संतुलित जल सिंचित धान : उत्पादन संवृद्धि

धान की फसल के लिए दूसरी अन्य धान्य फसलों की तुलना में अधिक जल की आवश्यकता होती है। प्राकृतिक रूप से मध्यम जलीय होने के बावजूद धान अदक्षतापूर्वक जल का उपयोग करता है और जल की अधिकता एवं कमी से बुरी तरह प्रभावित होता है। बारानी दशाओं में वर्षा कभी-कभी समय पर अथवा पर्याप्त नहीं होती जिससे कि धान की फसल की जल की आवश्यकता पूरी हो सके, अतएव जल प्रबंधन पद्धति की आवश्यकता अपरिहार्य हो जाती है। बारानी दशाओं की तुलना में सिंचित दशा में फसलोत्पादन सामान्यतया अधिक होता है। उत्पादन के स्तर और जल उपयोग दक्षता में पुनर्वृद्धि के लिए फसल की आवश्यकता मृदा प्रकार, कृषिगत दशाओं में उसकी भौतिक और रासायनिक स्थिति और भूमि का सतही क्रम (टोपो सिक्वेन्स) की विशेषता का आधार पर उपयुक्त जल प्रबंधन तकनीकी विकसित की गई है। देश में विभिन्न दशाओं में धान की खेती के उपयुक्त पहलुओं के मद्देनजर इस प्रपत्र में जल प्रबंधन के संदर्भ में उपलब्ध सूचनाओं को संकलित किया गया है। यह ज्ञातव्य है कि भूमि का प्रकार जिस पर धान की खेती की जाती है तथा जल प्राप्ति के स्रोत के आधार पर विभिन्न दशाओं में व्यापक अन्तर होता है। जबकि धान के क्षेत्र में जल का ह्रास मृदा कारकों के अतिरिक्त वातावरण और जल प्रबंध पद्धतियों से भी प्रभावित होता है, निश्चय रूप से दूसरा अति व महत्वपूर्ण है।

जल ह्रास को न्यूनतम करने के लिए अनुसंधान निष्कर्षों के आधार पर उपयुक्त तकनीक की रूपरेखा प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। धान की खेती की उपयुक्त पद्धतियों जैसे मौसम की अवधि के अनुरूप और वातावरण के उपयुक्त धान की प्रजाति की खेती, रिसाव क्षति के नियंत्रण पडलिंग या सघनीकरण को समाहित करते हुए मृदा प्रबंधन, मानसून के मौसम में उपयुक्त मृदा वातावरण के विकास और गर्मी के मौसम में जल के आर्थिक उपयोग में वृद्धि हेतु फसल की वृद्धि-अवस्थाओं से संबंधित चरणीय जल भराव के साथ सिंचाई क्रम का जल प्रबंधन के प्रभाव को ध्यान में रखते हे प्रयास किया गया है। यह भी दृढ़ता के साथ कहा जा सकता है कि फसल-मृदा-वातावरण की विशेष आवश्यकता की पहचान के लिए क्रमबद्ध खोज की जानी चाहिए।

इस रिसर्च पेपर को पूरा पढ़ने के लिए अटैचमेंट देखें



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