स्वच्छ पेयजल का स्थायी विकल्प कुआँ

लोगों की आस्था और विश्वास के प्रतीक गंगा नदी बिहार राज्य के मध्य होकर पश्चिम से पूरब की ओर प्रवाहित होती है। बिहार में गंगा के उत्तरी भाग को उत्तरी बिहार कहा जाता है। उत्तर बिहार में हिमालय पर्वत की शिवालिक पहाड़ियों से होकर घाघरा, गंडक, बागमती, कमला, भुतही बलान, कोसी और महानन्दा नदियां निकल कर गंगा की मुख्यधारा में समाहित हो जाती है। इन नदियों से प्रतिवर्ष बाढ़ आती है जिससे 18-22 जिले हमेशा प्रभावित होते हैं। बाढ़ एक मानवकृत प्राकृतिक आपदा है, जो हजारों लोगों व पशुओं पर कहर ढाती हुई लाखों की सम्पत्ति को भारी नुकसान पहुँचाती है।

बाढ़ के दौरान लोगों को ढेर सारी समस्याओं से गुजरना पड़ता है। ठहरने का उँचे स्थान, भोजन की व्यवस्था, आवागमन, स्वास्थ्य (खास कर बच्चे एवं गर्भवती महिलाओं) शौचालय (किशोरी एवं महिलाओं) एवं पेयजल की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। चारों तरफ बाढ़ के गन्दे पानी होने से लोग उसी गन्दे पानी को पीने एवं खाना बनाने में उपयोग करते हैं। तटबन्ध के अन्दर, पेयजल स्रोत बाढ़ के पानी से डूबा रहता है और तटबंध के बाहर का क्षेत्र वर्षा पानी से एवं बांध के पानी रिसाव से जल-जमाव की स्थिति में रहता है, जिससे आस-पास के गांव में पेयजल का स्रोत डूबा रहता है। फलस्वरूप गाँव में रहने वाले तथा बांध पर शरण लिए लोग बाढ़ के गंदे पानी को पीने पर विवश होते हैं।

विकास कार्यकर्ता एकलव्य प्रसाद के साथ ग्राम्यशील (सुपौल), कोसी सेवा सदन (सहरसा), समता (खगड़िया), घोघरडीहा प्रखंड स्वराज विकास संघ, (मधुबनी) द्वारा विभिन्न बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों का अध्ययन किया गया। अध्ययनोपरान्त महसूस किया गया कि बाढ़ के दौरान बाढ़ से प्रभावित लोगों को पीने के लिए पानी की गंभीर समस्या रहती है। बाढ़ के समय प्रभावित लोग गन्दे पानी को ही पीते है तथा बीमार पड़ते है। तीन महीने तक बाढ़ के गंदे पानी को पीने से साल के शेष नौ महीने तक लोग बीमारी की गिरफ्त में फंसे रहते हैं।

पूरा स्टोरी पढ़ने के लिए अटैचमेंट देखें
 

Posted by
Attachment
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading