सूखा सिर्फ शहरों में नहीं है


मौसम विभाग के अनुसार पिछले साल पूरे राज्य में 12 फीसदी बारिश कम हुई थी। कटनी में 97 सेंटीमीटर की जगह 93 सेंटीमीटर बारिश दर्ज की गई। स्थितियाँ पिछले साल भी भोपाल, अनूपपुर, नरसिंहपुर, टिकमगढ़, सतना, सिहोर, पन्ना, रिवा सभी जिलों में इतनी ही विकट थी। बहरहाल इस सूखे ने समाज को पानी बचाने का और पानी को सहेजने का जो सबक दिया है। बारिश के अच्छे दिनों में वह इस सबक को यदि ना भूले तो फिर सूखे का संकट इतनी विकट परिस्थितियाँ सम्भव है पैदा ना कर पाये और अकरारी जैसे गाँवों का दस चापाकल के बराबर पानी देने वाला कुआँ फिर कभी ना सूखे। 228 तहसील की, 44 लाख हेक्टेयर जमीन और उस पर खेती करने वाले 48 लाख किसान मध्य प्रदेश के अन्दर इस सूखे की चपेट में हैं। इस बार यह मार इसलिये भी सब पर दोहरी पड़ रही है क्योंकि पिछले साल भी बारिश कम हुई थी। राज्य में पूर्वी मध्य प्रदेश में सबसे कम बारिश दर्ज की गई। इस क्षेत्र में सामान्य बारिश की स्थिति की तुलना में सिर्फ 29 प्रतिशत बारिश हुई थी। मौसम विभाग के अनुसार पिछले साल पूरे राज्य में 12 फीसदी बारिश कम हुई थी।पानी की कमी की खबर देश भर से आ रही है। इन खबरों को पढ़ते हुए या टेलीविजन पर देखते हुए आपने कभी गौर किया है कि ये सारी खबरें शहर केन्द्रित हैं। टेलीविजन या अखबार नहीं बताता कि आदिवासी क्षेत्रों में क्या हो रहा है? शहर पचास किलोमीटर दूर जो गाँव है, वहाँ के हालात क्या हैं?

मध्य प्रदेश के अन्दर जिला रीवा से 60 किलोमीटर की दूरी पर जावा प्रखण्ड के अन्तर्गत खाझा पंचायत में एक गाँव है, अकरारी है। इस गाँव में चार चापाकल है। एक कुआँ है। पानी की जरूरत कुआँ ही पूरा कर देता था। धीरे-धीरे इस आदिवासी क्षेत्र में भी जलस्तर गिरा और गर्मी के प्रकोप की वजह से कुआँ धीरे-धीरे सूख गया। गाँव वालों को लगता है कि कुआँ यदि गहरा करवा दिया जाये तो इस साल बारिश हो जाने के बाद उनकी पानी की समस्या खत्म हो जाएगी।

इस गाँव के तुमन किशोर आदिवासी बताते हैं कि हमारे गाँव का यह कुआँ दस हैण्डपम्प के बराबर था। यह कुआँ गाँव के 800 लोगों की जरूरत को अकेले पूरा करता था। बारिश ना होने की वजह से फरवरी में कुएँ में पानी कम हो गया। अब वह पूरी तरह सुख चुका है।

गाँव में मौजूद चार चापाकल का हाल यह है कि तीन ने काम करना बन्द कर दिया है। चौथा चापाकल गाँव के स्कूल में लगा हुआ है। अब पूरा गाँव स्कूल में पानी लेने के लिये इकट्ठा होता है। बच्चे और उनके गाँव के सभी परिवार अब एक ही चापाकल का पानी पी रहे हैं।

तुमन किशोर आदिवासी ने अपने गाँव का पूरा हाल गाँव के सरपंच और अपने प्रखण्ड विकास पदाधिकारी तक पहुँचा दिया है। पूरा गाँव डरा इस बात के लिये है कि यदि स्कूल का चापाकल भी बन्द हो गया तो पूरा गाँव कहाँ पानी के लिये जाएगा?

यहाँ जिस अकरारी गाँव की बात हो रही है, यह आदिवासी गाँव है जो जंगल क्षेत्र में आता है और जिले के अन्दर पानी को लेकर इस हालात से जुझने वाला यह अकेला गाँव नहीं है। आप इस बात से अनुमान लगा सकते हैं कि पानी की किल्लत की जो खबर हम पढ़ रहे हैं, या देख रहे हैं, जमीन पर हालात इससे भयावह है।

अकरारी गाँव जिस खाझा पंचायत में आता है, उसके सरपंच अशोक सिंह ने बताया कि पानी की समस्या से इनकार नहीं किया जा सकता। लेकिन यह समस्या सिर्फ एक गाँव की या एक पंचायत की नहीं है। इस वक्त जिले के अन्दर 42 पंचायतों की स्थिति दयनीय है। जिलाधिकारी राहुल जैन को हम लोगों ने सारी स्थिति से अवगत कराया है। हम सब चाहते हैं कि यह हालात बदले। सबको पानी मिले।

लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग की मंत्री कुसुम महेंदले ने भी एक साक्षात्कार में माना था कि अप्रैल से सूखे की स्थिति अधिक चिन्ताजनक होने वाली है। मध्य प्रदेश के चम्बल और बुन्देलखण्ड में पानी की समस्या चिन्ताजनक होती जा रही है। राज्य के अन्दर 40 से भी अधिक जिलों में सूखा दर्ज किया गया है। स्थिति इतनी भयावह है कि कई जिलों से यह शिकायत आ रही है कि चापाकल से भी पानी नहीं आ रहा। अकरारी सिर्फ एक उदारहण है और इस उदाहरण को इसलिये गम्भीरता से लेने की जरूरत है क्योंकि सरकारी राहत शहर केन्द्रित होकर ना रह जाये।

शहर से जो दूर आदिवासी क्षेत्रों में, पहाड़ी क्षेत्रों में, जंगल के क्षेत्र में लोग रहते हैं, उन तक भी राहत पहुँचे। पानी पहुँचे। वर्ना अकरारी जैसे गाँवों की प्यास आमतौर पर भोपाल में दर्ज भी नहीं हो पाती है।

228 तहसील की, 44 लाख हेक्टेयर जमीन और उस पर खेती करने वाले 48 लाख किसान मध्य प्रदेश के अन्दर इस सूखे की चपेट में हैं। इस बार यह मार इसलिये भी सब पर दोहरी पड़ रही है क्योंकि पिछले साल भी बारिश कम हुई थी। राज्य में पूर्वी मध्य प्रदेश में सबसे कम बारिश दर्ज की गई। इस क्षेत्र में सामान्य बारिश की स्थिति की तुलना में सिर्फ 29 प्रतिशत बारिश हुई थी। मौसम विभाग के अनुसार पिछले साल पूरे राज्य में 12 फीसदी बारिश कम हुई थी। कटनी में 97 सेंटीमीटर की जगह 93 सेंटीमीटर बारिश दर्ज की गई। स्थितियाँ पिछले साल भी भोपाल, अनूपपुर, नरसिंहपुर, टिकमगढ़, सतना, सिहोर, पन्ना, रिवा सभी जिलों में इतनी ही विकट थी।

बहरहाल इस सूखे ने समाज को पानी बचाने का और पानी को सहेजने का जो सबक दिया है। बारिश के अच्छे दिनों में वह इस सबक को यदि ना भूले तो फिर सूखे का संकट इतनी विकट परिस्थितियाँ सम्भव है पैदा ना कर पाये और अकरारी जैसे गाँवों का दस चापाकल के बराबर पानी देने वाला कुआँ फिर कभी ना सूखे।

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