
महज 26 साल की उम्र में कुलभूषण ने अपने पुस्तैनी ईंट भट्ठे के कारोबार में एक अलग सपना बुना था। उस सपने के चटख रंग आज देहरादून की यूनिवर्सिटी ऑफ पेट्रोलियम, दून इंटरनेशनल स्कूल, डीपीएस नोएडा जैसे संस्थानों की इमारतों में दिख रहे हैं। ऐसी अनेक इमारतें इन्हीं ईंटों से बनाई गई हैं। महज 19 साल के सफलता के सफर में आज द एनर्जी एंड रिसोर्स इंस्टीट्यूट दुनिया के 22 देशों में कुलभूषण के इनोवेशन का गुणगान कर रही हैं। यूनाइटेड नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम में कुलभूषण के प्रोडक्ट का जिक्र किया गया है। कुलभूषण की भारत ब्रिक्स कम्पनी द्वारा तैयार की जा रही ईंटों का प्रदर्शन राष्ट्रीय-अन्तरराष्ट्रीय प्रदर्शनियों में किया जाता रहा है।
यह है तकनीक
कुलभूषण ने बताया कि मशीन से मिट्टी को कम्प्रेस किया जाता है। इससे गारे में से हवा पूरी तरह बाहर निकल जाती है, पानी भी महज 6 प्रतिशत रह जाता है। इस कारण उसे पकाने में भी कम तापमान का प्रयोग होता है। बाद में इन ईंटों को अलग-अलग तापमान में पकाना शुरू किया तो ईंट तापमान के अनुसार अपने प्राकृतिक रंग में सामने आने लगी। मिट्टी को कम्प्रेस्ड किए जाने से पकी ईंट की क्षमता सामान्य ईंटों की तुलना में तीन गुना ज्यादा होती है। हालांकि इस समय मशीन से ईंट और भी कई कम्पनियाँ बना रही हैं, लेकिन वे इस प्रकार की ईंटों को बनाने में मिट्टी के बजाय दूसरी चीजों का प्रयोग कर रही हैं। कुलभूषण ने पूरी तरह इन ईंटों को मिट्टी से ही बनाना जारी रखा। द एनर्जी एंड रिसोर्स इस्टीट्यूट के प्रोग्राम में कुलभूषण की ईंट का जिक्र देखकर इग्लैण्ड के इंजीनियर्स अब इस ईंट की काफी माँग कर रहे हैं।
पेंट करने की जरूरत नहीं
कुलभूषण का कहना है कि ईंट को तापमान के अनुसार प्राकृतिक रंग मिल जाता है, जिस कारण इन ईंटों का प्रयोग करने पर अलग से पेंट की जरूरत नहीं होती है। कम्प्रेस्ड होने के कारण मिट्टी बिल्डिंग निर्माण के दौरान या उसके बाद पानी भी नहीं सोखती है। यही वजह है कि भारत के वाटर एंड सेनीटेशन डिपार्टमेंट ने कुलभूषण द्वारा तैयार ईंट को सीवर लाइन के लिये सबसे उपयुक्त पाते हुए इसे मान्यता दी है। डिपार्टमेंट के स्टैंडर्ड के अनुसार सीवर लाइन में 10 प्रतिशत पानी सोखने वाली ईंटें ही प्रयोग की जा सकती हैं, जबकि कुलभूषण द्वारा तैयार ईंट सिर्फ 6 प्रतिशत पानी सोखती है।