स्टारचिप से सम्भव होगी नजदीकी तारे की यात्रा

31 Aug 2018
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स्टारचिप (फोटो साभार: विकिपीडिया)
स्टारचिप (फोटो साभार: विकिपीडिया)

स्टारचिप (फोटो साभार: विकिपीडिया) प्रॉक्सिमा सेन्टॉरी (Proxima Centauri) नामक तारा पृथ्वी से 4.24 प्रकाश वर्ष दूर है। जैसा कि हम जानते हैं, प्रकाश द्वारा एक वर्ष में तय की गई दूरी को ही प्रकाश वर्ष कहते हैं, जो करीब 95 खरब किलोमीटर के बराबर होती है। हम अपने तारे सूर्य को छोड़ दें तो यह तारा हमारे सबसे नजदीक का तारा है। गौरतलब है कि प्रॉक्सिमा सेन्टॉरी एक तारक निकाय (स्टार सिस्टम) से सम्बन्ध रखता है जिसमें तीन तारे हैं। प्रॉक्सिमा सेन्टॉरी के अलावा इस तारक निकाय के दो अन्य तारे हैं- अल्फा सेन्टॉरी ए तथा अल्फा सेन्टॉरी बी। दोनों अल्फा सेन्टॉरी तारे प्रॉक्सिमा सेन्टॉरी तारे की तुलना में अधिक दीप्त या चमकीले हैं।

सन 2016 में खगोलविदों ने हमारे सबसे नजदीकी तारे प्रॉक्सिमा सेन्टॉरी के गिर्द ऐसे ग्रह की खोज की जो हमारे सौरमण्डल के बाहर के अब तक खोजे गये ग्रहों में सर्वाधिक निकट है। सौरमण्डल से बाहर के ग्रहों को एक्सोप्लेनेट (Exoplanet) नाम दिया जाता है। खगोलविदों का कहना है कि इस ग्रह पर जीवन के पनपने की अनुकूल परिस्थितियाँ पाई जा सकती हैं। इस ग्रह को ‘प्रॉक्सिमा सेन्टॉरी बी’ नाम दिया गया है।

बहरहाल, इस ग्रह पर जीवन की खोज हो सकती है या नहीं यह तो भविष्य में ही पता चलेगा, लेकिन खगोलविद यह प्रश्न उठाने लगे हैं कि अगर जरूरत पड़ी तो इस ग्रह तक पहुँचने में हमें कितना समय लगेगा वैसे प्रसिद्ध ब्रिटिश वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग का कहना था कि पृथ्वी पर प्रदूषण तथा जलवायु परिवर्तन के कारण इस तरह परिस्थितियाँ बदलेंगी कि आने वाले वर्षों में हमें पृथ्वी को छोड़कर अन्य ग्रहों पर जाकर बसना पड़ सकता है।

अतः समय रहते ही हमें इस बारे में सोचना चाहिए, ऐसा हॉकिंग का मानना था तो आइए देखते हैं कि निकटतम ग्रह प्रॉक्सिमा सेन्टॉरी बी तक पहुँचने में हमें कितना समय लगेगा। अगर वर्तमान रॉकेट टेक्नोलॉजी की बात करें तो इसकी बदौलत अपने निकटतम ग्रह तक पहुँचने में हमें कम-से-कम एक लाख वर्ष लग जाएँगे। ऊपर से इस मिशन पर इतना ईंधन लगेगा कि पूरे ब्रह्माण्ड के परमाणु भी इस काम के लिये कम पड़ जाएँगे। इसका मतलब यह कि वर्तमान रॉकेट प्रमोचन प्रौद्योगिकी के बूते पर तो प्रॉक्सिमा सेन्टॉरी बी तक की यात्रा सम्भव नहीं लगती। इसके लिये रॉकेट टेक्नोलॉजी में हमें काफी सुधार लाने की आवश्यकता है। इस दिशा में फोटॉन रॉकेट, आयन थ्रस्टर टेक्नोलॉजी आदि विभिन्न प्रस्ताव विचाराधीन हैं।

अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी ‘नासा’ के वैज्ञानिकों ने स्टीफन हॉकिंग के साथ मिलकर एक ऐसे अंतरिक्ष यान की कल्पना की थी जिसका वेग प्रकाश के वेग का पांचवा हिस्सा होगा यानी जो 60,000 किलोमीटर प्रति सेकेंड के वेग से अंतरिक्ष में उड़ान भरेगा। अगर यह परिकल्पना साकार रूप ले लेती है तो प्रॉक्सिमा सेन्टॉरी बी तक पहुँचने में हमें मात्र बीस वर्ष लगेंगे।

दरअसल, स्टीफन हॉकिंग ने इस प्रकार के अंतरिक्ष यान की परिकल्पना सन 2016 में की थी। कोरिया इंस्टीट्यूट अॉफ सांइस एंड टेक्नोलॉजी (Korea Institute of Science and Technology - KIST) का वैज्ञानिक दल इस परिकल्पना में उनके साथ जुड़ा था। लेकिन, बाद में नासा भी इस अभिनव परिकल्पना के साथ आ जुड़ा।

लेकिन, अंतरिक्ष में बीस वर्ष की यात्रा कोई हँसी-खेल नहीं। इतनी लम्बी यात्रा के दौरान अंतरिक्ष यान एवं अंतरिक्ष यात्रियों की अंतरिक्ष में मौजूद उच्च ऊर्जावान विकिरणों से सुरक्षा प्राथमिक आवश्यकता बन जाती है।

सन 2016 में नासा के वैज्ञानिकों ने सैन फ्रांसिस्को में आयोजित इंटरनेशनल इलेक्ट्रॉन डिवाइसेज मीटिंग (International Electron Devices Meeting) में इस सम्बन्ध में अपने विचार प्रस्तुत किए। इन वैज्ञानिकों ने कुछ सुझाव रखे थे जिनमें से पहला सुझाव यह था कि अंतरिक्ष यान के उड़ान के मार्ग को इस प्रकार से बदला जाए कि उच्च ऊर्जावान विकिरण के क्षेत्र इसके मार्ग में आए ही नहीं। लेकिन, इससे यान को लम्बे मार्ग से उड़ान भरना होगा जिसके चलते इसे अधिक समय लगेगा, फिर भी यान को पूरी तरह से नुकसान और टूट-फूट से बचा पाना सम्भव नहीं होगा।

नासा के वैज्ञानिकों का दूसरा सुझाव यह था कि यान के चारों ओर सुरक्षा कवच (प्रोटेक्टिव शील्ड) का निर्माण किया जाए। लेकिन, इसमें समस्या यह आएगी कि इससे यान का आकार एवं वजन दोनों बढ़ जाएँगे, फलस्वरूप यान का वेग घट जाएगा। इस समस्या से निपटने के लिये नासा के वैज्ञानिकों ने यह सुझाव दिया है कि यान को अपनी मरम्मत स्वयं करने वाले सिलिकॉन चिप से बनाया जाए। इस प्रकार उच्च ऊर्जावान विकिरणों से पहुँचने वाली क्षति से यान को बचाया जा सकता है।

इस अंतरिक्ष यान को ‘स्टारचिप’ नाम दिया गया है। फिलहाल, यह एक सैद्धान्तिक परिकल्पना है जो अपने आरम्भिक स्तर पर है। जाहिर है कि वैज्ञानिकों को अंतरातारकीय आकाश (Interstellar Space) में अंतरिक्ष यात्रा के दौरान पेश आने वाली अन्य समस्याओं से भी निपटने के लिये रणनीति बनानी पड़ेगी।

इस परियोजना के भविष्य के बारे में स्टीफन हॉकिंग बहुत आशान्वित थे। उनका कहना था कि हमारे और तारों के बीच से असीम मुक्त आकाश (फ्री स्पेस) है, वही सबसे बड़ी चुनौती है। लेकिन, अब हम इस चुनौती का सामना कर सकते हैं, प्रकाश किरण-पुंजों तथा हल्के अंतरिक्ष यानों की मदद से हम प्रॉक्सिमा सेन्टॉरी बी तक की अंतरिक्ष यात्रा को वर्तमान पीढ़ी के जीवनकाल में ही अंजाम दे सकते हैं। इस सम्बन्ध में और भी उत्साहवर्द्धक बात हॉकिंग ने यह कही थी कि ब्रह्माण्ड में इस ‘लम्बी छलांग’ को लगाने के लिये हम पूरी तरह से तत्पर एवं दृढ़ संकल्प हैं क्योंकि ‘हम इंसान हैं और इंसान की प्रकृति होती है उड़ना (we are humans and our nature is to fly)’।

श्री आभास मुखर्जी
43, देशबन्धु सोसाइटी 15, पटपड़गंज दिल्ली 110092
मो.न.- 9873594248
ई-मेल- abhasmkherjee@gmail.com


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