स्वामी सानंद गंगा संकल्प संवाद शृंखला : एक परिचय

15 Jan 2016
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.खास परिचितों के बीच ‘जी डी’ के सम्बोधन से चर्चित सन्यासी स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद के गंगा पुत्र होने के बारे में शायद ही किसी को सन्देह हो। बकौल श्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी, वह भी गंगा पुत्र हैं। “मैं आया नहीं हूँ; मुझे माँ गंगा ने बुलाया है।’’

श्री मोदी का यह बयान तो बाद में आया, गंगा पुत्र स्वामी सानंद की आशा पहले बलवती हो गई थी कि श्री मोदी के नेतृत्त्व वाला दल केन्द्र में आया, तो गंगा जी को लेकर उनकी माँगों पर विचार अवश्य किया जाएगा।

हालांकि उस वक्त तक राजनेताओं और धर्माचार्यों को लेकर स्वामी सानंद के अनुभव व आकलन पूरी तरह आशान्वित करने वाले नहीं थे; बावजूद इसके यदि आशा थी तो शायद इसलिये कि इस आशा के पीछे शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी का वह आश्वासन तथा दृढ़ संकल्प था, जो उन्होंने स्वामी सानंद के कठिन प्राणघातक उपवास का समापन कराते हुए वृंदावन में क्रमशः दिया व दिखाया था।

स्वामी सानंद के ऐतिहासिक उपवास का समापन हुए दो वर्ष से अधिक समय बीत चुका है। इस बीच श्री मोदी द्वारा गंगा और अपने रिश्ते का बयान आया। केन्द्रीय जल संसाधन मंत्रालय में गंगा और नदी विकास के शब्द जुड़े। ‘नमामि गंगे’ और ‘राष्ट्रीय गंगा मिशन’ ने नया सपना दिखाया। कई घोषणाएँ हुई।

अब ‘नमामि गंगे’ के शुरू होने की घोषणा भी हो चुकी है। मालूम नहीं, इन सभी से गंगापुत्र स्वामी सानंद की उम्मीदें कुछ परवान चढ़ी या फिर स्वामी सानंद भी उस श्रेणी में शुमार कर लिये गए, जिनके बारे में बतौर प्रधानमंत्री, लालकिले की प्राचीर से बोलते हुए श्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी ने कहा,“कुछ लोग होते हैं, जिन्हें अच्छा दिखाई ही नहीं देता।...वे जब तक निराशा भरी दो-चार बातें न कर लें, उन्हें नींद ही नहीं आती।’’

खैर, मुझे लगता है कि आलोचकों का मखौल उड़ाने से पहले प्रधानमंत्री जी को सोचना चाहिए कि जब आशा बलवती होती है, तो निराशा का स्वयंमेव लोप हो जाता है।

वक्त लगता है, किन्तु इतना वक्त कि पदभार सम्भालने के डेढ़ वर्ष बाद भी स्वयं सुश्री उमाजी यह कहने की स्थिति में नहीं कि देखो, हमने गंगा का यह हजारवाँ हिस्सा या गंगा में मिलने वाली किसी एक छोटी सी नदी को पूरी तरह प्रदूषण मुक्त कर दिखाया! पूरा नागरिक समाज जाने किन कारणों से जैसे चुप्पी मारे बैठा है।

गंगा किनारे के लोगों ने भी जैसे मान लिया है कि गंगा प्रदूषण मुक्ति का कार्य सिर्फ सरकार की ही ज़िम्मेदारी है। पूरा धर्मसमाज ऐसे मूक है कि जैसे गंगा प्रदूषण मुक्ति के नाम पर जो हो रहा है, वह पूरी तरह सकारात्मक और पर्याप्त है। ऐसे में आशा बलवती हो, तो हो कहाँ से?

मेरा ही नहीं, ऐसी अनुभूति हो रही है कि जैसे स्वयं बातचीत का भी धैर्य जवाब दे गया है। अतः अब समय आ गया है कि वर्ष 2013 में कठिन उपवास के 110वें और 111वें दिन स्वामी सानंद से हुई मेरी बातचीत को शृंखलाबद्ध तरीके से समाज के सामने रखूँ।

सम्भवतः स्वामी सानंद के अनुभवों व निष्कर्षों से समाज, सरकार और गैर-सरकारी संगठन... तीनों ही समझ सकें कि क्या हालात हैं, जिनसे निराशा पनपती है और क्या हालात हैं, जिनका विकास कर हम आशा को बलवती कर सकते हैं।

गौर कीजिए कि इस बातचीत से पहले मैंने कभी स्वामी जी से इस तरह बात नहीं की थी। सच कहूँ, तो प्रश्न या तर्क ठीक न लगने पर तुरन्त डाँट देने वाले उनके स्वभाव के कारण कभी हिम्मत ही न हुई।

मुझे इस बात का आज भी सुखद आश्चर्य है कि इस बातचीत के लिये स्वामी सानंद ने मुझे स्वयं आमंत्रित किया। इतना ही नहीं, इस वार्ता अवधि के दौरान मेरे रहने-खाने के इन्तज़ाम को स्वामी जी ने अपना दायित्त्व माना।

आते वक्त उन्होंने मुझे दिल्ली से देहरादून आने-जाने का बस किराया दिया; साथ ही अपना ख्याल रखने का अपनेपन भरा निर्देश भी। यह आज़ादी भी दी कि मैं जैसे और जहाँ चाहे इस बातचीत का उपयोग करूँ। इस विश्वास और अपनेपन का आधार मैं आज तक नहीं समझ सका।

हाँ, एक बात और यह कि इस बातचीत से पहले औरों की तरह, स्वामी सानंद मेरे लिये भी एक जिद्दी, सामने वाले को अच्छा लगे या बुरा.. बिना लाग लपेट के कहने वाले, किन्तु पूर्णतया सादगी पसन्द, स्वावलम्बी तथा अपने विषय के ऊँचे दर्जे के विद्वान थे।

गंगा प्रदूषण मुक्ति के अपने संकल्प को लेकर रणनीतियों में अनापेक्षित बदलाव के कारण उनमें परमार्थ में स्वार्थ की कुछ सम्भावना हो सकती है; यह शंका भी कई अन्य की तरह मेरे मन में भी कभी उपजी थी। इसे आप मेरे स्वयं का दिमागी मैल भी कह सकते हैं; बावजूद इसके मुझे स्वामी सानंद की गंगा निष्ठा पर कभी सन्देह नहीं था।

बातचीत के जरिए मैने स्वामी सानंद को समझने की कोशिश की। उनके काम की ईमानदारी को परखने और उनके जीवन की यात्रा कथा को खंगालने की भी धृष्टता की।

इस बातचीत का खुलासा होने पर आप समझ सकेंगे कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि रिहन्द बाँध के निर्माण में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर पर शामिल एक इंजीनियर अचानक बाँधों के खिलाफ हो गया? क्या हुआ कि जो प्रो. जीडी अग्रवाल एकाएक गंगा की तरफ खिंचे चले आये?

कौन से कारण थे कि एक शिक्षक, इंजीनियर और वैज्ञानिक होने के बावजूद प्रो. अग्रवाल ने अपनी गंगा प्रदूषण मुक्ति संघर्ष यात्रा की नींव वैज्ञानिक तर्कों की बजाय, आस्था के सूत्रों पर रखी? क्या वजह या प्रेरणा थी कि प्रो. अग्रवाल, सन्यासी बन स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद हो गए?

कौन सी पुकार थी, जिसने प्रो. अग्रवाल को इतना संकल्पित किया कि वह अपने प्राण पर ही घात लगाने को तैयार हो गए?

यह बातचीत गंगा के मुद्दे पर सरकार, नागरिक समाज और धर्माचार्यों के असली और दिखावटी व्यवहार व चरित्र की कई परतों का तो खुलासा करती ही है, स्वयं स्वामी सानंद के व्यक्तित्व के कई पहलुओं को उजागर करती है। इसके जरिए आप स्वामी सानंद की गंगा संघर्ष रणनीति के सम्बन्ध में फैली कई शंकाओं का भी समाधान पा सकेंगे।

इस बातचीत के दौरान उल्लिखित रुड़की इंजीनियरिंग कॉलेज से लेकर बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी तक का उनका छात्र जीवन बताता है कि उस ज़माने में कॉलेज और विश्वविद्यालय सिर्फ उच्च शिक्षा ही नहीं, समाज में गौरव और नैतिकता के उच्च मानकों को स्थापित करने का भी केन्द्र थे। स्वामी सानंद अपने युवावस्था में क्या विचार रखते थे? चन्द घटनाओं से आपको इसका एहसास होगा।

बिहार के मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार ने एक बार कहा था कि रिटायरमेंट के बाद सब आईएएस. संत हो जाते हैं। यह बात अधिकारी वर्ग के बारे कभी-कभी सत्य भी प्रतीत होती है।

क्या आईआईटी, कानपुर में अध्यापन से केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के प्रथम सचिव के प्रशासनिक पद तक की यात्रा और उसके बात के सुकृत्यों के आधार पर प्रो जीडी अग्रवाल जी के बारे में भी यही कहा जा सकता है? इस प्रश्न का उत्तर जानना दिलचस्प होगा।

स्वामी सानंद के पारिवारिक जीवन की एक झलक भी इस बातचीत में मुझे सुनने को मिली। गंगा के विषय में स्वामी सानंद की वैज्ञानिक और आस्थापूर्ण सोच, इस बातचीत का एक मुखर पहलू है ही।

स्वामी सानंद के साथ अपनी बातचीत को मैंने लिपिबद्ध करना शुरू कर दिया है। यह बातचीत दो दिन के दौरान छह बैठक और करीब 26 घंटों में सम्पन्न हुई।

बातचीत में तारतम्य करने की दृष्टि से तनिक सम्पादन की आवश्यकता भी मुझे महसूस हो रही है। हाँ, ऐसा करने से न तो बातचीत के तथ्यों से खिलवाड़ हो, न बातचीत को गलत तरीके से पेश किया जाये और न ही अपने विचारों को थोपने की कोशिश हो; इसका पूरा-पूरा ख्याल रखना तो जरूरी है ही। अतः मैं ऐसा ख्याल रखूँगा, ऐसा विश्वास करें।

स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद से मेरी बातचीत की शृंखला को मैने ‘स्वामी सानंद गंगा संकल्प संवाद’ नाम देना तय किया है।

इस बातचीत की शृंखला में प्रकाशित कथनों कोे पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करें।

‘गंगा कोई नैचुरल फ्लो नहीं’ : स्वामी सानंद

क्या मैं भागीरथी का सच्चा बेटा हूँ

उन्हें मुझसे सहानुभूति है, लेकिन गंगाजी से नहीं - स्वामी सानंद

यह मेरे लिये दूसरा झटका था : स्वामी सानंद

स्पष्ट हुई आदेश और अपील की मिलीभगत - स्वामी सानंद

भिक्षा, जल त्याग और भागीरथी इको सेंसेटिव जोन

अलकनन्दा के लिये नया चोला, नया नाम, नई जिम्मेदारी

गंगा तप की राह चला सन्यासी सानंद

मेरे जीवन का सबसे कमजोर क्षण और सबसे बड़ी गलती : स्वामी सानंद

जाओ, मगर सानंद नहीं, जी डी बनकर - अविमुक्तेश्वरानंद

मेरी कैलकुलेशन गलत निकली : स्वामी सानंद

नहर, पाइप वाटर सप्लाई, बाँध और वन विनाश हैं समस्या

इंजीनियरिंग में हमेशा विकल्प है : स्वामी सानंद

समस्या यह कि नहर वोट दिलाती है, गंगा नहीं : स्वामी सानन्द

परिवार व यूनिवर्सिटी ने मिलकर गढ़ा गंगा व्यक्तित्व

छात्र जी डी की विद्रोही स्मृतियाँ

स्वामी सानंद : नौकरियाँ छोड़ी, पर दायित्वबोध नहीं

मेरा सबसे वाइड एक्सपोजर तो इंस्टीट्युशन्स के साथ हुआ : स्वामी सानंद

साधुओं ने गंगा जी के लिये क्या किया - स्वामी सानंद

अविवाहित सानंद की पारिवारिक दृष्टि

मेरा देह दान हो, श्राद्ध नहीं - स्वामी सानंद

नाउम्मीद स्वामी सानंद, फिर गंगा अनशन की राह पर

आपका
अरुण तिवारी
146, सुंदर ब्लॉक, शकरपुर, दिल्ली-92
ईमेल : amethiarun@gmail.com
फोन : 09868793799

 

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