सत्ता के दुश्चक्र में फिर डूबेगा कोसी क्षेत्र

28 Jun 2011
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कोसी फिर अपनी गति से अपने इलाके में खेलने को बेताब है। सहरसा और पूर्णिया प्रमंडलों के सात जिलों के अलावा खगडिय़ा जिले की आबादी त्राहिमाम् कर रही है। मगर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ-साथ बिहार की राजनीतिक और प्रशासनिक सत्ता का हर पुर्जा अभी से नेपाल और केंद्र सरकार को कोसने लगा है।

‘हमर किस्मत हराएल कोसी धार मे/हम त’ मारइ छी मुक्का कपार मे’, वर्ष 2008 के कुसहा जलप्रलय के बाद कोसी क्षेत्र में - मुख्यत: पूर्णिया व सहरसा प्रमंडलों के सात जिलों में - यह लोकगीत सहज ही सुनाई दे देता था। लोकगीत के इस मुखड़े का शाब्दिक अर्थ है: मेरी किस्मत तो कोसी की धारा में खो (लुट) गई, मैं अब केवल अपना सिर ही पीट रहा हूं (पीट सकता हूं)। पचास-पचपन साल बाद नदियों की क्रीड़ा भूमि उत्तर बिहार ने कोसी का ऐसा जल-प्रलय उस साल 18 अगस्त को देखा था। इलाके की जीवन शैली, आर्थिक गतिविधि, खेती और पशुपालन की शैली और क्षेत्र का भूगोल उससे बदल गया। पिछले ढाई सौ वर्षों में कोसी ने कई बार अपनी धारा बदली है। जितनी बार इसने धारा बदली है, इलाके में आमूल परिवर्तन के साथ हर बार लाखों परिवारों की किस्मत लूटती हुई आगे- गंगा का ओर- बढ़ती चली गई। क्षेत्र की नियति देखिए, कोसी इस बार भी बड़ी आबादी की किस्मत लूटने को अभी से बेताब लग रही है और बिहार का सुशासन क्या कर रहा है?

यह वास्तविकता है कि बिहार में बाढ़ की तबाही का कारण नेपाल का पानी है। गंगा के साथ-साथ पुनपुन आदि कुछ नदियों और सोन नद को छोड़ दें, तो कोसी सहित प्राय: तमाम बड़ी और खतरनाक नदियों का जलग्रहण क्षेत्र नेपाल व तिब्बत है। चूंकि नेपाल के बनिस्वत बिहार नीचे है इसीलिए नेपाल के पानी का बिहार में आना फिलहाल तो नहीं रोका जा सकता। लेकिन सूबे की सत्ता राजनीति है कि नदियों में जलप्रवाह बढऩे के लिए भूगोल पर नजर डालने के बदले नेपाल को जिम्मेवार बताकर अपना पल्ला झाड़ लेती है। यदि केंद्र सरकार अपनी पार्टी की नहीं रही तो असहयोग का आरोप लगाकर तरकश खाली करने से बाज नहीं आती। सो, बाढ़ से बचाव के उपाय कम और बाढ़ के नाम पर राजनीति अधिक होती रही है। इस बार भी यही हो रहा है। आषाढ़ के आने के साथ ही उत्तर बिहार की कई नदियों में उफान आ गया है। हालांकि कोसी में अब तक उफान नहीं आया है, पर इसका रंग-ढंग भी खतरनाक होता जा रहा है।

कहते हैं, कोसी भूगोल के साथ खेलती है। पर, इस खेल को नियंत्रित करने में सरकार की सगुन सक्रियता ही कोसी क्षेत्र की कोई दो करोड़ की आबादी को बाढ़ के मौसम में दिन की चैन और रात की नींद दे सकती है। लेकिन राज्य सरकार ने अब तक जो कुछ किया है, उससे कोसी क्षेत्र की आबादी की निश्चिंतता खत्म हो गई है। वस्तुत: पायलट चैनल के नाम पर इस साल कोसी में बाढ़ से बचाव के काम काफी कम हुए। कोसी पूर्वी तटबंध की तरफ चली गई है और इसे मजबूत बनाने के लिए व्यापक स्तर पर मरम्मत कार्य की दरकार रही है। पश्चिमी तटबंध में दर्जनों स्थानों पर इसे मजबूत बनाने व इसकी मरम्मत का काम किया जाना जरूरी है। पर, पूर्वी तटबंध की हालत तो भीमनगर बराज से ऊपर (अर्थात नेपाल में) कई स्थानों पर खतरनाक है। बराज से नीचे अर्थात बिहार में पूर्वी तटबंध तो कोई तेइस किलोमीटर तक खतरनाक ढंग से जर्जर है।

कोसी की बाढ़ से परेशान लोगकोसी की बाढ़ से परेशान लोगसुपौल जिले में नवहट्टा और राजनपुर से लेकर बराज तक स्थिति कतई अच्छी नहीं है। कोसी के दोनों तटबंधों के अंदर के सुरक्षा बांधों में कोई आधे दर्जन स्थानों पर आई दरारों को पाटा नहीं जा सका। तटबंधों और सुरक्षा बांधों से जल का रिसाव मानसून से पहले शुरू हो गया था। इसी तरह बरसात से पहले ही पूर्वी तटबंध के सुरक्षा बांधों के कई स्तरों को कोसी की तेज धारा ने लील लिया था। पर, इनमें कुछ की मरम्मत तो हुई, बाकी राम भरोसे ही हैं। बिहार सरकार स्वीकर करे या नही, पर तथ्य यह है कि एक पायलट चैनल की खुदाई के नाम पर कोसी के अन्य बाढ़ बचाव कार्यों की घोर उपेक्षा की गई। पायलट चैनल के बारे में मोटी सूचना। भीमनगर बराज से लेकर कुसहा तक नदी को बीच में लाने के लिए एक नई धार बनाई जानी है। इससे कोसी को पूर्वी तटबंध से- कुसहा जलप्रलय के साथ वह जहां पहुंच गई है- हटा कर उसकी पुरानी धार में वापस लाया जा सकेगा। पायलट चैनल का प्रस्ताव कुसहा जलप्रलय के समय ही आया था और काम आरंभ भी हो गया। पर, नेपाल के स्थानीय लोगों के प्रतिरोध के कारण यह कभी रुकता और कभी चलता रहा।

इस साल मई के प्रथम पखवाड़े में फिर विवाद पैदा हुआ और काम रुक गया था। नेपाल के साथ बातचीत के फलदायक होने तक वर्षा आ गई, काम रुक गया पर, सिक्के का दूसरा पहलू यह है कि समय पर ड्रेजिंग मशीन उपलब्ध नहीं होने के कारण नदी का गाद हटाने का काम देर से आरंभ हुआ, फिर स्थानीय कारणों से ठीक से चला नहीं। जब तक नदी से गाद (सिल्ट) नहीं निकलेगी, तब तक खुदाई नहीं होगी। ऐसे में पायलट चैनल का काम तो रुकना ही था। पायलट चैनल दीर्घकालीन योजना है, पर बिहार सरकार ने इसे ही तात्कालिक और जरूरी बना दिया। नीतीश कुमार को इतिहास पुरुष- भगीरथ- बनाने के प्रयास में कोसी क्षेत्र की दो करोड़ की आबादी का सुख-चैन छीन लिया गया। आज की वास्तविकता यह है कि ’08 के जलप्रलय में तबाह सहरसा और पूर्णिया प्रमंडलों के सात जिलों के अलावा खगडिय़ा जिले की आबादी त्राहिमाम् कर रही है। मगर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ-साथ बिहार की राजनीतिक और प्रशासनिक सत्ता का हर पुर्जा अभी से नेपाल और केंद्र सरकार को कोसने लगा है लेकिन इस आरोप-प्रत्यारोप से कोसी को क्या, वह अपनी गति से अपने इलाके में खेलने को बेताब है।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।
Email:- sukant.nagarjuna@gmail.com


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