सत्याग्रह से स्वच्छाग्रह तक

स्वच्छ भारत
स्वच्छ भारत

स्वच्छ भारत (फोटो साभार - इण्डियन एक्सप्रेस)देश प्रतीकात्मक रूप से स्वच्छता के धागे में पिरोया हुआ है, जहाँ हर कोई राष्ट्र के निर्माण में अपनी सेवाएँ दे रहा है। यह महात्मा के लिये सबसे अधिक सन्तोषप्रद होगा।

भारत को आकार देने में महात्मा गाँधी की तुलना में किसी अन्य व्यक्ति का इतना व्यापक प्रभाव नहीं रहा है। वे निर्णय लेने वाले व्यक्ति होने के साथ एक दूरदर्शी भी थे। उन्होंने भारत के निर्माण के लिये बिना थके जो कठिन परिश्रम किया वह इस हिंसक और अस्थिर दुनिया को शान्ति और सद्भाव के लिये आलोकित करता रहेगा।

उन्होंने एक ऐसे भारत के लिये कठिन परिश्रम किया जहाँ कमजोर तबके के लोगों की भलाई और गरिमा को मजबूती के साथ सर्वोच्च प्राथमिकता मिलेगी। उन्होंने एक ऐसे संयुक्त भारत के निर्माण के लिये कठिन परिश्रम किया जहाँ राष्ट्र निर्माण के साझा लक्ष्य के लिये सभी क्षेत्रों से जुड़े लोग एक साथ मिलकर देश की सेवा करेंगे। और राष्ट्र से परे उन्होंने विश्व में एक सामूहिक चेतना को मूर्त रूप दिया।

इस सप्ताह जैसाकि हम गाँधी के जन्म दिवस की 150वीं वर्षगाँठ मना रहे हैं, यही अवसर है उन गाँधीवादी कदमों और विचारों को प्रतिबिम्बित करने का और उनके सपनों के भारत के निर्माण की दिशा में की गई प्रगति के मूल्यांकन का। इस तरह यदि एक टाइम मशीन गाँधी को 2018 का भारत दिखा पाती, तो वे क्या देखते?

आज हम उभरती हुई अर्थव्यवस्था की संक्रमण के सबसे उच्चस्थ बिन्दु पर हैं और हमें विश्व की एक आर्थिक महाशक्ति माना जा रहा है। हमने ढेर सारे सामाजिक सूचकांकों में भारी प्रगति की है। गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों के प्रतिशत में लगातार कमी आ रही है। शिशु मृत्यु दर आज तक के इतिहास में सबसे कम है। साक्षरता दर में लगातार वृद्धि हो रही है। लिंगानुपात में सुधार हो रहा है और जीवन प्रतिशत बढ़ रही है। गाँधी इन सभी आँकड़ों को देखकर बहुत खुश होंगे।

लेकिन, निःसन्देह उन्हें किसी अन्य से ज्यादा कौन सी चीज खुशी देगी, मैं यह अनुमान लगाने की हिम्मत करता हूँ, यह वास्तविकता कि भारत के लोग, एक विषय जो उनके दिल के काफी करीब था- स्वच्छता और सफाई, उसके प्रति लामबन्द हो गए हैं। गाँधी ने राजनीतिक स्वाधीनता के साथ ही स्वच्छता को भी उतनी ही तरजीह दी थी।

आज, भारत गन्दगी जैसे खुले में शौच के खिलाफ लड़ाई लड़ रहा है और जीत भी रहा है, ठीक उन्हीं मूल्यों और तरीकों को अख्तियार कर जिसे गाँधी के नेतृत्व ने राजनीतिक स्वाधीनता पाने के लिये जन समूह को संगठित करने के लिये किया गया था। वह तब सत्याग्रह था, आज यह स्वच्छाग्रह है लेकिन लोगों द्वारा बदलाव के लिये किये जा रहे प्रयास के केन्द्र में वही भावना है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में लाल किले से किये गए अपने सम्बोधन शौचालयों के सन्दर्भ में यह संकल्प लेकर कि पाँच वर्ष की छोटी सी अवधि में वे सम्पूर्ण भारत को वे खुले में शौच से मुक्त कर देंगे अभूतपूर्व प्रतिबतद्धता दिखाया था। उनकी इस प्रतिबद्धता ने गाँधी के दिल को जरूर छुआ होगा। गाँधी ने कई अवसरों पर खुले में शौच करने से होने वाली हानियों के बारे में खुल कर बोला था।

1925 में उन्होंने नवजीवन साप्ताहिक के माध्यम से कहा था कि कई बीमारियों की वजह, मलमूत्र को कहीं भी और किसी भी जगह त्यागने की हमारी बुरी आदत है। इसीलिये मैं विश्वास करता हूँ कि इन जरूरी क्रियाओं से निवृत होने के लिये साफ-सुथरी जगह निहायत ही जरूरी है।

फिर भी आजादी के कई दशकों बाद भी, गन्दगी और खुले में शौच एक अनकही सच्चाई बना रहा और विकास से सम्बन्धित प्राथमिकताओं में सबसे निचले पायदान पर आता रहा। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में जब से स्वच्छता को प्रधानमंत्री ने विकास के एजेंडे में प्राथमिकता दी है, देश के जहन में यह पहली जरूरत बन गया है। आखिरकार इसे वह पहचान मिली जिसका वह हकदार था और जिसका महत्त्व गाँधी ने अपने समय में समझा था।

स्वच्छता की बयार पूरे देश में बड़ी ही तेजी के साथ बह रही है। आदमी या औरत, बूढ़े या जवान, अमीर या गरीब सभी स्वच्छता के चैम्पियन बन गए हैं। देश के हर कोने में असाधारण नेतृत्व की कई सारी कहानियाँ हैं। लोग अपनी सदियों पुरानी आदत को छोड़ रहे हैं और दूसरों को भी ऐसा करने के लिये प्रेरित कर रहे हैं।

स्वच्छता का कीड़ा हर क्षेत्र के लोगों को काट चुका है चाहे वह स्कूल हो या हॉस्पिटल या पर्यटन स्थल या इनके बीच की कोई चीज। गाँधी के लिये, यह जोश और उमंग आजादी के आन्दोलनों की याद ताजा कर देती है। इससे भी महत्त्वपूर्ण यह है कि देश आजादी के सांकेतिक धागे में पिरोया है जहाँ लोग राष्ट्र निर्माण में अपनी सेवाएँ दे रहे हैं। यह बात गाँधी को बहुत शान्ति देती होगी।

स्वच्छ भारत मिशन, ने आजादी के बाद से 2014 तक जितना हासिल किया गया था उससे बहुत ज्यादा हासिल कर चुका है। भारत में स्वच्छता का प्रतिशत, जो 2014 में 40 से भी कम था वह आज बढ़कर 94 प्रतिशत से भी ज्यादा हो गया है।

देश के 50 करोड़ लोगों ने सुरक्षित स्वच्छता को अपनाया है और खुले में शौच से तौबा किया है। वहीं, देश के तीन चौथाई गाँवों में आज कोई भी खुले में शौच नहीं करता है। लगभग पाँच लाख स्वच्छाग्रही और बड़ी संख्या में स्वच्छता के समर्थक इस जनजागरण के सिपाही हैं। इस बात पर कि अब कभी भी खुले में शौच नहीं करेंगे समाज के बहुत सारे समुदायों के लोग एकमत हैं।

और खुले में शौच करने से मुक्ति हेतु जारी यह आन्दोलन, ग्रामीण घरों में स्वास्थ्य के साथ ही उनकी आर्थिक प्रगति को भी बढ़ावा दे रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का यह अनुमान है कि स्वच्छ भारत मिशन, 2019 तक तीन लाख से अधिक जिन्दगियों को बचाएगा। वहीं यूनिसेफ का अनुमान है कि खुले में शौच से मुक्ति के कारण हर ग्रामीण घर को साल में 50,000 रुपए की बचत होगी। भारत विश्व में अपनी उम्र की तुलना में छोटे कद के बच्चों के लिये बदनाम है, सुरक्षित स्वच्छता से इस संख्या में धीरे-धीरे कमी आएगी।

यदि गाँधी आज भारत आते तो वे यह देखकर कि भारत ने स्वच्छता के क्षेत्र में पिछले चार सालों में कितनी प्रगति की है निश्चित ही खुश होते। हमने इस समस्या से जूझ रहे दूसरे देशों के लिये जो उदाहरण पेश किया है उसे देखकर वे बहुत गौरवान्वित होते।

स्वच्छ भारत मिशन के चौथे वर्षगाँठ के अवसर भारत, महात्मा गाँधी इंटरनेशनल सेनिटेशन कन्वेंशन के साथ ही महात्मा गाँधी के 150वें जन्मदिवस की भी शुरुआत करने जा रहा है ताकि पूरी दुनिया के साथ वह अपनी इस कहानी को बाँट सके और प्रेरित कर सके कि वे भी हमारे जैसी स्वच्छता को प्राथमिकता दें। यह हमारी तरफ से उस महान आत्मा के लिये एक छोटी सी श्रद्धांजलि है जिसने यह सपना देखा कि एक देश के साथ पूरी दुनिया भी गुणवत्ता युक्त स्वच्छता के प्रति समर्पित हो।

अनुवाद: राकेश रंजन

 

 

 

TAGS

mahatma gandhi international sanitation convention, mahatma gandhi, satyagraha, swacch bharat mission, sanitation, indicator of good health, economy, life expectancy, mortality rate, sex ratio, open defecation free india, narendra modi, world health organisation, unicef, mahatma gandhi international sanitation convention

 

 

 

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading