सुनिश्चित जलाधिकार से ही बचा सकते हैं हम नदियों को

31 Aug 2015
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गंगा जैसी नदी जिसे हम अपनी माँ कहते हैं, उस नदी में वाराणसी में तीन बड़े नालों के जल को गिराने का काम अंग्रेजों के समय आरम्भ हुआ। आज गंगा प्रदूषित नदियों में एक है। भारतीय संस्कृति में तो कम पानी में भी जीना जानते हैं। पानी और नदियों के कब्जे के सवाल पर आज कई देशों और राज्यों में युद्ध की स्थिति है। जल का सवाल महत्त्वपूर्ण सवाल है। बावजूद इसके जल की सुरक्षा के सवाल पर हमारे देश में कोई कानून नहीं है। जल सुरक्षा के मुद्दे को किस प्रकार कानूनी जामा पहनाया जाय और ऐसा क्या किया जाये कि सरकार इसे कानूनी स्वरूप प्रदान करने के लिये बाध्य हो। इस ज्वलन्त मुद्दे पर नई दिल्ली स्थित गाँधी शान्ति प्रतिष्ठान के समागार में जल जोड़ो अभियान और जल बिरादरी की ओर से जल संरक्षण, संवर्धन हेतु दो दिवसीय 'जल सुरक्षा अधिनियम विमर्श राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया गया।

इस कार्यशाला में देश के विभिन्न हिस्सों से आये जलयोद्धाओं और पानीदारों ने हिस्सा लिया। कार्यशाला के प्रथम दिन जहाँ इस कानून के प्रारूप पर चर्चा हुई वहीं इसे लागू करवाने के लिये सांसदों से संवाद, जन-जागरुकता जैसे कई अभियान चलाने के कार्यक्रम तय किये गए।

दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का उद्घाटन प्रसिद्ध समाजकर्मी वासव राव पाटिल ने किया। अपने सम्बोधन में उन्होंने कहा कि भूमंडलीकरण के दौर में प्राकृतिक संसाधनों की जिस तरह लूट मची हुई है वह आने वाले समय के लिये बहुत बड़ी चुनौती है। प्राकृतिक संसाधनों का प्रबन्धन कैसे हो, यह सवाल महत्त्वपूर्ण है।

हाल में स्टॉकहोम वाटर पुरस्कार से सम्मानित राजेन्द्र सिंह ने कहा कि भारत में पानी का सम्मान है। पंच महाभूतों के मूल में पानी है। इसका अनुशासित उपयोग जरूरी है।

उन्होंने कहा कि गंगा जैसी नदी जिसे हम अपनी माँ कहते हैं, उस नदी में वाराणसी में तीन बड़े नालों के जल को गिराने का काम अंग्रेजों के समय आरम्भ हुआ। आज गंगा प्रदूषित नदियों में एक है। पानी के सवाल को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति में तो कम पानी में भी जीना जानते हैं।

पानी और नदियों के कब्जे के सवाल पर आज कई देशों और राज्यों में युद्ध की स्थिति है। उन्होंने कहा कि जलाधिकार सुनिश्चित कर ही हम अपनी नदियों और जलसंरचनाओं को बचा सकते हैं। तैयार जल सुरक्षा कानून के प्रारूप की खासियत बताते हुए कहा कि यह विकेन्द्रीत व्यवस्था और समुदाय आधारित व्यवस्था की वकालत करता है।

देश के कई राज्यों की सरकारों ने इस दिशा में काम कराना आरम्भ कर दिया है। इसके अलावा यह भी प्रावधान किया गया कि जल संरचना की ज़मीन का इस्तेमाल उसके लिये हो, ऐसी व्यवस्था की गई है।

सुप्रसिद्ध गाँधीवादी एस.एन सुब्बाराव ने कहा कि पानी के सवाल पर पूरी दुनिया को एक होना चाहिए। उन्होंने कहा कि आज पूरी दुनिया को जोड़ने की शक्ति की जरूरत है। तोड़ने की शक्तियाँ भाषा, रंग, भेद, लिंग, सम्प्रदाय के नाम पर सक्रिय है। पानी का ही एक ऐसा सवाल है, जिससे लोगों को जोड़कर हर तरह के भेदभाव मिटाए जा सकते हैं। उन्होंने इस मौके पर 'जय जगत' प्रस्तुत किया।

पुणे से आए अनुपम शर्राफ ने कहा कि पूरे देश में नदी के संरक्षण के लिये कोई कानून नहीं है। देश में नदियों के साथ तीन प्रमुख समस्याएँ हैं- शोषण, अतिक्रमण और प्रदूषण। देश में तीन हजार से अधिक कानून हैं, लेकिन नदियों के सरंक्षण के लिये एक भी कानून नहीं है। देश के जलसंरचनाओं का सूचीकरण, मैपिंग करके उसे बचाने की मुहिम की शुरुआत की जा सकती है। हर पंचायत जल संरचनाओं की सूची होनी चाहिए। साथ ही वहाँ के लोगों को भागीदार बनाया जाना चाहिए।

उन्होेंने जलसंसद के गठन की भी आवश्यकता बताई। इस कानून का ड्राफ्ट बनाया है। उन्होंने कहा कि ऐसा कोई क्षेत्र नहीं हैं, जहाँ नदियों की हत्या नहीं की जाती है। नदियों को बचाने के लिये काफी कोशिश करनी पड़ती है और परिणाम भी सकारात्मक नहीं आते हैं। कानून में नदियों के संरक्षण के उपाय भी सुझाए गए हैं। नदियों के सरंक्षण से भूजल सुरक्षित रह पाएगा, साथ ही जैवविविधता कायम रख सकते हैं।

वहीं इंदिरा खुराना ने कहा राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय परिस्थितियों को रेखांकित करते हुए कहा कि सरकारी आँकड़े और सरजमीनी हकीक़त में काफी फर्क है। पानी में फ्लोराइड, आर्सेनिक, आमोनियम, नाईट्रेट जैसे तत्व मिल रहे हैं और जल में जहर की तरह घुलकर इंसानी जिन्दगी को लीलने पर आमादा है तो फिर स्वच्छ और सुरक्षित जल उपलब्ध कराने का दावा कैसा?

महाराष्ट्र के लोक संघर्ष मोर्चा की महासचिव प्रतिभा सिंदे ने कहा कि अच्छे दिनों का सब्जबाग सरकार ने दिखाई थी। ज़मीन और पानी के साथ क्या हो रहा है। यह जगजाहिर है। महाराष्ट्र की स्थितियों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि वहाँ सरकार ने जल के कानून की प्राथमिकता में पहले नम्बर पर उद्योग को रखा और दूसरे नम्बर पर पेयजल को।

काफी संघर्ष के बाद पेयजल के मुद्दे को नम्बर एक पर रखवाने में कामयाबी मिली। उन्होंने इस अभियान के साथ किसानों को जोड़ने की बात कही। उन्होेंने कहा कि जल का सवाल काफी महत्त्वपूर्ण है। इसके लिये जल सुरक्षा जरूरी है। सभागारों से बाहर निकल कर सड़कों पर भी ताकत दिखानी होगी।

वहीं जनक ने जल सुरक्षा के सवाल पर जल और स्वच्छता के मानक को रेखांकित किया। अनिल शर्मा ने बुन्देलखण्ड की स्थिति को विस्तार से रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि अवैध खनन के कारण नदियाँ बर्बाद हो रहीं हैं केदारघाटी से आई सुशीला भंडारी ने विकास के मॉडल पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि केदारघाटी भूकम्प प्रभावित रहने के बावजूद वहाँ विस्फोट कर सुरंग बनाए जा रहे हैं। इससे पहाड़ तो नष्ट हो ही रहे हैं। साथ पहाड़ के जलस्रोत भी।

सुधीर विद्यार्थी ने सुझाव दिया कि इस सवाल पर सांसदों को गोलबन्द किया जाय। कार्यक्रम का संचालन करते हुए जलजन जोड़ो अभियान के राष्ट्रीय समन्वयक संजय कुमार​ सिंह ने कहा कि जल सुरक्षा कानून का प्रारूप तैयार किया गया है। इसकी अहमियत दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। देश के अधिकांश हिस्से सूखे की चपेट में हैं।

लगातार भूजल के स्तर में गिरावट आ रही है। उन्होंने कानून का प्रारूप तैयार होने से लेकर राज्य सरकारों से संवाद स्थापित करने और राज्यों में जल सुरक्षा को अमल में लाए जाने की चर्चा की। उन्होंने कहा कि यह अनुकूल समय है कि कानून को लागू करने के लिये दबाव बनाया जाय।

राष्ट्रीय कार्यशाला में आर सौकर चर्चित कवयित्री सोमा विश्वास, सर्वसेवा संघ के आदित्य पटनायक, एमपी सिंह, अशोक कुमार सिंन्हा, राजीव कोथ्रिया, भगवान सिंह परमार, संजय राणा, मो यासीन, गौतम बोरा, नवनीत सिंह, कृष्णपाल सिंह सहित देश के विभिन्न हिस्सों से आए लोगों ने हिस्सा लिया। उपस्थित लोगों ने राजेन्द्र सिंह को स्टॉकहोम वाटर प्राइज मिलने पर मुबारकवाद दी। उन्होंने अपने स्टॉकहोम की यात्रा के अनुभवों को साझा किया।

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