सूचना क्रांति का एक सशक्त माध्यम-सामुदायिक रेडियो स्टेशन

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सूचना देश का विकास कर सकती है तथा देश की संस्कृति को दूसरे देशों तक पहुँचा भी सकती है। बड़े स्तर पर यह कार्य आकाशवाणी के माध्यम से तो हो रहा है, पर जब हम बहुत सारे लोगों की बात कहते हैं तो कई चीजें छूट जाती है और कई लोग छूट जाते हैं। ऐसे में किसी समुदाय को लेकर चला जाय तो सहभागिता आसान हो जाती है। सामुदायिक रेडियो की स्थापना में लागत भी कम आती है और इसका संचालन भी सहज है।

किसी देश के विकास का आधार वहाँ की मौसम, धरती खनिज, वृक्ष तो होते ही हैं, परन्तु सबसे महत्त्वपूर्ण होती है वहाँ रहने वाले लोगों की सोच और उनके विचार। इसी सोच ने जन्म दिया संचार के विभिन्न माध्यमों को जिससे विचारों की अभिव्यक्ति आदान-प्रदान किया जा सके। प्रसारण जन संचार के कई माध्यम है जो सशक्त तो हैं ही साथ ही साथ लोकप्रिय भी हैं और इसमें सबसे सहज उपलब्ध, प्रचलित, सुलभ और सस्ता साधन रेडियो है। भारत अनेकता में एकता में विश्वास रखने वाला एक लोकतांत्रिक देश है। जहाँ एक कोस पर पानी और दो कोस पर वाणी बदल जाती है। ऐसे में एक सूत्र में पिरोये रखने की समस्या गम्भीर विषय बनकर सामने आयी। हिन्दी राष्ट्रभाषा बनी और संचार का सूत्र भी। इसमें रेडियों ने बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी। 1927 में दो प्राइवेट ट्रांसमिटरों द्वारा मुंबई व कोलकाता में प्रसारण प्रारम्भ हुआ। ऑल इंडिया रेडियो 1936 में प्रारम्भ हुआ इसका नाम आकाशवाणी 1957 में पड़ा। शनैः शनैः प्रगति होती गयी, समाचार प्रसारित हुए और फिर अन्य कार्यक्रम। संचार और उसके माध्यम से सूचना भारतीयों के लिये नया स्वाद लेकर आया पर इसमें पारदर्शिता की जरूरत को महसूस करते हुए स्वायत्तता के लिये प्रसार भारती की गठन हुआ, जिसके अन्तर्गत आकाशवाणी और दूरदर्शन आये। भारत वर्ष में 97 लोग रेडियो श्रोता हैं।

ज्यादातर लोग सूचना के लिये पूर्णतः रेडियो पर निर्भर हैं। ऐसे में शाट वेब व मीडियम वेब सफल नहीं हो पा रहे थे। इसलिये एफ. एम. ट्रांसमीटर की कमी को दूर किया गया। 1991 में एफ. एम की शुरुआत हुई। तीन टियर प्रसारण पद्धति पर आकाशवाणी कार्य करती है- राष्ट्रीय, क्षेत्रीय एवं स्थानीय। अब स्थानीय रेडियो/सामुदायिक रेडियो एक नई संकल्पना के रूप में उभर कर सामने आई। सामुदायिक रेडियो को हम इन शब्दों में परिभाषित कर सकते हैं कि यह जनता के लिये, जनता के द्वारा, जनता का है। तो समुदाय जिसे व्यावसायिक मीडिया नजरअन्दाज कर देती है उन्हीं के लिये खासकर यह अस्तित्व में आया। इसके लाइसेंस की सहजता ने सूचना जगत में एक नई क्रांति का आगाज किया है। इसका लाइसेंस मान्यता प्राप्त शिक्षण संस्थान, गैर सरकारी संस्थान, कृषि विज्ञान केन्द्र, विश्वविद्यालय एवं विशेषकर कृषि महाविद्यालय को दिया जाता है। इसकी स्थापना समाज की सुव्यवस्थित संरचना के लिये की गई है जिसमें शिक्षा, कृषि, स्वास्थ्य एवं सामाजिक समस्याओं को विशेष तौर पर ध्यान में रखा गया है। सूचना आधुनिक समाज एवं शासन के सभी गतिविधियों की कुंजी है तथा राष्ट्र एवं व्यक्ति की शक्ति है।

सूचना देश का विकास कर सकती है तथा देश की संस्कृति को दूसरे देशों तक पहुँचा भी सकती है। बड़े स्तर पर यह कार्य आकाशवाणी के माध्यम से तो हो रहा है, पर जब हम बहुत सारे लोगों की बात कहते हैं तो कई चीजें छूट जाती है और कई लोग छूट जाते हैं। ऐसे में किसी समुदाय को लेकर चला जाय तो सहभागिता आसान हो जाती है। सामुदायिक रेडियो की स्थापना में लागत भी कम आती है और इसका संचालन भी सहज है। इसे लोगों की सहभागिता से चलाया जाता है तथा ज्यादा पढ़े-लिखे लोगों की आवश्यकता नहीं होती। यूँ कहिए की औपचारिक शिक्षा की जरूरत नहीं होती इसकी स्थापना के पश्चात् लाइसेंस शुल्क रहित मिल जाती है, जो शुरुआती दौर में पाँच वर्षाें के लिये होती है। जिसे बाद में उपयोगिता के आधार बढ़ाया जा सकता है। इसके माध्यम से यूचना, ज्ञान चर्चा, परिचर्चा, शिक्षा एवं किसी भी प्रकार की जानकारी का सम्प्रेषण किया जा सकता है। ए.आई.आर. कोड का पालन करना अनिवार्य है। सामुदायिक रेडियो एफ.एम. (फ्रीक्वेंसी मॉड्यूलेशन) में चल सकता है। इसका ट्रांसमीटर 100 वाट या उससे कम हो सकता है। विशेष परिस्थितियों में पावर 250 वाट हो सकता है। इसका श्रवण क्षेत्र 10-20 कि.मी. तथा इसके एंटीना की ऊँचाई 30 मीटर होनी चाहिए।

इसके माध्यम से हर प्रकार के कार्यक्रम चलाए जा सकते हैं जो समाज के हित में हों। भारत गाँवों का देश है और ग्रामीण जनता इसकी प्रमुख श्रोता, ऐसे में सूचना क्राँति का कार्य इसके माध्यम से किया जा सकता है। इसके माध्यम से हम निम्नलिखित क्षेत्रों में क्रांति ला सकते हैंः-

1. प्राथमिक एवं अनौपचारिक शिक्षा कहानी, नाट्य एवं प्रहसन के माध्यम से प्रदान की जा सकती है। खेलते-कूदते, नाचते-गाते, पढ़ना-लिखना आसान हो जाता है। अंग्रेजी बोलना एवं लिखना सीखा जा सकता है।

2. स्वास्थ्य से सम्बन्धित जानकारी जैसे बीमारियों से कैसे बचें उसकी रोकथाम कैसे करें। डॉक्टर से मिलने से पहले किये जाने वाले उपाय ओझा, वैद्य के चक्कर में ना फँसे। बीमारी होने पर डॉक्टर से सम्पर्क करें। आस-पास का वातावरण कैसे साफ रखें। कैसे स्वस्थ रहें। टीका कब, कहाँ, कैसे और क्यों लगाएँ। डॉक्टर एवं स्वास्थ्य विभाग के लोगों से परिचर्चा। फोन के माध्यम से मरीजों की डॉक्टरों से सीधी बातचीत एवं समस्या का समाधान।

3. ग्रामीण परिवेश में सबसे बड़ी समस्या युवाओं में कैरियर से सम्बन्धित जानकरी की होती है। उन्हें विभिन्न आयामों की जानकारी देना साथ ही कैरियर से सम्बन्धित कार्यक्रमों में कैरियर काउन्सलर/एक्सपर्ट से मुलाकात और उनकी जिज्ञासाओं का जो पत्र या फोन के माध्यम से आते हैं उसका समाधान करना।

4. समाज में फैली कुरीतियों के विषय में जानकारी तथा पुरानी रूढ़ियाँ एवं भ्रांतियों के कारण होने वाली समस्याओं पर रोशनी डालना एवं जागरुकता की मुहिम चलाना।

5. स्वरोजगार के लिये प्रेरित करना तथा उसके विषय में सिर्फ जानकारी ही नहीं दी जाती बल्कि सम्बन्धित संस्थानों एवं व्यक्तियों से सम्पर्क भी कराया जा सकता है।

6. समाज के कल्याणार्थ कार्य करने के लिये प्रेरित करना जैसे रक्तदान, नेत्रदान, महामारी की जानकारी, एच. आई. वी. से बचाव की जानकारी।

7. स्थानीय भाषा में कार्यक्रम होने के कारण लोगों के साथ आत्मिक जुड़ाव होता है। स्थानीय मुद्दों पर आधारित कार्यक्रम में उनकी सहभागिता को प्रथामिकता दी जाती है।

8. स्थानीय कलाकारों एवं प्रतिभा को तथा स्थानीय संस्कृति एवं कला को प्रोत्साहन। स्थानीय परम्पराओं के विषय में जानकारी दी जाती है।

9. कृषकों की भागीदारी साथ ही उन्हीं के माध्यम से उनके अन्य भाइयों को कृषि से सम्बन्धित जानकारी देना, दिलवाना तथा उनके बीच में सेतू का कार्य कर उन्हें एक दूसरे से मिलाना ताकि उनके बीच कृषि की तकनीकों का आदान प्रदान हो सकें।

10. महिलाओं के लिये हर प्रकार के विशेष कार्यक्रम जिसमें उनके अधिकारों की जानकारी के साथ-साथ कानूनी मुद्दों पर चर्चा। उनके अस्तित्व के लिये पारिवारिक एवं सामाजिक संरचना में उनका योगदान तथा स्थान जिससे बने, उनकी अलग पहचान। उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करने में उनकी मदद करना। उन्हें कार्यक्रमों का हिस्सा बनाना, हर विषय में उनके विचारों को सम्मिलित करना।

11. प्रतिभावान कारीगरों एवं व्यक्तियों की पहचान कर उन्हें मुख्य धारा से जुड़ने में मदद करना एवं उनकी प्रतिभा का सही इस्तेमाल समाज में हो सके, उसकी कोशिश करना।

12. ग्रामीणों को शहर की, राज्य की तथा देश की मुख्य धारा से जोड़ना एवं शहरी लोगों को ग्रामीण परिवेश से परिचित कराना।

13. विशेषज्ञ एवं वैज्ञानिकों से लोगों को जानकारी दिलवाना एवं रू-ब-रू करवाना ताकि वे अपनी समस्याओं के विषय में चर्चा करें एवं उसका निदान करें। किसानों के रोजाना के कृषि कार्यों में आई कृषि समस्याओं का तात्कालिक निदान वैज्ञानिकों के माध्यम से करना।

14. किसान क्लब, स्वयं सहायता समूह, गैर सरकारी संस्थान, सरकारी बैंक तथा वित्त प्रदान करने वाली संस्थाओं के कार्यों की जानकारी प्रदान करना एवं उनका आपस में समन्वय बैठाना या जोड़ना। सामुदायिक विकास कार्य करना।

15. फोन के माध्यम से लोगों से सम्पर्क में रहना एवं उनको भी अन्य लोगों से रू-ब-रू करवाना तथा अपनी बात कहने का मौका प्रदान करना।

16. शब्दकोश को बढ़ावा, ज्ञानवर्धक कार्यक्रम, आचरण की जानकारी, व्यक्तित्व विकास से सम्बन्धित जानकारी एवं व्यक्तित्व निखारने के लिये समय की माँग के अनुसार जानकारी प्रदान करना।

17. कैम्पस रेडियो के रूप में सूचना कार्यालय की तरह कार्य करना। किसी अतिथि का अभिभाषण से लेकर आम कक्षाओं को रेडियो के माध्यम से प्रसारित किया जा सकता है।

18. मौसम का पूर्वानुमान तथा उसकी जानकारी जिससे न सिर्फ किसान बल्कि आम इंसान भी अपनी दैनिक योजना उसी के आधार पर तय करें।

19. सामुदायिक रेडियो के श्रोताओं के क्षेत्र में होने वाले कार्यक्रमों की जानकारी के साथ-साथ अन्य जगहों के कार्यक्रम एवं उत्सवों की जानकारी जिससे वे अपनी सहभागिता दर्ज करा सकें।

20. आर्थिक, सामाजिक एवं माानसिक प्रगाति के लिये हर तरफ की जानकारी साथ ही साथ स्थानीय लोगों की रूचि के अनुसार मनोरंजक कार्यक्रम।

कृषि विश्वविद्यालय जहाँ सामुदायिक रेडियो की स्थापना हुई।

1. बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, राँची
2. तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय, कोयबंटुर
3. चौधरी चरण सिंह कृषि विश्वविद्यालय, हिसार
4. नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रोद्योगिकी विश्वविद्यालय, फैजाबाद
5. इन्दिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर
6. कृषि विश्वविद्यालय, इलाहबाद
7. कृषि विकास केन्द्र, गाजीपुर

विशेष सामुदायिक रेडियो जो अपने आप में अलग है।

1. म्याऊ एम. ई. डब्ल्यू दिल्ली- सिर्फ महिलाओं के लिये। इसमें पुरूषों की नो एंट्री है।
2. संगम रेडियो- दक्षिण भारत में ग्रामीण एवं अशिक्षित महिलाओं के द्वारा संचालित है।

कई सामुदायिक रेडियो आकाशवाणी के टाईम स्लॉट माध्यम से अपने कार्यक्रम दे रहे हैं। ए.आई.डी. नामक एक संस्था भी अपना सामुदायिक रेडियो चला रही है। गढवा पलामू में चलो गाँव की ओर, भी एक ऐसा ही सामुदायिक रेडियो है। बिरसा कृषि विश्वविद्यालय भारत का पहला कृषि विश्वविद्यालय है जिसका अपना सामुदायिक रेडियो है। यह रेडियो झारखण्ड विशेषकर राँची में अपनी पहचान बना चुका है और सामुदायिक रेडियो के उद्देश्यों की पूर्ति कर रहा है। इस रेडियो के कार्यक्रम 107.8 एफ.एम. पर प्रसारित होते हैं।

 

 

 

 

 

 

पठारी कृषि (बिरसा कृषि विश्वविद्यालय की त्रैमासिक पत्रिका) जनवरी-दिसम्बर, 2009

 

(इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें।)

1

उर्वरकों का दीर्घकालीन प्रभाव एवं वैज्ञानिक अनुशंसाएँ (Long-term effects of fertilizers and scientific recommendations)

2

उर्वरकों की क्षमता बढ़ाने के उपाय (Measures to increase the efficiency of fertilizers)

3

झारखण्ड राज्य में मृदा स्वास्थ्य की स्थिति समस्या एवं निदान (Problems and Diagnosis of Soil Health in Jharkhand)

4

फसल उत्पादन के लिये पोटाश का महत्त्व (Importance of potash for crop production)

5

खूँटी (रैटुन) ईख की वैज्ञानिक खेती (sugarcane farming)

6

सीमित जल का वैज्ञानिक उपयोग

7

गेहूँ का आधार एवं प्रमाणित बीजोत्पादन

8

बाग में ग्लैडिओलस

9

आम की उन्नत बागवानी कैसे करें

10

फलों की तुड़ाई की कसौटियाँ

11

जैविक रोग नियंत्रक द्वारा पौधा रोग निदान-एक उभरता समाधान

12

स्ट्राबेरी की उन्नत खेती

13

लाख की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में भागीदारी

14

वनों के उत्थान के लिये वन प्रबन्धन की उपयोगिता

15

फार्मर्स फील्ड - एक परिचय

16

सूचना क्रांति का एक सशक्त माध्यम-सामुदायिक रेडियो स्टेशन

17

किसानों की सेवा में किसान कॉल केन्द्र

18

कृषि में महिलाओं की भूमिका, समस्या एवं निदान

19

दुधारू पशुओं की प्रमुख नस्लें एवं दूध व्यवसाय हेतु उनका चयन

20

घृतकुमारी की लाभदायक खेती

21

केचुआ खाद-टिकाऊ खेती एवं आमदनी का अच्छा स्रोत

 

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