से गन्दगी डाले जाने की शुरुआत भी हो जाती है। एक के बाद एक 18 नालों से यमुना में प्रदूषित पानी जाता है। इनमें से आधे से ज्यादा पानी बिना ट्रीटमेंट के यमुना में गिरता है। सीपीसीबी द्वारा 2014 के सुप्रीम कोर्ट को जारी रिपोर्ट में भी यमुना की बदहाली में कोई सुधार नहीं होना बताया गया है। सीपीसीबी की रिपोर्ट की मानें तो प्रदूषण का स्तर इतना ज्यादा है कि जलचर खत्म हो चुके हैं। ओखला बैराज के पास पानी में कुछ छोटी-छोटी मछलियाँ पाई जाती हैं, लेकिन वे साफ पानी की मछलियाँ नहीं होती और खाने के काम में नहीं आ सकती।

ओखला बैराज के पास बीओडी लेवल भी सबसे ज्यादा खराब है। इसके बाद निजामुद्दीन और कालिंदी कुंज के पास सबसे ज्यादा नाज़ुक स्थिति है। सीपीसीबी के मुताबिक निजामुद्दीन पुल के नीचे यमुना का पानी सबसे ज्यादा प्रदूषित है। आँकड़ों के लिहाज से यमुना का फ्लड एरिया यानी बाढ़ जनित क्षेत्र करीब दो से तीन किलोमीटर तक है। मानसून को छोड़ दिया जाय तो यमुना का अपने न्यूनतम प्रवाह के हिसाब से भी पानी नहीं बहता है।

यह है जमीनी तस्वीर


यमुना सात राज्यों से होकर बहती है। इसकी कुल लम्बाई के 1,376 किलोमीटर है। उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश में करीब 21 प्रतिशत, हिमाचल प्रदेश में 1.6 प्रतिशत, हरियाणा में 6.1 प्रतिशत, राजस्थान में 29.8 प्रतिशत, मध्य प्रदेश में 40 प्रतिशत और दिल्ली में करीब 2 प्रतिशत, हिस्सा है।

केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के आँकड़ों के अनुसार यमुना यमुनोत्री से ताजेवाला तक 172 किलोमीटर तक साफ है। ताजेवाला से वजीराबाद बैराज तक इसकी लम्बाई के 224 किलोमीटर क्षेत्र में दिल्ली के मुकाबले पानी काफी साफ है।

वजीराबाद से लेकर ओखला बैराज के बीच 22 किलोमीटर के हिस्से में यमुना सबसे अधिक प्रदूषित नदी है कुल गन्दगी का 70 प्रतिशत यहीं से यमुना तो मिलता है।

यमुना ओखला से लेकर चम्बल तक सबसे लंबी यात्रा करती है यह हिस्सा 490 किलोमीटर का है इस हिस्से में यमुना मथुरा व आगरा होते हुए यहाँ तक पहुँचती है।

आखिरी हिस्से में यमुना करीब 468 किलोमीटर होती हुई चंबल से गंगा तक पहुँचती है। यहाँ पहुँचते-पहुँचते कई सारी नहरों का पानी मिलने से यमुना का पानी काफी हद तक साफ हो जाता है। यमुना में बढ़ते प्रदूषण के चलते इसमें जलचर नहीं के बराबर रह गए हैं।

कई हिस्से तो ऐसे हैं जहाँ का पानी इतना प्रदूषित है कि वहाँ किसी भी तरह के जलचर नहीं हैं यह स्थिति आज से नहीं बल्कि कई वर्षों से है प्रदूषण को लेकर संगठनों तथा सरकारी स्तर पर समय-समय पर तमाम कोशिशें हुईं। लेकिन ज़मीनी स्तर पर यह कोशिशें कारगर साबित नहीं हुईं। इसकी वजह सरकार में बैठे लोगों की सोच भी हो सकती है। क्योंकि जब तक मन से प्रयास नहीं होगा, असर नहीं दिखेगा।

बगैर ट्रीटमेंट के गिराया जाता है 60 फीसदी गन्दा पानी


दिल्ली का करीब 48 किलोमीटर हिस्सा यमुना में है। इनमें सबसे ज्यादा गन्दगी 22 किलोमीटर का स्ट्रेच है। 18 बड़े नालों का गन्दा पानी और कचरा का प्रमुख माध्यम यही है। दिल्ली की पैंतालिस प्रतिशत आबादी का कचरा बिना ट्रीटमेंट के सीधे यमुना में इन्हीं नालों के जरिए पहुँचता है। इसमें सबसे बड़ी हिस्सेदारी नजफगढ़ ड्रेन की है।

सीपीसीबी के आँकड़ों के हिसाब से नजफगढ़ नाले से 61 प्रतिशत, शहादरा नाले से 17 प्रतिशत, दिल्ली गेट नाले से छह प्रतिशत, बारापूला से 2.2 प्रतिशत और तुगलकाबाद नाले से 2.2 प्रतिशत प्रदूषित पानी यमुना में पहुँचता है कुल बीओडी का 91 प्रतिशत इन्हीं नालों से यमुना को मिलता है। ऐसा बड़े नालों में गिरने वाले छोटे नालों पर इंटरसेप्टर ना होने की वजह से होता है।

एक अन्य अनुमान के मुताबिक राजधानी का करीब 400 करोड़ लीटर पानी यमुना में गिरता है। इनमें 60 प्रतिशत पानी यमुना में बिना ट्रीटमेंट के दिल्ली में पहुँचता है। दिल्ली जलबोर्ड के 17 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की छमता 2460 एमएलडी (246 करोड़ लीटर) गन्दे पानी का ट्रीटमेंट करने की है, लेकिन 150 करोड़ लीटर गन्दा पानी इनमें ट्रीटमेंट तक पहुँच पाता है। सीपीसीबी के अधिकारियों के अनुसार दिल्ली जलबोर्ड ने जो प्लांट ट्रीटमेंट के लिये लगाए हैं उनमें से कुछ की क्षमता पानी को 30 बीओडी तक लाने की है। पानी में बीओडी की सुरक्षित 20 बीओडी तक होना चाहिए।

दिल्ली में 28 औद्योगिक क्षेत्र हैं जहाँ से करीब 218 एमएलडी गन्दा पानी निकलता है। डीपीसीब के अनुसार मंगोलपुरी, लॉरेंस रोड, एसएमए नांगलोई, झिलमिल, ओखला, वजीरपुर, नरेला और बवाना की औद्योगिक इकाइयों का प्रदूषण मानक के हिसाब से सही नहीं हैं। इन इकाइयों में ट्रीटमेंट के लिये जो उपकरण लगे हैं वे क्षमता के हिसाब से पानी का ट्रीटमेंट नहीं कर पा रहे हैं। दिल्ली के ग्रामीण क्षेत्रों में कोई सीवेज सिस्टम नहीं है, जिसके चलते यहाँ का गन्दा पानी सीधे यमुना में जा रहा है। एनडीएमसी के ज्यादातर सीवर काफी पुराने हैं।

सफाई के लिये चाहिए 4 हजार करोड़


अब नए सिरे से जो यमुना को साफ करने को लेकर योजना विचाराधीन है। उस पर आगामी तीन वर्षों के दौरान चार हजार करोड़ रुपए और चाहिए। दिल्ली विकास प्राधिकरण इस बाबत एक विस्तृत एक्शन प्लान पहले ही एनजीटी को सौंप चुकी है। डीडीए ने एक्शन प्लान सीवेज मास्टर प्लान 2013 को संशोधित कर तैयार किया था। संशोधित प्लान के अनुसार यमुना में सीवेज का पानी गिरने से पहले उसे इंटरसेप्ट किया जाएगा। इसके लिये एक अलग से सीवेज लाइन डालने की जरूरत पड़ेगी। इसके अन्तर्गत सीवेज वाटर को स्टॉर्म वाटर ड्रेन में नहीं होने दिया जाएगा। इस प्लान पर काम करने में आगामी तीन वर्षों में चार हजार रुपए का खर्च आएगा। इस प्लान में दिल्ली के 201 प्राकृतिक नालों को भी पुनर्जीवित करने की योजना है।

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