सूखे पर सियासत


लगातार दो साल मानसून कमजोर रहने के कारण देश के 13 राज्यों में भयंकर सूखा पड़ा है। 313 जिले और 1,58,205 गाँव बुरी तरह से सूखे से प्रभावित हैं इस तरह देश की 25 प्रतिशत से अधिक सूखे की चपेट में है। यूपी के बुन्देलखण्ड और महाराष्ट्र के मराठवाड़ा सहित कई इलाके ऐसे हैं जहाँ पेयजल का गम्भीर संकट है।

सूखे के चलते लगातार फसलें बर्बाद होने से कुछ जगहों पर पशुओं के चारे की कमी भी गम्भीर समस्या है। इन विषम परिस्थितियों के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में राजग सरकार ने सूखा प्रभावित क्षेत्रों में राहत पहुँचाने में तत्परता दिखाई है। प्रधानमंत्री ने सूखे से निपटने के उपायों का स्वयं जायजा लिया और यह सुनिश्चित किया कि प्रभावितों तक राहत तत्काल पहुँचे।

मराठवाड़ा के लातूर शहर में ट्रेन से पेयजल की आपूर्ति इसका एक उदाहरण है। साथ ही सूखाग्रस्त जिलों में मनरेगा के तहत न्यूनतम कार्यदिवसों की संख्या भी 100 से बढ़ाकर 150 की है। वहीं राज्यों को आपदा राहत कोष से धनराशि भी जारी की गई है ताकि वे अपने स्तर पर स्थानीय जरूरतों के अनुसार कदम उठा सकते हैं। इतना ही नहीं उन्होंने प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ उनकी प्रमुख समस्याओं और उनके निराकरण के अल्पावधि, मध्यावधि और दीर्घकालिक उपायों पर विचार-विमर्श किया।

इसी सिलसिले में पीएम ने सात मई को उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक और 10 मई को मध्य प्रदेश और तेलंगाना के मुख्यमंत्रियों के साथ उनके राज्यों में सूखे की स्थिति और संकट की घड़ी में केन्द्र सरकार से उनकी अपेक्षाओं और सहयोग पर चर्चा की। प्रधानमंत्री ने कहा कि सूखे के कारण लोगों के समक्ष आ रही समस्याओं का निवारण करने के लिये केन्द्र और राज्यों को मिलकर प्रयास करना होगा।

इस तरह भयावह सूखे का सामना करने और प्रभावित लोगों की मदद करने को राजग सरकार जहाँ पूरी तत्परता से जुटी है वहीं विपक्ष इस प्राकृतिक संकट पर भी सियासत कर रहा है। केन्द्र के राहत कार्यों में मदद तो दूर विपक्षी दल उनमें व्यवधान डालने की कोशिशें कर रहे हैं। इसका उदाहरण उत्तर प्रदेश, जहाँ पूरे राज्य में पेयजल और सिंचाई के लिये पानी का जबरदस्त संकट है। इसके बावजूद सत्ताधारी समाजवादी पार्टी सूखे पर जमकर राजनीति कर रही है।

सूखाग्रस्त इलाकों में राहत पहुँचाने सम्बन्धी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के खोखले दावों की पोल खुलने लगी है। ऐसे समय में जब बुन्देलखण्ड के लोग पेयजल के अभाव और फसल बर्बाद होने से रोजी-रोटी की तलाश में पलायन को मजबूर हैं वहीं इस सबसे बेफिक्र सूबे की समाजवादी सरकार सैफई महोत्सव जैसे आयोजनों में भारी भरकम धन खर्च कर फूहड़ प्रदर्शन करती है।

सपा सरकार बुन्देलखण्ड में सूखा प्रभावित लोगों को राहत देने के लिये खुद तो कुछ उपाय कर नहीं रही है और जो लोग कर रहे हैं, उसमें भी साथ नहीं दे रही है। इसका एक उदाहरण पानी की वह ट्रेन है जो कई दिन तक झाँसी में खड़ी रही लेकिन सपा सरकार ने उसे प्रभावित क्षेत्र में पेयजल लेकर नहीं जाने दिया। राजग सरकार ने तत्परता दिखाते हुए राष्ट्रीय आपदा राहत कोष (एनडीआरएफ) के तहत उत्तर प्रदेश की देय राशि के समायोजन के बाद राज्य को 934.32 करोड़ रुपए की राशि जारी कर चुकी है।

यह राशि वर्ष 2015-16 के लिये एसडीआरएफ में केन्द्र के अंश के रूप में जारी 506.25 करोड़ रुपये की राशि के अतिरिक्त है। इसके अलावा वर्ष 2016-17 के लिये एसडीआरएफ की 265.87 करोड़ रुपए की पहली किस्त जारी की जा चुकी है। इसके बावजूद सपा सरकार ने धनराशि खर्च नहीं की है।

केन्द्र के बार-बार आग्रह के बाद राज्य ने 5 मई 2016 को रबी 2015-16 सीजन के लिये सहायता के लिये नया ज्ञापन भेजा है। प्रधानमंत्री ने निर्देश दिया कि प्रक्रिया पूरी करके राज्य को सहायता राशि अविलम्ब मुहैया कराई जाये। इस तरह केन्द्र सरकार प्रभावित राज्यों को वित्तीय, तकनीकी और प्रशासनिक हर सम्भव मदद देने को तत्पर है।

वास्तव में सूखे के स्थायी समाधान के लिये हमें जल संरक्षण और जलाशयों को दोबारा भरने पर जोर देना होगा। ऐसे में बेहतर होगा कि विपक्ष सूखे पर राजनीति छोड़कर इस समस्या के स्थायी समाधान के लिये केन्द्र के साथ मिलकर कार्य करने का संकल्प ले। तभी लोगों की तकलीफें दूर हो सकेंगी।

(लेखक बीजेपी के राष्ट्रीय सचिव हैं)

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