स्वच्छ भारत अभियान की प्रासंगिकता

Sanitation
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जिस प्रकार इतिहास में कई प्रकार के विलक्षण कार्यों को जनसमर्थन के चलते प्राप्त किया गया, उसी प्रकार स्वच्छ भारत अभियान में जनमानस के जुड़ने से सफलता की गारंटी संभव है।

.इतिहास के पन्नों में स्वच्छता को लेकर कितनी गहराई है, इसको गांधी युग में देखा जा सकता है। शायद ही कभी ऐसा हुआ हो कि शासकों ने स्वच्छता की इतनी गंभीर चिंता की हो। ब्रिटिश काल में बेहतरीन भारत के निर्माण का दौर कुछ कालों में देखा जा सकता है। जब 1928 में राजा राम मोहन राय ने ब्रह्मसमाज को स्थापित किया तो भारतीय समाज में फैली कुरीतियों को स्वच्छ करने का बीड़ा उठाया।

सती प्रथा का अंत, ठगी प्रथा का अंत और बाल विवाह पर रोक इनके मुख्य मिशन थे। साथ ही इसाईयत का जो प्रभाव भारत को चपेट में ले रहा था उसकी रोकथाम भी शामिल थी। दरअसल ब्रिटिश काल का भारत अंग्रेजों की गिरफ़्त में था।शायद यही कारण था कि अनेक भारतीय संगठनों ने सामाजिक बुराई हेतु जो चिंता दिखाई, वह कहीं न कहीं स्वच्छता के इतिहास को गहरा कर रही थी।

बीसवीं शताब्दी में जब गांधी आगमन हुआ तो स्वच्छता कोई साधारण कार्य नहीं रहा। गांधी जी क्रांति और आंदोलन के अगुवा थे। सत्य और अहिंसा के हथियार से समाज में फैली छल-कपट, झूठ-फरेब तथा समाज को हिंसा से स्वच्छ बनाने का प्रयास किया। इतना ही नहीं गांधी ने मन के मैल को भी धोने की विचारधारा दी। एक अच्छे विचार और एक बुरे विचार का भी अंतर बताया। मन पर काबू रखना, मन का रख-रखाव करना और कुरीतियों के प्रति मन? स्थिति बनाना यह गांधी विचारधारा से निकले अचूक दर्शन हैं।

जब 1922 के दौर में असहयोग आंदोलन खत्म हो गया था, गांधी को जेल हो गयी हालांकि 1924 में जब बीमारी के चलते उनकी रिहाई हुई तो एक नए गांधी का भी अवतार हुआ था। इस काल में गांधी अतिरिक्त स्वच्छता, भेद-भाव को समाप्त करना और समस्त भारतवासियों में एकता हेतु सारे कार्यक्रमों को आगे बढ़ाया। गौरतलब यह भी है कि गांधी ने क्रमिक तौर से जहां एक ओर भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को बढ़ाया वहीं दूसरी ओर राष्ट्रीयता से भी लोगों को ओत-प्रोत किया। जिसमें ऊंच नीच के अंतर को समाप्त करने को लेकर स्वच्छता अभियान एक अहम हिस्सा था।

दरअसल गांधी स्वच्छता को बड़ी गंभीर नजरों से देखते थे। इसका असल भाव यह भी था कि स्वच्छ भारत, स्वच्छ लोग और स्वच्छ मन न केवल आंदोलन में सहायक होंगे, बल्कि भारत की स्वतंत्रता हेतु यह एक सफल हथियार भी होगा।यह कहना सही है कि गांधी का स्वच्छता अभियान राष्ट्रीय एकाकीपन के लिए कहीं अधिक उपयोगी था।

स्वतंत्रता के पश्चात देश्, काल और परिस्थितियों के चलते अलग-अलग अभियानों को समटते हुए चलता रहा। इसी क्रम में ग्रामीण और नगरी स्वच्छता का संदर्भ भी भारत में देखा जा सकता है। मोदी सरकार से पहले यूपीए सरकार ने निर्मल योजना के तहत स्वच्छता अभियान को मूर्तरूप देने का प्रयास किया था। नरेंद्र मोदी के चार माह के कार्यकाल में कई चमकती हुई चीजें सामने देखने को मिलती हैं। गंगा स्वच्छता अभियान गंगा स्वच्छता को लेकर उनकी चिंता पहले ही देखी जा चुकी है।

2 अक्टूबर को गांधी जयंती के दिन प्रधानमंत्री ने पूरे देश में स्वच्छता हेतु एक झाड़ू अभियान चलाया साथ ही पूरा एक सप्ताह स्वच्छता अभियान के नाम सर्मिपत रहा। मोदी का स्वच्छ भारत अभियान राजपथ से शुरू हुआ और पांच वर्ष तक चलेगा। उन्होंने प्रतिकात्मक तौर पर स्वयं झाड़ू लगाया और महात्मा गांधी को एक बड़ी श्रद्धांजलि अर्पित की। इतना ही नहीं स्वच्छता को लेकर लोगों को शपथ दिलाई। सप्ताह में दो घंटे और वर्ष में सौ घंटे सफाई हेतु श्रम देने का आह्वान किया। इसके अलावा यह कहा जाना कि मैं न गंदगी करूंगा और न किसी को करने दूंगा। यह कथन मोदी के स्वच्छ भारत के प्रति गंभीर चिंता का प्रकटीकरण करता है।

गांधी के स्वच्छता अभियान में मन की स्वच्छता एक प्रमुख हिस्सा था। क्या मोदी सरकार के स्वच्छ भारत अभियान में जनमानस के अंदर सफाई को लेकर सकारात्मक भाव पनप पायेंगे। सच यह भी है कि भारतीयों को साफ-सफाई एवं स्वच्छता जैसे विचार थोड़े बौने प्रतीत होते हैं, यह किसी और का काम समझते हैं जबकि गांधी ने कहा है कि हर प्रत्येक व्यक्ति में धोबी, साफ-सफाई करने वाला, भोजन पकाने वाला आदि निहित होते हैं। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद कई विषयगत चर्चायें हुई हैं, परंतु स्वच्छ भारत अभियान जनमानस का अभियान है। जिसको लेकर 1930 के दशक में गांधी ने लोगों को जोड़ने का काम किया था। स्वच्छ भारत के उस समय के अभियान ने भारतीय एकजुटता प्रदान करके देश को स्वतंत्रता दिला दी थी। जबकि इस काल का भारत बहुत कुछ अलग-थलग रूप लिए हुए है। अब के स्वच्छ भारत अभियान का आशय का पहलू भिन्न है। इससे ताजगी मिलेगी, स्वास्थ्य मिलेगा, पर्यटन विकास होगा, आर्थिक मुनाफा होंगे। इतना ही नहीं मेडिकल खर्च में कमी आएगी परंतु यह अभियान बिना पूरी जागरूकता के संभव नहीं है। सौ टके का सवाल यह भी है कि स्वच्छ भारत अभियान के चलते जो कचरे जमा होंगे उनका निस्तारण कहां होगा? इस अभियान की पूरी सफलता तभी संभव हो सकती है जब निस्तारण केंद्र भी बढ़ाये जायें।

सरकार की नीतियों में निस्तारण को लेकर अभी खास स्थान नहीं बनता दिखता। इसके अलावा स्वच्छता को लेकर जो अतिरिक्त पूंजी खर्च होगी उसके बंदोबस्त पर भी अभी पूरी बात सामने नहीं आई। बड़ा सवाल यह भी है कि जो मानव संसाधन की कमी है अभी उसको लेकर कोई आंकड़ा भी प्रदर्शित नहीं हो पाया।

अब मुद्दा यह है कि क्या स्वच्छ भारत अभियान केवल सरकार की जिम्मेदारी है? इस यक्ष प्रश्न का उत्तर किसी के मन में क्यों पनपेगा? अब फिर गांधी विचारधारा की चर्चा करनी पड़ेगी।

गांधी के स्वच्छता अभियान में मन की स्वच्छता एक प्रमुख हिस्सा था। क्या मोदी सरकार के स्वच्छ भारत अभियान में जनमानस के अंदर सफाई को लेकर सकारात्मक भाव पनप पायेंगे। सच यह भी है कि भारतीयों को साफ-सफाई एवं स्वच्छता जैसे विचार थोड़े बौने प्रतीत होते हैं, यह किसी और का काम समझते हैं जबकि गांधी ने कहा है कि हर प्रत्येक व्यक्ति में धोबी, साफ-सफाई करने वाला, भोजन पकाने वाला आदि निहित होते हैं। क्या आज का जनमानस इस अवधारणा को और गांधी द्वारा सुझायी गयी बातों को अमल में ला पायेगा? यदि ऐसा हुआ तो स्वच्छ भारत अभियान अतिरिक्त ताकत के साथ सफल होगा अन्यथा मोदी सरकार की यह एक मात्र पहल ही बनकर रह जाएगी।

जिस प्रकार इतिहास में कई प्रकार के विलक्षण कार्यों को जनसमर्थन के चलते प्राप्त किया गया, उसी प्रकार स्वच्छ भारत अभियान में जनमानस के जुड़ने से सफलता की गारंटी संभव है। इसके लिए जरूरी उपाय जैसे जागरूकता अभियान, सफाई से होने वाले लाभों, इसके आर्थिक पहलू आदि को आम जन तक पहुंचाना होगा। इसे केवल गांधी जयंती का एक महोत्सव न समझा जाए बल्कि प्रत्येक दिन का एक काज बनाया जाये। पूरे दिनचर्या में कुछ समय गैर-उत्पादक भी हो सकते हैं, उस समय को साफ-सफाई से जोड़ा जा सकता है।

इसके अलावा छुट्टी के दिन या दिन के किसी हिस्से को स्वच्छता से जोड़कर इस अभियान को जीवित रखा जा सकता है। इन्हीं सब प्रयासों से स्वच्छ भारत अभियान निरंतरता को प्राप्त कर सकेगा और प्रासंगिक भी बना रहेगा।
 

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