सूखा साल सुलगते सवाल

पहले कई हिस्सों में भारी बारिश, फिर बिन बरसात लंबा दौर और अब लगभग पूरे देश में सूखा। मानसून के छल ने कई सवाल सुलगा दिए हैं। भीषण महंगाई से जूझते लोग चौपट फ़सल और पेयजल संकट की मार में कैसे बचे रह पाएंगे? इस चौतरफ़ा संकट में सवाल उबरने और बचे रहने का है..

देश के 10 राज्यों के 252 जिले सूखे पड़े हैं। खरीफ़ की फ़सल मिट चुकी है, रबी की फ़सल से भी ज़्यादा आस नहीं रही। मझले और छोटे किसान ज़मींदारों के कर्ज और चक्रवृद्धि ब्याज़ से बेहाल हैं। भूमि-हीन और मज़दूर वर्ग, जिसकी खेतों की बुवाई-कटाई के सहारे रोज़ी चलती थी, शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। आंध्रप्रदेश और बुंदेलखंड में बेबस किसानों द्वारा आत्म हत्याएं की जा रही हैं।

फ़सलें हुईं चौपट
सूखा और अल्पवर्षा के कारण ख़ासतौर से चावल, गन्ना और मूंगफली की फ़सल बर्बाद होने के अलावा, सूखे पड़े जलाशयों को देखते हुए रबी की फ़सल से भी ख़ास उम्मीद नहीं की जा सकती है। सूखे से सर्वाधिक प्रभावित राज्य आंध्रप्रदेश में 70 प्रतिशत आबादी की आजीविका कृषि पर निर्भर है। यहां इस बार सामान्य से 50 प्रतिशत कम बारिश हुई है और चावल, गन्ना तथा कपास की फ़सल चौपट हो चुकी है। राज्य के किसान संगठनों और विपक्षी पार्टी की बात सही मानी जाए, तो यहां के क़रीब 150 किसान अभी तक आत्महत्या कर चुके हैं। आंध्रप्रदेश और देश के अन्य कृषि उत्पादन में अग्रणी क्षेत्रों में किसान कर्ज़ के बोझ से दब रहे हैं और उन्हें भविष्य की तस्वीर भी भयावह नज़र आ रही है। इसी तरह कुल 33 जिलों में से 26 जिलों में सूखे की चपेट में आए राजस्थान में भी 50 प्रतिशत फ़सल नष्ट हो चुकी है।

मानसून ने दिए थे संकेत

भारतीय मौसम-विज्ञान विभाग के अनुसार इस बार 1 जून से शुरू हुए मानसून-सत्र में ही बारिश सामान्य से 25 प्रतिशत कम हुई थी। उसके एक ह़फ्ते बाद उसमें मात्र 1 प्रतिशत का मामूली-सा इजाफ़ा हुआ था। और अगस्त के अंतिम सप्ताह तक चावल, गन्ना, मूंगफली, कपास और सोयाबीन-उत्पादक मध्यक्षेत्र में सामान्य से 50 प्रतिशत कम बारिश हुई। बल्कि पश्चिम उत्तरप्रदेश के गन्ना उत्पादक क्षेत्र में औसत मात्रा से 91 प्रतिशत कम बारिश हुई। मौसम-विज्ञान विभाग के 36 उपखंडों में से 23 में इस मानसून-सत्र में सामान्य से 20 प्रतिशत बारिश कम हुई है।

मनमौजी है मानसून

मान लिया कि मानसून की बेरुखी से वर्ष 2009 सूखा साल हो गया, लेकिन उसके भारत के साथ अभी तक रहे रिश्तों से पता चलता है कि मानसून मनमौजी रहा है। मौसम विज्ञान विभाग के आंकड़ों के अनुसार पिछले 10 सालों में से 4 साल बारिश अनिश्चित रही है। देश के कुल क्षेत्रफल का 16 प्रतिशत भाग हर साल सूखा रहता है और इससे क़रीब एक करोड़ लोग तरह-तरह की परेशानियों में जीते हैं। देश की कुल खेतिहर भूमि का 68 प्रतिशत हिस्स सूखे जैसे ही हालात में रहता है। देश के 35 प्रतिशत भाग में सालाना 750 से 1,125 मिलीमीटर बारिश होती है, जो किसी भी तरह नाकाफ़ी है। भारत के 33 प्रतिशत भूभाग पर 750 मिलीमीटर से कम बारिश होती है और यहां हर व़क्त सूखे जैसी स्थिति ही बनी रहती है।

फिर-फिर आए सूखा

विज्ञान-विभाग के अनुसार देश में उसके कुछ उपखंड ऐसे हैं, जहां कुछ-कुछ अंतराल में सूखे की पुनरावृत्ति होती रही है। इनमें पश्चिमी राजस्थान, तमिलनाडु, जम्मू-कश्मीर और तैलंगाना में हर 2.5 साल बाद सूखा पड़ता है। पूर्वी राजस्थान, गुजरात और पश्चिमी उत्तरप्रदेश में 3 साल बाद सूखे की नौबत आ जाती है। दक्षिण सुदूर कर्नाटक, पूर्वी उत्तरप्रदेश और विदर्भ में 4 साल में एक बार। पश्चिमी बंगाल, मध्यप्रदेश, कोंकण, बिहार और उड़ीसा में 5 साल में एक बार और आसाम में 15 साल में एक बार सूखे की स्थिति पैदा हो जाती है। आंध्रप्रदेश एक मात्र ऐसा प्रदेश है, जिसने विगत 50 सालों में कई बार भीषण सूखे झेले हैं। इस बार भी यहां 624 मिलीमीटर सामान्य वर्षा की जगह मात्र 153.8 मिलीमीटर बारिश हुई है। और यह आंकड़ा बीते 50 सालों में 15 अगस्त के मध्य तक होने वाली बारिश में सबसे कम है। बहरहाल, इस बार मानसून की आमद सुखद नहीं थी। यही वजह थी कि 25 जून को ही मणिपुर के संपूर्ण 9 जिलों को सूखा प्रभावित घोषित कर दिया गया था। रबी की आगामी फ़सल पर भी सूखे का असर तय है।

कम चमकेगा सोना

बाज़ार विशेषज्ञों के अनुसार सोने पर तो सूखे का असर अगस्त अंत से ही दिखने लगा है। इस बार त्यौहारी मौसम होने के बावजूद सोने की मांग 20 प्रतिशत घट सकती है। वहीं ऊंची क़ीमत बनी रहने और भीषण सूखे की बदौलत, सोने का आयात भी 90 प्रतिशत तक कम हो सकता है। पिछले साल की तुलना में इस बार साने की क़ीमत 20 प्रतिशत ज़्यादा, 15,000 के पार है। देश में सोने की कुल खपत का 60 से 70 प्रतिशत उपभोक्ता ग्रामीण क्षेत्रों में है। ज़ाहिर है इस बार क़िस्मत का मारा ग्रामीण सराफ़ा बाज़ार जाने की हिम्मत कैसे कर पाएगा। वह भी इस क़ीमत पर! यों, जैसे ही मानसून के शुरुआती हालात बुरे नज़र आए, तभी से सोने की बिक्री घटना शुरू हो गई थी।

पड़ेगी महंगाई की मार

इस बार न सिर्फ़ खरीफ़, रबी की फ़सल पर भी सूखे का असर होना तय है। बड़े स्तर पर कम बारिश की बदौलत खाद्यान्न और व्यावसायिक फ़सल में बेहद कमी आएगी। धान जैसी फ़सल की बुवाई पहले ही देर से हो पाई है। उत्तरप्रदेश में धान का उत्पादन 20 से 30 प्रतिशत कम होने का अनुमान है। इसी तरह महाराष्ट्र में दलहन उत्पादन में 9 प्रतिशत, तिलहन में 6 प्रतिशत और कुल खाद्यान्न में 5 प्रतिशत घटोतरी होने का आकलन है। इस स्थिति में शहरों में तेज़ी से और चिंताजनक असर हम हालिया देख ही चुके हैं। जब दाल, शक्कर और सब्ज़ी आदि चीज़ों के साथ व्यक्ति को एक माह के भीतर ही अपने खाने की क़ीमत दुगनी पड़ने लगी थी।

सरकार पर बढ़ेगा भार

भारतीय रिज़र्व बैंक के अनुसार, सूखे की मार देश की वित्तीय व्यवस्था पर भारी पड़ सकती है। बैंक की सालाना रिपोर्ट में कहा गया है कि मानसून की कमी और उसका कृषि उद्योग पर पड़ने वाला बुरा असर न सिर्फ़ खाद्य-पदार्थो की क़ीमत में बढ़ोतरी का कारण बनेगा, बल्कि यह राष्ट्र के सामने वित्तीय-संकट के रूप में एक चुनौती होगी। देश की वित्तीय व्यवस्था पर दबाव, तब ज़्यादा पड़ेगा, जब कि उसके अपने ख़र्चो के अलावा उस पर सूखे संबंधी योजनाओं का अतिरिक्त और भारी बोझ बढ़ेगा। जैसा कि इस संदर्भ में प्रभावित राज्यों की ओर से मांग और सरकार द्वारा उसकी पूर्ति की शुरुआत हो भी चुकी है। ख़ासतौर से इस स्थिति में सार्वजनिक वितरण-प्रणाली को संतुलित रखने के लिए दैनिक उपभोग की आवश्यक वस्तुओं के आयात में अतिरिक्त क़ीमतों का बोझ भी झेलना पड़ सकता है। बैंक का कहना है कि सरकार को मुद्रा-स्फ़ीति के दबाव के मद्देनज़र खाद्य-पदार्थो की वितरण प्रणाली को स़ख्त और चुस्त करना होगा।
 

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