सवालों के घेरे में नमामि गंगे योजना


गंगा को निर्मल बनाने के लिये सरकार के महत्त्वाकांक्षी नमामि गंगे कार्यक्रम पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की यह सख्त टिप्पणी कि दो साल में सात हजार करोड़ खर्च होने के बावजूद गंगा की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है, कुल मिलाकर यही रेखांकित करता है कि गंगा निर्मलीकरण की रफ्तार सुस्त है। यह स्थिति यह भी इंगित करती है कि गंगा निर्मलीकरण को लेकर नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय गम्भीर नहीं है।

गौरतलब है कि 1985 में उच्चतम न्यायालय के वकील और पर्यावरणविद एमसी मेहता ने गंगा की सफाई को लेकर याचिका दायर की थी। 2014 में उच्चतम न्यायालय ने इस याचिका को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के पास भेज दिया। उसी मामले में यह फैसला आया है। याचिकाकर्ता ने गंगा की सफाई के नाम पर अब तक खर्च करोड़ों रुपए की सीबीआई या कैग से जाँच कराने की माँग की है। उल्लेखनीय है कि केन्द्र सरकार ने गंगा को निर्मल बनाने के लिये एक अलग से मंत्रालय का गठन कर 2037 करोड़ रुपए की नमामि गंगे योजना शुरू की। इसके तहत गंगा को प्रदूषित करने वाले उद्योगों पर निगरानी रखना, उनके विरुद्ध कार्रवाई करने के अलावा गंगा नदी के किनारे स्थित 118 शहरों एवं जिलों में जलमग्न शोधन संयंत्र एवं सम्बन्धित आधारभूत संरचना के अध्ययन के साथ गंगा नदी के किनारे स्थित श्मशान घाटों पर लकड़ी निर्मित प्लेटफॉर्म को उन्नत बनाना तथा प्रदूषण एवं गन्दगी फैलाने वालों पर लगाम कसना सुनिश्चित हुआ। लेकिन अभी तक यह सिर्फ कागजी कार्रवाई ही प्रतीत हुआ है।

हालात यह है कि आज भी प्रतिदिन गंगा के बेसिन में 275 लाख लीटर गन्दा पानी बहाया जा रहा है। इसमें 190 लाख लीटर सीवेज एवं 85 मिलियन लीटर औद्योगिक कचरा होता है। गंगा की दुर्गति के लिये मुख्य रूप से सीवर और औद्योगिक कचरा ही जिम्मेदार है, जो बिना शोधित किए गंगा में बहा दिया जाता है। गंगा नदी के तट पर अवस्थित 764 उद्योग और इससे निकलने वाले हानिकारक अवशिष्ट बहुत बड़ी चुनौती हैं जिनमें 444 चमड़ा उद्योग, 27 रासायनिक उद्योग, 67 चीनी मिलें तथा 33 शराब उद्योग शामिल हैं। जल विकास अभिकरण की मानें तो उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल में गंगा तट पर स्थित इन उद्योगों द्वारा प्रतिदिन 112.3 करोड़ लीटर जल का उपयोग किया जाता है। इनमें रसायन उद्योग 21 करोड़ लीटर, शराब उद्योग 7.8 करोड़ लीटर, चीनी उद्योग 30.4 करोड़ लीटर, कागज एवं पल्प उद्योग 30.6 करोड़ लीटर, कपड़ा एवं रंग उद्योग 1.4 करोड़ लीटर एवं अन्य उद्योग 16.8 करोड़ लीटर गंगाजल का उपयोग प्रतिदिन कर रहे हैं। गंगा नदी के तट पर प्रदूषण फैलाने वाले उद्योग और गंगा जल के अन्धाधुन्ध दोहन से नदी के अस्तित्व पर खतरा उत्पन्न हो गया है। उचित होगा कि कल-कारखानों के कचरे को गंगा में गिरने से रोका जाए और ऐसा न करने पर कड़ी कार्रवाई की जाए।

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