संत गोपाल दास भी स्वामी सानंद की राह पर, पानी भी त्यागा

एम्स में भर्ती संत गोपालदास
एम्स में भर्ती संत गोपालदास

एम्स में भर्ती संत गोपालदास (फोटो साभार - दैनिक जागरण)गंगा की अविरलता को वापस लौटाने की माँग पर करीब चार महीने से अनशन पर बैठे प्रो. जीडी अग्रवाल यानी स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद के निधन के बाद संत गोपालदास ने भी पानी ग्रहण करना छोड़ दिया है।

36 वर्षीय संत गोपाल दास 112 दिनों से अनशन पर हैं। वह भी सरकार से गंगा नदी को बचाने और उसकी अविरलता सुनिश्चित करने की माँग कर रहे हैं।

गुरुवार को स्वामी सानंद के निधन के बाद ही उन्होंने पानी भी लेना छोड़ दिया, तो सकते में आई सरकार ने उन्हें जबरदस्ती अनशन स्थल से उठाकर एम्स ऋषिकेश में भर्ती करा दिया।

संत गोपालदास ने 24 जून से बद्रीनाथ से अनशन की शुरुआत की थी और कई क्षेत्रों से होते हुए ऋषिकेश पहुँचे थे। स्वामी सानंद के निधन के बाद वह शुक्रवार से मातृसदन में स्वामी सानंद की जगह पर अनशन कर रहे थे।

शुक्रवार की रात उनकी हालत बिगड़ने लगी थी। बताया जाता है कि रात में ही उन्हें कई बार दस्त हुए जिसके बाद उनके कुछ साथियों ने जिला प्रशासन को इसकी सूचना दी। जिला प्रशासन ने हालत की गम्भीरता को देखते हुए उन्हें अनशनस्थल से उठाकर एम्स ऋषिकेश में भर्ती करा दिया। अस्पताल के एक्टिंग मेडिकल सुपरिटेंडेंट बृजेंद्र सिंह ने कहा कि शनिवार तड़के 3.45 बजे उन्हें अस्पताल लाया गया और उनका इलाज चल रहा है।

संत गोपालदास का इलाज कर रहे डॉक्टरों का कहना है कि उनके शरीर में पानी की कमी हो गई थी। शुगर का लेवल 65 पर आ गया था। डॉक्टरों का कहना है कि उन्होंने किसी भी तरह का इलाज कराने से इनकार कर दिया है। फिलहाल, अंतःशिरा के जरिए उन्हें फ्लुईड दिया जा रहा है।

संत गोपाल दास मूलतः पानीपत के राजाखेड़ी गाँव के रहने वाले हैं। उनका असली नाम डॉ आजाद सिंह मलिक है।

बताया जाता है कि गच्छाधिपति प्रकाश चंद और सुंदर मुनि के सम्पर्क में आकर उन्होंने संन्यास ले लिया था और आजाद सिंह से संत गोपाल दास हो गए।

गंगा को बचाने की मुहिम शुरू करने से पहले वह गौरक्षा और गोचर भूमि को बचाने के लिये भी लंबा आन्दोलन कर चुके हैं। गौरक्षा व गोचर भूमि बचाने की माँग को लेकर उन्होंने कई बार अनशन भी किया है।

मातृसदन से जुड़े स्वामी दयानंद ने इण्डिया वाटर पोर्टल के साथ बातचीत में कहा कि एम्स ऋषिकेश में उन्हें एसी वार्ड में रखा गया है, लेकिन ऐसी वार्ड उन्हें सूट नहीं करता है और उन्होंने कई बार माँग की कि उन्हें अन्य वार्ड में रखा जाये।

बताया जाता है कि संत गोपालदास शुक्रवार को स्वामी सानंद के पार्थिव शरीर के दर्शन करने आये थे। चूँकि वह उस वक्त भी अनशन पर ही थे, इसलिये पर्यावरणविदों व मातृसदन से जुड़े लोगों ने उनसे मातृसदन के उस कमरे में अनशन जारी रखने को कहा जिस कमरे में स्वामी सानंद अनशनरत थे।

संत गोपाल दास इसके लिये तैयार हो गए और मातृसदन में ही अनशन करने लगे।

उल्लेखनीय है कि गंगा की अविरलता की माँग को लेकर स्वामी सानंद करीब चार महीने से अनशन कर रहे थे। अनशन के दौरान उन्होंने विभिन्न माँगों को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम कम-से-कम 3 खत लिखे थे, लेकिन इनमें से एक भी खत का जवाब प्रधानमंत्री कार्यालय से नहीं मिला था।

सरकार के उदासीन रवैया से नाराज स्वामी सानंद ने 10 अक्टूबर से पानी लेना भी बन्द कर दिया था। उनकी सेहत में लगातार हो रही गिरावट के मद्देनजर उन्हें एम्स ऋषिकेश में भर्ती कराया गया था, जहाँ उनका निधन हो गया।

स्वामी दयानंद ने केन्द्र की मोदी सरकार पर तानाशाही रवैया अपनाने का आरोप लगाते हुए कहा है कि यह बहुत कठिन समय है। उन्होंने कहा, ‘सैद्धान्तिक विरोध करने वालों को सरकार बर्दाश्त नहीं कर पा रही है। सरकार इन आवाजों को दबाने में अपनी ताकतें लगा रही हैं।’

यहाँ यह भी बता दें कि स्वामी सानंद से पहले भी गंगा को लेकर एक सन्यासी ने अनशन करते हुए जान दे दे थी। ये संन्यासी थे- निगमानंद सरस्वती।

निगमानंद सरस्वती का जन्म 2 अगस्त 1976 को बिहार दरभंगा में हुआ था। उनका असली नाम स्वरूपम कुमार झा गिरिश था। उन्होंने प्रारम्भिक शिक्षा गाँव में ही ली थी। इसके बाद उच्च शिक्षा के लिये वह दिल्ली चले गए थे। 1995 में अचानक वह दिल्ली से कहीं और चले गए थे। कई सालों तक इधर-उधर घूमने के बाद वह हरिद्वार स्थित मातृसदन में रहने लगे थे। मातृसदन की स्थापना स्वामी शिवानंद व उनके अनुयायियों ने की थी।

स्वामी निगमानंद ने गंगा में हो रहे अवैध खनन व प्रदूषण के मुद्दे को जोर-शोर से उठाया था और कई दफे अनशन किया था। वर्ष 2011 के फरवरी महीने में उन्होंने फिर एक बार अनशन शुरू किया था, जो करीब चार महीने तक चला था। इसी दौरान उनका निधन हो गया था।

स्वामी सानंद की तरह ही स्वामी निगमानंद की मौत को लेकर भी विवाद है। बताया जाता है कि अनशन के दौरान ही स्वामी निगमानंद को अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहाँ उनके शरीर में प्रवेश कर चुके अज्ञात जहर का इलाज किया गया था, लेकिन उनकी मौत हो गई थी।

स्वामी निगमानंद के पिता सूर्य नारायण झा ने आरोप लगाया था कि उन्हें इलाज के दौरान ही जहर देकर मारा गया था। स्वामी निगमानंद के निधन के बाद स्वामी शिवानंद ने भी अनशन शुरू कर दिया था। उस वक्त उत्तराखण्ड की भाजपा सरकार पर चौतरफा दबाव बना था। अन्ततः सरकार को झुकना पड़ा और उसने पूरे उत्तराखण्ड में ही खनन पर रोक का आदेश दिया था।

अब देखना यह है कि स्वामी सानंद के निधन और अब संत गोपाल दास के अनशन से केन्द्र सरकार पसीज कर कोई ठोस घोषणा करती है या कुंभकरणी नींद सोती रहती है।

 

 

 

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