स्वाइन फ्लू (swine flu)

5 Nov 2016
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प्रायः स्वाइन फ्लू में ‘टेमी फ्लू’ तथा ओसेल्टामिविर नामक दवाई (गोली व सिरप) चिकित्सकों द्वारा दी जाती है जो कारगर होती है। स्वाइन फ्लू का विषाणु दिन में 30 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान तथा रात में 18 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान एवं वातावरण में 100 प्रतिशत की नमी होने पर बहुत अच्छे से वृद्धि करता है।

पिछले कुछ महीने देश के अनके हिस्सों में डेंगू का कहर बना हुआ था, जो अभी शांत भी नहीं हुआ कि एक और खतरनाक बीमारी स्वाइन फ्लू का हमला होने लगा। पिछले वर्ष इस बीमारी से हमारे देश में लगभग 13 हजार से अधिक लोग प्रभावित हुए थे और अब फिर जोर पकड़ रहा है। ‘स्वाइन फ्लू’ बीमारी का संक्रमण वर्ष 2008-09 के बीच भी हुआ था, जिसमें दुनिया भर में लगभग 2,84,000 मौंते हुई थी।

क्या है स्वाइन फ्लू?


स्वाइन फ्लू सुअरों का श्वसन सम्बन्धी रोग है। यह रोग पश्चिमी देशों से फैला है। इस रोग का वाहक टाइप ए एन्फ्लुएंजा विषाणु H1N1 है। यह विषाणु सर्वप्रथम 1930 में पाया गया था। यह विषाणु विभिन्न जन्तुओं एवं पक्षियों में प्रविष्ट होकर उन्हें संक्रमित करने के साथ ही स्वयं को भी लगातार रूपांतरित करता रहा है। इस विषाणु के अब तक खोजे गये कई प्रतिरूप हैं: जैसे कि H1N1, H1N2, H3N2, H3N1 आदि। पक्षी एन्फ्लुएंजा मानव एन्फ्लुएंजा विषाणु के साथ-साथ सुअर एन्फ्लुएंजा विषाणु पशु पक्षियों को संक्रमित करते हैं। ये तीनों तरह के एन्फ्लुएंजा विषाणु आपसी मिश्रण से प्रत्येक बार अलग-अलग प्रतिरूपों में प्रकट होते हैं। इस विषाणु के कारण सुअरों में सर्दी, छींक, नाक व आँख से पानी बहना, श्वास सम्बन्धी रोग, खाँसी, आँखें लाल होना व बुखार जैसे लक्षण उत्पन्न होते हैं। जो व्यक्ति इन सुअरों के सम्पर्क में रहते हैं उनमें श्वसन के माध्यम से ये विषाणु फैल जाते हैं। सुअरों के संपर्क में रहने वाले व्यक्ति जब इस विषाणु से संक्रमित हो जाते हैं तो उनकी छींक या खाँसने से उनके आस-पास में रहने वाले व्यक्ति भी इस विषाणु से संक्रमित हो जाते हैं और उन्हें स्वाइन-फ्लू फैल जाता है। सुअर का मांस खाने से ये विषाणु नहीं फैलते हैं।

क्या हैं स्वाइन फ्लू के लक्षण?


1. तेज बुखार, गले में खराश, खाँसी, नाक बहना, जुकाम के साथ सांस लेने में परेशानी।
2. शरीर तथा मांसपेशियों में तेज दर्द।
3. गम्भीर थकावट का अहसास होता है, साथ ही मरीज को जबरदस्त ठंड लगती है।
4. स्थिति गंभीर होने पर मरीज को लगातार उल्टियाँ तथा दस्त होते रहते हैं।

कैसे होता है संक्रमण?


स्वाइन फ्लू विषाणु H1N1 खाँसते या छींकते समय ड्रॉपलेट के माध्यम से संक्रमित करता है। इस विषाणु से संक्रमित किसी व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में संक्रमण का खतरा लगभग 8 दिनों तक बना रहता है। यह विषाणु नाक, गले तथा फेफड़े पर आक्रमण करता है तथा श्वसन मार्ग को संक्रमित कर जाम कर देता है, जिससे व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है।

कैसे हो स्वाइन फ्लू से बचाव?


1. घर के अलावा स्वयं की साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें।
2. छींक या खाँसी आने पर मुँह व नाक ढकें। खाँसने व छींकने के बाद साबुन से अच्छी प्रकार हाथ धोएं।
3. किसी भी संक्रमित व्यक्ति से हाथ न मिलायें, न गले मिलें, न चुम्बन लें।
4. हैंडवाश से समय-समय पर अच्छे से हाथ धुलें।
5. घर से बाहर निकलते समय मास्क पहनें।
6. भीड़-भाड़ वाली जगहों पर जाने से बचें।
7. किसी भी व्यक्ति से बात करते समय उचित दूरी बनाकर रखें।
8. इस रोग से ग्रस्त रोगी द्वारा प्रयोग की गयी वस्तुओं जैसे रूमाल, कपड़े, बर्तन आदि का प्रयोग न करें।
9. सार्वजनिक स्थान पर खाँसने व थूकने से बचें।

 

वायरल फीवर और स्वाइन फ्लू में अंतर

क्र.सं.

लक्षण

वायरल फीवर

स्वाइन फ्लू

1.

बुखार

तेज बुखार

तेज बुखार आता है पर कम नहीं होता

2.

खांसी

सूखी खांसी लेकिन कभी-कभी

खांसी में बलगम बहुत आता है, कभी-कभी कफ के साथ खून भी आता है।

3.

दर्द

कमर, पीठ में तेज दर्द होता है, जो पेन किलर से चला जाता है।

पूरे बदन और सीने में दर्द होता है लेकिन पेन किलर से यह दर्द कम नहीं होता

4.

ठंड

हल्‍की ठंड लगती है।

बहुत ठंड लगती है, शरीर कांपता है।

5.

थकान

थोड़ी-बहुत थकान आती है।

बहुत अधिक थकान आती है।

6.

छींक

थोड़ी बहुत छींक आती है।

बहुत ज्‍यादा और लगातार छींक आती है।

7.

सिरदर्द

हाँ

नहीं

8.

समय

एक से दो दिन लगते हैं

H1N1 के अटैक के तुरंत बाद तेजी से बुखार आता है, छीकें और खांसी आती हैं। खांसी के साथ कफ भी आता है। 4-7 दिन में पूरे शरीर को तोड़ देता है।

9.

सांस

प्राय: सांस लेने में परेशानी नहीं

सांस लेने में बहुत दिक्‍कत होती है।

10.

रक्‍त चाप

घटता बढ़ता रहता है।

रक्‍त चाप लगातार कम होता है।

 


10. यदि बीमारी का कोई भी लक्षण महसूस हो तो कुशल चिकित्सक से सम्पर्क करें।
11. इस रोग से बचाव का तरीका सुअरों के संक्रमण से दूर रहना ही है।

सुअरों में इस बीमारी से निपटने के लिये हमेशा टीकाकरण किया जाता है, लेकिन मनुष्य को इस बीमारी से बचाव हेतु अभी कोई टीका उपलब्ध नहीं है। अतः इस रोग से पीड़ित व्यक्ति की पहचान होते ही उसे 48 घंटे के अन्दर विषाणुरोधी दवायें दी जानी चाहिए। रोगी के नाक व गले के स्रावों का प्रयोगशाला में परीक्षण कराया जाना चाहिए।

प्रायः स्वाइन फ्लू में ‘टेमी फ्लू’ तथा ओसेल्टामिविर नामक दवाई (गोली व सिरप) चिकित्सकों द्वारा दी जाती है जो कारगर होती है। स्वाइन फ्लू का विषाणु दिन में 30 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान तथा रात में 18 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान एवं वातावरण में 100 प्रतिशत की नमी होने पर बहुत अच्छे से वृद्धि करता है। जब दिन का तापमान 30 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो जायेगा और रात का तापमान 180 सेंटीग्रेड से अधिक होगा तथा वातावरण में नमी कम हो जायेगी तो इस विषाणु की वृद्धि स्वयं खत्म हो जायेगी क्योंकि यह विषाणु 30 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान पर वृद्धि नहीं कर पाता।

सम्पर्क


डॉ. हेमलता पंत
वैज्ञानिक, सोसाइटी ऑफ बॉयलाजिकल साइंसेस, एण्ड रुरल डेवलपमेंट, झूँसी, इलाहाबाद (उ.प्र.)-211019ई-मेल : Pant_hemlata@yahoo.co.in



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