स्वच्छ भारतः सफलता का एक अध्याय

20 Nov 2019
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स्वच्छ भारतः सफलता का एक अध्याय
स्वच्छ भारतः सफलता का एक अध्याय

देश भर में व्यक्तियों/समूहों/संस्थानों की अनगिनत प्रेरणादायक कहानियों ने इन वर्षों में स्वच्छ भारत मिशन को आगे बढ़ाया है और ये सब अद्वितीयता और नवीनता में परस्पर प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं।

अक्टूबर, 2019 की शाम को, अहमदाबाद के साबरमती रिवरफ्रंट पर उस समय एक इतिहास रचा गाय जब प्रधानमंत्री ने स्वच्छता के सबसे बड़े हिमायती महात्मा गाँधी को उनकी 150वीं जयंती पर श्रद्धाजंलि स्वरूप खुले में शौच मुक्त ग्रामीण भारत समर्पित किया। देश के सभी 699 जिलों को शौच मुक्त करने की घोषणा, स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण की पाँच वर्ष की प्रेरणादायक और महत्ती यात्रा का प्रतीक है। अक्टूबर 2014 में जब यह यात्रा शुरू हुई तब भारत में स्वच्छता का स्तर केवल 39 प्रतिशत था और इसलिए एक नए अभियान के तहत इस बड़े लक्ष्य को हासिल करना एक असम्भव काम लगता था। इस गौरवशाली उपलब्धि ने लगभग 60 करोड़ लोगों को स्वच्छता पर अमल के लिए प्रेरित कर, स्वच्छ भारत मिशन को, आदतों में बदलाव के दुनिया के सबसे बड़े कार्यक्रम के रूप में स्थापित किया।
 
15 अगस्त, 2014 को, स्वच्छ भारत की परिकल्पना को साकार करने के लिए एक जन आन्दोलन शुरू करने और सभी के लिए स्वच्छता सुनिश्चित करने के प्रधानमंत्री के आह्वान ने देशवासियों के सामने एक अवधारणा पेश की और उनमें जोश भर दिया। इस विषय की मार्मिकता इस तथ्य से सामने आई कि प्रधानमंत्री ने साधारण महिलाओं की गरिमा के मुद्दे को, उनकी दुर्दशा से जोड़कर नागरिकों की अंतरात्मा का आह्वान किया। उस समय वैश्विक आंकड़ों की तुलना में भारत में खुले में शौच के लिए जाने वालों की संख्या पचास प्रतिशत से अधिक थी। भारत की भौगोलिक विशालता, विविधता और क्षेत्रीय चुनौतियों को देखते हुए खुले में शौच से मुक्ति का लक्ष्य हासिल करना वास्तव में एक जटिल कार्य था। लक्षित वर्ष 2030 तक सार्वभौमिक स्वच्छता के संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य-6 को हासिल करना लगभग इस बात पर निर्भर करता था कि भारत क्या कर सकता है या क्या नहीं। सभी बाधाओं के बावजूद, स्वच्छ भारत मिशन, संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य-6 को एक दशक पहले ही हासिल करके विश्व स्तर पर एक अग्रणी के रूप में उभरा है। स्वच्छ भारत मिशन की केवल 5 वर्षों की छोटी सी यात्रा, इस तथ्य से सभी को आश्चर्यचकित करती है कि 10 करोड़ से अधिक घरों में शौचालय का निर्माण किया गया है, और सभी 6 लाख गाँवों, 699 जिलों और 35 राज्यों तथा केन्द्रशासित प्रदेशों को शौचमुक्त घोषित किया गया है।
 
देशभर में व्यक्तियतों/समूहों/संस्थाओं की अनगिनत प्रेरणादायक कहानियों ने इन वर्षों में स्वच्छ भारत मिशन को आगे बढ़ाया है और ये सब अद्वितीयता और नवीनता में परस्पर प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। इनमें से कुछ उल्लेखनीय निम्न प्रकार हैः
 
15 साल की स्कूली लड़की लावण्या ने अपने घर में शौचालय की माँग के लिए 48 घंटे की भूख हड़ताल की । उनका यह आग्रह और अनूठा विरोध प्रदर्शन कर्नाटक के तुमकुरु में उनके गाँव में अपनी तरह की एक छोटी सी क्रांति का कारण बना। इसके परिणामस्वरूप ग्राम पंचायत की सहायता से न केवल लावण्या के घर बल्कि गाँव के अन्य घरों में भी शौचालय बनाया जा रहा है। लावण्या ने अपने जिले में स्वच्छता राजदूत बनकर इसे शौचमुक्त बनाने में अहम भूमिका निभाई। उनकी इस उपलब्धि की प्रशंसा प्रधानमंत्री ने अपने मासिक रेडियों संबोधन मन की बात में की।
 
छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के कोताभरी गाँव की 104 वर्षीय कुवंर बाई ने अपने घर पर शौचालय बनाने के लिए अपनी बकरियाँ बेच दीं। उनकी इस प्रेरक पहल  के लिए, प्रधानमंत्री ने उन्हें मार्मिक तरीके से सम्मानित किया। जम्मू-कश्मीर के उधमपुर जिले के बड़ाली गाँव की 87 वर्षीय महिला रक्खी ने अपने गाँव में एक शौचालय  का निर्माण करने का दायित्व स्वयं पर ही ले लिया, क्योंकि वह राजमिस्त्री का खर्चा वहन नहीं कर सकती थी। बिहार की एक सुविधाविहीन महिला अमीना खातून अपने घर पर शौचालय का निर्माण करने के लिए पैसे इकट्ठे करने निकलीं तो इससे अभिभूत होकर, एक राजमिस्त्री और एक मजदूर ने उनकी मदद की और उनसे कुछ भी पैसा लेने से इन्कार कर दिया। प्रधानमंत्री ने अपने रेडियो सम्बोधन में, भोजपुरा गाँव में 100 से अधिक शौचालयों का निर्माण बिना कोई भुगतान लिए करने और स्वच्छता मंडली का हिस्सा बनने के लिए राजमिस्त्री 65 वर्षीय दिलीप सिंह मालवीय की प्रशंसा की थी।
 
अभियान के केन्द्र में होने, उसका नेतृत्व करने और इस प्रक्रिया में गरिमा तथा सशक्तिकरण वापस प्राप्त करने के कारण स्वच्छ भारत मिशन इस प्रक्रिया में महिलाओं के साथ खड़ा है। ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं ने न केवल स्वच्छता पर चर्चा करने और लोगों को समझाने का साहस किया, बल्कि वे पुरुषों के वर्चस्व वाले चिनाई के काम में दावा ठोककर एक कदम और आगे बढ़ गई। उन्होंने शौचालयों का निर्माण करके रानी मिस्त्री का नाम पाया। देश के कई हिस्सों में अब शौचालयों को प्यार से ‘इज्जत घर’ कहा जाता है। बच्चों और युवाओं ने स्वेच्छा से बड़े पैमाने पर स्वच्छता को अपनाया और इस अभियान को आगे बढ़ाने के लिए स्वच्छता श्रमदान किया। कई जगह स्कूली बच्चों ने मुझे शौचालय चाहिए की माँग के साथ माता-पिता और स्कूल प्रबंधन को शौचालय की आवश्यकता महसूस करवाकर महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। बच्चों ने सवेरे के समय निगरानी कर खुले में शौच करने वालों के लिए सीटी बजाकर और टॉर्च की रोशनी कर उन्हें शौचालय का इस्तेमाल करने के लिए विवश किया।
 
स्वच्छ भारत मिशन में सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले घटक-सूचना, शिक्षा और संचार को रेखांकित किए बिना इस कार्यक्रम की सफलता की कहानी पूरी नहीं हो सकती। लगभग साढ़े चार लाख स्वच्छाग्रहियों ने स्वच्छता की आवश्यकता पर जोर देते हुए गाँवों के घरों में इस बारे में चर्चा का नेतृत्व किया। दरवाजा बंद और शौचा सिंह जैसे जनसंचार अभियानों ने आम लोगों की कल्पना और सोच में बदलाव किया। स्वच्छता ही सेवा, सत्याग्रह से स्वच्छाग्रह, चलो चम्पारण और स्वच्छ शक्ति जैसे अभियान स्वच्छता के उद्देश्य के लिए समाज को प्रेरित करने वाले बड़े उदाहरण बन गए हैं।
 
प्रधानमंत्री ने हमेशा इस पर जोर दिया है कि स्वच्छ भारत मिशन से हर किसी को जोड़ा जाना चाहिए। पिछले कुछ वर्षों में विशेष परियोजनाओः नमामि गंगे, स्वच्छ अनुप्रतीकात्मक स्थल, स्वच्छता पखवाड़ा, स्वच्छता कार्य योजना आदि की एक श्रृंखला रही है, जिसमें सरकार और प्रबुद्ध समाज के सभी वर्गों, जिसमें कॉर्पोरेट जगत भी है, ने समग्र स्वच्छता में योगदान दिया है। अपने क्षेत्र में स्वच्छ्ता में सुधार लाने के लिए कॉलेज के विद्यार्थियों का गर्मी की छुट्टियों में गाँवों में जाकर स्वच्छ भारत प्रशिक्षु के रूप में श्रमदान करना और जागरूकता बढ़ाना प्रेरणादायक है।
 
स्वच्छ भारत मिशन के तहत इन वर्षों के दौरान हासिल किए गए महत्त्वपूर्ण लाभ, केवल स्वच्छता सुविधाओं और स्वच्छता पर अमल तक सीमित नहीं हैं। विभिन्न प्रतिष्ठित संस्थानों/संगठनों द्वारा इसके प्रभावों के अध्ययन से स्पष्ट है कि स्वास्थ्य, वित्तीय और पर्यावरण की दृष्टि से भी यह बहुत लाभकारी साबित हुआ है। मल संदूषण के सन्दर्भ में पर्यावरण के प्रभावों पर यूनिसेफ के नवीनतम अध्ययन में पाया गया कि खुले में शौच वाले गाँवों के भूजल स्रोतों के 11.25 गुना अधिक दूषित होने की सम्भावना है। उनकी मिट्टी के दूषित होने की सम्भावना 1.13 गुना, भोजन की 1.48 गुना और उनके घर के पीने के पानी के 2.68 गुना अधिक दूषित होने की सम्भावना होती है।
 
विश्व स्वास्थ्य संगठन के 2018 के एक अध्ययन के अनुमान के अनुसार भारत के खुले में शौच मुक्त होने पर 2019 तक 3 लाख से अधिक लोगों की जान बचाई जा सकेगी। बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन ने 2017 में किए गए एक अध्ययन में बताया है कि खुले में शौच वाले क्षेत्रों में बच्चों दस्त के लगभग 44 प्रतिशत अधिक मामले सामने आए हैं। इससे पहले 2017 में यूनिसेफ के एक अन्य अध्ययन में सुझाव दिया गया था कि खुले में शौच मुक्त गाँव का प्रत्येक परिवार, परिहार्य चिकित्सा लागत, समय की बचत और जीवन बचाने के कारण प्रति वर्ष 50,000 रुपए से अधिक राशि बचाता है। महिला पुरुष समानता के बारे में अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के 2017-18 के एक अध्ययन में खुले में शौच मुक्ति के कारण महिलाओं द्वारा घरेलू और बाल देखभाल में लगाए जाने वाले समय में लगभग 10 प्रतिशत की कमी और कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी में 1.5 प्रतिशत की वृद्धि होने का संकेत दिया गया है। मोटे तौर पर ये अध्ययन, स्वच्छ भारत मिशन के बाद बनी नई स्वच्छता व्यवस्था से जीवन स्तर में सुधार के साथ एक नई सुबह की ओर इशारा करते हैं। प्रधानमंत्री ने 2 अक्टूबर, 2019 को स्वच्छ भारत दिवस पर अपने सम्बोधन में 60 महीने के रिकॉर्ड समय में 60 करोड़ की आबादी तक शौचालय की सुविधा पहुँचाने की प्रशंसा करते हुए, इस तथ्य को रेखांकित किया कि स्वच्छता पहल विशेष रूप से गरीबों और वंचितों के कल्याण के लिए निर्देशित है। अब इस काम को छोड़ना नहीं है, बल्कि आगे बढ़ाना है।
 
हाल में स्वच्छता के लिए सर्वोच्च सम्मान से सम्मानित तेलंगाना में पेद्दापल्ली जिले का मामला, स्वच्छता कार्य के बहुआयामी स्वरूप की ओर इशारा करता है। यह जिला खुले सीवरेज या जल निकासी से पूरी तरह मुक्त है। सभी घरों में शौचालयों के अलावा बड़ी संख्या में अलग-अलग सामुदायिक शौचालयों का निर्माण किया गया है। गाँवों में इन सामुदायिक शौचालयों के रखरखाव की जिम्मेदारी स्वच्छता समितियों पर है और वे यह भी सुनिश्चित करती हैं कि पानी की नालियाँ प्लास्टिक और अन्य कचरे से मुक्त हों। जिले में हर सप्ताह एक दिन-स्वच्छ शुक्रवार को सभी सरकारी कर्मचारी, चाहे उनका पद या हैसियत कुछ भी हो, सवेरे ग्रामीणों के साथ मिलकर सफाई करते हैं, स्वच्छता सुविधाओं का प्रबंध करते हैं और पेड़ लगाते हैं। यह पेद्दापल्ली मॉडल देश के बाकी हिस्सों के गाँवों के लिए एक आदर्श बन सकता है। आने वाले वर्षों में गुणवत्ता और संधारणीयता के महत्व को ध्यान में रखते हुए, पेयजल और स्वच्छता विभाग, जल शक्ति मंत्रालय ने 10 साल का ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम (2019-2029) शुरू किया है, जो स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण के तहत प्राप्त स्वच्छता पर, अमल जारी रखने पर ध्यान केन्द्रित करता है। यह नीति राज्य सरकारों और अन्य हितधारकों के परामर्श से तैयार की गई है। इसके तहत, ओडीएफ प्लस, जहाँ हर कोई शौचालय का उपयोग करता है और जहाँ के हर गाँव में ठोस तथा तरल कचरे के प्रबंधन की व्यवस्था है, के लिए योजना में स्थानीय सरकारों, नीति निर्माताओं, कार्यान्वयनकर्ताओं और अन्य सम्बन्धित हितधारकों को मार्गदर्शन देने के लिए रूपरेखा तैयार की जाती है। क्षमता निर्माण तथा आईईसी समेकन और शौचालय के गंदे पानी तथा धुलाई, स्नान आदि के लिए इस्तेमाल किए गए पानी के प्रबंधन पर विसेष ध्यान केन्द्रित किया जाता है। पानी की उपलब्धता उन महत्त्वपूर्ण कारकों में शामिल है जिनसे यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि शौचालयों का इस्तेमाल नियमित रूप से निरंतर किया जाता रहे। जल शक्ति मंत्रालय ने 2024 तक हर घर में पाइप जलापूर्ति के लिए महत्वाकांक्षी योजना-जल जीवन मिशन शुरू की है। यह पहल निस्संदेह स्वच्छता बनाए रखने में बहुत कारगर साबित होगी। प्रधानमंत्री ने बापू की 150वीं जयंती पर साबरमती में उनके आश्रम के पास सरपंचों और स्वच्छाग्रहियों को सम्बोधित करते हुए, स्वच्छ भारत मिशन को स्वच्छता और आदतों में बदलाव के लिए दुनिया का एक प्रतिष्ठित स्वच्छता आन्दोलन बनाने का श्रेय भारत के सामान्य ग्रामीणों को दिया, जिनकी समर्पित भागीदारी से यह सम्भव हो पाया। इसके साथ ही, उन्होंने सभी को स्वच्छ भारत की उपलब्धियों को संरक्षित करने और इन्हें आगे भी जारी रखने के संकल्प को याद रखने को कहा। उन्होंने वर्ष 2022 तक देश को एक बार इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक से मुक्त करने के लिए एक विशिष्ट स्वच्छता और पर्यावरणीय एजेंडा देश के सामने रखा। अब अगले कदम के रूप में एक और समयबद्ध अभियान नए लक्ष्य के तौर पर हमारे सामने है। यह जन आन्दोलन भी अविरल जारी रहेगा।
 
प्रधानमंत्री ने हाल में, एक महत्त्वपूर्ण अन्तरराष्ट्रीय शिखर वार्ता के सिलसिले में तमिलनाडु के मामल्लपुरम प्रवास के दौरान समुद्र तट पर सुबह की सैर के दौरान प्लास्टिक और अन्य कचरा उठाने के बाद, ट्वीट किया। आइए हम यह सुनिश्चित करें कि हमारे सार्वजनिक स्थान स्वच्छ और सुव्यवस्थित हों! हम यह भी सुनिश्चित करें कि हम फिट और स्वस्थ रहें। ये टिप्पणियाँ राजनीतिक नेतृत्व की गम्भीरता और पहल को दर्शाती है जो 130 करोड़ की आबादी की फिटनेस, स्वच्छता और स्वास्थ्य को समग्र रूप से जोड़ती है। साथ ही यह इस बात को रेखांकित करती है कि सम्पूर्ण स्वच्छता के लक्ष्य को हासिल करने के लिए लम्बा रास्ता तय करना होगा।

 

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