सतत विकास के लिये हरित ऊर्जा ही एकमात्र विकल्प (Green Energy is the only option for sustainable development)

Suswa River
Suswa River

पिछले कुछ दशकों से भूमण्डलीय तापन और जलवायु परिवर्तन जैसे पर्यावरणीय मुद्दों के खुलकर सामने आने के बाद से पूरी दुनिया के लोगों की पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरुकता बढ़ी है। हाल ही में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) की एक रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि वर्तमान गति से यदि परम्परागत ऊर्जा स्रोतों का उपयोग किया जाता रहा, तो सम्भव है 2050 तक ग्रीन हाउस गैसों का प्रसार बढ़कर दोगुना हो जाये। अतः रिपोर्ट में यह सलाह दी गयी है कि ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिये परम्परागत साधनों पर निर्भरता कम करते हुए हरित ऊर्जा विकल्पों को अपनाने की जरूरत है।

हरित ऊर्जा क्या है? (What is green energy?)


हरित ऊर्जा ऐसा स्थायी स्रोत है जो पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य दोनों के लिये अत्यधिक हानिकारक नहीं है। वास्तव में हरित ऊर्जा प्राकृतिक अक्षय ऊर्जा स्रोतों जैसे सूर्य, पवन, जल, भूगर्भ और पादपों से उत्पन्न की जाती है। वर्तमान में विश्व की लगातार बढ़ रही जनसंख्या के कारण ईंधन की लागत बढ़ रही है और इसके समानांतर परम्परागत ईंधन भंडारों में भी निरंतर कमी होती जा रही है। ऐसे में सभी लोग ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत खोजने में जुट गए हैं। भविष्य की अपार संभावनाओं से युक्त हरित ऊर्जा आज की आवश्यकता बनती जा रही है। पिछले तीन दशकों में, हरित ऊर्जा के क्षेत्र में दुर्गति से अनुसंधान और विकास कार्य हुए हैं। नितनवीन हरित प्रौद्योगिकियाँ सामने आती जा रही हैं, जो लोगों की कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस जैसे पारम्परिक ऊर्जास्रोतों पर निर्भरता कम कर सकने के लिये काफी हैं। अब यह बात धीरे-धीरे स्पष्ट होती जा रही है कि जीवाश्म ईंधन की तुलना में हरित ऊर्जा स्रोत बेहतर विकल्प साबित हो सकते हैं।

हरित ऊर्जा विकल्प कौन-कौन से हैं? (Types of green energy)


गैर प्रदूषणकारी हरित ऊर्जा के अनेक विकल्पों पर तीव्र गति से अनुसंधान चल रहे हैं। मुख्य रूप से हरित ऊर्जा के निम्नलिखित विकल्पों की ओर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है।

सौर ऊर्जा - सीधे सूर्य से प्राप्त सौर ऊर्जा हरित ऊर्जा का सर्वाधिक प्रचलित विकल्प है। पिछले कई वर्षों से सौर उर्जा का प्रयोग कई तरह से किया जा रहा है। इनमें सौर ऊर्जा से बिजली बनाने की दिशा में बहुत ही महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ हासिल हुई हैं। इसके अलावा प्रायः लोग प्राकृतिक प्रकाश के तौर पर तो इसका इस्तेमाल करते ही हैं, साथ ही आजकल सोलर गीजरों और सोलर कुकरों का प्रयोग भी घरों में बहुत बढ़ता जा रहा है। इन सबके लिये सौर ऊर्जा को एकीकृत फोटोवोल्टाइक एवं ऊर्जा संयंत्र के निर्माण के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। दुनिया के प्रमुख फोटोवोल्टाइक पावर संयंत्रों में नेलिस सौर ऊर्जा संयंत्र, गीरासोल सौर ऊर्जा विद्युत संयंत्र तथा वाल्डपोलेंज सौर उद्यान शामिल हैं। भारत में भी सौर ऊर्जा हेतु विभिन्न कार्यक्रमों का संचालन सरकारी स्तर पर ऊर्जा मंत्रालय द्वारा किया जा रहा है। भारत की सघन जनसंख्या और उच्च सौर आतपन के कारण यहाँ सौर ऊर्जा एक आदर्श ऊर्जा स्रोत बन सकती है। पिछले कुछ सालों से भारत का सौर ऊर्जा के क्षेत्र में बहुत उमदा प्रदर्शन रहा है। अब यह दुनिया के दस-शीर्ष सौर ऊर्जा उत्पादकों में शामिल हो चुका है। सौर ऊर्जा के क्षेत्र में अपार संभावनाओं को देखते हुए अब विदेशी कम्पनियाँ भी धीरे-धीरे भारत की ओर आकृष्ट हो रही हैं।

पवन ऊर्जा – धरती के खुले हवादार स्थानों पर पवन चक्कियों द्वारा हवा के माध्यम से उत्पन्न की जाने वाली पवन उर्जा भी हरित ऊर्जा का अच्छा विकल्प बनकर उभर रही है। इससे भी बिजली बनाई जाती है। ऐसा माना जाता है कि दुनिया में सकल पवन ऊर्जा के उपयोग में चीन, अमेरिका और जर्मनी के बाद भारत का चौथा स्थान है। भारत की पवन ऊर्जा के उत्पादन में कुल वैश्विक भागीदारी 5.8 प्रतिशत है। भारत सरकार ने 1998 में चेन्नई में एक स्वायत्त अनुसंधान और विकास संस्थान पवन ऊर्जा प्रौद्योगिकी केन्द्र (सी-वैट) की स्थापना की थी। यह संस्थान देश में संपूर्ण पवन ऊर्जा क्षेत्र में सेवाएँ प्रदान करता है और भावी अनुसंधान द्वारा सभी प्रकार की कठिनाइयों के समाधान निकालने और सुधार लाने का प्रयास करता है। इस केंद्र का क्याथार में एक पवन टरबाइन परीक्षण केन्द्र (डब्ल्यूटीटीएस) है, जो डेनमार्क की तकनीकी तथा आंशिक रूप से वित्तीय सहायता से स्थापित किया गया है। यह केंद्र देश में पवन विद्युत के विकास, पवन ऊर्जा के उपयोग की गति को बढ़ावा देने और पवन विद्युत क्षेत्र में तकनीकी विकास के लिये कार्य कर रहा है। इसके अलावा देश में समुद्री तट के इलाकों में पवन ऊर्जा के लिये विशेष आर्थिक क्षेत्र तैयार किए जा रहे हैं।

इसके लिये राष्ट्रीय ऑफशोर पवन ऊर्जा नीति के तहत पवन ऊर्जा के प्लांट ऑफशोर यानी समुद्री सीमा से संलग्न 200 नॉटिकल्स मील के भीतर समुद्र में लगाए जाते हैं। पवन ऊर्जा को एक अतिविकसित, कम लागत वाला और प्रमाणित अक्षय ऊर्जा प्रौद्योगिकी के रूप में मान्यता प्राप्त है। तटवर्ती पवन ऊर्जा प्रौद्योगिकी व्यापक स्तर पर भारत में निरंतर वृद्धि के साथ क्रियान्वित हो रही है और इसके दोहन की अपार संभावनाएँ हैं। नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के अनुसार, वर्ष 2016-17 में पवन ऊर्जा में 5400 मेगावाट की वृद्धि हुई है। वर्तमान में भारत में पवन ऊर्जा से विद्युत उत्पादन 9500 मेगावाट है। भारत की संस्थापित पवन ऊर्जा क्षमता (25,088 मेगावाट) देश की कुल वैद्युत संस्थापित क्षमता का 8.7 प्रतिशत है। भारत में आयातित कोयले से पैदा होने वाली बिजली के मुकाबले पवन ऊर्जा सस्ती पड़ती है।

जल ऊर्जा- जल सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है और जल ऊर्जा ज्वार-भाटा, तरंगों, जलताप और जलविद्युत के रूप में मिलती है। जल ऊर्जा भी हरित ऊर्जा का एक प्रकार है। जल ऊर्जा अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा पैदा करने के लिये उच्च वर्षा के स्तर पर निर्भर करती है। जल चक्र से उत्पन्न बिजली को जलविद्युत कहते हैं। विकसित देशों के विकास में जलविद्युत का योगदान कुल आवश्यकता का 50 प्रतिशत से अधिक रहता है जबकि भारत में यह 15 प्रतिशत के लगभग है। विश्व के सर्वाधिक जलविद्युत उत्पादक देशों में चीन और ब्राजील सबसे ऊपर आते हैं। भारत में जलविद्युत पनबिजली के नाम से अधिक जानी जाती है। यहाँ इसका शुभारम्भ ब्रिटिशकाल के दौरान 1897 ई. में दार्जलिंग के निकट सिद्रापोंग अथवा सिद्राबाद में हुआ माना जाता है।

भारत की जलविद्युत परियोजनाओं में उत्तराखण्ड की भागीरथी नदी की लगभग 2400 मेगावाट की टिहरी परियोजना, महाराष्ट्र की कोयना नदी की लगभग 1956 मेगावाट की कोयना परियोजना, आंध्रप्रदेश और तेलंगाना में कृष्णा नदी की लगभग 1670 मेगावाट की श्रीशैलम परियोजना और हिमाचल प्रदेश में सतलज नदी की लगभग 1500 मेगावाट की नाथपा झाकड़ी परियोजना प्रमुख हैं। इसके अलावा पिछले साल अक्टूबर 2016 हिमाचल प्रदेश के मंडी में तीन जलविद्युत परियोजनाओं-कोलडैम जलविद्युत परियोजना, पार्वती-III जलविद्युत परियोजना और रामपुर जलविद्युत परियोजनाएँ राष्ट्र को समर्पित की गई थीं। इन तीनों जलविद्युत परियोजनाओं की संयुक्त स्थापित क्षमता 1732 मेगावाट है। भारत ने अजरबैजान, भूटान, मलेशिया, नेपाल, ताइवान एवं न्यूजीलैंड में भी जलविद्युत परियोजनाएँ स्थापित करने में सहायता की है।

भू-तापीय ऊर्जा – पृथ्वी के गर्भ में उपस्थित खनिजों के रेडियोधर्मी क्षय और भूसतह द्वारा अवशोषित सौर ऊर्जा के कारण भारी मात्रा में तापीय ऊर्जा बनती है, जिसे भूतापीय ऊर्जा कहते हैं। इस भूतापीय ऊर्जा में मनुष्य की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने की असीम क्षमता है लेकिन इसके दोहन के उपाय अपेक्षाकृत अधिक महँगे हैं। सामान्य तौर पर भूतापीय ऊर्जा का उपयोग भी उद्योगों व घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये बिजली उत्पादन में ही किया जाता है। सबसे पहला भूतापीय विद्युत केंद्र इटली में स्थापित किया गया था। वर्तमान में जापान, इंडोनेशिया, न्यूजीलैंड, इटली, मैक्सिको, फिलीपींस, चीन, रूस, टर्की सहित दुनिया के 24 देशों में भू-तापीय विद्युत पैदा कर रहे हैं और इसकी लगभग 78 देशों में आपूर्ति की जा रही है।

सर्वाधिक 25% भू-तापीय विद्युत आइसलैंड में उत्पन्न की जाती है। दुनियाभर में भू-तापीय संयंत्रों में 10 गीगावाट बिजली उत्पन्न करने की क्षमता है। विश्व में भू-तापीय ऊर्जा संयंत्र का सबसे बड़ा समूह अमेरिका के कैलिफोर्निया में है। विश्व के कुछ देश जैसे अल साल्वाडोर, केन्या, फिलीपींस, आइसलैंड और कोस्टा रिका में विद्युत उत्पादन में 15 प्रतिशत से अधिक भू-तापीय स्रोतों का उपयोग किया जाता है। ज्वालामुखी सक्रिय क्षेत्रों में भूतापीय ऊर्जा एक महत्त्वपूर्ण ऊर्जा स्रोत है। हालाँकि ज्वालामुखी से निकलने वाली ऊर्जा का दोहन और उपयोग करने की तकनीकी अभी कहीं भी विकसित नहीं हुई है। पिछले कई दशकों से भारत में भी भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण के वैज्ञानिक भूतापीय ऊर्जा के शोध व अध्ययन में लगे हुए हैं, जिसके अन्तर्गत यहाँ लगभग 340 तापीय झरनों की पहचान की जा चुकी है। 2015 में यह निर्धारित हुआ कि छत्तीसगढ़ में बलरामपुर जिले के तातापानी में देश का पहला भूतापीय विद्युत् केंद्र स्थापित होगा, तब से इस परियोजना के तहत कार्य जारी है।

हरित ऊर्जा के अन्य विकल्प- बायोमास, जैव ईंधन और लैंडफिल गैस को भी हरित ऊर्जा के अन्तर्गत रखा गया है। ऐसा माना जा रहा है कि लकड़ी के बुरादे, कचरे और जलाए जा सकने योग्य कृषि अपशिष्ट पेट्रोलियम आधारित ईंधन स्रोतों की तुलना में बहुत कम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन करते हैं। अतः इनका उपयोग ऊर्जा स्रोत की तरह किया जा सकता है। इन सामग्रियों को बायोमास या जैवभार के नाम से जाना जाता है, क्योंकि इनमें उपस्थित ऊर्जा सूर्य से संग्रहीत होती है। ऐसा भी देखा जाता है कि कभी-कभी यह बायोमास कार्बनिक सामग्री जलाए जाने के बजाय ईंधन में परिवर्तित करके भी इस्तेमाल किया जा सकता है। तब इसे जैव ईंधन की संज्ञा दी जाती है। इसके उल्लेखनीय उदाहरणों में इथेनॉल और बायोडीजल शामिल हैं।

आजकल लैंडफिल गैस (एलएफजी) को भी हरित ऊर्जा विकल्प की तरह देखा जाने लगा है। वास्तव में एलएफजी लैंडफिल क्षेत्र में भरे गए कचरे के कार्बनिक पदार्थों के अपघटन से बना एक प्राकृतिक उप-उत्पाद है। एलएफजी लगभग 50 प्रतिशत मीथेन, 50 प्रतिशत कार्बन डाइऑक्साइड और गैर-मीथेन कार्बनिक यौगिकों की अत्यंत सूक्ष्म मात्रा से बनी होती है। आजकल बढ़ रहे लैंडफिल कचरे को देखते हुए वैज्ञानिक और पर्यावरणविद इस नतीजे पर पहुँचे हैं कि उत्पन्न एलएफजी को ऐसे ही वायुमण्डल में छोड़ देने के बजाय उसको एकत्रित और रूपांतरित करके एक ऊर्जा स्रोत के रूप में उपयोग किया जा सकता है। यह पाया गया है कि एलएफजी लैंडफिल से आने वाली दुर्गंधों और अन्य खतरनाक उत्सर्जनों को कम करने में सहायता करती है और यह मीथेन को वातावरण में जाने से रोकने और स्थानीय धुंध और वैश्विक जलवायु परिवर्तन में योगदान करने में भी सहायक है। एलएफजी का उपयोग विद्युत जनरेटर के ईंधन के रूप में किया जा सकता है।

हरित ऊर्जा विकल्प बेहतर क्यों हैं? (Why are green energy better option?)


हरित ऊर्जा के उपर्युक्त विकल्पों और उनकी अक्षय व पुन:निर्मित क्षमताओं ने परम्परागत ऊर्जा स्रोतों से स्वयं को बेहतर साबित कहलाने के लिये बाध्य किया है। हम सभी जानते हैं कि बरसों से दुनिया जिन ऊर्जा स्रोतों को जीवाश्म ईंधन के रूप में उपयोग करती आ रही है, वे एक सीमित संसाधन है। जहाँ एक ओर उनके विकास में लाखों साल लग जाते हैं वहीं उनके अत्यधिक दोहन से समय के साथ-साथ वे कम होते जाएँगे। एक और सबसे बड़ी बात यह है कि हरित ऊर्जा विकल्पों का जीवाश्म ईंधन की तुलना में पर्यावरण पर बहुत कम दुष्प्रभाव पड़ता है, क्योंकि इनसे ग्रीन हाउस गैसें नहीं निकलती हैं।

इसके अलावा जीवाश्म ईंधन प्राप्त करने के लिये प्रायः पृथ्वी पर उन स्थानों में खनन अथवा ड्रिलिंग करने की आवश्यकता होती है जो पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील होते हैं। हरित ऊर्जा विकल्प पूर्णतया निःशुल्क तथा प्रचुरता में सरलता से उपलब्ध हैं। इन पर जीवाश्मीय ईंधनों, जैसे-तेल, गैस या नाभिक ईंधनों जैसे यूरेनियम आदि की तरह किसी भी देश या वाणिज्यिक प्रतिष्ठान का एकाधिकार नहीं होता है। अतः इनकी आपूर्ति भी निर्बाध होती रहती है और हरित ऊर्जा मूल्यप्रभावी बन जाती है। इस तरह हरित ऊर्जा विकल्प विशुद्ध-रूप से सरल, सर्वव्याप्त और पूरी दुनिया में आसानी से उपलब्ध हैं, जिसमें ग्रामीण और सुदूर वे इलाके भी शामिल हैं, जहाँ अभी तक बिजली भी नहीं पहुँच पाई है।

हरित ऊर्जा विकल्प लोकप्रिय क्यों नहीं हैं? (Why is green energy not popular?)


हरित ऊर्जा विकल्पों की प्रौद्योगिकियों में निरंतर विकास हो रहा है, फिर भी वे लोकप्रिय नहीं बन पा रहे हैं। सौर पैनलों, पवन टर्बाइनों और हरित ऊर्जा के अन्य स्रोतों का उपयोग मुख्य रूप से बिजली का उत्पादन करने में किया जा रहा है। परन्तु इन सभी विकल्पों में एक उभय-निष्ठ तथ्य जो उभरकर आता है, वो इनका अधिक ख़र्चीला होना है, क्योंकि इनके उत्पादन में भारी निवेश की आवश्यकता होती है। लोगों में हरित ऊर्जा को लेकर जागरुकता का अभाव है, जिससे उपलब्ध‍ क्षमता के बावजूद भी हरित ऊर्जा का दोहन काफी कम है।

लोग इन विकल्पों के साथ विश्वास नहीं बैठा पा रहे हैं क्योंकि बरसों से परम्परागत ऊर्जाओं के उपयोग करने की आदत पड़ गई है और उनसे भावनात्मक जुड़ाव हो गया है। चूँकि हरित ऊर्जा की मात्रा में अचानक परिवर्तन हो सकते हैं, अतः यह भी संभव है कि मांग या आवश्यकता के समय इनकी उपलब्धता उत्पादन को प्रभावित करे। अतः इनकी विश्वसनीय आपूर्ति के कारण हरित ऊर्जा की व्यवहारिक असुविधा को लेकर आशंका बनी रहती है। जैसा कि किसी भी नई तकनीक की शुरूआत के साथ होता है, वही हरित ऊर्जा विकल्पों के साथ भी हो रहा है। इनकी वास्तविक क्षमताओं और नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोत के तौर पर इनकी विश्वसनीयता को लेकर प्रश्नचिन्ह लगना स्वाभाविक है।

हरित ऊर्जा विकल्पों हेतु भारत कितना तैयार है? (How much is India ready for green energy options?)


इस समय भारत ने नवीकरणीय ऊर्जा के नाम पर हरित ऊर्जा विकल्पों के सार्थक दोहन के लिये एक विस्तृत रणनीति तैयार की हुई है। इसके तहत 2022 तक 175 गीगावाट क्षमता स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया है, जो वर्तमान के 46 गीगावाट का चार गुना है। भारतीय वैज्ञानिक, नीतिनिर्माता और पर्यावरणविद भी हरित ऊर्जा की नई-नई तकनीकों और मॉडलों को तैयार करने में व्यस्त हैं। सौर, पवन और जल विद्युत प्रणालियों में विश्वसनीय और लागत प्रभावी प्रौद्योगिकी प्राप्त करने और सम्बद्ध सुविधाओं एवं क्षमताओं को विकसित और सुदृढ़ बनाने के लिये अन्तरराष्ट्रीय सहयोगों का आदान-प्रदान किया जा रहा है। भारत की फोटोवोल्टिक क्षमता को बढ़ाने के लिये सोलर पैनल निर्माण उद्योग को 210 अरब रूपए (3.1 अरब अमेरिकी डॉलर) की सरकारी सहायता देने की योजना है। इस योजना के तहत भारत 2030 तक कुल ऊर्जा का 40 फीसदी हरित ऊर्जा से पैदा करने के लिये प्रतिबद्ध है।

हरित ऊर्जा ही भविष्य का एकमात्र विकल्प क्यों है? (Why is green energy only the only option for the future?)


पिछले कुछ दशकों में विश्व की निरंतर बढ़ रही औसत जनसंख्या, आधुनिक तकनीकी विकास और विद्युतीकरण की बढ़ती दर के कारण विश्वस्तर पर ऊर्जा की मांग भी उतनी ही तेजी से बढ़ी है। पर्यावरण विशेषज्ञों का विश्वास है कि इस मांग को हरित ऊर्जा के विभिन्न विकल्पों के माध्यम से पूरा किया जा सकता है। लोगों के बेहतर स्वास्थ्य, कोयले जैसे पारम्परिक ईंधन के बढ़ते खर्च पर नियंत्रण, विश्वव्यापी ऊष्णता तथा अम्लीय वर्षा और कार्बन - डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को कम करके पर्यावरण की सुरक्षा के लिये अब हरित ऊर्जा ही भविष्य का एकमात्र विकल्प रह गया है।

हरित ऊर्जा के भविष्य को कैसे सुनिश्चित करना होगा? (How to ensure the future of green energy?)


विश्व में सौर ऊर्जा से लेकर समुद्र तटीय क्षेत्रों में पवन और जल ऊर्जा के विस्तार के साथ-साथ भूतापीय ऊर्जा से विद्युत उत्पादन द्वारा दुनिया की अधिकतम बिजली की जरूरत को पूरा किया जा सकता है। हरित ऊर्जा अपनाने से विश्व पर्यावरण की गुणवत्ता में सुधार से वायु प्रदूषण को कम किया जा सकता है। इसके लिये हरित ऊर्जा के बड़े पैमाने पर उपयोग के साथ-साथ इसकी भंडारण क्षमता के सशक्तीकरण की भी आवश्यकता है। हरित ऊर्जा को लोगों द्वारा स्वेच्छा से अपनाने के लिये इससे भावनात्मक और सामाजिक तौर पर जुड़ना होगा। इनकी विश्वसनीयता को बढ़ावा मिलने के लिये हरित ऊर्जा संसाधनों पर अधिक नियंत्रण और बेहतर प्रदर्शन सुनिश्चित करना होगा।

E. mail: shubhrataravi@gmail.com


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