सूखे से निपटने को तत्पर गांव

लगातार सूखे की दंश झेल रहे बुंदेलखंड में ऐसे भी लोग हैं, जिन्होंने सूखे से निपटने हेतु अभिनव प्रयोग किये हैं जिसने न केवल उनकी अपनी आजीविका को ही समृद्ध किया है बल्कि क्षेत्र के लिए एक मिसाल कायम किया है।

संदर्भ


बुंदेलखंड 1887 से लेकर वर्ष 2007 तक 19 बार सूखे का ग्रास बना है। यहां के लिए सूखा कोई नई बात नहीं है, नई बात है तो बस यह कि अब यहां के लोगों में सूखे से निपटने की क्षमता नहीं बची है। क्योंकि साल-दो साल का सूखा हो तो निपटा जाए, यहां तो एक दशक तक पड़ने वाले सूखे ने अब अकाल का रूप धारण कर लिया है। खेती में लगातार हो रहे नुकसान से हतोत्साहित किसान के पास आत्महत्या के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा है। ऐसे समय में जब बुंदेलखंड का प्रत्येक गांव व परिवार सूखे से प्रभावित हो, तब कोई दावे के साथ कहे कि मुझमें सूखे से लड़ने की ताकत है, तो निश्चय ही अचरज होगा पर यह सच है। ललितपुर जनपद मुख्यालय से 20 किमी. दूर स्थित गांव सीरोन कला कुछ ऐसा ही दावा करता है। वास्तव में यह गांव सूखा से पीड़ित नहीं है। जबकि पूरा बुंदेलखंड सूखे से पीड़ित है, इस गांव के बाशिंदे अभी तक भूख, प्यास, पलायन और खुदकुशी के शिकार नहीं हुए हैं। गांव के बारे में बात करें तो पूरे गांव की ज़मीन कंकरीली, पथरीली, बलुई हल्की मोटी और ऊपरी सतह से अति विकट पत्थरों की मोटी परत से आच्छादित है। फिर भी अपनी पारंपरिक किसानी और तकनीकी ज्ञान के सहारे इस गांव के लोग अभी भी सूखे का मुकाबला करने में सक्षम हैं।

प्रक्रिया


लगभग सवा सौ कुओं, हजारों फलदार वृक्षों, आम, महुआ, जामुन,बेल, आंवला, बेर, कैथा, अमरूद, नीबू, खजूर, करौंदा, अनार, कटहल आदि से भरे गांव में तालाब, परती, पेड़, गोधन, पशुधन आदि की प्रचुरता है। उदाहरण के तौर पर गांव के निवासी किसान श्री बालकिशुन की कहानी बताई जा सकती है-

श्री बालकिशुन राजपूत उर्फ नन्ना की उम्र 79 वर्ष है। इन्होंने अपनी अब तक की उम्र में 5 हजार पौधों को रोपा है, उनकी देख-भाल की है और यह प्रक्रिया आज भी जारी है। पेड़ों में पानी देने के लिए हालांकि इनके पास एक बहुत पुराना कुआं है। फिर भी पानी संरक्षण की दिशा में ये पेड़ों की जड़ों पर एक-एक फुट मिट्टी चढ़ाकर नाडेप खाद डालते हैं, जिससे पेड़ों को पर्याप्त नमी और संरक्षण मिलता रहे। अपने 6 एकड़ खेत में बाग, बगीचा, सब्जी से लेकर सभी उपयोगी चीजें उगाकर श्री नन्ना सिर्फ अपने गांव के लिए ही नहीं, पूरे बुंदेलखंड के लिए मॉडल बने हुए हैं। इनके बाड़े में दो दर्जन से अधिक ऐसी गायें हैं, जिनको उनके मालिकों ने खिला सकने में असमर्थ होने के कारण छुट्टा छोड़ दिया। इन गायों /पशुओं को इन्होंने अपने घर-परिवार का हिस्सा बनाया है। आज वे सभी गायें स्वस्थ शरीर वाली हैं फिर से दूध देने वाली हैं। मात्र 6 एकड़ पथरीली जमीन के मालिक श्री नन्ना कभी गायों का दूध नहीं बेचते। बल्कि गायों के गोबर व मूत्र से बनी खाद, गोबर से बने उपले आदि बेचते हैं और उसी से इनकी इतनी आय हो जाती है कि उन्हें दूध बेचने की जरूरत नहीं पड़ती।

अपने अनुभवों को बांटते हुए कहते हैं कि जब हमने खेती की शुरूआत की तो खेत की सिंचाई मिट्टी के पहियों वाले रहट से होती थी। धीरे-धीरे विकास क्रम में रासायनिक खादों व हाइब्रिड बीजों को हमने भी खूब प्रयोग किया, परंतु दुष्परिणाम सामने आने लगे, तो घर के बने खाद एवं पारंपरिक बीजों की तरफ पुनः मुड़े और आज पुश्तैनी ज़मीन जो 5-6 एकड़ है, पूरी तरह रसायन मुक्त हो चुकी है। शेष 25 एकड़ ज़मीन जो अपनी कमाई से खरीदा है, उसे भी रसायन मुक्त करने की प्रक्रिया चल रही है।

लाभ


गांव क्षेत्र में बहुतायत परिवार अब अपने कुंओं में जलरोधी पेड़ों को लगाकर उन पर पशुओं का बसेरा बनाने लगे हैं।
लोगों का भरोसा फलदार पेड़ों को काटने की बजाय लगाने पर बढ़ा है।

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