सोनभद्र बना कब्रिस्तान

28 Sep 2009
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रासायनिक कचड़े के दलदल में तब्दील हो चुके रिहंद जल का असर कभी फ्लोरोसिस तो कभी गर्भस्थ शिशुओं की मौत के रूप में सामने आता रहा है लेकिन जल प्रदूषण का असर इतना व्यापक होगा और आम आदिवासियों की आर्थिक धुरी कहे जाने वाले मवेशियों की सामूहिक हत्या की वजह बनेगा इसकी किसी ने कल्पना नहीं की थी।

सोनभद्र, देश की ऊर्जा राजधानी बेगुनाहों के कब्रिस्तान में तब्दील हो गई है। विकास के नाम पर पर्यावरण के साथ अनवरत बलात्कार का दुष्परिणाम हजारों मवेशियों की मौत के रूप में सामने आया है। देश के नामी-गिरामी रसायन उत्पादक कारखाने कनोरिया केमिकल इंडस्ट्रीज के इर्द गिर्द स्थित लगभग दो दर्जन गावों में हुई इन मौतों को लेकर जिला प्रशासन सकते में है। जिलाधिकारी सोनभद्र पंधारी यादव ने चिकित्सकों की टीम के साथ प्रभावित इलाकों का दौरा किया। मौत के कारणों की जांच के लिए शवों के बिसरे को परीक्षण हेतु राज्य विष विज्ञान प्रयोगशाला में भेज दिया गया हैं। वहीं आदिवासियों को प्रभावित इलाकों से दूर जाने एवं प्रभावित गांवों में पेयजल के मौजूदा स्रोतों का इस्तेमाल न करने की सलाह दी गई है।

महत्वपूर्ण है कि इसके पूर्व अगस्त माह में हुई ताबड़तोड़ मौतों के बाद मवेशियों के शवों का परीक्षण कराया गया था। जिसमें उन आकस्मिक मौतों की वजह कनोरिया से निकले कचड़े में मौजूद रासायनिक विष का प्रभाव पाया गया था। हालांकि मौजूदा मौतों को लेकर अभी तक प्रशासन द्वारा कोई खुलासा नहीं किया गया है। जिन इलाकों में मौतें हुई हैं वहां दहशत और भय का माहौल है। सर्वाधिक प्रभावित खाड़ पाथर गांव में लगभग 90 मवेशी मरे हैं। अधिकांश ग्रामीण अपने मवेशियों को लेकर दूसरे इलाकों की ओर पलायन कर गए हैं। वहीं अपनी बुनियादी आर्थिक जरूरतों के लिए इन मवेशियों पर निर्भर आदिवासी उन्हें औने पौने दामों में बेच रहे हैं।

जिलाधिकारी सोनभद्र ने माना है कि मौतों की संभावित वजह दूषित जल है लेकिन जल दूषित कैसे हुआ इस संदर्भ में फिलहाल कोई जानकारी नहीं मिल पाई है। महत्वपूर्ण है कि प्रभावित क्षेत्रों से होकर गुजरने वाले नालों और बरसाती नदियों में कनोरिया केमिकल और अन्य औद्योगिक प्रतिष्ठानों का कचड़ा मिला होता है जो कि आगे जाकर रिहंद बांध की सहायक रेणुका नदी में मिल जाता है। नदी में मिले रासायनिक कचड़ों से जन जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों को लेकर तमाम सरकारी और गैर सरकारी एजेंसियों ने अपनी रिपोर्ट दी है। लेकिन इच्छा शक्ति के अभाव में अब तक प्रदूषण की दोषी इकाइयों पर किसी प्रकार की कोई कार्यवाही नहीं की जा सकी है अभाव और उपेक्षा की अनवरत मार झेल रहे आदिवासी बहुल सोनभद्र जनपद में मौत के नए अफसाने लिखे जा रहे हैं। कई गांव तो ऐसे हैं जहां एक दिन में 20-20 की संख्या में गाय और भैसों की मौत हुई है।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने हाल ही में किए गए अपने सर्वेक्षण में इन प्रतिष्ठानों द्वारा घातक रसायनों के अनुचित निस्तारण और जल स्रोतों में इन रसायनों की उपस्थिति का खुलासा किया था। इसके अलावा यहां के जल स्रोतों में पारे समेत अन्य घातक रसायनों के भारी मात्रा में होने की बात सामने आई थी। एखाड़पाथर के रामवृक्ष जिनकी चार भैंसे अचानक काल के गाल में समां गई वे बताते हैं कि हमने अपने मवेशियों को चार दिनों पहले हमेशा की तरह गांव से होकर गुजरने वाले नाले का पानी पिलाया था लेकिन जैसे ही हम उन्हें लेकर घर पहुंचे कुछ ही घंटों में उन्होंने तड़प-तड़प कर दम तोड़ दिया। लगभग सभी इलाकों में मौत नदी या फिर नालों का पानी पीने के बाद हुई है। इतनी भारी संख्या में हो रही मौतों के बाद शवों को दफनाने को लेकर भी तमाम तरह की दिक्कतें सामने आ रही है। कई इलाकों में ग्रामीणों ने शवों को खुले में छोड़ दिया है। जिससे अन्य तरह के संक्रमण पैदा होने का खतरा हैं। प्रभावित क्षेत्र में अभी तक कोई भी अधिकारी या पशु चिकित्सक नहीं पहुंचा है। प्रशासन द्वारा शवों का परीक्षण तो कराया जा रहा है लेकिन अभी तक किसी भी इलाके से जल का नमूना लेकर उसकी जांच की व्यवस्था नहीं की गयी है। प्रभावित इलाकों में कनोरिया और हिंडाल्को समेत अन्य कारखानों के द्वारा किए जाने वाले वृहद् प्रदूषण के कुप्रभावों को लेकर बार-बार हो हल्ला मचता रहा है।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने हाल ही में किए गए अपने सर्वेक्षण में इन प्रतिष्ठानों द्वारा घातक रसायनों के अनुचित निस्तारण और जल स्रोतों में इन रसायनों की उपस्थिति का खुलासा किया था। इसके अलावा यहां के जल स्रोतों में पारे समेत अन्य घातक रसायनों के भारी मात्रा में होने की बात सामने आई थी। चिंताजनक तथ्य ये है कि सोनभद्र की लगभग तीन चौथाई आदिवासी आबादी पानी के लिए रिहंद के जल पर निर्भर है लेकिन प्रदूषण की मार से ये जल पूरी तरह से निष्प्रयोज्य हो गया है। रासायनिक कचड़े के दलदल में तब्दील हो चुके रिहंद जल का असर कभी फ्लोरोसिस तो कभी गर्भस्थ शिशुओं की मौत के रूप में सामने आता रहा है लेकिन जल प्रदूषण का असर इतना व्यापक होगा और आम आदिवासियों की आर्थिक धुरी कहे जाने वाले मवेशियों की सामूहिक हत्या की वजह बनेगा इसकी किसी ने कल्पना नहीं की थी। इस पूरे मामले पर जब कनोरिया केमिकल के प्रबंधन से बात करने की कोशिश की गयी तो पाता चला सभी अधिकारी दशहरे के मेले में व्यस्त हैं। वहीं पशु चिकित्साधिकारी सोनभद्र के मोबाइल बार-बार कॉल करने के बावजूद नहीं उठा।
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