सुप्रीम कोर्ट को ठेंगा दिखाकर सरदार सरोवर बाँध की ऊँचाई बढ़ाया

10 Dec 2016
0 mins read
Sardar sarovar dam
Sardar sarovar dam

सर्वोच्च न्यायालय के वर्ष 2000 और 2005 के निर्णयों में खेती योग्य उपयुक्त जमीन का आवंटन, पुनर्वास स्थलों पर सुविधाएँ, पुनर्वास के पहले डूब में नहीं आने की गारंटी, विस्थापन के बाद बेहतर जीवन स्तर आदि के निर्देश दिये गए हैं जिनका हजारों परिवारों के मामले में उल्लंघन किया गया है। भ्रष्टाचार के मामले में हाईकोर्ट के कड़े आदेशों का भी राज्य सरकार उल्लंघन कर रही है। आदिवासी अधिकारों का उल्लंघन किया गया है।

विस्थापितों का पुनर्वास पूरा हुए बगैर सरदार सरोवर बाँध की ऊँचाई बढ़ाने के बाद उसके गेट्स बन्द किये जा रहे हैं। यह सुप्रीम कोर्ट के निर्देश और दूसरे न्यायाधिकरणों के आदेश का खुला उल्लंघन है। नर्मदा बचाओ आन्दोलन की मेधा पाटकर ने बताया कि सरदार सरोवर बाँध के डूब क्षेत्र में 244 गाँव और एक नगर हैं। अभी तक केवल 14 हजार परिवारों का पुनर्वास हो पाया है।

आज भी करीब 45 हजार परिवार डूब क्षेत्र में निवास कर रहे हैं। पुनर्वास में बड़े पैमाने पर धाँधली हुई है जिसे हाईकोर्ट के आदेश पर गठित झा आयोग ने उजागर किया है। पर भ्रष्ट अफसरों और दलालों को पकड़ने के बजाय सरकार उन विस्थापितों को जिम्मेवार ठहराने में लगी है जो धाँधली के शिकार हुए हैं। पूरे मामले को सुप्रीम कोर्ट में उठाया गया है जिस पर इसी महीने सुनवाई होगी।

नर्मदा बचाओ आन्दोलन के हिसाब से पुनर्वास में करीब 1500 करोड़ का घपला हुआ है। मामला हाइकोर्ट में उठा। अदालत के आदेश पर गठित जस्टिस एसएस झा ने घपले की जाँच की। झा आयोग ने नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण एवं राज्य सरकार के अफसरों को जिम्मेवार तथा पुनर्वास में वैकल्पिक जमीन देने के बदले नगद राशि देने की सरकारी नीति को दोषी माना है। आयोग ने जमीन के बदले नगद देने की सरकारी नीति को नर्मदा ट्रिब्युनल के फैसले का भी उल्लंघन माना।

सरकार ने आयोग के निष्कर्षों को स्वीकार कर उचित कार्रवाई करने की बजाय उन विस्थापितों के खिलाफ मुकदमा करने में जुट गई जो अफसरों और दलालों की साजिशों के शिकार हुए हैं। झा आयोग ने करीब सात साल जाँच-पड़ताल करने के बाद दो हजार पन्नों की रिपोर्ट सौंपी जिसे दबाने की भरपूर कोशिश की गई। मामला एक बार फिर हाईकोर्ट के सामने है।

उल्लेखनीय है कि नर्मदा ट्रिब्युनल के 1979 के फैसले के अलावा सर्वोच्च न्यायालय के सन 2000 और 2005 के विशेष फैसले के अनुसार डूब क्षेत्र के सभी गाँवों का पुनर्वास और पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति किया जाना है। इसे लेकर सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप से 1995 से 1999 और 2006 से बाँध के निर्माण कार्य बन्द रहा। परन्तु प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पदभार ग्रहण के 17 दिनों के भीतर बाँध की ऊँचाई 122 मीटर से बढ़ाकर 139 मीटर करने का बगैर किसी सलाह मसविरा के फैसला ले लिया।

निर्माण कार्य जोर-शोर से आरम्भ हो गया और अब उसके गेट्स को बन्द करने की तैयारी है जो डूब क्षेत्र में बचे गाँवों के लिये विनाशकारी है। नर्मदा बचाओ आन्दोलन के 31 वर्षों से निरन्तर संघर्ष का फल यह जरूर हुआ है कि महाराष्ट्र और गुजरात के 14 हजार परिवारों को पाँच एकड़ जमीन के साथ पुनर्वास मिला है। जबकि मध्य प्रदेश के केवल 50 परिवार को ही पुनर्वास का आधा-अधूरा लाभ मिल पाया है।

सरदार सरोवर बाँध की ऊँचाई बढ़ाने के फैसले के बाद आन्दोलन की पहल पर विभिन्न राजनीतिक दलों और स्वतंत्र विशेषज्ञों की एक जाँच दल 2015 में इलाके का दौरा कर जमीनी हकीकतों की तहकीकात करने गया। जाँच दल ने साफ कहा कि केन्द्र सरकार, गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र सरकारों का यह दावा कि सभी परियोजना प्रभावितों का सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार पुनर्वास हो चुका है, पहली नजर में झूठा दिखता है। हजारों परिवार बिना पुनर्वास के डूब का सामना करते दिखते हैं।

परियोजना प्रभावित परिवारों की संख्या एवं स्थान का सही आकलन होने और इन सभी परिवारों की सम्पत्ति के डूबने के पहले बाँध के निर्माण का काम तत्काल रोक देना चाहिए।

जाँच दल ने पाया कि जुलाई 2006 में निगरानी समूह के दौरे के बाद आठ वर्षों में केन्द्र सरकार के किसी प्राधिकार ने वास्तविक स्थिति का आकलन करने के लिये क्षेत्र का दौरा नहीं किया। इस लिहाज से आवश्यक है कि व्यापक भागीदारी पूर्ण मूल्यांकन करने के लिये केन्द्र सरकार उच्च स्तरीय अन्तर मंत्रालीय समिति वहाँ भेजे जिसमें स्वतंत्र विशेषज्ञ भी सम्मिलित हो। ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि बाँध का निर्माण नर्मदा ट्रिब्युनल के आदेश के अनुसार हो।

सर्वोच्च न्यायालय के वर्ष 2000 और 2005 के निर्णयों में खेती योग्य उपयुक्त जमीन का आवंटन, पुनर्वास स्थलों पर सुविधाएँ, पुनर्वास के पहले डूब में नहीं आने की गारंटी, विस्थापन के बाद बेहतर जीवन स्तर आदि के निर्देश दिये गए हैं जिनका हजारों परिवारों के मामले में उल्लंघन किया गया है। भ्रष्टाचार के मामले में हाईकोर्ट के कड़े आदेशों का भी राज्य सरकार उल्लंघन कर रही है। आदिवासी अधिकारों का उल्लंघन किया गया है।

जाँच दल ने इसी तरह सत्रह सूत्री अनुशंसा की है। जिसमें यह भी है कि गुजरात सरकार को निर्मित जलाशय से उपलब्ध जल को निर्धारित योजनाओं के अनुसार खर्च करना चाहिए। इस पानी को बड़े पैमाने पर औद्योगिक उपयोग करने से रोकना चाहिए। आरोप है कि सरकार नर्मदा का पानी अम्बानी अडानी और कोकाकोला जैसे कारपोरेट घरानों को उपलब्ध कराने के फेर में है।

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading