स्वामी सानंद की राह पर दो और सन्यासी

मातृसदन में अनशन पर बैठे आत्मबोधानंद एवं पुण्यानंद
मातृसदन में अनशन पर बैठे आत्मबोधानंद एवं पुण्यानंद

मातृसदन में अनशन पर बैठे आत्मबोधानंद एवं पुण्यानंद (फोटो साभार - दैनिक जागरण)गंगा के लिये अपना सब कुछ न्यौछावर करने को तत्पर संतों के लिये हरिद्वार जिले का कनखल स्थित ‘मातृसदन’ तपस्थली बन चुका है। मातृसदन में ही रहकर गंगा की रक्षा की माँग को लेकर 112 दिन के अनशन के बाद 11 अक्टूबर को 87 वर्षीय वयोवृद्ध पर्यावरणविद सह संत, स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद की मृत्यु एम्स, ऋषिकेश में हृदयगति रुक जाने से हो गई थी। उन्हीं की माँगों को आगे बढ़ाते हुए मातृसदन के ही दो सदस्यों ने बुधवार से अनशन शुरू कर दिया है।

परन्तु इस बार के अनशन के केन्द्र बिन्दु हैं 22 वर्षीय युवा संत ब्रम्हचारी आत्मबोधानंद। खास बात यह है कि आत्मबोधानंद ने भी स्वामी सानंद की तरह भोजन का पूर्णतः परित्याग कर दिया है और केवल नीबू-पानी के साथ शहद का सेवन कर रहे हैं। आत्मबोधानंद ने कहा, “मैं भी स्वामी सानंद जी के रास्ते पर चलते हुए उनके द्वारा उठाए गए माँगों के पूरा होने तक अनशन जारी रखूँगा।”

मिली जानकारी के अनुसार आत्मबोधानंद को अनशन करने का पूर्व अनुभव है। विभिन्न माँगों को लेकर वे अब तक सात बार अनशन कर चुके हैं। यह उनका का आठवाँ अनशन है। इससे पूर्व का उनका सबसे लम्बा अनशन 46 दिनों का रहा था जो दिसंबर 2017 में खत्म हुआ था। इस अनशन के दौरान उनकी माँगें थीं- गंगा के बहाव क्षेत्र में खनन गतिविधियों को पूरी तरह से बन्द करना, इससे सम्बन्धित केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण परिषद के सिफारिशों को लागू करना आदि।

आत्मबोधानंद के साथ मातृसदन के ही संत पुण्यानंद ने भी अनशन शुरू कर दिया है। इन्होंने ने भी अन्न का पूर्णतः परित्याग कर दिया है लेकिन फल और पानी ग्रहण करते रहेंगे। पुण्यानंद ने कहा है कि अनशन के दौरान यदि आत्मबोधानंद के साथ कुछ भी अनिष्ठ होता है तो वे निर्जला अनशन शुरू कर देंगे।

गौरतलब है कि मातृसदन के परमाध्यक्ष स्वामी शिवानंद सरस्वती, स्वामी सानंद के देहावसान के बाद खुद अनशन की शुरुआत करने को इच्छुक थे। लेकिन शिष्यों द्वारा बार-बार मना किये जाने पर वे मान गए और उनके शिष्यों ने अनशन की शुरुआत की।

स्वामी शिवानंद सरस्वती ने कहा, “माँ गंगा की रक्षा के लिये मातृसदन हमेशा तत्पर रहेगा चाहे इसके लिये प्राणोत्सर्ग ही क्यों न करना पड़े। हम स्वामी सानंद के त्याग और तपस्या को जाया नहीं जाने देंगे।”

स्वामी सानंद की तरह इस बार भी संतों की माँग है कि गंगा एक्ट 2012 को लागू किया जाये, गंगा और उसकी सहायक नदियों पर सभी निर्माणाधीन और प्रस्तावित जलविद्युत परियोजनाओं को स्थगित किया जाये, गंगा की अविरलता और निर्मलता को बरकरार रखने के लिये एक भक्त परिषद का गठन किया जाये जिसमें पर्यावरणविद, वैज्ञानिकों आदि को शामिल किया जाये और हरिद्वार कुम्भ क्षेत्र में खनन गतिविधियों को पूरी तरह प्रतिबन्धित किया जाये।

उल्लेखनीय है कि गंगा बहाव क्षेत्र में खनन गतिविधियों को प्रतिबन्धित करने की माँग मातृसदन द्वारा 1990 के दशक के उत्तरार्द्ध से ही उठाई जा रही है। वर्ष 1998 में यानी आश्रम के स्थापना के वर्ष से ही यहाँ से जुड़े संत गंगा में खनन को प्रतिबन्धित करने की माँग उठाते रहे हैं। इस माँग के अलावा अन्य माँगों को लेकर आश्रम से जुड़े तीन सन्त अपने प्राणों की आहुति दे चुके हैं। इनमें स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद के अलाव स्वामी निगमानंद सरस्वती और ब्रम्हचारी गोकुलानंद के नाम भी शामिल हैं।

गंगा प्रवाह क्षेत्र में खनन को प्रतिबन्धित करने की माँग को लेकर 113 दिनों से अनशनरत स्वामी निगमानंद की मौत जॉलीग्रांट अस्पताल में जून 2011 में हो गई थी। निगमानंद की मौत को हत्या करार देते हुए स्वामी शिवानन्द सरस्वती ने अस्पताल प्रबन्धन के खिलाफ मुकदमा दायर किया था। मुकदमें की जाँच सीबीआई से भी कराई गई लेकिन एक महीने की छान-बीन के बाद ही उसने क्लोजर रिपोर्ट जारी कर दिया था। फिर इस सम्बन्ध में नैनीताल उच्च न्यायालय में अपील की गई। न्यायालय ने इस मुकदमे की जाँच फिर से सीबीआई द्वारा किये जाने का आदेश जारी किया है लेकिन जाँच एजेंसी द्वारा अभी तफ्तीश को आरम्भ किया जाना बाकी है।

ब्रम्हचारी गोकुलानंद ने भी 1998 में ही गंगा में खनन को रोकने की माँग को लेकर लगभग एक महीने अनशन में रहे थे। इसके बाद वे एकांतवास के लिये हिमालय में चले गए थे। लेकिन नैनीताल के जंगल में संदिग्ध परिस्थितियों में उनकी लाश 2013 में बरामद हुई थी।

बताते चलें कि स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद की मृत्यु के बाद गंगा के संरक्षण को लेकर संत समाज लामबंद हो रहा है। स्वामी सानंद की याद में 21 अक्टूबर को मातृसदन में आयोजित की गई शोक सभा में उनके गुरु स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द भी उपस्थित थे। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि स्वामी सानंद की मृत्यु नहीं हुई है बल्कि हत्या हुई है। उन्होंने यह भी जानकारी दिया कि 25 से 27 नवम्बर तक वाराणसी में मंथन बैठक का आयोजन किया जाएगा जिसमें गंगा की रक्षा से सम्बन्धित रणनीति तैयार की जाएगी। इस बैठक में देश के विभिन्न हिस्सों के 1008 साधु-संत हिस्सा लेंगे। उन्होंने बताया कि इस मंथन बैठक का मुख्य उद्देश्य स्वामी सानंद द्वारा उठाई गई माँगों को आगे तक ले जाना और उसे पूरा करने के लिये सरकार को मजबूर करना।

इसके अलावा संत गोपालदास ने भी स्वामी सानंद की माँगों को आगे बढ़ाने का ऐलान किया है। गंगा के संरक्षण सम्बन्धी विभिन्न माँगों को लेकर वे 24 जून से अनशन कर रहे हैं। उनकी स्थिति बिगड़ने के बाद उन्हें पहले ऋषिकेश, एम्स दाखिल कराने के बाद वहाँ से बीते शुक्रवार को पीजीआई चंडीगढ़ रेफर कर दिया गया था।

 

 

 

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